संत पुत्र को प्रेत योनि से मुक्ति मिली
राम राम, मै शिवप्रिया
गुरू जी इस साल की अपनी हिमालय साधना का पहला चरण पूरा करके वापस आ गये हैं. दूसरे चरण की उनकी हिमालय साधना अक्टूबर में सम्भावित है. हम बात कर रहे हैं सिद्ध शिव साधक, सिद्धों के उर्जा नायक और विश्व विख्यात एनर्जी गुरू राकेश आचार्या जी की दिव्य हिमालय साधना की. साधना से वापस आने पर मैने उनसे साधना वृतांत बताने का आग्रह किया. कई दिनों की व्यस्तता के बाद उन्होंने मुझे वृतांत सुनाना शुरू किया. यहां मै उनका वृतांत उन्हीं के शब्दों में शेयर करुंगी. ताकि उच्च साधकों का मंथन बढ़ें. नये साधकों को प्रेरणा मिले. अध्यात्म के अछूते वैज्ञानिक पहलुओं का रहस्योद्घाटन हो.
गतांक से आगे…
गुरु जी ने हिमालय साधना के लिये इस बार हवाई यात्रा की बजाय रेल को चुना. दिल्ली से हरिद्वार ट्रेन से गये. किराये में बचे पैसों से एक जरूरतमंद बच्चे की फीस भर दी.
इस बार की साधना उन्हें गंगा जी की धारा में बैठकर करनी थी.
बड़े उद्देश्य के लिये सम्पन्न होने वाली कुछ साधनायें जलधारा में की जाती हैं. गुरु जी बताते हैं कि बहता पानी आभामंडल के साथ उर्जा चक्रों की भी सफाई करता है. साथ ही उपलब्धियों और सिध्दियों की उर्जा को बढ़ाता है. कई उच्च साधक नदियों में बैठकर मंत्र सिद्धी करते हैं.
गंगा जी की धारा एेसी साधनाओं के लिये बहुत उपयुक्त मानी जाती हैं.
इसलिये एेसे स्थान को चुनना था जहां गंगाजी का पानी साफ हो और बहाव तेज.
हरिद्वार में रहने वाले गुरुजी के अध्यात्मिक मित्र राकेश जायसवाल ने केशवाश्रम का सुझाव दिया. शांतिकुंज संस्था के आपदा प्रबंधन प्रभारी जायसवाल जी को हरिद्वार से केदारनाथ तक हिमालय की भौगोलिक स्थितियों की अच्छी जानकारी है. वे खुद भी अच्छे साधक भी हैं.
उनके सुझाव पर गुरु जी ने अपनी साधना के लिये केशवाश्रम का चयन किया. केशवाश्रम सिद्ध साधकों की भूमि रही है. यहां योग के सिद्ध संत लहरी महासय की समाधि है. लहरी महासय हिमालय के चतुर्थ आयाम में प्रवेश पाने वाले सिद्ध संतों में से हैं. उनकी समाधि के नीचे बनी गुफा में ध्यान लगाने वाले साधकों की अनुभूतियां अलग ही होती हैं.
जून की जबरदस्त गर्मी का प्रभाव हरिद्वार में भी था. गुरु जी ने केशवाश्रम में रहकर साधना के लिये साधारण कमरे को अपनाया. उस कमरे में एक पंखा है. लाइट कट पर पंखा भी बंद हो जाता है. क्योंकि आश्रम में जनरेटर, इनवर्टर की व्यवस्था नही है. कमरे में लेटने बैठने के लिये लकड़ी के दो छोटे तख्त. और कुछ नही.
गुरु जी ने साधना का पहला चरण यहीं शुरू किया.
वे 15 जून को केशवाश्रम पहुंचे. उसी रात 12 बजे से से उनके संचार यंत्र खामोश हो गये. क्योंकि आगे 3 दिन की साधना मौन होने वाली थी. मोबाइल खामोश, वाट्सअप आफ. मौन साधनाओं के दौरान उनसे सम्पर्क कर पाना नामुमकिन सा होता है. जायसवाल जी मौन साधना के दौरान कई बार केशवाश्रम गये, मगर उनसे सम्पर्क न कर सके.
केशवाश्रम के पास ही अलखनंदा घाट हैं. यहां का पानी साफ और धारा का बहाव तेज हैं.
गुरु जी ने 3 दिन की पहले चरण की साधना यहीं करने का निश्चय किया.
वे सुबह जल्दी अलखनंदा घाट पर पहुंच जाते. गंगा जी की धारा में बैठ जाते. धारा में बैठकर 4 से 6 घंटे मंत्र जाप करते. धूप अधिक हो जाने पर धारा से निकलकर गंगा किनारे ही कई किलोमीटर तक टहलते रहते.
शाम को फिर धारा में बैठकर 3 से 4 घंटे की साधना करते.
पहले दिन सुबह की साधना के बाद जब टहलने निकले तब उनके साथ ऋषीकेश से आये कुछ शिष्य भी थे.
उसी बीच पीपल के एक पेड़ के नीचे बैठे एक संत से भेट हुई.
