जब मंत्र जपती भारती को गंगा जी की धारा ने खींच लिया.
महासाधक साधना क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे. धरती पर छिपे ग्रह से जुड़ने की साधना का मंत्र मिल चुका था. मंत्र गोपनीय है. इसलिये उसे यहां नही लिख पा रहा हूं. मंत्र जाप के नियमों की जानकारी देते वक्त गुरू जी ने कहा था इसके जाप के दौरान शरीर पर पड़ रहे गुरूत्वाकर्षण के नियम बदल जाते हैं. इस कारण साधकों के शरीर बहुत भारी या बहुत हल्के हो जाते हैं. ये जानकारी दिये जाने के वक्त भारती वहां मौजूद नही थीं. गंगा की धारा में बैठकर जब साधकों ने जप शुरू किया, तो कुछ ही देर में भारती का शरीर पानी में ऊपर उठ गया. वे बहने लगीं. बाद में उन्होंने बताया कि जप के वक्त एकाएक उनका शरीर फूल की तरह हल्का हो गया. वे समझ ही नही पायीं कि कब पानी ने उन्हें सतह पर उठा दिया. कब वे बहने लगीं. फिर लगा जैसे गंगा जी की धारा ने उन्हें अपनी तरफ खींच लिया हो.
राम राम, मै अरुण
शिवप्रिया जी पास ही बैठी जय कर रही थीं. उनकी निगाह बहकर मुख्य धारा में खिंची जा रही भारती पर पड़ी. उन्होंने झपटकर भारती को पकड़ा. दूसरे साधकोॆं को मदद के लिये बुलाया. लगभग खींचकर भारती को बाहर लाया गया.
गुरू जी ने उच्च साधना के लिये जो क्षेत्र चुना वो हरिद्वार में गंगा जी का किनारा था. अलखनंदा घाट हरिद्वार के साफ सुधरे और सुरक्षित घाटों में से है. मगर वहां पानी का बहाव बहुत तेज है. जरा सी चूक व्यक्ति को बहाकर कई किलोमीटर दूर ले जा सकती है. घाट पर सुरक्षित स्नान के लिये लोहे के फ्रेम लगे हैं. साधकों को उनके भीतर ही पानी में डूबी सीढ़ियों पर बैठकर जप करने का निर्देश था. भारती का हल्का हुआ शरीर उसके भीतर से बहकर बाहर की तरफ चल पड़ा था.
शिवप्रिया जी के रहते वहां सब सुरक्षित थे, भारती भी.
साधनाओं के रहस्य में प्रवेश करने की जिज्ञासा से साधकों का उत्साह आसमान पर था. भारती की घटना से उनके मन पर जरा भी प्रतिकूल असर नही हुआ. वे दोबारा गंगा जी में बैठकर जप करने लगे.
उस दिन की साधना पूरी होने तक सबके चेहरे दिव्यता से दमक रहे थे.
उच्च साधना के लिये हम लोग 22 सित. को तड़के हरिद्वार पहुंच गये. गुरू जी के कुछ अध्यात्मिक मित्रों के सहयोग से हमें केशवाश्रम में ठहराया गया. श्याचरण लहरी महासय को सिद्ध संत के रूप में सारी दुनिया जानती है. केशवाश्रम उनका समाधि स्थल है. यहां कदम रखते ही सिद्ध क्षेत्र में प्रवेश की अनुभूति होती है. गुरू जी साधकों के लिये केशवाश्रम ही क्यों चुना और यहां की क्या क्या विशेषतायें हैं इस पर हम आगे चर्चा करेंगे.
कुछ साधकों को केशवाश्रम के पास गंगाघाट पर स्थिति अलखनंदा होटल में ठहराया गया.
उच्च साधना कराने के लिये गुरू जी 22 की शाम दिल्ली से देहरादून एयरपोर्ट पहुंचे. उनके अध्यात्मिक मित्र राकेश जायसवाल जी के साथ मै भी उन्हें लेने एयरपोर्ट गया. हरिद्वार पहुंचने तक रात के 8.30 बज गये. मुझे आशंका थी कि देर हो जाने के कारण शायद आज साधना का आरम्भ न हो सके.
मगर गुरू जी ने तो हरिद्वार पहुंचे साधकों को निर्धारित से अधिक देने का मन बनाया हुआ था.
इसलिये गुरू जी ने दिल्ली से ही साधकों के लिये निर्देश जारी करने शुरू कर दिये थे. उन्होंने कह रखा था कि साधक कहीं भी घूमने फिरने जा सकते हैं. मगर खुद को थकायें नहीं. खाने में गुरू जी ने कहा था कि दिन में कम से कम खायें. आधा पेट खाली रखें. उनके पहुंचते ही सबके मोबाइल फोन 3 दिन के लिये जमा करा लीजिये जाएंगे. एेसे निर्देश भी पहले ही दे दिये गये थे.
केशवाश्रम पहुंचते ही गुरू जी ने सभी साधकों को बुलाया और सीधा सवाल पूछा* कौन कौन थका हुआ है.*
कोई थका नही था. सबमें उत्साह और बड़ा पा लेने की उमंग मचल रही थी.
गुरू जी ने सबको अलखनंदा घाट पहुंचने का निर्देश दिया. खुद भी घाट की तरफ चल पड़े.
घाट पर पहुंचने के बाद हमें पता चला साधना गंगा की धारा में बैठ कर करनी है.
रात का सन्नाटा.
घाट पर हमारे अलावा कोई नहीं.
धारा में ऊंची उठती लहरें रात के डरावने प्रेतों सी लग रही थीं.
भयानक शोर करती जल धारा सब कुछ बहा ले जाने की धमकी सी देती प्रतीत हो रही थी.
ऊपर से मूसलाधार बारिश, जैसे आज लोगों को डराने के लिये उसका जलधारा से कम्पटीशन हो.
सब कुछ डराने वाला लग रहा था.
हम सराबोर थे, कांप रहे थे.
आगे क्या? सवाल दिमाग में घूम रहा था.
हम कुछ अनुमान लगा पाते,तभी गुरू जी कपड़े पहने हुए ही गंगा जी की धारा में प्रवेश कर गये.
धारा के भीतर से साधकों को निर्देश दिया जैसे हो वैसे ही गंगा जी में आ जाओ.
उनकी आवाज ने हमें खींच सा लिया.
हम सब गंगा जी की धारा में उतर गये.
…. क्रमशः
जय माता की
शिवगुरू को प्रणाम
गुरू जी को प्रणाम
सभी उच्च साधकों को नमन.