मै यहां एनर्जी गुरू श्री राकेश आचार्या जी द्वारा अपने खास शिष्यों को सिद्ध कराई गई कामना सिद्धि साधना की बात कर रही हूं. जिसका जिक्र गुरू जी के निकट शिष्य शिवांशु जी ने अपनी प्रस्तावित ई-बुक में किया है. साधक इसे जान सकें. अपना सकें. अपनी खुशियां खुद अपनी जिंदगी में ला सकें. इसलिये मै कामना सिद्धि साधना वृतांत के खास अंशों को यहां शेयर कर रही हूं…. शिव प्रिया.

(साधना वृतांत – शिवांशु जी के शब्दों में….)
हम रायबरेली पहुंचने वाले थे. मै ड्राइव कर रहा था. गुरुवर बगल की सीट पर आधे लेटे से बैठे थे. सफर के दौरान उन्होंने प्रशांत जी के बारे में पूछे गए मेरे सवालों के जवाब दिये.
मेरे मन में प्रशांत जी को लेकर तमाम सवाल थे. मगर गुरुवर ने उन्हें हर बार टाल दिया था. उनकी आदत है. वे किसी भी सवाल का जवाब तभी देते हैं, जब जरूरी हो. अन्यथा कोई कुछ भी पूछता रहे, वे टालते रहते हैं. इस बार उन्होंने मेरे सवालों के जवाब दिये.
प्रशांत जी पहले लखनऊ में रहते थे. एक साप्ताहिक अखबार में सब एडिटर थे. लघु कथायें भी लिखा करते थे. उन्हीं दिनों पत्रकारिता के क्षेत्र में गुरुवर से उनकी मित्रता हुई थी. मूलरूप से वे रायबरेली के रहने वाले थे. उनका परिवार आर्थिक रूप से काफी पीछे था. अखबार में काम करते करते उन्हें किसी ने फिल्मों में स्क्रिप्ट लिखने की सलाह दी. फिल्मों की कहानियां लिखने का सपना लेकर प्रशांत जी 2007 में परिवार सहित मुम्बई पहुंचे. वहां फिल्मों में काम के लिये स्टगलिंग करने लगे. वैसे वे अच्छा लिखते थे. मगर समय ने साथ नही दिया. पत्रकारिता में जो कमाया था. मुम्बई की स्टगलिंग में सब चला गया. लखनऊ में उनकी पत्नी शोभा ट्यूशन पढ़ाती थीं. मुम्बई में वो आमदनी भी नही बची. क्योंकि उन्हें ट्यूशन नही मिले.
आर्थिक दबाव ने घर की शांति भंग कर दी. स्टलिंग करते भटक रहे पति और घर में बेकार बैठी पत्नी के प्यार ने झगड़ों की शक्ल ले ली. शोभा जी को यूट्रेस में रसौली डिटेक्ट हुई. मगर धनाभाव के कारण उनका उपचार शुरू न हो सका. डा. ने कैंसर की आशंका से बायप्सी जांट कराने के लिये कहा. मगर पैसों की कमी के कारण उसे कराया नही जा सका. उसी बीच दोनो बच्चों काम नाम स्कूल के कट गया. क्योंकि 3 महीने से फीस जमा नही हुई थी.
जिस दिन बच्चों को फीस न जमा कर पाने के कारण स्कूल से निकाला गया, उसी दिन शोभा जी ने जहर खाकर आत्महत्या की कोशिश की. इसकी जानकारी उनके एक पत्रकार मित्र ने गुरूदेव को दी. इसी सूचना पर हम मुम्बई पहुंचे थे.
गुरुवर ने प्रशांत जी के परिवार को आत्महत्या के लिये विवश कर रही परेशानियों से निकालने के लिये कामना सिद्धि साधना कराने का फैसला लिया. साधना स्थल के रूप में प्रशांत जी के गांव का चयन किया गया. उनका गांव यू.पी. के रायबरेगी डिस्टिक में है. अगले ही दिन प्रशांत जी परिवार सहित रायबरेली के लिये रवाना हो गये.
मै गुरुवर के साथ तखनऊ लौट गया.
दो दिन बाद लखनऊ से रायबरेली के लिये निकले. गुरुदेव ने वहां बाई रोड जाना तय किया था.
रास्ते में मैने गुरुवर से पूछा कामना सिद्धी साधना के लिये मुम्बई की बजाय आपने प्रशांत जी के गांव को क्यों चुना.
क्योंकि बाम्बे में उन पर आर्थिक दबाव बहुत ज्यादा है. एेसे में साधना के लिये उनका मन स्थिर नही हो सकता. बिना स्थिरता साधना सफल नही होती. गुरुदेव ने कहा. शोभा वापस लौटना चाहती थी. अब वह भी शांत हो जाएगी. अपना घर होगा, अपना भोजन होगा, अपने साधन होंगे, अपने लोग लहोंगे तो प्रशांत को बेचैनी नही होगी. साथ ही उनके परिवार के डी.एन.ए. की एनर्जी बहुत खराब है. इसी कारण पीढ़ियों से आर्थिक समस्या उनके पीछे लगी है. उसके समाधान के लिये उनके कुलदेव के पास जाना सबसे बड़ा उपचार होगा.
डी.एन.ए. की एनर्जी खराब होने का मतलब होता है पितृ दोष. गुरुवर उसके लिये अपने कुलदेव की आराधना करने को प्राथमिकता देते हैं. कुलदेव की उर्जा लोगों के डी.एन.ए. की उर्जा से सदैव जुड़ी रहती है. इसीलिये कुलदेव के समक्ष जाने से पितृदोष शांत हो जाता है.
जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष, मंगली दोष कालसर्प दोष, कुंडली ऋण आदि की समस्या बताई जाती हैं, उन्हें अपने कुलदेव के दर्शन करते रहने चाहिये. उनके लिये इससे बड़ा और उपचार कोई नही होता.
*कामना सिद्धि साधना में साधक को अपनी उन खुशियों से बात करनी होती है, जिन्हें वह चाहता है. उन्हें कामनाओं के रूप में रेखांकित किया जाता है. फिर 9 दिन तक उनसे बात की जाती है. इसके लिये चेतन मन और अवचेतन मन दोनो शक्तियों का उपयोग करना होता है. इसी बीच शरीर की पंचतत्वों की उर्जाओं को संचालित करना सीखना होता है. ताकि टेलीपैथी के दौरान किसी कामना की एनर्जी अधूरी लगे तो उसे पंचतत्वों के द्वारा पूरी कराई जा सके*.
आगे मै इसकी तकनीक विस्तार से बताउंगा.
मगर अभी तक प्रशांत जी की दशा देखकर मुझे आशंका थी की वे ये सब नही कर पाएंगे. इसके लिये मन में निश्चिंतता और शांति अनिवार्य होती है. प्रशांत जी का मन बहुत अशांत और विचलित था. मैने अपनी आशंका गुरुदेव के समक्ष रखी. तो वे रहस्यमयी तरीके से मुस्करा दिये. कोई जवाब नही दिया.
मै मन ही मन सोच रहा था कि ये कैसे होगा.
सच कहें तो मुझे लग ही नही रहा था कि प्रशांत जी एेसा कर पाएंगे.
……………. क्रमशः