एेसा दुख कि रोम रोम कांप उठे
खुशियां सभी चाहते हैं. 

उन्हें ऊपर वाले से मांगते हैं.
ऊपर वाले ने बिना मांगे ही इन्हें पाने की राह भी बनाई है. बस उस पर चलना सीख लें. इस राह पर अपनी खुशियों से बात की जाती है. जो चाहते हैं, उन खुशियों (कामनाओं) से बात करें. उनसे दोस्ती करें. उनसे पूछें कि वे आप तक कैसे आएंगी. टेलीपैथी के द्वारा आपकी खुशियां आपको बताएंगी कि उन्हें आप तक पहुंचने के लिये किन उर्जाओं की जरूरत है. उन उर्जाओं को संजीवनी उपचार से प्राप्त कर लें. फिर खुशियों को अपनी लाइफ में आने का न्यौता दें. कुछ ही समय में आप देखेंगे वे जिंदगी में आ गईं.
मै यहां एनर्जी गुरू श्री राकेश आचार्या जी द्वारा अपने शिष्यों को सिद्ध कराई गई कामना सिद्धि साधना की बात कर रही हूं. जिसका जिक्र गुरू जी के निकट शिष्य शिवांशु जी ने अपनी प्रस्तावित ई-बुक में किया है. साधक इसे जान सकें. अपना सकें. अपनी खुशियां खुद अपनी जिंदगी में ला सकें. इसलिये मै कामना सिद्धि साधना वृतांत के खास अंशों को यहां शेयर कर रही हूं…. शिव प्रिया.
(आगे साधना वृतांत – शिवांशु जी के शब्दों में….)
बात अप्रैल 2008 की है.
सालों से गरीबी झेल रहे प्रशांत जी के आमंत्रण पर गुरूवर मुम्बई में थे. मै उनके साथ था.
प्रशांत जी पेशे से राइटर थे.
गुरू जी के मित्र थे.
मगर वक्त के मारे थे.
गरीबी एेसी जैसे मां लक्ष्मी ने अपनी कृपा सूची से उनका नाम मिटा दिया हो.
परेशानियों का सिलसिला एेसा जैसे मुसीबतों ने उनका घर ढूंढ़ लिया हो.
लाचारी एेसी जैसे ऊपर वाले ने उनसे अपना मुंह मोड़ लिया हो.
बेचारगी एेसी कि वे किसी को धन्यवाद भी दें तो लोग उसे गाली समझें.
मकान मालिक रोज बेघर कर देने की धमकी दे रहा था. बच्चों को स्कूल से निकाला जा चुका था. इलाज तो दूर बीमार पत्नी की मेडिकल जांच के भी पैसे नही थे. बाइक में पेट्रोल डलवाये पखवारा बीत चुका था. सो पैदल ही भ्रमण करना पड़ रहा था.
गरीबी में एक उपलब्धी भी जुड़ गई.
खरीद न पाने के कारण सिगरेट की 14 साल पुरानी लत छूट गई थी.
उनकी दशा और मनोदशा देख मेरे भीतर एक सवाल उठा, क्या इस युग में कोई हरिश्चंद्र पैदा हो गया.
क्योंकि प्रशांत जी का स्वाभिमान अभी भी अडिग था.
गुरूवर ने मदद की पेशकस की तो साफ मना कर दिया. बोले इससे जीवन नही चल सकेगा। आप तो मुझे कुछ एेसा करा दें जो पुरुषार्थ से खुशियों का आधार बनें.
मित्र की हालत देखकर गुरुवर दुख में थे. जबान खामोश और चेहरा बेचैन था.
गुरुदेव की बेचैनी मुझे असहज बना रही थी.
जब प्रशांत जी ने गुरूवर का सीधी मदद का प्रस्ताव ठुकराया तो मुझे लगा अब इस दर्द की कोई दवा नही. दुर्भाग्य अपनी फौज के साथ मोर्चा खोले था और वे अकेलेे ही लड़ना चाहते थे.
जीवन की लड़ाई एकतरफा जान पड़ रही थी.
हार सुनिश्चित थी. क्योंकि बीमारी से जूझ रही प्रशांत जी की पत्नी बच्चे सहित जहर खाने का फैसला ले बैठी थीं.
एक अटेम्ट कर भी चुकी थीं.
इसी सूचना पर गुरूवर पहली फ्लाइट से मुम्बई पहुंचे थे.
जीवन के युद्ध में गुरुवर ने प्रशांत जी का सारथी बनने का निर्णय लिया.
वे उन्हें कामना सिद्धि साधना कराने की तैयारी में जुट गये.
….. क्रमशः