गुरु जी की हिमालय साधना…1
राम राम, मै शिवप्रिया
गुरु जी इन दिनों अपनी गहन साधना के लिये देव स्थली हिमालय में हैं। साधना का पहला चरण मणिकूट पर्वत पर कदलीवन में पूरा किया। प्रथम चरण पूरा होने पर पिछले दिनों ऊँची पर्वत शिखाओं से उतरकर हरिद्वार आये। तब फोन पर विस्तार से बात हो सकी। मैंने उनसे अपनी साधना को विस्तार से बताने का अनुरोध किया। जिससे मृत्युंजय योग से जुड़े साधक प्रेरणा ले सकें। साधकों के हित को ध्यान में रखकर गुरु जी ने साधना वृतांत विस्तार से बताना स्वीकार कर लिया। मै यहां उन्हीं के शब्दों में उनकी साधना का वृतांत लिख रही हूँ।
( गुरु जी ने बताया…)
23 जुलाई 2016.
मै दोपहर की फ्लाइट से देहरादून पहुँच गया। वहां से हरिद्वार जाना था। हरिद्वार में मेरे आध्यात्मिक सहयोगी राकेश जायसवाल से मुलाकात हुई। योजना नीलकण्ठ क्षेत्र में साधना शुरू करने की थी। अगले दिन राकेश जी ने मुझे ऋषिकेश छोड़ा। वहां से मै नीलकंठ पहुंचा।
नीलकण्ठ में कांवड़ियों की भारी भीड़ थी। मै पहुंचा उस दिन 2 लाख से अधिक भक्तों ने नीलकण्ठ का जलाभिषेक किया। ऐसा मुझे वहां मिले एक पुलिस अधिकारी ने बताया। जिसने भीड़ में मुझे पहचान लिया था। वो मेरे पत्रकारिता के दिनों के मित्र निकले। हम 17 साल बाद मिले थे।
भारी भीड़ के कारण वहां भारी शोर था। चारो तरफ हर हर महादेव की गूंज थी। तेज आवाज में शिव भक्ति के गाने बज रहे थे। सभी होटल लॉज धर्मशालाएं भरी हुई थीं। ठहरने की कोई जगह नही। जहां मिली वहां गंदगी इतनी कि रहना सजा जैसा लगे।
पुलिस अधिकारी मित्र ने अपने घर ठहरने का प्रस्ताव दिया। मैंने मना कर दिया। क्योंकि वहां साधना का माहौल न मिल पाता।
साधना की शुरुआत नामुमकिन लगी। मेरे मन ने शिव गुरु से शिकायत की. क्यू बुलाया मुझे यहां?
तभी मेरे एक आध्यात्मिक मित्र भीड़ के बीच सामने से आते दिखे। उनका भी प्रोग्राम टी वी चैनल पर आता है। टी वी पर मुझे देखने वाले लोगों द्वारा पहचाने जाने से बचने के लिये मैंने कैफ्री और टी शर्ट पहन रखी थी। भीड़ वाली जगहों पर जाते समय मै ऐसा ही करता हूँ।
फिर भी उन्होंने पहचान लिया। कन्फर्म करने के लिये अपने मोबाईल में सेव मेरे नं पर कॉल की। कॉल पिक करके मैंने जवाब दिया हाँ मै ही हूँ। वे नीलकंठ व्यवस्थाक समिति के करीबी हैं।
मैंने साधना की बात बताई तो उन्होंने अपनी कुटिया देने का प्रस्ताव दिया। मैंने धन्यवाद सहित स्वीकार कर लिया। और उनके साथ उनकी कुटिया की तरफ चल पड़ा।
उनकी कुटिया नीलकण्ठ से 3 किलोमीटर ऊँचे पहाड़ पर पार्वती मन्दिर के पास थी। वहां पार्वती माता ने शिव जी के प्राणों की रक्षा के लिये 40 हजार साल तप किया था।
मुझे अपनी कुटिया में छोड़कर वे नीचे नीलकण्ठ में उतर गए। जाते जाते हिदायत दे गए कि रात में कुटिया से बाहर न निकलूं। क्योंकि अंधेरा घिरने के बाद कई बार पहाड़ी जंगलों से निकल कर तेंदुआ, भालू और जंगली सूअर उधर आ जाते हैं। रास्ते में इसी हिदायत वाला पुलिस कप्तान की तरफ से लिखा बोर्ड भी दिखा था।
