प्रणाम मै शिवांशु,

आप सभी को दुर्गा अष्टमी और रामनवमी की शुभकामनायें.
नवां दिन. देवी महासाधना के समापन का दिन.
सभी साधकों के मन में उमंग थी.
साधना में मंत्र जाप की अवधि घटा दी गई थी. आज 6 घंटे की जगह मंत्र जाप 2 घंटे ही करना था. उससे पहले के दो घंटे साधना स्थल पर खाली बैठकर सोचना था. महाराज जी का निर्देश था कि साधक अपने आसन पर बैठेंगे. हर आधे घंटे के अंतराल पर 16 बार लम्बी और गहरी सासें लेंगे. फिर खुद को ढीला छाड़ देंगे. आलतू-फालतू जितने भी विचार आना चाहें उन्हें आने देंगे.
आंखें खुली रखनी थीं. सामने पीले कनेर के फूल रखे गये थे. जब सोचते सोचते ऊबने लगें तो सामने रखे फूलों में से किसी एक पर गले में धारण सोने का यंत्र रख देना था. फिर उसी पर नजरें टिका लेनी थीं.
इस अवधि में किसी भी मंत्र का जाप नही करना था.
ये स्थिति बड़ी कठिन साबित हुई. दिल दिमाग में आठ दिनों से मंत्र ही घूम रहा था. कहने को 6 घंटे जाप करते थे. लेकिन सच्चाई ये थी कि हर वक्त मंत्र दिमाग में चलता रहता था. यहां तक कि कई बार सोते समय भी अंदर से मंत्र जाप चल रहा होता था. जब कभी आंख खुलती तो खुद को मंत्र में ही पाते थे. साधना के आसन पर बैठते ही भीतर से मंत्र अपने आप चलने लगता था.
एेसे में साधना के आसन पर बैठे होने के बावजूद मंत्र जाप नही करना था. बड़ी कठिन परिस्थिति थी. मंत्र रोके नही रुक रहा था. रोकने के लिये विचारों को इधर उधर ले जाने की कोशिश की. मगर दिमाग कुछ और स्वीकार ही नही कर रहा था. कई बार तो मैने लोभ, मोह यहां तक कि भोग विलास के बारे में सोचना चाहा. मगर चीजे बदल चुकी थीं. कहीं भी मस्तिष्क नही रुका. बस बार बार भीतर से मंत्र निकल पड़ता.
पता नही मेरे दूसरे सह साधकों की क्या पोजीशन थी. मंत्र जाप न करने के निर्देश का कारण मै समझ रहा था. क्योंकि गुरुवर ने मुझे इसके बारे में पहले बताया था.
निर्देश था कि जब गैर जरूरी विचारों से मन ऊबने लगे तो गले का यंत्र उतारकर सामने रखे पीले फूलों में से किसी एक फूल पर रख देना. फिर उसे एकटक देखना. यहां तो विचार ही नही आ रहे थे. उनसे ऊबने की बात तो दूर थी. फिर भी मैने यंत्र को गले से निकाल कर एक फूल पर रख दिया. उसे एकटक देखने लगा. ये त्राटक था. मुझे त्राटक में बहुत मजा आता है. सो मंत्र से ध्यान हटाने के लिये त्राटक शुरू कर दिया.
त्राटक तो मैने पहले भी बहुत बार किये थे. मगर इसमें कुछ और बात थी.
त्राटक शुरू करने के 10 मिनट के भीतर ही यंत्र ने मेरी चेतना को खुद से जोड़ लिया. पीला यंत्र कैप्सूल के आकर का था. मगर मुझे वो गैलेक्सी जैसा नजर आने लगा. मैने आंखें मलीं. दोबारा त्राटक शुरू किया. 10 मिनट बाद नजारा फिर वही था. मुझे लगा यंत्र ने ब्रह्मांड की तमाम शक्तियां अपने भीतर समा ली हैं. सब कुछ उसके भीतर दिखने लगा. जो दृश्य मैने पिछले दो दिनों में देखे थे. उनमें से कई फिर दिखने लगे. बस चेहरे बदले थे. जो अनजानी आवाजें दो दिन पहले की साधना में सुनी थीं, वे फिर से सुनाई पड़ने लगीं. जो सुगंध पहले मिली थी, वो फिर से आने लगी. बिल्कुल रिपीट टेलीकास्ट सा चल पड़ा.
