खरगोश के मांस की बलि के अभाव में पहले ही दिन मिली मृत्यु की चेतावनी
सभी अपनों को राम राम
कुछ साधकों ने मेल के द्वारा पिछले दिनों सम्पन्न हुई यक्षिणी साधना के बारे में जानने की इच्छा जताई है. जिससे वे उच्च साधनाओं की प्रेरणा ले सकें.
हरिद्वार में मृत्युंजय योग के तत्वाधान में तीन बार यक्षिणी साधना सम्पन्न की. उद्देश्य था देवी को अपने आभामंडल में प्रेवश कराना, अपने जीवन में प्रवेश कराना. अपना अध्यात्मिक मित्र बनाना. साधना के लिये लक्ष्मी वर्ग की यक्षिणी स्वर्णावती का चयन किया गया.
आमतौर से साधक इन यक्षिणी की सिद्धी आकस्मिक धन प्राप्ति के लिये करते हैं. आकस्मिक धन प्राप्ति का यह प्रयोग बड़ा ही कारगर साबित होता है. मैने जब कभी किसी को यह प्रयोग कराया उसे त्वरित लाभ मिला.
मगर मृत्युंजय योग साधक देवी को आध्यात्मिक मित्र के रूप में चाहते थे. ताकि वे आजीवन उनके साथ रह सकें. लोक परलोक सुधार सकें.
हरिद्वार में पहली यक्षिणी साधना अप्रैल 2018 में हुई.
दूसरी सिद्धी साधना जून 18 में हुई.
तीसरी साधना 25 फरवरी 19 से 3 मार्च 19 के मध्य सम्पन्न हुई.
यहां मै तीसरी साधना का वृतांत बताउंगा.
इस साधना की तैयारी 18 अक्टूबर 18 को की गई. 8 नवम्बर को इच्छुक साधकों के फोटो प्राप्त हुए. फोटो के जरिये उर्जाओं का परीक्षण किया. 60 प्रतिशत लोगों की उर्जा यक्षिणी सिद्धी लायक नही मिली. उन्हें साधना में शामिल होने की अनुमति नही दी गई. जिन 40 प्रतिशत लोगों की उर्जा यक्षिणी साधना योग्य मिली उनमें से लगभग 50 प्रतिशत विभिन्न कारणों से साधना में नही पहुंच सके.
दरअसल यक्षिणी या इस तरह की प्रत्यक्षीकरण से जुड़ी उच्च साधनायें पूर्व जन्मों के सत्कर्मों से ही फलित होती हैं. जिनके प्रारब्ध सकारात्मक नही होते वे एेसी साधनाओं में हिस्सा नही ले सकते.
कुछ विद्वान मानते हैं कि कई जन्मों तक प्रयास करते रहने के बाद लोगों को यक्षिणी सिद्धी का अवसर मिलता है.
फरवरी की यक्षिणी साधना में जिन्हें अनुमति मिली उनकी उर्जाओं को ठीक करके 2 दिसम्बर से प्रतिदिन 1 घंटे का मंत्र जप घर से ही आरम्भ कराया गया.
अधिकांश साधकों ने लगन से जप किया.
दोबारा फोटो मंगाये गये. जिन्होंने 1 घंटे मंत्र जप में घालमेल किया उन्हें साधना में आने से रोक दिया गया.
जैसा कि उच्च साधनाओं में प्रायः होता है उसी के मुताबिक साधना का मुहूर्त कई बार बदला. साधकों को कई बार अपने टिकट कैंसिल कराने पड़े. उद्देश्य था साधकों के समर्पण की परख. इस परख में कुछ लोग विफल हो गये. वे साधना में नही पहुंच पाये. शायद उनके प्रारब्ध उनका साथ न दे सकें.
इस बार की साधना में कुल 20 साधक शामिल हुए.
बड़े अचरज की बात यह रही कि सालों से उतावले कुछ साधक (जोकि योग्य भी थे) नही शामिल हो सके. उसके विपरीत कुछ एेसे लोगों को साधना में प्रवेश मिल गया जिन्होंने इस बारे में कभी सोचा ही नही था. भौतिक रूप से वे इसके लिये सामर्थ्यवान भी नही थे. उनके प्रारब्ध प्रबल निकले और उन्हें साधना में पहुंचा दिया.
25 फरवरी से हरिद्वार आश्रम साधना के संकल्प पूरे हुए. उसी दिन साधकों ने गंगा जी के किनारे बैठकर मंत्र जप आरम्भ किया.
किसी भी साधना की सफलता के लिये जरूरी होता है कि साधक के आभामंडल में ग्रहों की खराब उर्जा, देवदोष की उर्जा और पितृदोष की मिलावट न हो.
