सुनसान के साधक…3
गंगा के पानी को घी बना देने वाले संत
सभी अपनों को राम राम
हिमालय साधना इच्छुक साधकों के लिये मणिकूट पर्वत का क्षेत्र लंबे समय से आकर्षण और सिद्धियों का केंद्र रहा है। अनगिनत साधकों ने यहां सिद्धियां अर्जित की हैं और करते जा रहे हैं।
मै इस बार की अपनी हिमालय साधना का अधिकांश समय यहीं बिता रहा हूँ।
आज यहां सिद्ध हुए एक संत की चर्चा करेंगे।
नाम था बाबा जयराम।
बात बहुत पुरानी है।
मणिकूट पर्वत से सबसे नजदीक ऋषिकेश है।
तब ऋषिकेश में बाजार नही थी। खास दुकानें भी न थीं।
पहाड़ और जंगल ही थे।
यहां सिर्फ साधु संत ही रहते थे।
साधुओं को भोजन के लिये कुछ लोग यहां कभी कभी भंडारे का आयोजन करते थे।
उन दिनों किसी श्रद्धालु ने भंडारे का आयोजन किया। भंडारे में अनुमान से अधिक साधु भोजन के लिये आ गए।
पूड़ियाँ बनाने के लिये घी तेल कम पड़ गया।
तब जरूरत का सामान यहां से काफी दूर सहारनपुर में ही मिलता था। वहां जाकर घी ला पाना सम्भव न था।
साधु भोजन के लिये पंक्ति में बैठ चुके थे।
साधुओं के श्राप का खतरा पैदा हो गया।
आयोजकों में अफरा तफरी मच गई।
तभी किसी स्थानीय व्यक्ति ने पास की पहाड़ी पर रहने वाले एक बाबा के पास जाने का सुझाव दिया।
बताया कि वे बाबा अपना भोजन खुद ही बनाते हैं। हो सकता है उनके पास घी या तेल मिल जाये।
वे थे बाबा जयराम।
आयोजक उनके पास गए और सारी बात बताई।
बाबा अपनी कुटिया के भीतर गए। वहां से एक कागज पर कुछ लिखकर लाये।
आयोजकों को देकर बोले मेरी यह चिट्ठी गंगा मइया को दे देना। उनसे जितना जरूरत हो उतना घी ले लेना। जितना लेना बाद में उतना उन्हें वापस कर देना।
आयोजक असमंजस में थे।
फिर भी गंगा जी के किनारे गए।
बाबा के बताए मुताबिक उनकी दी पर्ची गंगा जी में डाल दी। उसके बाद बाल्टियों में गंगा जी का पानी भर लिया।
वे लोग तब हैरान रह गए जब गंगा जल बाल्टियों में भरते ही घी नजर आने लगा। उससे भंडारा पूर्ण हुआ।
बाद में आयोजकों ने सहारनपुर से घी लाकर गंगा जी को वापस किया। वे बाल्टी में भरकर घी डालते थे, गंगाजी में गिरते ही वह पानी बनता गया।
बाद में शिष्यों ने क्षेत्र में जयराम बाबा के आश्रम की स्थापना की।
हमारी धरती हमेशा सिद्धों से भरी रही है।
आगे मै मणिकूट में मुझे मिले एक खतरनाक सिद्ध के बारे में बताऊंगा। जो मन्त्र शक्ति से किसी को मरणासन्न कर देते हैं। वे अपनी सिद्धि को आजमाने के लिये अब तक अनगिनत जानें ले चुके हैं।
क्रमशः
शिव शरणं!