मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 16
प्रणाम मै शिवांशु
गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र तुल्सीयायन महाराज अपने 44 श्रेष्ठ शिष्यों की कुंडली जाग्रत करके उसका ऊपर के चक्रों में आरोहण कराना चाहते थे। मगर ध्यान योग से एक साथ इतने लोगों की कुंडली आरोहण में वे समय अधिक लग रहा था. सो उन्होंने गुरुवर से उर्जा विज्ञान का सहयोग मांगा. गुरुदेव ने उनके शिष्यों की कुंडली जगाकर ऊपर उठाने के लिये साधना शुरू कराई.
अब आगे….
कुंडली जागरण के लिये जरूरी था कि सभी साधकों के आभामंडल व उर्जा चक्रों की स्थिति निर्मल हो. अक्सर ग्रह-नक्षत्रों, तंत्र बाधा, देव बाधा, पितृ बाधा के कारण के ही उर्जायें दूषित होती हैं. इसलिये साधकों के उर्जा क्षेत्र को इनसे मुक्त किया जाना जरूरी था. कुछ ही मिनटों में इन उर्जाओं को हटाया जाना अपने आप में बड़ा काम है. क्योंकि इनके लिये बड़े बड़े अनुष्ठानों का सहारा लिया जाता है. जो खर्चीले होने के साथ ही समय भी बहुत लेते हैं.
गुरुदेव ने इसके लिये उर्जा विज्ञान का उपयोग किया. क्योंकि उसके जरिये ही कम समय में इस तरह की दूषित उर्जाओं को आभामंडल से हटाया जा सकता है. सबसे पहले उन्होंने ग्रहों की दूषित उर्जाओं का इलाज शुरू कराया. जिसमें समधर्मी उर्जा आकर्षण के सिद्धांत को अपनाया गया.
सिद्धांत ये है कि समधर्मी उर्जायें एक दूसरे को आकर्षित करती हैं. यही कारण है कि टोने टोटकों में अलग अलग समस्याओं के लिये अलग अलग वस्तुओं का इश्तेमाल किया जाता है. जैसे शनि की खराब उर्जाओं को हटाना हो तो सरसों के तेल का दान बताया जाता है. सरसों के तेल की उर्जाएं शनि की उर्जाओं जैसी ही होती है. सरसों के बीज से लेकर पौधों तक में श्याह नीली उर्जायें होती हैं. जो शनि ग्रह से आने वाली उर्जाओं को अपनी तरफ आकर्षित करके अवशोषित करती रहती हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो सरसों की फसल के तैयार होने में शनि ग्रह की उर्जाओं की बड़ी हिस्सेदारी होती है. यही कारण है कि जिस बरस शनि की ब्रह्मांडीय स्थिति खराब होती है उस साल सरसों की फसल कमजोर होती है.
सामान्य स्थितियों में ग्रहों की उर्जायें किसी के लिये भी खराब नही होतीं. आभामंडल की ऊपरी परत से लेकर भीतर की 16 वीं परत तक ग्रहों की उर्जाओं को ग्रहण करने के रंगीन पैच बने होते हैं. कई बार इन पैचों पर दूषित उर्जाओं के जाल से बन जाते हैं. जब किसी ग्रह की उर्जा दूषित जाल से होकर गुजरती है तो दूषित होकर नुकसान दायक हो जाती है.
ज्योतिष की भाषा में इसे ग्रह का खराब होना बोला जाता है.
आभामंडल के भीतर बने रंगीन पैच के ऊपर से दूषित उर्जा के जाल को हटा दिया जाये तो सम्बंधित ग्रह की लाभकारी उर्जा ही प्राप्त होती है. इसी के लिये ज्योतिषीय उपाय के तहत दान, जल प्रवाह, जानवरों को वस्तुवें खिलाने, पक्षियों को दाना डालने, गरीबों को भोजन कराने आदि के उपाय कराये जाते हैं.
उदाहरण के लिये किसी व्यक्ति का शनि खराब है. उसे एक उपाय बताया गया कि बहते पानी में सरसों का तेल गिरा दें. जब वह व्यक्ति हाथ में सरसों का तेल लेगा, तो उसके आभामंडल में शनि ग्रह की उर्जा ग्रहण करने वाले पैच के दूषित जाल की उर्जा समधर्मी होने के कारण आकर्षित होकर सरसों के तेल के साथ जुड़ जाएगी. फिर जब व्यक्ति उस तेल को बहते पानी में डालेगा तो तेल के साथ दूषित उर्जा का जाल खुलता हुआ पानी में बह जाएगा. ठीक वैसे ही जैसे स्वेटर की ऊन का एक सिरा पकड़ कर खीचा जाए तो पूरा स्वेटर खुल जाता है.
पानी में बह जाने के कारण दूषित उर्जा व्यक्ति के पास वापस नही आ पाती.
दूसरा उदाहरण. किसी व्यक्ति को शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिये रोटी में सरसों का तेल लगाकर खिलाने को बताया गया. जब वह रोटी अपने हाथ में लेकर उस पर सरसों का तेल लगाएगा, तो उसके आभामंडल में बने शनि के ग्रह के उर्जा पैच पर फैले दूषित उर्जा जाल की उर्जायें सरसों के तेल की तरफ आकर्षित होकर उससे जुड़ जाएंगी. फिर जब रोटी को गाय को खिलायेगा तो उसके साथ जुड़े दूषित उर्जा जाल की हानिकारक उर्जायें गाय के पेट में चली जाएंगी. गाय के पैरों के नाखूनों में दूषित उर्जाओं को पाताल अग्नि में भेज देने की प्राकृतिक क्षमता होती है. इस तरह से रोटी के साथ खायी दूषित उर्जाओं को गाय पाताल अग्नि में भेजकर जला देती है. और दूषित उर्जा व्यक्ति के पास वापस नही आ पाती.
आपको बताता चलूं कि ज्योतिष एक श्रेष्ठ विज्ञान है. उसके उपाय पूरी तरह से वैज्ञानिक उपचार होते हैं. भेले ही उन्हें बताने वाला या करने वाला विज्ञान के बारे में कुछ जानता हो या न जानता हो. अगर उपाय बिना मिलावट या बिना बिगाड़े मूल रूप में किये जायें तो निश्चित रूप से काम करते ही हैं.
गुरुदेव ने इसी विज्ञान की उच्च तकनीक का उपयोग किया. सभी ग्रहों की उर्जाओं को साधकों की हथेली पर केंद्रित कराया. फिर ग्रहों की दूषित उर्जाओं को निकालकर ग्रहों पर ही वापस भेजा गया. ताकि लम्बे समय तक साधक ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचे रहें. इसका व्यवहारिक प्रयोग जो साधक 19 जुलाई की कुंडली महासाधना में दिल्ली पहुंच रहे हैं. वे अपनी आंखों से देखेंगे और सीखेंगे.
…. क्रमशः ।
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.