राम राम मै अरुण
गुरु जी हिमालय साधना पूरी करके वापस आ चुके हैं। जन्माष्टमी पास है। आज मैंने गुरु जी से जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर मृत्युंजय योग से जुड़े साधकों के लिये कोई खास साधना बताने का अनुरोध किया।
गुरु जी ने बताया कि जन्माष्टमी को श्री कृष्ण के रूप में धरती पर अपराजित ऊर्जा का अवतरण हुआ था। बचपन से ही कृष्ण हर क्षेत्र में अपराजित रहे। जो उनसे जुड़ा वह भी उनके प्रभाव से अपराजित बना। उनकी अपराजित बनाने वाली ऊर्जाएं आज भी श्रद्धालुओं के हित में सक्रिय हैं।
उनका लाभ लेने के लिये जन्माष्टमी पर अपराजिता साधना की जाये तो बड़ी सिद्धि दायी होती है। इसे साधक और उसमें विश्वास करने वालों के जीवन मेँ सफलताएं सुनिश्चित होती हैं। सम्मुख और छिपे हुए शत्रु पराजित होते हैं। रुकावटें हटती हैं। जीवन में सम्मान स्थापित होता है। इसका साधक किंग मेकर जैसा बन जाता है।
मैंने गुरु जी से अपराजिता साधना का विधान पूछा।
उन्होंने बताया कि अपराजिता साधना 3 दिन की होती है। इसके लिये अपराजिता फल की जरूरत होती है। ये पहाड़ों में होने वाला छोटे आकर का एक ठोस फल होता है। कुछ साधक इसे सीता सुपारी के नाम से जानते हैं। इसकी ऊर्जाएं भगवान् कृष्ण की ऊर्जाओं की समधर्मी होती हैं। साथ ही लक्ष्मी सुख की ऊर्जाएं भी आकर्षित करता है। इसे कई तरह की साधनाओं में उपयोग किया जाता है।
अपराजिता साधना में एक पोटली सिद्ध की जाती है। जिसमें सीता सुपारी, पुंगी फलम्, श्रृंगारिका, अक्षत चावल रखे जाते हैं। पोटली सिद्ध मुहर्त में ही बनाई जानी चाहिये। पोटली बनाने के समय रिक्ता तिथि या भद्रा नही होनी चाहिये। पोटली पीले या हरे कपड़े में बनाएं। उसमें किसी तरह की धातु का उपयोग न हो।
इसे अपराजिता पोटली कहते हैं। भगवान शिव को साक्षी बनाकर पोटली को जाग्रत करें। इसके लिये गणेश जी का ध्यान करके पोटली को पहले देवी लक्ष्मी की ऊर्जाओं से जोड़ें। उसके बाद ही भगवान कृष्ण की ऊर्जा से जोड़ें। फिर पोटली को जीवन में सुख, समृद्धि और विजय के लिये प्रोग्राम करें।
साधना जन्माष्टमी से पहले षष्ठी की रात पोटली सामने रखकर आरम्भ करें। सिद्धि के लिये हर रात 3 घण्टे मन्त्र जाप करें। मन्त्रों की गिनती न करें। टाइम के हिसाब से जाप करें। पूरा जाप एक ही बैठक में पूरा किया जाना चाहिये। इसके लिये सुबह से वृत्त रखना जरूरी है। ताकि सिद्धि की ऊर्जाएं बिना मिलावट नाभि चक्र में संकलित हो सकें। साधना जन्माष्टमी की रात पूरी होगी। उस रात 12 बजे से पहले ही साधना पूरी कर लें। कृष्ण जन्म के समय पोटली पूजा स्थल पर ही रहने दें। इस तरह पोटली सिद्ध हो जायेगी।
अगले दिन या उसके बाद कभी भी सिद्ध पोटली को अपने घर के या प्रतिष्ठान के लॉकर में रखें। अगर व्यवसाय करते हैं तो मनचाही बरक्कत के लिये सिध्द पोटली घर में और प्रतिष्ठान में दोनों जगह रखें।
मन्त्र- ॐ नमो भगवते रुक्मणी पतये लीलाधराय ।
एक साधक एक साथ कई अपराजिता पोटली सिद्ध कर सकता है। अपने लिये भी और दूसरों के लिये भी। सिद्ध पोटली सबके एक सामान काम करती है।
मैंने गुरु जी से मृत्युंजय योग से जुड़े साधकों के लिये अपराजिता पोटली सिद्ध करने का अनुरोध किया। लोकहित में वे इसके लिये तैयार हो गए।
मेरे आग्रह पर वे अपने अनुयायियों के लिये भी पोटली सिद्ध करेंगे। गुरु जी इस जन्माष्टमी की अपराजिता साधना में 210 पोटली सिद्ध करेंगे।
यदि आप भी सिद्ध अपराजिता पोटली अपने घर व् प्रतिष्ठान में स्थापित करना चाहते हैं तो प्राप्त करने के लिये 23 अगस्त से पहले
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अगर आपके पास पोटली की सामग्री नही है तो उसे हमारे यहां से भी प्राप्त कर सकते हैं। जिसकी अनुमानित लागत 2300 है।