प्रणाम मै शिवांशु,

राधे जी को साधना के दौरान प्रेत छाया परेशान कर रही थी. तीसरे दिन की साधना में मुझे उनका जोड़ीदार बनाया गया. मगर मुझे ये नही बताया गया कि राधे जी जब प्रेत छाया का शिकार हों तब मुझे क्या करना होगा. इससे मुझमें अज्ञात भय उत्पन्न हुआ.
अब आगे….
तीसरे दिन की देवी महासाधना निर्धािरत समय पर शुरू हुई.
मन में प्रेत का भय होने के कारण शुरुआत में राधे जी की उपस्थिति मुझे असहज कर रही थी. सो मैने गुरुदेव द्वारा सिखायी सतर्कता को अपनाया. साधना स्थल को इलेक्ट्रिक वायलेट उर्जा से भर दिया. मुझे पता था कि इसका मेरी साधना पर विपरीत असर भी पड़ सकता है. यदि साधना के मंत्र की उर्जायें इलेक्ट्रिक वायलेट एनर्जी के अनुकूल न हुईं तो आज का जाप बेकार जाने वाला था. या उसका नुकसान भी हो सकता था. मगर क्या करता, डरा जो था.
गुरुवर सदैव सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं. वे कहते हैं जहां कहीं भी अदृश्य शत्रु का खतरा हो. वहां दैवीय सुरक्षा लेना न भूलो.
सो मैने ले ली.
राधे जी भी अलग चरित्र के व्यक्ति थे. थोड़े अल्हड़, ज्यादा जिद्दी. थोड़े बेफिक्र, ज्यादा सतर्क. थोड़े सरल, ज्यादा कठोर. अगर आप उनके आस पास हो तो आपकी देखभाल को वे अपना अनिवार्य विषय मानते थे.
उन्हें पता चल जाये कि आपको प्यास लगी है तो पानी लाने के लिये वे कोसों पैदल जा सकते थे. उन्हें पता चल जाये कि आपको भूख लगी है तो आपको खिलाने के लिये वे किसी से छीना झपटी भी कर सकते थे. एक बार तो एक मुसाफिर को खिलाने के लिये एक होटल से खाना ही चुरा लाये. क्योंकि खाना खरीदने के लिये उनके पास पैसे नही थे.
अगर उनका लाया हुआ खाना खाने से इंकार कर दिया या खाने में टाल मटोल की तो उनसे बड़ा दुश्मन कोई नही. खाने के लिये धमकाना, गाली देना, झगड़ा कर लेना उनके लिये सामान्य बात थी. जैसे ही आपने उनका दिया खाना खाया और आपकी भूख मिटी, वैसे ही वे पिछला सबकुछ भूल कर फिर से आपकी देखभाल में लग जायेंगे. बिल्कुल निर्दोष बच्चे की तरह.
उन्हें न तो अपनी भूख बर्दास्त थी, न दूसरों की. इसीलिये वे व्रत नही रखते थे. यही नही दूसरों को भी व्रत न करने के लिये भड़काते थे. अपने भोजन प्रेम के कारण ही वे अक्सर भंडारे में काम करने की जिम्मेदारी लेते. भंडारे में उनसे चाहे जूठे बर्तन धुलवा लो या खाना बनवा लो. वे वहां के हर काम का पूरा आनंद उठाते थे.
उनका मन पक्के संतों वाला था.
वे उन लोग से बहुत चिढ़ते थे जो खुद को जमीन का मालिक होने का दावा करते हैं. राधे जी का कहना था कि धरती मां सबकी हैं. धरती पर जन्में हर इंशान का धरती पर बराबर अधिकार है. वे कहते थे जितनी जरूरत है उतनी धरती पर रहो. बाकी दूसरों के लिये छोड़ दो. मरने के बाद धरती को दूसरों के उपयोग के लिये खाली करके जाओ. धरती को बेचो मत. वे जमीन बेचने को सबसे बड़ा पाप मानते थे. उनका कहना था धरती का कोई मालिक नही हो सकता.
