सिद्धि, प्रसिद्धि, समृद्धि का केंद्र कुंडलिनी चक्र भौतिक जीवन में सभी सुख स्थापित करने में सक्षम है. इसके जागृत होते ही व्यक्ति प्रसिद्ध होने लगता है. धन समृद्धि का आकर्षण होता है. सिद्धियों की राह खुल जाती है.
यह पीठ पर रीढ़ की हड़़्डी के निचले हिस्से पर स्थित है। इसकी चार में से तीन पंखुड़ियां लाल और एक पीली होती है। किंतु पूरा चक्र लाल दिखता है। यहां पृथ्वी तत्व है। गरुण पुराण के मुताबिक इसमें भगवान गणेश की शक्तियां स्थापित हैं। यह मंडल ग्रह की उर्जाओं से मजबूत और शनि ग्रह की स्मोकी उर्जाओं से कजोर होता है। इसकी उर्जायें सूर्य ग्रह के प्रभाव को बहुत सपोट करती हैं।
इस चक्र के बिगड़ने पर बेरोजगारी, घाटा-नुकसान, कर्ज, निराशा, आत्महत्या की प्रवृति, आलस्य, शक्ति की कमी, खून व हड्डियों के रोग, मांस पेशियों के रोग, स्किन डिसीज, बाल झड़ने सहित कई तरह की गम्भीर परेशानियां पैदा होती हैं.
सेक्स, सृजन, आनंद का केंद्र स्वाधिष्ठान चक्र भौतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह ठीक रहे तो व्यक्ति आनन्दमय जीवन जीने लायक होता है. इसके ठीक होने पर जीवन का विकास सुचारू रूप से होता है. बनाई गई योजनायें फलीभूत होती हैं. इसकी 70 प्रतिशत उर्जायें मस्तिष्क के विकास के काम आती हैं। जिन बच्चों का यह चक्र खराब होता है वे पैदायशी रूप से मानसिक कमजोर (मेंटली रिटायर्ड) होते हैं।
जननागों से थोड़ा ऊपर स्थापित इस चक्र की 6 पंखुड़ियां होती हैं। इसका रंग नारंगी है। यहां जल तत्व है। गरुण पुराण के मुताबिक इसमें भगवान ब्रह्मा की शक्तियां स्थापित हैं। यह शुक्र ग्रह की उर्जाओं से सशक्त और बुध ग्रह की उर्जाओं से कमजोर होता है। इसकी उर्जायें चंद्र ग्रह के प्रभाव को बहुत सपोट करती हैं। यह निम्न स्रजन का केंद्र है।इस चक्र के बिगड़ने पर कमर, पैर, पीठ की तकलीफ, बांझपन, पौरुष शक्ति में कमी, सिस्ट, रसौली, कैंसर सहित गर्भासय, यूट्रेस, मूत्रासय के रोग, स्तन कैंसर सहित कई तरह की परेशानियां पैदा होती हैं.
स्वास्थ, कामनापूर्ति, सुख का केंद्र नाभि चक्र व्यक्ति की उर्जाओं अर्थात् शक्तियों का स्टोर रूम जैसा होता है. व्यक्ति आकस्मिक निर्णय यहीं से लेता है. इसके ठीक होने पर स्वास्थ उत्तम रहता है. यहां की बची हुई उर्जायें ऊपर जाकर अवचेतन शक्ति को मजबूत करती हैं। उन्हीं से लोगों की कामनायें पूरी होती हैं। इसी कारण इच्छाओं की पूर्ति के लिये व्रत रखे जाने का विधान प्रचलित है. शास्त्रों के मुताबिक यहां भगवान कुबेर की शक्तियां स्थापित हैं। यह स्वाधिष्ठान चक्र का पड़ोसी है। उसकी उर्जाओं को लेकर अपने अंदर स्टोर करता है। जो शरीर चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह राहु ग्रह की उर्जाओं से दूषित हो जाता है।
इस चक्र के बिगड़ने पर पाचन तंत्र खराब होता है. पेट सहित शरीर के अनगिनत रोग उत्पन्न होते हैं. व्यक्ति सही समय पर सही निर्णय नही ले पाता. इच्छायें, कामनायें पूरी होते होते रह जाती हैं।
तेज, साहस, सफलता का केंद्र मणिपुर चक्र अत्यधिक संवेदनशील होता है. यह ठीक हो तो हर काम में सफलता मिलती हैं. व्यक्ति तेजस्वी और प्रसिद्ध बनता है. अपने साथ दूसरों के लिये भी फायदेमंद साबित होता है. एेसा व्यक्ति बेरोक अनगिनत लोगों का पालन पोषण कर लेता है.
यह राज योग का केंद्र है। यहां भगवान विष्णु की उर्जाओं की स्थापना है। नाभि से लगभग 6 इंच ऊपर स्थित मणिपुर चक्र की 10 पंखुड़ियों का रंग पीला होता है। इसमें अग्नि तत्व होता है। यह सूर्य ग्रह की उर्जाओं से पोषित होता है। शुक्र ग्रह की उर्जायें इसे कमजोर करती हैं।इस चक्र के बिगड़ने पर सब कुछ गड़बड़ाता चला जाता है. सफलतायें रुक जाती हैं. अपमान होता है. कड़ुवाहट उत्पन्न होती है. अपराधिक और अनैतिक आदतें पनपती हैं. बात बर्दास्त नही होती. गुस्सा आता रहता है. व्यक्ति के भीतर से इंशानियत खत्म होने लगती है. स्वार्थ, दुर्भावना, हिंसा, भ्रष्टाचार पनपता है. माता पिता जीवन साथी व अपनों का अपमान होता है.