मै उसी में खो गया.
आंखें खुली थीं.
यंत्र मुझे मेरी साधना का रिपीट टेलीकास्ट दिखा रहा था. लगभग एक घंटे यही चलता रहा. फिर दृश्य आगे बढ़े.
अब ये मेरे लिये नया था.
मै खुद भी यंत्र के भीतर दिखने लगा. फिर लगा मानों ब्रह्मांड मुझ में ही समाया हो. अपना विराट रूप खुद को दिख रहा था. मेरा कोई आकार न था. कोई शक्ल न थी. फिर भी पता चल रहा था कि ये मै ही हूं. मुझमें भी ब्रह्मांड है. या यूं कहें कि मुझमें ही ब्रह्मांड है. इस स्थिति में पहुंचकर मन में एक शब्द गूंजा- शिवोहम्।
मै अचम्भित भी था और आनंदित भी.
खुद में शिव मिल गये. तो शक्ति भी मिलने ही वाली हैं. ये भाव प्रबलता से उभरा.
कमाल हो गया.
मेरे भावों के साथ यंत्र में देवी शक्ति परिलक्षित हो गईं.
देवी शक्ति दिखने लगीं.
अनूठा अहसास.
प्रायः एेसी स्थितियों को मै हकीकत या कल्पना की तराजू में तौलने बैठ जाता हूं.
मगर आज एेसा न हुआ. देवी शक्ति ने मेरी चेतना को खुद में विलीन कर लिया. मै अब कुछ सोच ही नही पा रहा था. विश्लेषण करना तो बहुत दूर की बात थी. अब मै सुनाई दे रही आवाजों के मतलब समझ पा रहा था. अब मै दिखाई दे रहे दृश्यों की पहचान कर पा रहा था. अब मै जान पा रहा था कि कौन सा दृश्य ब्रह्मांड के किस डाइमेंशन का है. अब मै खुद से भी परिचित था और दिख रही चीजों, स्थानों, लोगों से भी. अब मुझे सब कुछ जाना जाना सा लग रहा था.
लग रहा था जैसे देवी शक्ति मेरी चेतना को गाइड कर रही थी. हर चीज, हर बात की जानकारी दे रही है. एक मां की तरह, एक टीचर की तरह, एक गुरु की तरह, एक मार्गदर्शक की तरह. मेरे मन में कोई भाव पनपता, अगले ही पल यंत्र में वो फलीभूत दिखाई देता. देवी शक्ति मुझे सुन रही थी, समझ रही थी, जवाब दे रही थी. उनके जवाब का तरीका बिल्कुल अलग था. बातों की बजाय दृश्यों के जरिये जवाब मिल रहे थे.
सब कुछ मन की तेजी से घट रहा था. मन की तेजी से ही सीन दबल रहे थे.
जब मैने चाहा मुझे देवी मां का असली रूप दिखे. तो ममता से भरी ब्रह्मांड की सबसे आकर्षक मां का स्वरुप उभर आया. अद्वितीय लेकिन सामान्य. जैसे उन्हें पता हो कि बेटे को मां के जेवर गहने, मुकुट, मेकअप, हथियार देखने की चाह नही होती. उसे तो बस मां चाहिये.
मै खोता गया.
मैने चाहा कि देवी मां मेरी जन्म देने वाली मां जैसी दिखें. तो मां का मुस्कराता चेहरा सामने आ गया. मै वहीं रुक गया. देवी शक्ति के समक्ष मेरा मानसिक आग्रह था कि आप मेरी जन्मदाता जैसी ही दिखें. क्योकि गुरुवर कहते हैं जन्म देने वाली मां से बड़ी कोई मां नही होती.