उसी रात मैंने अपनी ऊर्जा को मणिकूट पर्वत और वहां से 20 किलोमीटर की परिधि में स्थापित आध्यात्मिक शक्तियों, आध्यात्मिक गुरुओं की ऊर्जाओं के साथ जोड़ कर साधना शुरू कर दी।
उस रात मैंने अपने आध्यात्मिक मित्र और पुलिस कप्तान की जंगली जानवरों से सावधान रहने वाली हिदायत नही मानी। क्योँकि सामने जो नजारा था उसकी तलास मुझे लम्बे समय से थी।
ऊँचे पहाड़ों के बीच झूमते लम्बे पेड़ों ने मुझे आकर्षित कर लिया। हालांकि स्याह रात में वे डरावने प्रेतों जैसे लगते हैं। मगर मै उन पर त्राटक करने के लिये आकर्षित हुआ। पहाड़ों की ऊर्जा के बीच अँधेरे में भी त्राटक किया जाये तो वहां रोशनी बिखरी नजर आती है। ऐसे में पेड़ों और उनके झुरमुट में क्या छिपा है। ये जाना जा सकता है।
इस मौके को मै कैसे जाने देता। पहाड़ों में लोग जल्दी सो जाते हैं। 8 बजे तक चारो तरफ सन्नाटा छा गया। बस थीं तो जंगली जानवरों की आवाजें। और बादलों के कारण काला अँधेरा।
9 बजे तक मैंने कुटिया के भीतर साधना की। इसके बाद एक कुर्सी बाहर लाकर खुले आसमान के नीचे बैठ गया। और दो पहाड़ियों के बीच लहरा रहे एक पेड़ की चोटी पर नजरें टिका दीं। मैने कई घण्टे त्राटक करने का मन बना लिया था।
त्राटक का मतलब होता है किसी भी चीज को बिना पलक झपकाये लगातार देखना। त्राटक से एकाग्रता बढ़ती है। तीसरे नेत्र का जागरण होता है। ज्ञात अज्ञात जानने की क्षमता उत्पन्न होती है। मानसिक सिद्धियां मिलती हैं। मन शांत होता है। धैर्य और संयम बढ़ता है। आध्यात्मिक विकास होता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इससे भाग्योदय भी होता है।
त्राटक कई तरह के होते हैं। यहां मै गहन त्राटक कर रहा था। जिससे अँधेरे में भी रोशनी दिखती है। यही नही इस रोशनी में आसपास की चीजें भी दिखाई देने लगती हैं। मै रात 2 बजे तक पेड़ पर नजरें टिकाये बैठा रहा। दरअसल इतना आनंद आ रहा था कि मै घड़ी को भूल गया।
त्राटक की शक्ति ने मेरे लिये अँधेरे उजाले की सीमायें मिटा दी थीं। मुझे पहाड़ों पर दूर तक रोशनी ही रोशनी दिख रही थी। चारो तरफ पेड़ रोशनी में नहाये दिख रहे थे। उनके बीच मै जानवरों की हलचल को साफ देख पा रहा था।
ये मेरा भ्रम नही था। जिस तरह से नाइट विजन दुरवीन रात के अँधेरे में चीजों को देख लेती है। उसी तरह त्राटक के दौरान आँखों का संकुचन युक्त विशेष दृष्टि कोण खुद को अँधेरे में देखने के लिये तैयार कर लेता है। कुछ अभ्यास के बाद इसे कोई भी कर सकता है।
मगर अभ्यास सक्षम मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिये। वरना आँखों पर विपरीत प्रभाव का खतरा रहता है।
रात लगभग 2 बजे मुझे एक भालू अपनी तरफ आता दिखा। मै उठकर कुटिया में चला गया।
…. क्रमशः।
अब मै शिवप्रिया। आपके लिये गुरु जी द्वारा बताया आगे का वृतांत जल्दी ही लिखुंगी। तब तक की राम राम।
शिव गुरु जी को प्रणाम।
गुरु जी को प्रणाम।
Guru ji ko shat shat naman