
मेरी कुण्डली आरोहण साधना- अंतिम
प्रणाम मै शिवांशु
बनारस में कैम्प कर रहे गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र तुल्सीयायन महाराज अपने 44 श्रेष्ठ शिष्यों की कुंडली जाग्रत करके उसका ऊपर के चक्रों में आरोहण कराना चाहते थे। मगर ध्यान योग से एक साथ इतने लोगों की कुंडली आरोहण में वे समय अधिक लग रहा था. सो उन्होंने गुरुवर से उर्जा विज्ञान का सहयोग मांगा. गुरुदेव ने कुंडली आरोहण से पहले सभी साधकों को दूषित उर्जाओं से मुक्त कराया. उसके लिये सबसे पहले ग्रहों की पिंड उर्जाओं कुंडली जागरण रुद्राक्ष के द्वारा साधकों की हथेली पर बुलाया गया. उनके जरिये ग्रहों की दूषित उर्जाओं को ग्रहों पर ही विस्थापित कर दिया गया. देव बाधा, पितृ बाधा और तंत्र बाधा की उर्जाों को समाप्त करने के लिये गुरुवर ने पारद शिवलिंग का उपयोग कराया.
अब आगे….
पारद शिवलिंग के मध्य भाग को प्रोग्राम करके नकारात्मकता को हटाना के लिये तैयार किया जाता है. इसके लिये शुद्ध पारद शिवलिंग को संजीवनी शक्ति से शोधित करके सिद्ध किया जाता है. फिर उसकी प्रोग्रामिंग की जाती है. इसे आप एेसे समझें जैसे किसी स्मार्ट फोन को चार्ज करके आन किया जाये. फिर उसमें विभिन्न एप डाउनलोड करके उसकी प्रोग्रामिंग की जाये. फिर वो इस्टाल एप यानी प्रोग्रामिंग के मुताबिक काम करता है.
एेसा शिवलिंग किसी भी व्यक्ति में व्याप्त ग्रहदोष, वास्तुदोष, तंत्रदोष, पितृदोष, देवदोष की उर्जाओं को नष्ट करने में सक्षम होता है. गुरुवर ने हम सभी साधकों को सिद्ध और प्रोग्राम्ड शिवलिंग दिये. हम उन्हें हाथ में लेकर बैठ गये. जैसे ही गुरुदेव ने शिवलिंग से नकारात्मकता हटाने का आग्रह किया. हमें लगा जन्मों से हमारे भीतर घुसी नकारात्मक उर्जायें निकल रही हैं. हम सबने अपने भातर से निकलती नकारात्मक उर्जाओं को काफी देर तक फील किया.
हम सोच भी नही सकते थे कि इतनी पूजा पाठ, ध्यान साधना करने के बाद भी हमारे भीतर इतना कचरा बाकी है.
इस अनुष्ठान के बाद हमें पता चला कि वास्तव में नकारात्मकता से मुक्त होने पर कितना सुखद लगता है. एेसी फ्रीडम का ये पहला अहसास था. सफलता का आत्मबल आसमान छूने लगा. मन के संसय मिट चले. निगेटिविटी से मुक्त हमारी उर्जाओं ने मूक घोषणा सी कर दी कि अब तो कुंडली शक्ति जागेगी ही.
कुंडली जागरण और आरोहण में मुझे छोड़कर शेष सभी साधक तुल्सीयायन महाराज के शिष्य थे. सो गुरुवर ने कुंडली आरोहण शक्तिपात तुल्सीयायन महाराज से ही कराना तय किया. मै इस बात का मतलब साफ समझ रहा था. गुरुवर चाहते थे कि तुल्सीयायन महाराज के शिष्यों के मन में ये संदेश न जाने पाये कि उनके गुरु इस काम के लिये सक्षम नही थे. वे चाहते थे कि उनके सभी शिष्यों का अपने गुरु के प्रति विश्वास अटल बना रहे. इसके लिये गुरुदेव ने तुल्सीयायन महाराज से विधिवत आग्रह किया कि वे ही शक्तिपात करें.
तुल्सीयायन महाराज भी इस बात का अर्थ समझ रहे थे. उन्होंने कुछ मिनटों तक गुरुवर से एकांत वार्ता की और शक्तिपात के लिये हमारे बीच आ गये.
