गुरुजी की एकांत साधना: वृतांत
गुरुजी की एकांत साधना: वृतांत..1
July 8, 2015
राम राम मै अरुण
गुरुजी की एकांत साधना का वृतांत बताने के लिए मै शिवांशु जी द्वारा लिखी जा रही बुक के कुछ खास अंश यहां पेश करूंगा. यह बुक वे गुरुदेव की साधना यात्रा पर लिख रहे हैं. जिसमें एक सफल पत्रकार से एक सिद्ध पुरुष बनने तक की गुरुदेव की अध्यात्मिक यात्रा के बारे में लिखा जा रहा है.
उनकी आने वाली बुक के अंश मै यहां मूल रूप में ही पोस्ट करूंगा.
गुरु जी की एकांत साधना के दौरान शिवांशु जी ही उनके साथ थे. और किसी को वहां जाने की इजाजत नहीं थी. हमारे वाट्सएेप के शिवसाधक और शिवसाधिका ग्रुप के साथियों ने गुरुदेव से अनुरोध किया था कि उनकी कठिन साधना की खबर उन्हें दी जाये. दरअसल भीषण गरमी में बिना पानी पिये साधना करने के गुरु जी के फैसले से इन ग्रुपों में जुड़े सभी लोगों को बहुत चिंता हो रही थी. वे सब गुरुजी को बहुत प्यार करते हैं.
उनकी चिंता को देखते हुए ही गुरुदेव ने शिवांशु जी को अपने साथ रखने और साधना की जानकारी दोनों ग्रुप के लोगों को देते रहने की मांग स्वीकार कर ली थी. इसी कारण हम सब को भी उनकी साधना के रहस्य जानने का अवसर मिल रहा है. तो हम आगे बढ़ने से पहले धन्यवाद देंगे शिवांशु जी को और गुरुदेव को प्यारे उन शिव साधकों और शिव साधिकाओं को.
साधना वृतांत शिवसाधक व शिव साधिकाओं को विवरण सुनाये जाने के फार्मेट में होगा. मुझे विश्वास है आपको इससे बड़ी प्रेरणा और दिव्य ज्ञान की जानकारी होगी.
15 मई 2015,
गुरुवर की साधना का पहला दिन….
आज प्रदोष के शुभ मुहूर्त पर शाम 6 बजे गुरुवर की साधना प्रारम्भ हो रही है.
जो 14 जून को मास शिवरात्रि की शुभ रात्रि में पूर्ण होगी।
इस बीच गुरुवर का whatsapp मेरे पास है, जिसके जरिए मुझे आपकी सेवा का अवसर मिला है।
गुरुवर से मैंने आग्रह किया है कि मै साधना की बुलेटिन ग्रुप में दिन में 2 बार दूँ. अगर साधना शुरू करने से पहले उन्होंने इसकी इजाजत दे दी तो मै साधना संबंधी सूचनाएं नियमित आप तक पहुंचाता रहूंगा.
गुरुवर की आज्ञानुसार साधना स्थल सुसज्जित कर दिया गया है.
वहां का ए. सी. डिस्कनेक्ट कर दिया गया है.
गुरुवर ने वहां कूलर भी स्वीकार नहीं किया.
वहां से टी. वी., फ्रिज को हटा दिया गया है.
वहां से फर्नीचर यहां तक कि गद्दे भी हटा दिए गए हैं.
अख़बार वहां नही जायेगा.
गुरुवर के मोबाईल स्विच ऑफ हो चुके हैं
कक्ष से सजावटी सामान हटाया जा चूका है.
साधना कक्ष पूरी तरह खाली और शांत है.
गुरुवर के आसन के पास एक और खाली आसान लगा है, किसके लिये है ये रहस्य किसी को नही पता.
साधना के दिनों में कक्ष में किसी को प्रवेश की इजाजत नहीं. सफाई आदि के लिए मै एक बार ही वहां जा सकुंगा. जब कभी गुरुवर बाहर आएंगे, तभी मै भी उनसे मिल सकूँगा.
एक अति संतोष जनक सुचना है कि अपनों के आग्रह भरे दबाव पर गुरुवर ने साधना स्थल पर एक गिलास दूध और एक गिलास पानी रखे जाने की व्यवस्था स्वीकार कर ली है। शायद वे उसे कभी ग्रहण भी करें.
साधना से पूर्व गुरुवर के चेहरे पर परम् शांति और मनभावन दिव्य मुस्कान दिख रही थी.
शाम 6 बजने से पहले ही गुरुवर साधना कक्ष में चले गये. हम उनके बाहर निकलने का इंतजार करेंगे.
