अृश्य दोस्त खोल देते है लोगो के छिपे रहस्य
[ गुरू जी के निकट शिष्य शिवांशु जी ने यक्षिणी को अपनी अध्यात्मिक मित्र बनाने की सिद्धी साधना को *मेरी स्वर्णेस्वरी साधना* शीर्षक से प्रस्ताविक ई बुक में लिखा है. मै आपके साथ उसे शेयर कर रहा हूं. ताकि उच्च साधक प्रेरणा ले सकें. स्वर्णेश्वरी देवी यक्षिणी वर्ग की हैं. उन्हें प्रायः लोग धन सम्पत्ति के लिये सिद्ध करते हैं. मगर गुरूजी के निर्देश पर शिवांशु जी ने स्वर्णेस्वरी देवी को अपना अध्यात्मिक मित्र बना लिया. जो साधक गुरू जी के साथ यक्षिणी साधना के लिये हिमालय क्षेत्र में जाने वाले हैं वे इस सीरीज को ध्यान से पढ़ें…अरुण]
वृतांत शिवांशु जी के शब्दों में…
हम हिमालय साधना के लिये जा रहे थे. रास्ते में गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र सईद भाई मिले. मेरी उनसे पहली मुलाकात थी. देखते ही उन्होंने मेरा नाम लिया. मेरी जेब में कितने रुपये हैं. ये बता दिया. जेब में रखे डेबिट कार्ड का नं. बता दिया.
ये देखकर मै हैरान था. बिना बताये उन्हें मेरी जेब के भीतर तक की जानकारी कैसे हुई. जब मैने गुरुवर से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सईद भाई के शागिर्द उन्हें छिपी जानकारियां देते हैं. शागिर्द उर्दू शब्द है. इसका मतलब होता है चेला, शिष्य या करीबी सहयोगी. जब हम देहरादून में सईद भाई के रिश्तेदार के घर से निकलकर आगे बढ़े तो गुरुदेव से शागिर्दों के बारे में बताने का दोबारा आग्रह किया. इस बार वे मान गये और इस बारे में मेरे सभी सवालों के जवाब दिये.
गुरुदेव ने बताया कि मुस्लिम तंत्र में अदृश्य सहयोगियों को शागिर्द कहते हैं. साधक उन्हें अपने लिये सिद्ध करते हैं. उनसे काम लेते हैं. हिंदु पद्धति के तंत्र में इसे प्रेत सिद्धी कहा जाता है.
सईद भाई ने भी ये सिद्धी की थी. उनके शागिर्द उन्हें लोगों के बारे में मनचाही सूचनायें देते थे. जैसे जो व्यक्ति सामने है उसका नाम क्या है. वो क्या सोच रहा है. उसकी जेब में क्या है. उसने अंदर क्या और किस रंग के कपड़े पहन रखे हैं. दो घंटे पहले तक उसने जो कुछ भी किया. शागिर्द वो सारी जानकारियां देने में सक्षम थे. जैसे कि वह व्यक्ति किससे मिला. क्या क्या किया. क्या खाया, क्या पिया. सब कुछ.
ये सुनकर मै हैरान था. अगर सईद भाई ने मेरी जेब के भीतर क्या है ये न बता दिया होता. तो यकीन करने से पहले गुरुवर से ढेरों सवाल पूछता. वैसे सवाल तो अभी भी थे मेरे पास.
गुरुवर उनके जवाब दे रहे थे. बताया सईद भाई अपने शागिर्दों का उपयोग लोगों की खोयी हुई चीजों को ढूंढने में करते हैं. लापता लोगों का पता लगाने में करते हैं. कई बार वे उनसे लोगों की परेशानी का कारण पता करते हैं. आपसी झगड़ों का कारण पता करते हैं. ऊपरी बाधा से ग्रस्त लोगों के झाड़ फूंक और उपचार में भी शागिर्दों का उपयोग करते हैं. सईद भाई के शागिर्द लोगों को प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाने में भी उनका सहयोग करते हैं.
तो सईद भाई के शागिर्द उनके रिश्तेदार लड़की को बाधा मुक्त करने में मदद क्यों नही कर पाये. मैने गुरुवर से पूछा उसके बारे में जानकारी क्यों नही दे पाये.
शागिर्दों ने जानकारी दी. मगर सईद भाई ने उनकी अनदेखी कर दी. गुरुदेव ने बताया. तुमने उस लड़की को देखा. उसकी मासूमियत देखकर कोई भी धोखा खा सकता है. सईद भाई भी उसकी मासूमियत से प्रभावित हो गये. इस कारण जब उनके शागिर्दों ने उन्हें बताया कि लड़की को जिन्न घर से नही ले जाते, बल्कि वो रात में लड़कों से मिलने घर से जाती है. तो सईद भाई ने मान लिया कि जिन्न लड़कों का भेष बनाकर लड़की को ले जाते हैं. वे लड़की को जिन्नों द्वारा प्रताड़ित मानते रहे. जबकि उनके शागिर्द इससे अलग जानकारी देने की कोशिश करते रहे. इसी कारण सईद भाई को लड़की को ठीक करने में सफलता नही मिली.
