गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत…3

राम राम मै अरुण.
साधना वृतांत,
शिवांशु जी की बुक से साभार…

वह गुरुवर की साधना का पांचवां दिन था.
साधना के पांचवें दिन गुरुदेव ने मुझे अपने पास बैठने का अवसर दिया।
साथ बैठा तो वही कल वाली सम्मोहक सुगंध आज भी गुरुदेव के आस पास महसूस हुई।
आज मै अनायास इधर उधर हाथ लहराता रहा। और इंतजार करता रहा कि कल की तरह शायद फिर किसी से दिव्य टकराव हो। मगर एेसा कुछ नहीं हुआ।

लेकिन एक फायदा तो हुआ। मेरे मन की बेचैनी पर गुरुदेव को तरस आ गया। और उन्होंने मुझे एक शर्त के साथ अदभुत सुगंध और कल न दिखने वाली किसी शक्ति से टकराने के अहसास का रहस्य बता दिया।
शर्त थी मै उसकी चर्चा किसी से नहीं करुंगा।
मैने गुरूदेव से पूछा क्या वे अभी भी आपके साथ हैं।
जवाब में गुरूदेव सिर्फ मुस्करा दिये। जैसे कह रहे हों जब तुम्हें एेसी साधना कराउंगा तो खुद देख लेना।
गुरुदेव ने कल छोटी बिटिया के हाथ से दो घूट पानी पीने और तरबूज की एक बाइट खाने के बाद और कुछ ग्रहण नहीं किया। आज भी नहीं। लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर ताजगी और चमक बढ़ी है।
कल तो वे गुरू मां को सी आफ करने भी गए। गाड़ी खुद ड्राइव की। सामान्य मुसाफिरों की तरह गर्मी भरे प्लेटफार्म पर लगभग 1 घंटे रुके।
प्लेटफार्म पर दो बुजुर्ग लोगों को गाड़ी में बैठने में मदद की।
एक ठेले से खरीदकर चार भूखे बच्चों को खाना दिया।
लौटते समय धूप में बैठे कुछ जरूरतमंदों के लिए गुरुदेव ने अपना मौन व्रत तोड़ दिया. गाड़ी से उतरकर उनसे खाने के लिए पूछा।
फिर अपने हाथ से खरीदकर उनको भोजन दिया और पानी के पाउच दिये। उसके बाद गाड़ी ड्राइव करते हुए ही गुरूदेव ने दिल्ली आश्रम के सहयोगी अरुण जी और नीतू जी से फोन पर कुछ मिनट बात भी की। उनसे दिल्ली आश्रम से जरुरतमंदों को दी जाने वाली सहायता की जानकारी ली.
उसके बाद फिर मौन में चले गये.
उनकी एकांत साधना जारी रही।

गुरुदेव की साधना का छठा दिन…
आज मेरी क्लास लग गयी.
उतावलेपन में मैंने गुरुवर से एक साथ 3 सवाल पूछ दिए. गुरुदेव् को ताबड़तोड़ या गैरजरूरी सवाल पसंद नहीं।
वे हमेशा कहते है सवाल पूछना एक व्यक्ति का अधिकार हो सकता है, लेकिन उसका जवाब देंने या न देने की आजादी दूसरे को भी मिलनी चाहिये.
आज मैंने उनकी ये आजादी भंग कर दी. इस पर गुरुवर ने मुझे बहुत ही सर्द निगाहों से देखा. उनकी दृष्टि से जबरदस्त शक्तिपात का अहसास हुआ मुझे. मै उसके प्रभाव से जम सा गया। मुझे अपनी गलती का अहसास हो चुका था. पर देर हो गई।
मै नजरें झुकाये बैठा रहा. गुरुदेव चले गए।
मेरा दिल दिमाग ग्लानि से भरा था. सोच भी नही पा रहा था क्या करूँ? पेड़ के नीचे वहीँ बैठा रहा। धूप आ गयी, पसीना बहने लगा. मै जड़वत था. काफी देर बाद याद आया यह गुरुदेव की दृष्टिपात से हुए तीखे शक्तिपात का असर था. मै धूप से बचने के लिए भी वहां से हिल न सका.
लगभग 1 घण्टे बाद गुरुवर बाहर आये। शायद मुझ पर नजर पड़ते ही उन्हें याद आया होगा कि मै वहां हूँ। या फिर मेरी सजा की अवधि वही रही होगी।
गुरुदेव की दृष्टि पड़ते ही मै शक्तिपात से रिलीज हो गया। अब मै अपनी जगह मूव कर सकता था.
उन्हें मुझ पर तरस आ गया। पास आये। मेरे कन्धे पर हाथ रखा। पछतावे के कारण मेरी आँखों में गीलापन आ गया। उन्होंने मुझे गले लगा लिया।
गुरुदेव से दयालू कोई नहीं.
इस दण्ड का मुझे बहुत बड़ा पुरस्कार मिलने जा रहा है. आज की घटना के कारण वे मुझे टेलीपैथी सिखाने वाले हैं। ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर मै उनसे मन ही मन बात कर सकूँ.
इस दिव्य दिन का मै पिछले 9 साल से इन्तजार कर रहा था। इस दौरान मैंने इसके लिए उनसे कम से कम 100 बार आग्रह किया। लेकिन हर बार गुरुदेव ने मुस्कराकर टाल दिया। आज उन्हें मुझ पर दया आ ही गयी, और मुझे टेलीफैथी का दिव्य पुरस्कार मिलने वाला है.
सो आज मै आपकी शुभकामनाओं का पात्र हूँ।

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