विश्वमाता सिद्धी….5 

राम राम, मै अरुण.
चौथे आयाम की उर्जाओं से जुड़ने के बाद मृत्युंजय योग के उच्च साधकों की विश्वमाता सिद्धी साधना हुई.
साधना स्थल हरिद्वार का अलकनंदाघाट था.
साधना का तरीका पहले की ही तरह कठोर बना रहा.
गंगा जी में बैठकर मंत्र जप.
ऊपर से बरसात.
मन मंदिर में शिव गुरू की स्थापना.
सामने ऊंची पहाड़ी पर मनसा देवी.
पीछे से हर क्षण गुरू जी की दृष्टि.
अपने भीतर से उठती दैवीय सुगंध, दूर से आती देव संगीत की मीठी ध्वनि, किसी के छूने का अहसास, किसी के पास आकर बैठने का अहसास, सिर पर अदृश्य हाथ रखे जाने का अहसास, किसी के द्वारा कान में कुछ कहे जाने का अहसास. मृत्युंजय योग के उच्च साधक एेसी अनुभतियों के लिये तैयार थे. गुरू जी ने पहले ही कह दिया था कि एेसी अनुभूतियों पर कोई प्रतिक्रिया नही देनी है. अनवरत मंत्र जप चलता रहे.
अनुभूतियां होती रहीं.
साधक बिना रुके जप करते रहे.
उस रात की साधना का माहौल कुछ ज्यादा ही रोमांचकारी था. तेज हवा में बहते पानी के एेसे थपेड़े जैसे इंद्र देव ने हमारी साधना भंग करने के लिये वरुण देव को विकराल रूप में भेज दिया हो. मगर अब हम कठोर साधना के आदी हो चुके थे. रात के अंधेरे में गंगा जी की लहरों का डरावना शोर, तूफानी बरसात, घाट पर फैली अंधियारी रात की काली चादर और दूर तक हमारे अलावा किसी के न होने का अहसास. ये सब मिलकर भी साधकों को डराने में विफल हुआ. क्योंकि आज रात देवी मां से मिलन की रात थी.
गुरू जी ने चेताया था कि देवी मां के दर्शन होने पर उनसे कुछ न मांगे.
उस रात साधकों की अनुभूतियां अकल्पनीय थीं.
शिवप्रिया जी की देवी मां से बात हो गई.
उन्हें मनसादेवी की पहाड़ी पर छाये काले बादलों के बीच देवी मां मुस्कराती नजर आयीं.
स्पष्ट स्वरूप. बात करने को तैयार.
शिवप्रिया जी ने देवी मां से कहा *आप आ गईं.*
हां मै आ गई. देवी मां ने मुस्कराते हुए जवाब दिया.
कैसी हैं आप. शिवप्रिया जी का सवाल बच्चों सा था.
मै तो तुम्हारा हाल लेने आई हूं. देवी मां ने ममतत्व उड़ेल दिया.
मै बिल्कुल ठीक हूं. आप क्या खाएंगी. शिवप्रिया जी देवी मां से बात करती हुई भूल गईं कि वे गंगा जी में उस जगह बैठी हैं जहां देवी जी को खिलाने के लिये कुछ है ही नहीं.
उनके सवाल पर देवी मां हंस पड़ी, जैसे कह रही हों अभी क्या खिला सकोगी. फिर बोलीं कल अपने हाथ से पकाकर मेवे की खीर खिलाना. और हां मै आती रहुंगी. एेसा कहकर देवी मां ऊंची पहाड़ियों में अंतर्ध्यान हो गईं.
अगले दिन शिवप्रिया जी ने साधकों के साथ मिलकर केशवाश्रम में मेवे की खीर पकाई. आश्रम में स्थापित राजराजेश्वरी विश्वमाता को खीर अर्पित की गई. सभी साधक खीर उत्सव में बहुत उत्साहित रहे.
विश्वमाता के अन्य साधकों के अनुभव आगे बताता रहुंगा. उच्च साधना में शामिल साधकों से आग्रह है कि वे अपने अनुभव खुद भी शेयर करें. इससे विश्वमाता से उनकी निकटता लगातार बढ़ती जाएगी.
जय माता दी.
….क्रमशः
शिवगुरू को प्रणाम
गुरू जी को प्रणाम
सभी उच्च साधकों को नमन।