मेडिटेशन को बर्बादी का कारण न बनने दें

IMG-20200425-WA0035.jpgसब कुछ अच्छा चलते चलते अचानक आर्थिक गिरावट आने लगे। मन शांत रहे किंतु अकेलापन हावी होने लगे। मेहनती होने के बावजूद आलस्य सताने लगे। दिमाग में योजनाएं अच्छी बनें किंतु कामकाज गड़बड़ाने लगे।
आप मेडिटेशन करते हैं और ऊपर दिए लक्षण में से कुछ भी परिलक्षित हो, तो ठहर जाएं। अपना निरीक्षण करें। अपनी ऊर्जाओं की जांच करें। अपने मूलाधार, मणिपुर और आज्ञा चक्र की तत्काल जांच करें। Click…

सामान्य चीजों की तरह प्रत्येक उर्जा का भी साइड इफेक्ट होता है। मनमानी हमेशा नुकसान का कारण बनती है। अति हर चीज की हानि ही सामने लाती है। मेडिटेशन की भी।
मेडिटेशन सेे बड़ी तादाद में एनर्जी पैदा होती है। बन्द आंखों से भले ही सतरंगी उर्जा का अहसास हो किंतु ध्यान/ मेडीटेशन से नीली उर्जा ही उत्पन्न होती है। जो आज्ञा चक्र के आसपास अधिक मात्रा में फैल जाती है। जिससे आज्ञा चक्र की सक्रियता बढ़ जाती है। यह  साधक में सकारात्मकता बढ़ाती है।

किंतु नीली उर्जा की बहुत बढ़ जाए तो यह लुढ़कती हुई मणिपुर चक्र से होकर मूलाधार चक्र तक पहुंचती है।
मणिपुर चक्र पीली ऊर्जाओं से भरा भावनाओं का केंद्र है। इसके घूमने की स्पीड हाई हो जाये तो व्यक्ति हाईपर होकर बेचैनी, तनाव और गुस्से का शिकार होता है। मेडीटेशन से उत्पन्न नीली उर्जा का बहाव जब मणिपुर में पहुंचता है तो इसकी स्पीड कम हो जाती है। तब मन में  भावनाओं की आवन जावन कम हो जाती है। भावनाएं नियंत्रित हो जाती हैं। साधक का मन शांत होता है। इस तरह मेडीटेशन से मन की शांति मिलती है।
दूसरी तरफ मणिपुर चक्र सफलता और प्रतिष्ठा का भी केंद्र है। नीली उर्जा अधिक हो जाये तो पीली उर्जा में मिलकर उसकी सक्रियता कम कर देती है। जिसके नतीजे असफलताओं और रुकावटों के रूप में सामने आने लगते हैं।
मणिपुर चक्र को प्रभावित करती हुई मेडीटेशन की नीली उर्जा अधिक हो तो नीचे लुढ़कती हुई मूलाधार चक्र पर इकट्ठी हो जाती है। यह बहुत घातक है।
लाल ऊर्जाओं से भरा मूलाधार चक्र कर्म और समृद्धि का केंद्र है। नीली उर्जा यहां की लाल उर्जा को ढक लेती है। (आमतौर से ऐसा तब होता है जब किसी पर शनि ग्रह का बहुत खराब प्रभाव हावी हो)। किंतु मेडिटेशन की अति या मनमानी से भी ऐसी दशा उत्पन्न हो जाती है।
नीली उर्जा में चक्रों को छोटा करने की प्राकृतिक क्षमता होती है।

अधिक मात्रा में पहुंची मेडिटेशन की नीली उर्जा मूलाधार चक्र और उसकी पंखुड़ियों को संकुचित कर देती है। जिससे मूलाधार चक्र सिकुड़कर छोटा हो जाता है। शिथिल हो जाता है। उसकी कार्यर क्षमता कमजोर हो जाती है। सूक्ष्म शरीर में पृत्वी तत्व असंतुलित हो जाता है। मूलाधार चक्र का शिथिल हो जाना भाग्य को सुला देने जैसा है। कमर तोड़ देने जैसा है। कमजोर मूलाधार चक्र निर्बलता, निर्धनता, कर्महीनता की तरफ ले जाता है। कांफिडेंस कमजोर करता है। कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है। सही कहा जाए तो मूलाधार चक्र की शिथिलता बर्बादी का कारण बन सकती है।

