विश्वमाता सिद्धी…3

वहां के लोग हवा में चलना जानते हैं

साधकों की दुनिया में फोर्थ डाइमेंशन का क्षेत्र धरती पर छिपे ग्रह की तरह है. जहां अनगिनत सिद्ध संतों का वास है. उनमें कुछ एेसे हैं जो स्थुल शरीर छोड़ चुके हैं. उनकी सूक्ष्म चेतना अभी भी एेसे सिद्ध क्षेत्रों में रहती है. वहां रहने वालों की आयु हजारों साल होती है. वे साधनाओं के अलावा तमाम एेसे वैज्ञानिक प्रयोग करते रहते हैं. जो धरती और यहां रहने वालों के हित में हैं. फोर्थ डाइमेंशन एेसा क्षेत्र होता है, जहां समय और गुरुत्वाकर्षण के सामान्य नियम लागू नही होते. वहां के कुछ मिनट सामान्य दुनिया के कई सालों A7के बराबर होते हैं. वहां से बिना किसी उपकरण विभिन्नलोकों यानि ग्रहों पर देखा जा सकता है. वहां के लोग हवा में चलना जानते हैं. अदृश्य होना जानते हैं. मन की गति से ब्रह्मांड के विभिन्न हिस्सों में आना जाना जानते हैं. उन ग्रह-क्षेत्रों में प्रवेश करना जानते हैं जिन्हें हम देवी देवताओं की दुनिया अर्थात् देवलोक कहते हैं.
वहां विभिन्न ग्रहों के लोगों का भी आना जाना हता है.
राम राम, मै अरुण
उच्च साधना के लिये हम अलकनंदा घाट पर थे.
काली अंधेरी रात. घाटों पर दूर तक पसरा सन्नाटा. डरावना शोर करती गंगा जी की लहरें. ऊपर से मूसलाधार बारिश. तेज हवा में बारिश के थपेड़े.
बारिश में भीगे हुए हम लगभग कांप रहे थे.
तभी गंगा में डुबकी लगाने का आदेश हुआ.
शायद, हरिद्वार में हमारे अलावा कोई न होगा. जो उस समय गंगा में डुबकी लगा रहा हो.
गुरू जी आगे थे. हम उनके पीछे. डुबकियां लगनी शुरू हो गईं.
गुरू जी का अगला आदेश *सभी सीढ़ियों के सहारे गंगा जी के पानी में बैठ जायें*.
हम बैठ गये.
नीचे गंगा जी की सर्द हुई जा रही धारा. ऊपर से बरसता ठंडा पानी. याद ही नही रहा कि दोपहर तक ए.सी. वाला मौसम था. लगा जैसे हम नवम्बर-दिसम्बर में पहुंच गये हों.
मुझे व्यक्तिगत रूप से लगा शायद गुरू जी नाखुश हैं. क्योंकि उन्होंने सख्त हिदायत दी थी कि उच्च साधना में 8 से अधिक साधक नही आने चाहिये. पर हम बढ़ते बढ़ते 18 हो गये. मैने सोचा नाखुशी के कारण गुरू जी ने साधना को कठोरतम बनाने की सोची है.
पर मै गलत था. साधकों की अधिक संख्या से वे सहमत नही थे. लेकिन जो पहुंच गये वे सब सिद्धि तक पहुंचे इसके लिये उन्होंने एेसी योजना बनाई थी.
गुरू जी की योजना थी कि फोर्थ डाइमेंशन से कनेक्ट करने की साधना सिर्फ शिवप्रिया जी को कराएंगे. बाकी साधकों को विशवमाता साधना कराने की तैयारी थी.
मगर कठोरता दिखा रहे मौसम को उन्होंने शिव गुरू का संकेत माना. खराब मौसम को सिद्धि का हथियार बनाना तय किया. इसी कारण सभी उच्च साधकों को ये गुप्त और दुर्लभ साधना भी करा दी.
दरअसल फोर्थ डाइमेंशन साधना में एक बैठक में कम से कम 6 घंटे मंत्र जपने का विधान है. यही मंत्र यदि बहती नदी में किया जाये तो 4 घंटे और ऊंचे पहाड़ पर किया जाये तो 3 घंटे जपने का विधान है. परंतु नीचे बहता पानी हो और ऊपर से पानी की बौछार हो तो 1 घंटे का मंत्र जप 6 घंटे के जप के बराबर प्रभावी होता है.