वे गंगा किनारे अपने बेटे के मोक्ष के लिये जाप कर रहे थे.
उन्होंने गुरु जी को बताया कि कुछ समय पहले उनके बेटे की अकाल मृत्यु हो गई. वो अभी बीस साल के आस पास ही था. उसकी मुक्ति के लिये जो पूजा पाठ हुआ वो पंडितों की चूक के कारण बिगड़ गया. जिसके कारण उनका बेटा प्रेत योनि में चला गया. अब वह मुक्ति के लिये छटपटा रहा है. हर समय उनके साथ रहता है और मोक्ष के लिये कहता रहता है. उसके लिये तमाम जतन कर चुके हैं. कई अनुष्ठान करा चुके हैं. मगर प्रेत योनि से मोक्ष नही मिल रहा.
वे साधु अपने सामने मृत बेटा का फोटो रखकर मोक्ष जाप कर रहे थे.
गुरु जी ने फोटो देखा और साधु से पूछा क्या अभी भी आपका बेटा यहां मौजूद है.
साधु ने हा में जवाब दिया.
गुरु जी ने सात आये शिष्यों में से एक से फोटो के जरिये सादु के बेटे से सम्पर्क का इशारा किया. उन्होंने सम्पर्क कर लिया और इशारे से फोटो में अतिरिक्त उर्जा होने की जानकारी दी.
गुरु जी ने साधु को को आश्वस्त किया कि उनके बेटे को मुक्ति जरूर दिलाई जाएगी. उन्होंने साधु से मोक्ष मंत्र जाप की विधि में कुछ बदलाव कराये. अगले दिन बेटे के नाम से खोये के कुछ पेड़ें गंगा जी में प्रवाहित करने को कहा.
साधु द्वारा गुरु जी की बताई विधि अपनाने से उनके बेटे को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई.
मोक्ष अनुष्ठान की प्रभावशाली उर्जा विधि….
*जिन संजीवनी उपचारकों के पास महासंजीवनी रुद्राक्ष है वे एेसी आत्माओं की मुक्ति का औरिक अनुष्ठान कर सकते हैं*.
इसके लिये उस व्यक्ति का फोटो सामने रखकर महासंजीवनी रुद्राक्ष को हाथ में लेकर भगवान शिव से आग्रह करें.
कहें *हे शिव गुरु मै आपको साक्षी बनाकर अमुक (….जिसकी मुक्ति होनी है उसका नाम लें) के मोक्ष हेतु औरिक अनुष्ठान कर रहा हूं, इसकी सफलता हेतु दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें, साथ ही इनकी आत्मा को शिवलोक बुलाकर वहां मोक्ष धाम पहुंचायें. आपका धन्यवाद है*.
उसके बाद महासंजीवनी रुद्राक्ष से कामना करें. कहें *हे दिव्य सिद्ध महासंजीवनी रुद्राक्ष अमुक (….जिसकी मुक्ति होनी है उसका नाम लें) की छूटी अधूरी उर्जाओं को शिवलोक की उर्जाओं से जोड़ दें. इसे इसी क्षण शिवलोक तक पहुंचने की उर्जा प्रदान करें. जहां से ये समयानुसार इस आत्मा को मोक्ष धाम भेजा जाएगा.आपका धन्यवाद है*.
फिर मृतात्मा का मार्गदर्शन करें. कहें *शिवलोक में आपका इंतजार हो रहा है, महासंजीवनी रुद्राक्ष द्वारा आरोहित उर्जा वाहन पर सवार होकर आप तत्काल शिवलोक को जायें. वहां से संतुष्ट होकर मोक्ष को प्राप्त करें और अपने कुल के लोगों को आशीर्वाद प्रदान करें. आपका धन्यवाद है*.
फिर मृतात्मा के कुल देव से आग्रह करें. कहें *अमुक (….जिसकी मुक्ति होनी है उसका नाम लें) के कुल देव आपको मेरा प्रणाम है, आप इनकी मुक्ति हेतु मुझे दैवीय सहयोग प्रदान करें. आपका धन्यवाद है*.
उसके बाद *ऊं. नंमो भगवते मोक्षप्रदाय* मंत्र का 35 मिनट अविचल जाप करें.
जाप की दिशा पूर्व रखें.
पास में पानी रखें. जाप के द्वारा गले में रुकावट का आभास हो सकता है. पानी पीकर खुद को सामान्य करें.
मोक्ष अनुष्ठान के दौरान डरें बिल्कुल नही, महासंजीवनी रुद्राक्ष के द्वारा शिव सुरक्षा हर पल प्राप्त रहेगी.
अंत में शिव गुरु, महासंजीवनी रुद्राक्ष, मृतात्मा, एनवर्जी गुरू जी और खुद की शक्तियों को धन्यवाद में.
( मोक्ष अनुष्ठान की ये विधि मैने फर्जा नायक एनर्जी गुरूजी द्वारा रची जा रही उर्जा पुराण से साभार ली है.)
क्रमशः
शिवगुरू को प्रणाम
गुरु जी को नमन
आपको राम राम