बस देवी शक्ति का स्वरुप वहीं स्थिर हो गया. हम दोनों खूब एंज्वाय करते रहें.
उसी बीच मेरी चेतना भंग कर दी गई. महराज जी का निर्देश आया कि 2 घंटे पूरे हो गये हैं. अब मंत्र जाप शुरू कर दें.
इस बार मंत्र जाप यंत्र पर त्राटक करते हुए करना था. त्राटक तो मै पहले ही कर रहा था. मंत्र जाप और शुरू कर दिया.
अबकी साधना का मंत्र स्वरुप लेता नजर आया.
उसके बीज मंत्र अपनी विशाल उर्जाओं के साथ यंत्र के इर्द गिर्द घूमते दिखे. मै उनकी उर्जायें देख पा रहा था. अलग अलग रंग, अलग अलग आवृत्ति की उर्जायें. सब मेरी तरफ सम्मोहित हो रही थीं. मेरे भीतर समाती जा रही थीं. उनके साथ पहले से दिखने वाले दृश्य भी मुझे अपने भीतर समाते नजर आये. आवाजें भी मेरे भीतर समाती जा रही थी.
सब कुछ तिलस्म की तरह लग रहा था.
मगर मै किसी जादू की चपेट में नही था. और न ही नींद या स्वप्न की आगोश में था. कल्पना तो बिल्कुल भी न थी. सब कुछ खुली आंखों के सामने घट रहा था. जैसे जैसे मंत्र जाप की अवधि पूरी होती गई. वैसे वैसे स्थिरता आती गई. दृश्य खत्म हो गए. आवाजें गायब हो गई.
कुछ बचा तो बस देवी शक्ति का अहसास. जो साधना के बाद भी फलित होता रहा. लम्बे समय तक मेरे आस पास मेरे मनोभावों के अनुरूप घटनायें घटती रहीं.
देवी शक्ति को जीवन में उतार कर कुछ बड़े सवालों के जवाब मिल गये. क्या सिद्ध हो जाने पर शक्ति दुनिया सुधार सकती है. समाज की बुराईयों को खत्म कर सकती है. अत्याचार को मिटा सकती है.
यक्ष प्रश्न से लगने वाले इन सवालों का जवाब मेरे लिये अब सरल हो गया था. अगर शक्ति को ऊपर लिखे किसी उद्देश्य के लिये सिद्ध किया गया है तो वो एेसा कर सकती है. लेकिन उसके लिये साधक को तन से मन से सक्षम होना चाहिये. क्योंकि जो करना है वो साधक ही करेगा. शक्ति तो साथ भर देगी. जैसे महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन का साथ दिया था. युद्ध अर्जुन को ही लड़ना था. अगर अर्जुन सक्षम योद्धा न होते तो कृष्ण का साथ भी वे नतीजे न निकाल पाता जो चाहिये थे.
इस साधना यात्रा में बस इतना ही. जय माता की.
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.
शिवांशु जी ।आपने जिस तरह अनुभव को विॅणित किया है शायद ही कोई कर पाए ।पढते पढते मेरा रोम रोम पुलकित हो गया है । गुरूजी ने आपको शायद इसी लिये शिष्य सवीकारा है ।गुरूजी को पृणाम ।राम राम ।👏👏👏👏👏👏
mai bhgawan shiv se kaise jodu eska upa bataye
Ram Ram Shivanshuji,aapki sadhna adbhut thi aur uska varnan itne Manmohak aur jivant tarike se aapne kiya hai ki sab kuch apne sath hi ghatit hote huye pratit hota shahai,Devi maa ki kripa aur Gurudev ka aashirvad aap per hai &hamesha bani rahe.aap issi tarah hum sabhi ka margdarshan karte rahe aur utsah badhate rahe,bahut dhanyabad aapko.