उस दिन हरिद्वार में शाम तक बरसात होती नही दिख रही थी. जैसे ही गुरू जी ने हरिद्वार क्षेत्र में प्रवेश किया बरसात होने लगी. और होती ही रही. हलांकि दिल्ली में फ्लाइट पर बैठने से पहले मुझसे मोबाइल पर हुई बात में गुरू जी ने कहा था बारिश से बचने के इंतजाम रखना. तब मैने जवाब दिया था यहां मौसम साफ है. दूर दूर तक बारिश होती नही लगती. मेरी बात पर गुरू जी ने हंसकर काल कट कर दी थी.
साधना के लिये जब हम अलखनंदा घाट पर पहुंचे तब तक बारिश मूसलाधार हो चुकी थी. नीचे गंगा जी की धारा, ऊपर मूसलाधार बारिश. इससे साधना का को आयाम मिल गया जिसमें 6 घंटे मंत्र जप का प्रभाव 1 घंटे में प्राप्त किया जा सके.
सामान्य लोग इसे मौसम की खराबी कहते हैं. मगर उच्च साधकों के लिये ये स्थिति वरदान सिद्ध हुई.
गुरू जी ने सभी साधकों को फोर्थ डाइमेंशन की साधना में शामिल कर लिया.
धरती पर उच्च आयाम वाले कई क्षेत्र हैं. सभी शिव क्षेत्र कैलाश से जुड़े और नियंत्रित हैं. गुरू जी ने उच्च साधकों को हिमालय क्षेत्र के फोर्थ आयाम की उर्जा से जोड़ा. उन्होंने बताया कि फोर्थ आयाम के लोग सदैव जीव हित में अनुसंधान करते रहते हैं. जब उनकी कोई रिसर्हैच पूरी होती है, तो धरती के सामान्य क्षेत्र के लोगों पर उनका प्रयोग करते हैं. लेकिन प्रयोग के लिये वे सीधे लोगों से सम्पर्क नही करते. ताकि वातावरण में बढ़ी विकृतियों से खुद को अलग बनाये रखें.
परीक्षण के लिये वे उन लोगों को अपना माध्यम बनाते हैं, जिनकी उर्जा उच्च आयाम से जुड़ी होती है. फोर्थ डाइमेंशन की उर्जा से जुड़ने के कई तरीके होते हैं. सभी साधना मार्ग से होकर गुरते हैं. उनमें एक वह था जो गुरू जी हम लोगों को करा रहे थे.
उन्होंने गुप्त मंत्र को साधकों आभामंडल, उर्जा चक्रों और कुंडलिनी में स्थापित किया. साधकों के आभामंडल को शिवगुरू, गंगा मां, देवात्मा हिमालय और सम्मुख दिख रही मंशा देवी के आभामंडल से जोड़ दिया. साधकों के सूक्ष्म शरीर को हिमालय क्षेत्र में स्थिति फोर्थ डाइमेंशन की उर्जा के साथ जोड़ दिया.
जप की आवृत्ति बढ़ाने के लिये फोर्थ डाइमेंशन भेदन के मंत्र को साधकों के 32 लाख रोम छिद्रों में स्थापित कर दिया. रोम छिद्रों की साधकों के साथ मंत्र जाप करने की प्रोग्रमामिंग कर दी. शास्त्र कहते हैं मंत्र को रोम छिद्रों में स्थापित करके उनके निर्देशित किया जाये तो साधक का रोम रोम मंत्र जप करता है. इस तरह से उच्च साधक एक रोम रोम से जप करके एक साथ 32 लाख जप करने की स्थिति में आ गये.
फिर शुरू हुआ मंत्र जाप.
रात के अंधेरे में हम मंत्र की गहराई में उतरते चले गये.
आगे मै आपको विश्वमाता साधना के साथ ही फोर्थ डाइमेंशन से जुड़ें साधकों के अनुभव भी बताउंगा.
….क्रमशः
शिवगुरू को प्रणाम
गुरू जी को प्रणाम
सभी उच्च साधकों को नमन।

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