शागिर्द तो अदृश्य होने के कारण सब पता कर लेते हैं. लोगों को, चीजों को ढूंढ़ भी लाते हैं. लोगों के मन भी बदल देते हैं. फिर सईद भाई के शागिर्दों ने अपनी बात मनवाने की कोशिश नही की क्या. मैने पूछा.
हां अदृश्य सहयोगी एेसा करने में सक्षम होते हैं. गुरुदेव ने बताया. मगर सारे नही होते. सबकी अलग अलग क्षमतायें होती हैं. कुछ सिर्फ सूचनायें भर देते हैं. वे समस्या बता सकते हैं. मगर उनके हल नही दे सकते. कुछ अधिक पावरफुल होते हैं. वे समाधान भी बता देते हैं. मगर वे समाधान करा नही सकते. कुछ बहुत अधिक क्षमतावान होते हैं. वे समस्या के साथ समाधान भी बता सकते हैं. समाधान को करा भी सकते हैं.
मगर सभी अदृष्य सहयोगियों में एक बात कामन होती है. गुरुदेव ने विस्तार से जानकारी देते हुए बताया. वो ये कि अगर उनके द्वारा दी जाने वाली जानकारी को मानने से इंकार कर दिया जाये. तो वे निष्क्रयता ग्रहण कर लेते हैं. और जानकारियां देनी बंद कर देते हैं.
इस बात को मै ठीक से नही समझ पाया गुरुदेव. मैने कहा.
मान लो सईद भाई अपने शागिर्दों से पूछ कर तुम्हारे बारे में कोई जानकारी दें. वो बिल्कुल सही भी हो. मगर तुम उसे मानने से इंकार कर दो. तो वे आगे कि जानकारी देनी बंद कर देंगे. फिर सईद भाई तुम्हारे बारे में आगे का कोई राज नही खोल पाएंगे.
एेसा क्यों. मै थोड़ा अचम्भित सा हो गया.
बस यही नियम है अदृश्य सहयोगियों के काम करने का. गुरुदेव ने बताया.
एेसे में जो साधक होते हैं वे क्या करते हैं. मेरी उत्सुकता अधिक रहस्य तक पहुंचने की हो चली.
पहली बात जिनके बारे में एक दो छिपे रहस्य खोल दिये जायें. वे सामने वाले को अंतर्यामी मानकर उसके समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं. उसकी बात को इंकार करना तो दूर काटने की भी हिम्मत नही कर पाते. गुरुदेव ने बताया. दूसरी बात जब कोई विरोध करता भी है, तो एेसे सिद्ध साधक अपनी बात मनवाने के लिये आत्मबल का उपयोग करके अपनी बात मनवा ही लेते हैं. लोग उनके तौर तरीकों और श्राप आदि के डर से उनकी बातें स्वीकार कर लेते हैं.
इस तरह तो शागिर्द रखने वाले लोग किसी को ब्लैकमेल भी कर सकते हैं. मैने आशंका जताई.
नही गुरुदेव ने कहा. एेसा नही होता. शागिर्द या इस तरह की अन्य सिद्धियां करने वाले प्रायः सक्षम साधक होते हैं. वे अपनी सिद्दी से ही अपनी जरूरतें पूरी करा लेते हैं. साथ ही वे खुद पर संयम बनाये रखने में भी सक्षम होते हैं. जो लोग सिद्ध नही होते मगर एेसी सिद्धियों का पाखंड करते हैं. उनकी नियत खोटी होती है. वे हाथ की सफाई या बाजीगरी करके लोगों को ठगते हैं. वही आस्थावान लोगों के साथ अनुचित करते हैं.
इसका मतलब सईद भाई के शागिर्दों ने उनकी रिश्तेदार लड़की के इलाज में खामोशी अपनाई. मैने पूछा.
हां एेसा ही समझो. गुरुदेव ने कहा. शागिर्द अपने नियमों का पालन कर रहे थे. जबकि सईद भाई लड़की की मासूमियत के कारण भावुकता के शिकार हुए.
अब मेरी समझ में आया गुरुदेव बार बार क्यों कहते हैं कि जिसका संजीवनी उपचार करो, उसे दिमाग से निकाल दो. उसके प्रति भावनायें शून्य करके रखो.
मेरे पास सवाल अभी भी शेष थे. मैने गुरुवर से पूछा जैसे शागिर्द होते हैं, क्या एेसी कुछ और भी साधनायें होती हैं.