खुशी, उत्साह, करुणा, दया और प्रेम का केंद्र अनाहत चक्र मन में, जीवन में उत्साह और उमंग उत्पन्न करता है. यह अच्छा हो तो मन खुश रहता है. अपनापन मिलता है, प्रेम-प्यार में सफलता मिलती है. व्यक्तित्व में सम्मोहन होता है. दिल स्वस्थ रहता है. शास्त्र छाती के मध्य स्थित 12 पंखुड़िों वाले इस चक्र में भगवान शिव की शक्तियों का वास बताते हैं। यहां वायु तत्व है। यह चंद्रमा और शुक्र की उर्जाओं से मजबूत होता है। सूर्य और मंगल ग्रह की उर्जायें इसमें असुविधा पैदा करती हैं। कुछ विद्वान इसे हरा तो कुछ गुलाबी बताते हैं। अतींद्रीय रूप से देखने पर यहां इन दोनो के अवाला गोल्डन रंग की उर्जायें अधिक मात्रा में दिखाी देती हैं। यह उच्च भावनाओं का केंद्र है।
कला, अट्रेक्शन, उच्च सृजन का केंद्र विशुद्धि चक्र उर्जाओं का शुद्धीकरण करता है. यह कलाकार की सफलतायें सुनिश्चित करता है. यह ठीक हो तो शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत रहता है. इंफेक्शन नही पनपता. व्यक्तित्व में आकर्षण होता है. मधुरता होती है. यह उच्च स्रजन का केंद्र है। गले के बीच स्थपित इस चक्र में आकाश तत्व होता है। शास्त्रों में यहां आत्मा की शक्तियों की स्थापना बताी गई है। यह व्यक्तित्व का निर्माण करता है। वाणी सिद्धि देता है। कला और क्रिएशन की क्षमता देता है। इस चक्र में सम्मोहन की क्षमता होती है। बुध ग्रह की उर्जायें इसे शक्ति प्रदान करती हैं। ब्रहस्पति ग्रह की उर्जायें इसे कमजोर करती हैं।
डिसीजन, कमांड, प्लानिंग का केंद्र आज्ञा चक्र सभी चक्रों पर नियंत्रण करता है. यह ठीक हो तो सफल योजनायें बनती हैं. दूसरों पर कमांड करने की क्षमता उत्पन्न होती है. ध्यान का केंद्रीकरण होता है. व्यक्ति की सलाह दूसरों के लिये भी फायदेमंद होती है. निर्णय अच्छे होते हैं.
दोनों भौंहो के बीच स्थित इस चक्र को ज्ञान चक्र भी कहा जाता है। यह ज्ञान का केंद्र है। शास्त्र यहां गुरू की शक्तियों का वास बताते हैं। यहां माता लक्ष्मी की शक्तियों की भी उपस्थिति प्रचुर मात्रा में मिलती है। इसका रंग नीला और तत्व ज्ञान है। इसे शनि ग्रह की उर्जायें अधिक प्रभावित करती हैं।
इस चक्र के बिगड़ने पर अपने ही फैसले नुकसान दायक साबित होते है. बार बार काम बिगड़ते हैं. लोग कहना नही मानते. उतार चढ़ाव बना रहता है. कन्फ्यूजन रहता है. फिजूल खर्ची होती है. कर्ज बढ़ता है. किसी भी काम में ध्यान नही टिकता. दिखावे की प्रवृति परेशान करती है. विवाद और कोर्ट कचेहरी की परेशानियां उत्पन्न होती हैं।
माथे के बीच में स्थित इस चक्र में माता दुर्गा की शक्तियों का वास बताया जाता है। यह परा शक्तियों और दिव्य दृष्टि का केंद्र है। इसे शनि और ब्रहस्पति ग्रहों की उर्जायें प्रभावित करती हैं। प्रायः यहां नीली और बैंगनी रंग की उर्जाओं की अधिकता होती है। इसमें टेलीपैथी की क्षमता है।
सिर के ऊपर स्थित यह चक्र देव शक्तियों का केंद्र है। यहां परमात्मा से जोड़ने वाली सिल्वर काड स्थापित है। जो जन्म से मृत्यु तक बनी रहती है। इसी के जरिये जन्म के समय आत्मा आती है और मृत्यु उपरांत वापस जाती है।
यह चक्र भाग्य का निर्माण करता है। यहां सृष्टि निर्माता उर्जा के अलावा त्रिदेवों की भी उर्जाओं का वास है।चक्र में सभी रंगों की उर्जायें दिखती हैं। किंतु सुनहरी और बैंगनी उर्जा की अधिकता है। इसके मध्य भाग में हृदय चक्र (अनाहत) की तरह सुनहरे रंग का चक्र दिखता है। विद्वान उसे परमात्मा का हृदय कहते हैं।
इस चक्र के बिगड़ने पर दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है. बने काम भी बिगड़ते रहते हैं. देव कृपा दूर रहती है. साधना सिद्धी सफल नही होती. व्यक्ति होश सम्भालते ही अभाव व असफलताओं की मार झेलता है. नर्वस सिस्टम बिगड़ने का खतरा रहता है.