ब्रह्मकमल केदारनाथ की घाटी में ऊंची पर्वत श्रंखला में मिलता है. वहां ये पहाड़ी चट्टानों को तोड़कर बाहर आ जाता है.
राम राम, मै शिवप्रिया
ग्रुप के कुछ साधकों ने ब्रह्मकमल के बारे में विस्तार जानकारी देने का आग्रह किया है.
ब्रह्मकमल केदारनाथ की घाटी में ऊंची पर्वत श्रंखला में मिलता है. वहां ये पहाड़ी चट्टानों को तोड़कर बाहर आ जाता है.
केदारनाथ धाम के पुजारी दुर्गम रास्तों से होते हुए भोर में इसे लेने जाते हैं.
ये बहुत जहरीला होता है. धूप पड़ने पर इससे जहरीली सुगंध निकलती है. जिससे लोग बेहोश होकर मर सकते हैं.
इसे प्राप्त करना बड़ा ही कठिन काम है. ये केदारनाथ धाम से काफी ऊपर पहाड़ियों में होते हैं. वहां तक पहुंचने में कई घंटे लगते हैं. पैदल रास्ता है. बीच में दुर्गम झाड़ियां हैं. उन्हें पार करते हुए पहुंचना बहुत जोखिम भरा होता है.
खतरा यही खत्म नही होता. ऊपर पहुंच गए तो पहाड़ी भालुओं का खतरा रहता है. पहाड़ी रीक्ष बहुत ही हमलावर होते हैं. एेसे समझें कि केदार घाटी का ये निर्जन क्षेत्र उनके साम्राज्य जैसा है. वे वहां इंशानों की आवाजाही से भड़क जाते हैं. ब्रह्मकमल उन भालुओं का भोजन है. ब्रह्मकमल तोड़ने वालों पर वे घात लगाकर हमला करते हैं. उनके हमले से जिंदा बच पाना मुश्किल होता है.
पहाड़ी भालुओं से बचने के लिये पुजारी समूह में वहां जाते हैं.
ऊपर एक घाटी है. ब्रह्मकमल वहीं होते हैं.
ये प्रकृति का चमत्कार ही है कि ब्रह्मकमल पत्थरों को चीरकर बाहर निकल आते हैं. देखने से एेसा लगता है जैसे पत्थर ही पेड़ हों, जिन पर फूल लगे हैं. वैसे तो ब्रह्मकमल घाटी बड़ी मनोरम है. मगर यहां रुकना जानलेवा साबित हो सकता है. क्योंकि ब्रह्मकमल से जहरीली सुगंध निकलती है. जिससे लोग तुरंत बेहोश हो जाते हैं.
वैसे तो पता ही नही चलता कि उनमें कोई सुगंध है. फिर भी उनके सम्पर्क में आते ही लोग बेहोश हो जाते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि वो सुगंध नही है बल्कि ब्रह्मकमल से निकलने वाली जहरीली गैस है.
उसके जहर से बचने के लिये पुजारी मुंह में कपड़ा लपेटकर फूल तोड़ते हैं. वे सब स्थानीय रहने वाले हैं. केदारनाथ धाम के सभी पुजारी आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वाले हैं. उनकी कई पीड़ियों केदारनाथ की पूजा में लगे हैं. देश के विभिन्न हिस्सों को उन्होंने अपने यजमान के रूप में बांट रखा है. जैसे ही कोई केदारनाथ दर्शन हेतु जाता है तो वे पूछते हैं कि वे कहां से आये हैं. अपने क्षेत्र/ शहर का नाम बताने पर उस क्षेत्र के पुजारी के पास भेज दिया जाता है. क्योंकि उस शहर के लोग उसी पुजारी के यजमान होते हैं.
यही पुजारी अपने यजमानों के लिये भारी जेखिम उठाकर ब्रह्मकमल इकट्ठे करते हैं. यजमानों को पूजा करने के लिये देते हैं. क्योंकि मान्यता है कि बिना ब्रह्मकमल के केदारनाथ की पूजा पूरी नही होती.
इस लिये केदारनाथ धाम के पुजारी सुबह तड़के ही ब्रह्मकमल लेने के लिये केदार धाम से भी ऊंची पहाड़ियों पर चढ़कर जाते हैं. वहां अक्सर उन पर पहाड़ी भालू हमला कर देते हैं. क्योंकि ब्रह्मकमल उनका भोजन है.
ब्रह्मकमल को तोड़ने के समय पुजारी मुंह व नाक पर कपड़ा लपेटे रहते हैं. एेसा न करें. तो कमल से निकलने वाली सुगंध से वे बेहोश हो जाते हैं. निर्जन पहाड़ियों में उन्हें बचाने वाला कोई नही होता.
बड़े आश्चर्य की बात है कि केदारनाथ के शिवलिंग पर चढ़ाते ही ब्रह्मकमल का जहर बुझ जाता है. तब वो किसी को नुकसान नही करता. पुजारी इसे भक्तों को प्रसाद स्वरूप देते हैं.
ब्रह्मकमल केदारनाथ भगवान पर चढ़ाया जाने वाला अनिवार्य पुष्प है. मान्यता है कि इसके बिना केदारनाथ की पूजा पूरी नही होता. भक्तों के लिये वहां के पुजारी भारी जोखिम उठाकर इन्हें एकत्र करते हैं.