●●सावधानी बरतें●●
ध्यान का विज्ञान अध्यात्म की जान है। इससे त्वरित लाभ या हानि किसी अन्य विद्या में नही।
आजकल मेडीटेशन का फैशन सा चल पड़ा है। कोई भी करने या कराने बैठ जाता है। ध्यान रखें इसमें नीम हकीम खतरे जान वाला नियम लागू होता है। इसलिये नाकाबिल मार्गदर्शक की सलाह या सिर्फ कोई किताब पढ़कर मेडिटेशन करने न बैठ जाएं।
मेडीटेशन वही करें, जिसकी जरूरत हो। उदाहरण के लिये जिन्हें धन, रोजगार की जरूरत हो वे आज्ञा चक्र पर ध्यान न लगाएं।
किसी सक्षम विद्वान की देख रेख में ही ध्यान साधना करें। वे एनर्जी का परीक्षण करके बताएंगे कि आपको किस मेडिटेशन की जरूरत है। आमतौर से 10 से 20 मिनट का ध्यान सामान्य जरूरतों की ऊर्जाओं को पूरा कर सकता है। इससे अधिक मेडिटेशन करना हो तो धीरे धीरे बढ़ाएं।
अपनी सांसों पर ध्यान लगाना प्रायः सुरक्षित होता है। उर्जा चक्रों पर ध्यान लगाना परेशानी का कारण बन सकता है। बिना सक्षम मार्गदर्शन के इसे न करें। उर्जा चक्र अत्यधिक संवेदन शील होते हैं। जिन्हें उर्जा की कमी या अधिकता बर्दास्त नहीं। इससे क्षण मात्र में असंतुलित हो जाते हैं। असंतुलित उर्जा चक्र सैकड़ों समस्याएं उत्पन्न करते हैं।
एक साधक ऐसे मिले जिन्हें उनके गुरु ने 9 साल पहले मूलाधार चक्र पर ध्यान लगाना सिखाया था। बीच में गुरु ने शरीर छोड़ दिया। किंतु साधक मूलाधार चक्र पर ध्यान लगाते रहे। जिससे लाल उर्जा में अत्यधिक बढ़ोत्तरी हो गई। उनके अंदर दुस्साहस बढ़ गया। जिससे पारिवारिक जीवन नष्ट हो गया। शरीर में ब्लड सेल्स बहुत बढ़ गए। जो ट्यूमर का कारण बने। उर्जा की अधिकता ने मूलाधार चक्र का आकार बिगाड़ दिया। जिससे करोड़ों की संपत्ति बिक गयी। और भी ऐसे तमाम उदाहरण सामने आते रहते हैं।
कुंडलिनी चक्र पर अधिक ध्यान लगाने वाले साधकों का दिमागी संतुलन बिगड़ने की घटनाएं आम हैं। मेडिटेशन से अधिक फलित होने वाली विधा कोई नही। इसे जरूर करें , किंतु उचित मार्गदर्शन में। इसमें मनमानी न करें।
यदि आपको लगता है कि लंबे समय से ध्यान साधना करने से आपको कुछ नुकसान हुए हैं। या बहुत करने के बाद भी आपकी पूजा फलित नही हो रही तो अपने गुरु/ मार्गदर्शक से मिलकर अपनी एनर्जी की तुरन्त जांच करा लें।
यदि आपके गुरु इसके लिये उपलब्ध नही हैं तो भी निराश न हों। नीचे दिया फॉर्म भरकर अपनी डिटेल हमें भेजें। हम एनर्जी गुरु शिवप्रिया दीदी से आपकी एनर्जी की जांच कराकर उनके सुझाव आप तक पहुंचाएंगे।

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