गुरु जी की हिमालय साधना…6
राम राम, मै शिवप्रिया
गुरु जी इन दिनों अपनी गहन साधना के लिये देव स्थली हिमालय के शिवप्रिय केदार घाटी में हैं। साधना का पहला चरण मणिकूट पर्वत पर कदलीवन में पूरा किया। प्रथम चरण पूरा होने पर पिछले दिनों ऊँची पर्वत चोटिओं से उतरकर हरिद्वार आये। तब फोन पर विस्तार से बात हो सकी। मैंने उनसे अपनी साधना को विस्तार से बताने का अनुरोध किया। जिससे मृत्युंजय योग से जुड़े साधक प्रेरणा ले सकें। साधकों के हित को ध्यान में रखकर गुरु जी ने साधना वृतांत विस्तार से बताना स्वीकार कर लिया। मै यहां उन्हीं के शब्दों में उनका साधना वृतांत लिख रही हूँ।
|| गुरु जी ने आगे बताया…||
केदार घाटी जाने के लिये अगले दिन मै नीलकंठ से उतर कर नीचे ऋषिकेश आ गया। वहां से हरिद्वार गया। वहां रुककर एक अध्यात्मिक मित्र का इंतजार करने लगा। वे मध्य प्रदेश से आने वाले थे। काफी समय से मेरे साथ साधना करने के इच्छुक थे। 19 साल पहले गृहस्थ जीवन त्याग कर सन्यासी हो गए थे। उससे पहले इंजीनियर थे। उन्होंने कई सिध्दियां कर रखी हैं। उन्हें प्रेतों से बड़ा लगाव है। प्रेत सिद्धी भी करी है। उनके साथ सिद्ध किया प्रेत रहता भी है।
प्रेत सिद्धी क्या है? उसे क्यों और कैसे करते हैं? और साथ रहने वाला प्रेत क्या करता है। इस बारे में फिर कभी बताऊंगा।
जब मैंने उन्हें बताया कि हिमालय साधना के लिये केदार घाटी जा रहा हूँ। तो तुरन्त बोले इस बार तो मुझे साथ रखिये।
दरअसल कई बार मैंने अपनी साधना में उन्हें भी जोड़ने का वादा किया। मगर किसी न किसी कारण उन्हें साथ नही रख पाया। इस बार मैंने कहा अच्छा आ जाइये। मै हरिद्वार में हूँ। 3 अगस्त तक आपका इंतजार करूँगा।
वे तुरंत हरिद्वार के लिये निकल पड़े। मै उनका इंतजार करने लगा।
इस बीच हरिद्वार के सिद्ध स्थानों में जाकर शिव सहस्त्र नाम साधना जारी रखी।
हरिद्वार मेँ तमाम सिद्ध स्थल हैं। उनमें से एक जगह है भद्र काली पीठम्। बड़ी सिद्ध पीठ है काली माँ की। मूर्ति के सामने जाते ही देवी सम्मोहित कर लेती हैं। उनसे बातें करना मुझे बहुत आसान लगा।
गंगा जी के किनारे स्थित इस मंदिर में सहस्त्र शिवलिंग स्थापित हैं। एक ही शिवलिंग में एक हजार शिवलिंग। ऐसा मैंने पहली बार देखा।
दक्षिण भारतीय पद्धति से बना ये शिवलिंग आदमकद ऊंचाई में है। काले पत्थर से बना है। शिवलिंग के ऊपर छोटे छोटे एक हजार शिवलिंग निर्मित हैं। ऊर्जा के नजरिये से भी ये बहुत खास है। इसके समक्ष शिव सहस्त्र नाम के अनुष्ठान का अनुभव अनूठा रहा।
वैसे भी शिवलिंग गंगा जी के किनारे है। कल कल करती जलधारा के बीच साधना का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। इस शिवलिंग के नाम पर ही उस घाट का नाम सहस्त्र शिवलिंग घाट है।
हरिद्वार में रहने के दौरान एक दिन मै साधना करने बिल्बेश्वर महादेव गया। ये प्राचीन और सिद्ध है। यहां देवी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिये लम्बे समय तक तप किया। उस बीच उन्होंने सिर्फ बेलपत्र ही खाये। तब यहां भयावह पहाड़ी जंगल थे। आज भी रात होने पर चीता भालू आदि जंगली जानवर वहां उतर आते हैं। इसीलिये रात में पुजारी पार्वती कुण्ड के मंदिर को छोड़कर सुरक्षित स्थान पर चले जाते हैं।
पार्वती कुण्ड वो जगह है जहाँ साधना के दिनों में पार्वती जी स्नान करती थीं। कहा जाता है रात में जब वहां कोई नही होता तब माँ पार्वती अभी भी वहां हर रोज आती हैं।
यहां कामना पूर्ति की भरपूर ऊर्जाएं मिलीं। इसी कारण इस मन्दिर में आने वालों की कामनाएं पूरी होती ही रहती हैं।
साधना सिद्धि के लिये मुझे ये जगह बहुत जाग्रत मिली।
मैंने अपनी साधना का दूसरा चरण यहीं पूरा किया।
क्रमशः …।
… अब मै शिवप्रिया।
आपके लिये गुरु जी द्वारा बताया आगे का वृतांत जल्दी ही लिखुंगी।
तब तक की राम राम।
शिव गुरु जी को प्रणाम।
गुरु जी को प्रणाम।
Ram ram guru ji …mujhe ye janna hai ki tapasya ki vidhi kya hai bhagwan shiv ki……aur kitne dino ki hoti hai