सभी को शिवप्रिया का राम राम
गुरु जी इन दिनों गहन साधना के लिये हिमालय क्षेत्र में हैं. मणिकूट पर्वत के कदलीवन में गहन साधना का पहला चरण पूरा करने के बाद वे कल केदारनाथ क्षेत्र के लिये रवाना होंगे. आपको बताते चलें कि समुद्र मंथन से निकले विष को पीने के बाद खुद को विष की पीड़ा से मुक्त करने के लिये भगवान शिव मणिकूट पर्वत पर आ गए थे. यहां की हवा में स्थायी शीतलता रहती है. जिसके कारण कड़ी धुप में भी यहां हवाएँ ठण्ड रहती है. भगवान शिव खुद को पीड़ा मुक्त करने के लिये यहीं आ गए. और एक चोटी पर ध्यान लगाकर बैठ गए.
वहां वे लगातार 60 हजार साल तक ध्यान में बैठे रहे. उस जगह को इन दिनों नीलकंठ के नाम से जाना जाता है. यहां हर साल करोड़ों शिव भक्त नीलकंठ शिवलिंग पर जलाभिषेक करने आते हैं. खासतौर से कावड़ के दिनों में भारी भीड़ होती है. मणिकूट पर्वत क्षेत्र सिद्ध तप क्षेत्र है. ये हिमालय पर्वत श्रृंखला का प्रथम क्षेत्र है. मणिकूट में शिव जी ने ध्यान के लिए गुप्त स्थान चुना था. इसलिये कोई उन्हें ढूंढ नही पाया. कई हजार साल बीत गए. शिव नही मिले. माँ पार्वती सहित सभी देवताओं को चिंता होने लगी. आशंका उपजी कि भयानक विष में शिव के प्राण तो नही ले लिये.
सबने उनको ढूँढना शुरू किया. 20 हजार साल लगे उन्हें ढूंढने में. माता पार्वती को जब पता चला कि शिव जी मणिकूट पर समाधिस्थ हैं. तो वे भी वहां आ गयी. और अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए वहीं तप शुरू कर दिया. वे 40 हजार साल तक तप करती रही. उनका संकल्प था कि जब तक शिव जी स्वस्थ होकर खतरे से बाहर नही आ जाते तब तक तप में ही रहेंगी. पति की प्राण रक्षा के लिए की गयी उनकी प्रार्थना काम आयी और शिव स्वस्थ हो गए.
शिव जी के स्वस्थ हो जाने के बाद ही माँ पार्वती ने अपना तप रोका. उनके अनुरोध पर शिव जी ने निष्क्रिय हो चुके विष को अपने कण्ठ से निकालकर वहीं स्थापित कर दिया. खुद को बचाने के लिये भगवान शिव ने विष को अपने गले में ही रोक लिया था. 60 हजार तक समाधि में बैठकर उन्होंने ब्रह्मांडीय ऊर्जाएं ग्रहण कीं. जिससे विष कंठ में ही जमकर निष्क्रिय हो गया. उसे निकालकर ध्यान स्थल पर स्थापित कर दिया. वही नीलकंठ शिवलिंग बना. इसी कारण नीलकंठ शिवलिंग की आकृति दूसरे शिवलिंग से अलग है. वह कण्ठ यानि गले की आकृति में है.
कालांतर में गुरु गोरखनाथ सहित तमाम सिद्धों ने अपनी सिद्धियों के लिये इस तप क्षेत्र को चुना. गुरु जी ने इस बार की अपनी गहन साधना का पहला चरण इसी तप क्षेत्र में पूरा किया. वे इस बार की गहन साधना उच्च साधकों को सिद्धियों तक पहुँचाने के लिये कर रहे हैं. गहन साधना का दूसरा चरण उन्होंने दो दिन पहले वशिष्ठ गुफा में पूरा किया.
वशिष्ठ गुफ़ा ऋषिकेश से गुप्त काशी को जाने वाले रास्ते पर है. गुप्त काशी से आगे केदारनाथ धाम है. गुरु जी बताते हैं कि वशिष्ठ गुफा अत्यंत सिद्ध तप स्थल है. एक तरह गंगा जी की कलकल करती धारा. दूसरी तरफ आसमान छूते ऊँचे पर्वत. बड़ा ही मनोहारी क्षेत्र है वशिष्ठ गुफा के आसपास. अगर यहां टाइगर, भालू, जंगली हाथियों, जंगली सूअरों, अजगर, आदि खतरनाक जंगली जानवरों का खतरा न होता तो यह बहुत ही रमणीक जगह है. यहां ऋषि वशिष्ठ ने लंबा तप किया और विभिन्न सिद्धियां प्राप्त की. यहां साधना का अवसर मिल जाये तो सिद्धियां दूर नही रहतीं.
13 से 15 अगस्त को होने जा रही हिमालयन साधना में गुरु जी ने उच्च साधकों के लिए वशिष्ठ गुफा में साधना की व्यवस्था कराई है. गुरु जी के सानिग्ध में वहां साधना करना मेरा भी सौभाग्य होगा. ऋषि वशिष्ठ मेरे कुल ऋषि भी हैं. गोत्र के अधिष्ठाता हैं.
वैसे तो गुरु जी हिमालय में अपनी तपस्या के लिये आये थे. मगर अरुण जी के अनवरत अनुरोध के बाद उन्होंने कुछ खास साधकों को हिमालयन साधना कराना स्वीकार कर लिया है. साधना का अंतिम चरण वशिष्ठ गुफा में पूरा होगा. गुफा के भीतर साधना के लिये बैठने की जगह की कमी होती है. इसलिये हिमालयन साधना में सिर्फ 15 उच्च साधकों का ही चयन किया गया है.
हिमालयन साधना के लिये साधक 13 अगस्त को शताब्दी एक्सप्रेस से हरिद्वार पहुंचेगे. उसी दिन गुरु जी उनकी शिव सहस्त्र सिद्धि साधना आरम्भ कराएंगे. साधना की सिद्धि के लिये गुरु जी तीन दिनों के लिये सभी साधकों को शिव सहस्त्रनाम की ऊर्जा और देवभूमि हिमालय की ऊर्जा से जोड़ेंगे.
अरुण जी ने हरिद्वार में चंडीगढ़ भवन में साधकों के रहने की वातानुकूलित व्यवस्था कराई है. साधकों के आने जाने और रहने खाने की सारी व्यवस्था मृत्युंजय योग की तरफ से है.
हिमालयन साधना के सभी साधकों को शुभकामनाएं. मै भी इस साधना में हूँ. अभी से बहुत रोमांचित हो रही हूँ. सिद्ध वशिष्ठ गुफा से कुछ ऐसा प्राप्त करके लौटूंगी जो करोड़ों लोगों के काम आये. ये मेरा संकल्प है.
शिव गुरु जी को करोड़ों धन्यवाद.
गुरु जी को अनंत धन्यवाद.
Ram Ram Guruji, Ram Ram Shivpriyaji, Ram Ram Arunji.