गंगा जी के किनारे ग्रहदोष निवारण साधना हुई. जिसके प्रभाव से साधकों को ग्रह नक्षत्रों के दुष्प्रभाव से मुक्त किया गया.
अगले दिन पितृधोष निवारण हेतु साधकों ने शांतिकुज में जाकर तर्पण और पिंडदान किये.
27 व 28 फरवरी को मैने साधकों पर देवदोष से मुक्ति के लिये शक्तिपात किया.
1 मार्च 19 से मूल साधना प्रारम्भ हुई.
शास्त्रों में वर्णित विधान के मुताबिक साधना की देवी को प्रशन्न करने के लिये सियार सिंघी और यक्षिणी बलि के लिये खरगोश के मांस की आवश्यकता होती. है. मैने दोनों जीव वस्तुओं के बिना साधना कराने की तैयारी की थी.
सियार सिंघी की जगह सभी साधकों को पुखराज की पोटली दी गई. जिसमें 5-5 पुखराज थे. उन्हें यक्ष लोक की उर्जाओं से जोड़ा. साधकों की उर्जाओं से जोड़ा इस तरह से पुखराज के समूह के द्वारा हर साधक हर पल यक्षिणी की उर्जा के साथ जुड़ा रहा. पुखराज की उर्जा आकर्षित करके हर क्षण देवी यक्षिणी को साधकों के नजदीक लाती रहतीं.
मामला उलझा बलि पर.
विधान के मुताबिक देवी को खरगोश के मांस की बलि दी जाती है.
मैने मांस की बजाय यक्षिणी को मिष्ठान की बलि प्रस्तुत की.
साधकों में भय या संसय व्याप्त न हो इसलिये इस बारे में उनसे कोई चर्चा नही की.
मगर अपने आप में मै पूरी तरह सतर्क था.
साधना स्थल पर महामृत्युंजय सुरक्षा कवच, पंचदेव सुरक्षा कवच और क्षेत्रपाल सुरक्षा कवच का निर्माण करके संतुष्ट था.
परंतु साधना शुरू होते ही मृत्यु की चेतावनी मिल गयी.
साधकों द्वारा मंत्र जप के दौरान सभी साधकों को यक्ष लोक से जोड़े रखने के लिये मै निजी साधना कक्ष में जाकर 3 घंटे की प्रथक साधना करता था. जप आरम्भ कराकर मैने निजी साधना कक्ष में यक्ष साधना शुरू ही की थी कि सोमेश ने आकर चिंतित कर देने वाली सूचना दी.
सोमेश को साधकों की निगरानी के लिये नियुक्त किया गया था. उसने आकर बताया कि कई साधकों की माला मंत्र जप आरम्भ होते ही एक साथ टूट गई हैं.
साधना के दौरान माला का टूटकर गिर जाने का मतलब होता है मृत्यु का खतरा या मृत्यु तुल्य कष्ट.
निजी तौर पर मै जानता था कि देवी यक्षिणी को खरगोश के मांस की बलि नही दी गई है. जिसके एेसे परिणाम आ सकते हैं.
सच कहूं तो कुछ समय के लिये मै भयग्रस्त होकर विचलित हो गया.
दो रास्ते थे.
एक तो साधना रोक दी जाये.
दूसरा अपने प्राणों की कीमत पर साधकों के प्राणों की रक्षा करते हुए आगे बढ़ा जाये.
इस बारे में मैने शिवगुरू जी से सवाल जवाब करना उचित समझा.
जवाब मिल गया.
मैने दूसरा रास्ता चुना. साधकों की टूटी माला बदलीं और उन्हें नारायण सुरक्षा में डाला. अपने लिये देवदूतों का आग्रह किया.
साधना आगे बढ़ी.
निजी साधना कक्ष में जाने से पहले मैने सोमेश से कहा कि वह हर पल साधकों पर निगाह रखें. जरा सा भी किसी साधक में असामान्य लक्षण नजर आये तो तुरंत मुझे सूचित करे.
सोमेश ने इस काम को बखूबी निभाया.
मगर उसने दो साधकों के भीतर देवी यक्षिणी को प्रवेश करते हुए देख लिया. मुझे इसकी जानकारी नही दी.
अगले दिन सोमेश पर जानलेवा अटैक हुआ. मृत्यु से वापसी के लिये उसके साथ देवदूतों की नियुक्ति करनी पड़ी.
आगे मै बताउंगा कि सोमेश के साथ क्या हुआ.
क्रमशः.
शिव शरणं