साधकों को कुंडली आरोहण यंत्र धारण करने के निर्देश मिले. शिवलिंग को हाथ से हटाकर अलग रख दिया गया. उससे पहले गुरुदेव ने बताया कि किसी भी साधक के जीवन में जब कोई भी समस्या आये या साधना में विघ्न आये तो वह शिवलिंग को सामने रखकर उसे 10 मिनट अपलक देखे. समाधान स्वतः निकलकर सामने आ जाएगा.
जो लोग आगामी कुंडली महासाधना शिविर में आ रहे हैं. वे भी कुंडली महासाधना के बाद अपने शिवलिंग का एेसा उपयोग सदैव कर सकेंगे.
हम शक्तिपात ग्रहण करने के लिये तैयार हो चुके थे. तुल्सीयायन महाराज ने शक्तिपात प्रारम्भ किया. कुछ ही क्षणों बाद हमें गले में धारण यंत्र पर दबाव महसूस हुआ. मै हैरान था. पहला दबाव सिर के ऊपर सहस्रार पर होना चाहिये था. मगर दबाव यंत्र पर था. यानी कि यंत्र शक्तिपात की उर्जायें सीधे अपनी तरफ खींच रहा था. तभी याद आया कि कुंडली का आरोहण तो नीचे से ऊपर की तरफ होना है. एेसे में शक्तिपात का आरोहण सहस्रार से नीचे की तरफ जाना उचित न होता. अब यंत्र की उपयोगिता समझ पा रहा था.
जैसे जैसे शक्तिपात का वेग बढ़ता गया, वैसे वैसे यंत्र पर दबाव स्थिर होता गया. सामान्यतः ध्यान के समय मुझे सहस्रार, तीसरे नेत्र, आज्ञा चक्रों पर उर्जा उतरती लगती थी. मगर आज एेसा न था. कई मिनट बीत गये. मेरे किसी भी चक्र पर उर्जा का दबाव महसूस नही हो रहा था. जबकि ध्यान-साधना में बैठते के एक मिनट के भीतर ही मेरे अधिकांश चक्र सक्रिय होकर मुझे अपनी उपस्थिति का अहसास कराने लगते हैं.
अगर गुरुदेव सामने न बैठे होते तो शायद मै भ्रमित हो जाता कि शक्तिपात का मुझ पर असर होभी रहा हैया नही.
मैने खुद को ढ़ीला छोड़ दिया. क्योंकि समझ चुका था कि इस साधना में मेरे किसी एक्शन की कोई भूमिका ही नही है. जो होगा वो गुरुदेव द्वारा तैयार यंत्र ही करेगा. शायद गुरुदेव ने यंत्र की प्रोग्रामिंग में टाइमिंग भी तय की थी. वो शक्तिपात की उर्जाओं को अपने मुताबिक साधकों के चक्रों पर पहुंचा रहा था. इस साधना में हमें किसी मंत्र का जाप भी नही करना था. एेसा गुरुदेव का निर्देश था. क्योंकि साधकों ने बिना मंत्र की साधना कराने का आग्रह किया था.
गुरुवर का निर्देश था कि अगर किसी का मन बहुत ज्यादा इधर उधर भागे तो वे मन ही मन कहें * हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं. मुझ शिष्य पर दया करें. मेरे भीतर के शिव को जगाकर मेरा कुंडली आरोहण स्वीकार करें और साकार करें*.
कुछ देर बाद मुझे दोनो पैरों के बीच सनसनाहट होती लगी. रीढ़ की हड्डी में सर्द सिहरन सी दौड़ गई. जैसे किसी ने मेरी रीड़ को नीचे और ऊपर से पकड़कर खींच दिया हो. ये मेरे लिये अपनी तरह का पहला अनुभव था. खिचाव एेसा था कि रीढ़ के निचले हिस्से में गुदगुदी होने लगी. मन रोमांच से भर गया. स्पष्ट रूप से मेरे शरीर के भीतर बदलाव हो रहा था.
कुछ समय यूं ही बीता. फिर अचानक तेज गर्मी का अहसास हुआ. न दिखने वाला पसीना शरीर के कई हिस्सों में रिसता सा लगा. एेसे लगा जैसे शरीर के भीतर का कोई हिस्सा तपती आग के सम्पर्क में आ गया है. कुछ क्षण यूं ही बीते. रोमांच बढ़ रहा था. अब मै अपने भीतर अतिरिक्त उर्जाओं का संचार महसूस कर रहा था. जो अपनी विशालता का अहसास करा रही थीं.