हां गुरुवर ने बताया. लगभग हर तंत्र में एेसी साधनायें होती हैं. हिंदु पद्धति के तंत्र में इन्हें कर्ण पिशाचिनी, कर्ण पिशाच, कर्ण घंटा, प्रेत सिद्धी, वीर सिद्धी, यक्षिणी सिद्धी आदि के नाम से जाना जाता है. कुछ और साधनायें भी हैं इस तरह की.
क्या इनमें से मै भी कोई सिद्धी कर सकता हूं. मैने पूछा.
हां कर सकते हो, अगर सार्थक उद्देश्य हो तो. गुरुवर ने कहा अन्यथा इनमें से अधिकांश साधनायें साधक के समान्य जीवन को बिगाड़ देती हैं. बोलचाल की भाषा में बात करें तो इनका साधक सामाजिक प्राणी नही बचता.
क्या इस तरह की सिद्धियां में उर्जा विज्ञान की भी कोई भूमिका होती है. मैने पूछा
हां, गुरुदेव ने बताया. सारा मामला तो उर्जाओं का ही है. मैने इन साधनाओं के तमाम मंत्रों और पद्दतियों पर रिसर्च की है. सभी में एक समानता मिली. वो ये कि सिद्ध होने पर कुछ खास ब्रह्मांडीय उर्जायें साधक के आभामंडल में आकर स्थाई रूप से वस जाती हैं. वे धरती की उर्जायें नही लगतीं. शायद वे किसी और लोक या दूसरे डाइमेंशन के प्राणियों की उर्जायें हों. जिन्हें सिद्ध करके अपने आभामंडल में बुला लिया गया. इस तरह की सभी उर्जाएं इंशानों की उर्जा को रीड करने में दक्ष होती हैं. वे किसी भी व्यक्ति की उर्जा रीड करके उसकी दिनचर्या का पता लगा लेती हैं. ज्यादातर मामलों में सिद्ध की गई उर्जायें सामने आने वाले लोगों के आज्ञा चक्र में प्रवेश कर जाती हैं. वहीं से गुजरे हुए समय की जानकारी लेकर साधक के आज्ञा चक्र को देती हैं. साधक उन्हें बताता है तो उसे अंतर्यामी समझा जाता है.
इसी कारण जब भी कोई व्यक्ति एेसे सिद्ध साधक के सामने जाता है तो उसके माथे से लेकर भौंहों के बीच में दबाव या खिंचाव महसूस होता है. आज्ञा चक्र का यही क्षेत्र है.
मगर अधिकांश मामलों में सिद्धि करके प्राप्त की गई ये उर्जायें लोगों के भविष्य की घटनायें नही बता पातीं. एेसे में साधक गुजरी घटनाओं के तार जोड़कर अपने अनुमान से लोगों के भविष्य की घोषणा करते हैं. गुरुदेव ने बड़ा रहस्य खोला.
जब कोई व्यक्ति अपने बारे में दी गई जानकारी को मानने से इंकार कर देता है. तो उसका आज्ञा चक्र स्वालम्बी होकर पराधीनता को नकार देता है, गुरुदेव ने गूढ़ जानकारी देते हुए बताया. इसके कारण साधक द्वारा सिद्ध उर्जाओं को उसके आज्ञा चक्र से बाहर निकलना प़ड़ता है. एेसे में वे उसके आज्ञा चक्र को नही पढ़ सकते. इसी कारण इंकार होने पर उस व्यक्ति के बारे में शागिर्द, कर्ण पिशाचिनी, यक्षिणी आदि निष्किय होकर खामोश हो जाती हैं. उसके भीतर से कोई रहस्य नही निकाल पाते. मगर इंकार से पहले उनके द्वारा दी गई जानकारी अक्षरशः सत्य होती है.
गुरुदेव ने बताया साधक के आभामंडल में सिद्धी से आई बाहरी उर्जाओं का प्रभाव बहुत परिवर्तनकारी होता है. एक तरह से वे दोहरे आभामंडल के साथ जीते हैं. उनकी उर्जा दूसरों से बिल्कुल अलग हो जाती हैं. जिस तरह किसी के आभामंडल में भूत प्रेत के प्रभाव का पता लगाया जाता है. उसी तरह एेसे सिद्ध साधक के आभामंडल को छूते ही पता चला जाता है कि उनके साथ कोई और भी है.
मैने मन ही मन तय किया कि सईद भाई के देव प्रयाग आने पर उनके आभामंडल को छूकर देखुंगा कि सिद्ध उर्जाओं की छुअन कैसी होती है.
हम हिमालय की घाटियों में प्रवेश कर चुके थे.
क्रमश…
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.
( जो चाहते हैं दूसरों से अलग पहचान. वे साधनाओं की दुनिया भी अपनायें. इस विषय पर हम सदैव आपके साथ हैं. किसी भी जानकारी के लिये हमारे साधक हेल्पलाइन नं 9999945010 (only whats app) पर सम्पर्क कर सकते हैं… टीम मृत्युंजय योग)
आपका जीवन सुखी हो, यही हमारी कामना है.