राधे जी के एेसे तर्क लोगों को गैर जरूरी लगते थे. मगर वे अपने लाजिक पर अडिग थे.
साधना में उनके साथ बैठने का मतलब था अतिरिक्त सावधानी की जरूरत.
मै सावधान था.
मगर साधना के बीच उन्होंने एक बार भी एेसा कुछ न किया जिससे मै डर जाता.
वे बड़े ही धैर्य के साथ साधना कर रहे थे. मंत्र जाप में बिल्कुल खोये हुए थे. 6 घंटे के बीच अपने आसन से एक बार भी हिले नही. मैने कई बार आंखें खोलीं. इस आशंका से कि प्रेत छाया के कारण वे कुछ अटपटा न कर रहे हों. मगर वे हर बार शांत और बेफिक्र लगे. उनकी आंखें एक बार भी खुली न मिलीं. उच्च साधक के गुण थे उनमें.
तीसरे दिन की साधना पूरी हुई.
आज सभी साधकों को दिव्य अनुभूतियां हुई थीं.
मुझे भी.
मंत्र जाप के तीन घंटे बाद एेसा लगने लगा था कि गले में धारण साधना यंत्र कुछ कहना चाह रहा है. उसकी तरंगे मेरी उर्जा तरंगों से जुड़ चुकी थीं. यंत्र द्वारा ब्रह्मांड से ग्रहण की जा रही सिद्धी देनी वाली उर्जायें मुझे अपने उर्जा चक्रों में स्थापित होती लगीं. यंत्र में बार बार वाइब्रेशन महसूस हो रहे थे. शायद वो मेरी उर्जाओं को सफलता के लिये उत्तेजित कर रहा था. हृदय पर यंत्र का कम्पन एक घंटे से भी अधिक समय तक महसूस होता रहा. बार बार लग रहा था मुझे किसी और आयाम की उर्जाओं से जोड़ा जा रहा है. ये जुड़ाव बड़ा ही सुखद लगा.
साधना के बाद हम सभी रोज महराज जी के समक्ष अपने अनुभव शेयर करते थे. जो अनुभव मेरे थे. लगभग सभी साधकों के अनुभव मुझसे मिलते जुलते ही थे.
एक बात सबकी कामन निकली. वो ये कि तीसरे दिन की साधना के दौरान सभी के मन में देवी मां के लिये जबरदस्त अपनापन और लगाव उत्पन्न हो गया था. एक रिश्ता सा स्थापित हो गया. जिसे शब्दों में बताया नही जा सकता. लगने लगा था कि देवी मां मेरी हैं, मै उनका हूं. लग रहा था देवी मां ने हमें स्वीकार कर लिया. एेसी फीलिंग इससे पहले किसी देवी देवता के लिये न हुई थी. इस फीलिंग का एेसा नशा चढ़ा कि साधक अपने आप मे खोये से थे. इतने कि राधे जी ने उस दिन निर्धारित समय से 2 घंटे बाद में खाना खाया. ये अपने आप में बड़े ही अचरज का विषय था.
राधे जी को आज प्रेत छाया ने परेशान नही किया.
इस बात से वे बहुत खुश थे.
महराज जी भी खुश थे. उनके कहने पर राधे जी ने मुझे धन्यवाद दिया. मेरा मन गर्व से भर उठा. मगर भीतर से मै सोच रहा था कि इसके लिये मैने तो कुछ किया ही नही. बल्कि साधना के दौरान कोई प्रेत छाया आयी ही नही. उस समय तक मेरा निजी विचार था कि कोई प्रेत छाया थी ही नही. वो राधे जी के मन का भ्रम था. जो मिट गया. ये सोचकर मै उस बात को भूल गया था.
अब जब महराज जी ने इसके लिये मुझे धन्यवाद दिलाया, तो याद आया कि मैने साधना स्थल पर इलेक्ट्रिक वायलेट एनर्जी से दैवीय सुरक्षा कवच का निर्माण किया था. शायद उसके कारण नकारात्मक उर्जायें राधे जी तक नही पहुंच पायीं.
हम चौथे दिन की साधना की तैयारी में जुट गये.
क्रमशः.
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.