शिव गुरु याद आ रहे थे. लग रहा था वे मेरे भीतर आकर जाग जाने के लिये निकल पड़े हैं. दिमाग में विचार तो थे. मगर अस्पष्ट से. सो मुझे गुरुदेव द्वारा बताये ऊपर के वाक्यों का जाप करने की जरूरत नही लगी.
एकाएक रीढ़ में ठंड का अहसास होने लगा. जो बढ़ता जा रहा था. एक समय एेसा आया जब मै कंपकंपा सा गया. कटि क्षेत्र में रीढ़ पर बर्फ सी ठंड का अहसास होने लगा.
आंतरिक उर्जाओं का स्तर बढ़ता जा रहा था. मन में सफलता का आनंद अपने आप व्याप्त होता गया. मन ने खुद को बड़ी शक्तियों के उपभोक्ता के रूप में स्वीकार कर लिया. लगने लगा कि अब मै बहुत खास हो गया हूं. इतना कि कुछ भी करने का फैसला ले सकता हूं. जो करूंगा वो सफल ही होगा.
सच कहूं तो उन क्षणों में मेरा अपनी शक्तियों से परिचय हो रहा था. ये सारे अहसास एेसे थे कि उन्हें बताने के लिये आज तक मुझे उपयुक्त शब्द नही मिल पाये. कभी कभी सोचता हूं शायद एेसे अहसासों को परिभाषित करने वाले शब्द किसी डिक्सनरी में हों ही न.
आप में से जो लोग भविष्य की कुंडली महासाधनाओं में शामिल हो रहे हैं. वे जब अपने अनुभव शेयर करेंगे तो शायद ज्यादा बातें स्पष्ट हो पायें. मेरे साथ कुंडली आरोहण कर रहे अन्य साधकों में से अधिकांश के अनुभव एक जैसे ही थे. कुछ एेसे भी थे, जिनके अहसास हमसे अलग थे.
इस बारे में मैने बाद में गुरुवर से बात की तो उन्होंने बताया कि अनुभव अलग होने से कुंडली आरोहण पर कोई फर्क नही पड़ता. कुछ लोगों के अनुभव पूर्वाग्रह से प्रभावित होते हैं.
तुल्सीयायन महाराज ने जब शक्तिपात रोका. तब तक हमें अपनी नाभि क्षेत्र में उर्जाओं का जमाव लगने लगा था. बहुत अच्छा लग रहा था. हवा में उड़ने का अहसास तो नही था. मगर आनंद उससे कम भी न था. शक्तिपात रुका तो साफ पता चल रहा था कि शरीर के भीतर कोई हलचल रोक दी गई है. रुकने से अधूरापन तो न था. मगर ये सिलसिला चलता ही रहे. एेसी ख्वाहिश पनप रही थी.
गुरुदेव ने बताया कि नाभि से ऊपर का आरोहण अगली साधना में होगा. तब तक सभी साधक अपनी कुंडली शक्ति का उपयोग शुरु कर दें. गुरुवर ने सभी को कुंडली शक्ति का उपयोग सिखाया. तो हम दंग रह गये. सोचते थे ये काम पहाड़ हटाने जैसा भारी भरकम होगा. मगर गुरुवर के अनुसंधान ने इसे गिलास उठाकर पानी पीने जैसा आसान बना दिया था. इसके लिये सभी साधक उनके ऋणी हो गये.
हम सफल हुये. हमारी शक्ति को ऊपर की राह मिल चुकी थी. अब हम उसका इश्तेमाल कर सकते थे. अब हम समझ सकते थे कि देवी देवता क्यों खास होते हैं. हम उनके कितने नजदीक हैं. जो वे कर सकते हैं, उनमें से हम क्या क्या कर सकते हैं. गुरुवर ने सभी साधकों से कहा *अहंकार नही करना है. मगर खुद को देवदूतों की तरह शक्तिवान मानों और जरुरतमंदों के काम आओ. ये मेरा आदेश है. यही मेरी गुरुदक्षिणा है*।
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन।