मैने यक्षिणी को अध्यात्मिक मित्र बना लिया-1
{अपने आभामण्डल को यक्षिणी के आभामण्डल से कनेक्ट करके साधना करने वालों की यक्षिणी सिद्धि आसान हो जाती है. धन ,यौवन,प्रतिष्ठा देने में सक्षम यक्षिणी को वैसे तो साधक प्रेमिका,पत्नी, बहन या मां के रूप में अपनाते हैं. मगर हमारे गुरु जी ने यक्षिणी को अध्यात्मिक मित्र के रूप में अपनाने को प्राथमिकता दी है. इस रूप में सिद्ध यक्षिणी भौतिक सुखों के साथ ही दैवीय लोक की रहस्यमयी जानकारियां देकर उच्च सिद्धियों के सफर में सहयोग करती है। इस रूप में यक्षिणी को पुरुषों के अतिरिक्त उच्च महिला साधक भी सिद्ध कर सकती हैं। गुरू जी के निकट शिष्य शिवांशु जी ने यक्षिणी को अपनी अध्यात्मिक मित्र बनाने की सिद्धी साधना को *मेरी स्वर्णेस्वरी साधना* शीर्षक से प्रस्ताविक ई बुक में लिखा है. पिछले साल शिवप्रिया जी ने शिवांशु जी की यक्षिणी साधना का वृतांत लिखा. परंतु मनोविज्ञान की उच्च शिक्षा की व्यस्तता के कारण वे वृतांत को पूरा नही कर सकी थीं. मै आपके साथ उसे शेयर करके पूरा करने जा रहा हूं. स्वर्णेश्वरी देवी यक्षिणी वर्ग की हैं. उन्हें प्रायः लोग धन सम्पत्ति के लिये सिद्ध करते हैं. मगर गुरूजी के निर्देश पर शिवांशु जी ने स्वर्णेस्वरी देवी को अपना अध्यात्मिक मित्र बना लिया.
जो साधक गुरू जी के साथ यक्षिणी साधना के लिये हिमालय क्षेत्र में जाने वाले हैं वे इस सीरीज को ध्यान से पढ़ें... अरुण}
(वृतांत शिवांशु जी के शब्दों में….)
सिद्ध पुरुष ने मेरी जेब में पड़े कार्ड नं. बता कर चौका दिया….
बात 2009 की है. 5 साल के संयम के बाद गुरुदेव ने मुझे साधक माना. जबकि इससे पहले मै गंधर्व साधना सिद्ध कर चुका था. गुरुदेव ने ही वो सिद्धी कराई थी. अप्सरा मेरे सम्मुख शरीर आ चुकी थी. लेकिन इसके बावजूद गुरुदेव मुझे साधक नही मानते थे.
जब भी मै किसी सक्षम साधना की बात करता तो टाल जाते. ज्यादा जिद करने पर कहते पहले साधक बनो.
ये सुनकर मै हर्ट हो जाया करता था. मन में सोचता और कितना साधक बनूं. जिसके लिये कुछ लोग जीवन भर लगे रहते हैं. वैसी एक देवी को तो सामने बुला लिया. क्या वो साधना नही थी.
गुरुदेव की आदत है, एक बार न कर दी, तो हां नही करते. शुरुआत में लगता है जैसे उनका फैसला तानाशाही वाला है. मगर बाद में पता चलता है कि वही फैसला सर्वश्रेष्ठ था. मै उनके पत्रकारिता के जीवन के समय से इस बात से परिचित था. सो चुप हो जाया करता था.
एक दिन उन्होंने खुद कहा. चलो तुम्हें कोई बड़ी साधना कराता हूं.
मेरा रोम रोम झूम गया. मै समझ गया कि गुरुवर अब मुझे साधक मानने लगे हैं. मेरी आवाज, मेरी बाड़ी लैंग्वेज, मेरे शब्द सब मेरी खुशी की कहानी कह रहे थे. उन दिनो गुरुदेव दिल्ली में थे. मै विभागीय काम से उड़ीसा में था. पहली फ्लाइट से मै दिल्ली पहुंच गया.
अगले दिन हम हिमालय के लिये निकल पड़े. मेरी साधना वहीं होनी थी. हम सड़क मार्ग से जा रहे थे. गाड़ी में हम दो ही थे. रात 12 बजे के बाद दिल्ली से निकले. गुरुवर खुद ड्राइव कर रहे थे. उन्होंने हरिद्वार की तरफ से जाने की बजाय नैनीताल की तरफ का रास्ता लिया.
बरेली में उनके एक अध्यात्मिक मित्र मिले. वे भी हमारे साथ हो लिये. वे मुस्लिम थे. वे सिद्ध पुरुष थे. बहुत साधारण वेषभूषा में भी वे बड़े तेजस्वी नजर आ रहे थे. उनका नाम सईद भाई था. वे पान की एक दुकान के पास खड़े मिले. बीड़ी पी रहे थे. गुरुदेव को देखते ही बीड़ी का लम्बा कस लिया और नीचे फेंक कर उसे पैर से मसल दिया. तब तक गुरुवर गाड़ी से नीचे उतर गये थे.
दोनो मित्र गर्मजोशी से एक दूसरे के गले मिले. मै भी गाड़ी से नीचे आ गया था. गुरुवर के इशारे पर सईद भाई के पैर छुवे. तो उन्होंने मुझे गले लगा लिया. गेरुदेव के मित्र से गले मिलते वक्त मै झिझक सा गया. सईद भाई ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए दोबारा गले लगा लिया.
उनके व्यक्तित्व ने मुझे चौंका दिया. गाड़ी में घुसते ही उन्होंने मेरा नाम बता दिया. जब तक मै उनके बारे में कुछ सोचता, तब तक ये भी बता दिया कि मेरी जेब में 24637 रुपये हैं. मेरा मुंह आश्चर्य से खुला रह गया. तभी उन्होंने मेरी जेब में पड़े डेविट कार्ड का नं. बताया. मुझे नं. याद था. सुनकर मै सन्न रह गया.
मेरी हालत देखकर सईद भाई के साथ गुरुदेव भी ठहाका लगाकर हंस पड़े. गुरुवर को खुलकर ठहाका लगाते हुए मै काफी दिनों बाद देख रहा था. वे बोले क्या सोच रहे हो. सईद भाई ये भी बता सकते हैं कि पिछले ढाबे पर तुमने क्या था. और ढाबे वाले को कितने पैसे दिये थे.
कैसे. मैने पूछा. मुझे अच्छी तरह याद है उस वक्त अचम्भें के कारण मेरे मुंह से शब्द निकलने मुश्किल हो रहे थे.
तुम्हारे बारे में इनके शागिर्द इन्हें सारी सूचना दे रहे हैं. गुरुदेव ने बताया.
उर्दू में शागिर्द का मतलब चेले या नौकर होता है. मै अचम्भित हुआ कि सईद भाई ने किन लोगों से मेरी जासूसी कराई. वो भी इतनी सटीक जानकारी. अभी गिनने से पहले मुझे खुद नही पता था कि मेरी जेब में कितने पैसे हैं.
मैने गुरुदेव से पूछा कैसे शागिर्द हैं, जो दिख तो रहे नहीं, मगर जेब के भीतर तक की खबर रखते हैं.
मेरे सवाल पर सईद भाई ठहाका लगाकर हंस पड़े. गुरुवर ने गाड़ी के डेक प्लेयर पर पुराने गाने बजा दिये. इसका मतलब था अब वे मेरे किसी सवाल का जवाब नही देने वाले थे. मै समझ गया. चुप हो गया. मगर मेरे दिमाग में सवालों की लम्बी श्रंखला उमड़ रही थी. खुद ही जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा था. जवाब तो नही मिले मगर दिमागी उलझाव बढ़ता गया.
मन सईद भाई के बारे में सब कुछ जान लेने के लिये ब्याकुल हो रहा था. मगर उनके व्यक्तित्व का रहस्य बढ़ता जा रहा था. मुझे तब और अधिक आश्चर्य हुआ जब सईद भाई को गुरुवर के साथ हिंदू पद्धति की साधनाओं पर बातें करते सुना. वे हिंदु देवी देवताओं और साधनाओं के बारे में एेसे बात कर रहे थे जैसे खुद हिंदु हों. उनकी बातों से लगा कि सनातन पद्धति से उन्होंने कुछ सिद्धियां भी अर्जित की हैं.
बीच बीच में दोनो मित्र मुस्लिम पद्धति की कुछ साधना सिद्धियों पर भी चर्चा कर रहे थे. इससे पहले मुस्लिम साधना पद्धति पर गुरुवर को इतनी गहराई से बात करते नही देखा था. गुरुवर की मुस्लिम तंत्र पर इतनी गहरी जानकारी सुनकर भी मै अचम्भित था.
कुछ देकर बाद गुरुदव ने गाड़ी एक ढाबे पर रोकी. वहां चाय पी गई. उसके आगे ड्राइविंग मेरे हाथ में थी. गुरुवर और सईद भाई पीछे की सीट पर बैठकर बातें करते थे. मै उनकी बातों में खोया था. अब तक की बातों से इतना जान गया था कि गुरुदेव मुझे जो साधना कराने हिमालय ले जा रहे थे. उसमें सईद भाई की भी अहम भूमिका है. इससे पहले गुरुवर ने मुझे सईद भाई के बारे में अधिक कुछ नही बताया था. बस इतनी जानकारी दे रखी थी कि बरेली में उनके एक अध्यात्मिक मित्र हैं. जो मुश्लिम हैं और सिद्ध हैं.
वे इतने सिद्ध हैं, कि लोगों के जेब के भीतर तक की जानकारी ले लेते हैं. ये मैने सोचा भी न था. कैसे करते थे वे ये सब. ये मै आपको आगे बताउंगा.
क्रमश…
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.
[जो चाहते हैं दूसरों से अलग पहचान. वे सक्षम साधनाएं अपनायें. इस विषय पर हम सदैव आपके साथ हैं. किसी भी जानकारी के लिये हमारे साधक हेल्पलाइन नं 9999945010 (Only whats app) पर सम्पर्क कर सकते हैं.]
आपका जीवन सुखी हो, यही हमारी कामना है