गुरुवर की साधना का दूसरा दिन…
वे कक्ष से बाहर नहीं आये. जब मै सफाई के उद्देश्य से कक्ष में गया तो वे गहन ध्यान में लीन थे. जानी और दूध के पात्र वैसे ही रखे थे. उसे ग्रहण नहीं किया गया.
उन्हें बदल दिया गया.
साधना का तीसरा दिन…
आज गुरुदेव बस कुछ ही देर के लिए साधना से बाहर आये.
गम्भीर, सौम्य, दिव्य दिख रहे थे.
उसी बीच साधना स्थल से दूध और पानी हटाया गया.
आज भी उन्होंने कुछ ग्रहण नहीं किया. बाहर आकर कपूर का एक छोटा सा टुकड़ा लिया और मुह में रख लिया. फिर तुरन्त ही साधना स्थल पर चले गए.
उनके चेहरे पर पूरी ताजगी नजर आ रही थी.
बस इतना ही है आज मेरे पास उनके बारे में बताने के लिये. आज तो हम उन्हें नजर भर देख भी न सके.
गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत…2
July 9, 2015
चौथा दिन- गुरुदेव की एकांत साधना
वह गुरुवर की साधना का चौथा दिन था.
लगभग 61 घंटे की अखंड साधना के बाद आज सब कुछ बड़ा मनोहारी लग रहा है। गुरूदेव कुछ देर पहले ही साधना कक्ष से बाहर आये। उनके चेहरे पर बड़ी उपलब्धी और परम संतुष्टि के भाव हैं। जैसे उन्होंने कुछ मनचाहा पा लिया।
आज जब से मै साधना स्थल पर गया तब से अलग ही दुनिया महसूस कर रहा हूं। वहां प्रवेश करते ही मुझे सम्मोहित कर देने वाली सुगंध का अहसास हुआ। मै इत्र और परफ्यूम का बहुत शौकीन हूं। दुनिया के तमाम बेहतरीन परफ्यूम उपयोग कर चुका हूं। मगर एेसी सुगंध पहले कभी महसूस नहीं की। दिव्य, सम्मोहक, अवर्णनीय।
चौथे दिन भी गुरूदेव ने दूध व पानी का उपयोग नहीं किया। उसे फिर बदल दिया गया।
आज साधना स्थल पर जाते ही मुझे लगा वहां कोई और भी है। लगा जैसे किसी कोमल अंगों वाले शरीर से मै टकराया हूं। टकराने का अहसास होने के साथ ही मेरे सारे शरीर में सिहरन सी होने लगी। फिर लगा किसी ने मुझे धीरे से धक्का मारा। जैसे मेरे टकराने का बदला लिया गया हो। जैसे किसी ने हौले से धक्का मार कर कहना चाहा हो कि मुझे धक्का क्यों मारा, लो मैने भी बदला ले लिया. सिर से पांव तक मै दोबारा मीठी सिहरन का अहसास कर रहा था. लगा मेरी रीढ़ की हड्डी के सहारे कोई उर्जा कुण्डली तक उतरती चली गई.
मुझे स्पष्ट लग रहा था कि वहां कोई एेसा है जिसे मै खुली आंखों से देख नहीं पा रहा.
आज देखने से लगा कि गुरूदेव के आसन के पास लगे दूसरे आसन को भी यूज किया गया था। गुरूदेव के इशारे पर आज उसे वहां से हटा दिया गया, जैसे उसका काम पूरा हुआ।
मैने गुरूदेव से पूछा यहां कोई और भी है क्या।
वे बड़े अर्थपूर्ण ढंग से मुस्करा दिए, जैसे कह रहे हों खुद ही देख लो।
पर मै अपनी सामान्य आंखों से कुछ भी देख नहीं पाया। तब से मन में जबरदस्त जिज्ञासा और बेचैनी है।
गुरुदेव अक्सर कहा करते हैं कि अतिरिक्त जिज्ञासा भी पीड़ा देती है। आज से पहले मै सोचा करता था जिज्ञासा तो मन को संतुष्ट करने का परिणाम लेकर आती है। मगर आज उपरोक्त रहस्य जानने की छटपटाहट के कारण मै बेचैनी भरी पीड़ा ही महसूस कर रहा हूं। जबकि बाकी सब लोग गुरूदेव को रिलैक्स भाव में पाकर बहुत खुश हैं।
आज बाहर आकर गुरूदेव ने अपनी छोटी बेटी के हाथ से थोड़ा पानी पिया। बिटिया ने उन्हें तरबूज खिलाना चाहा तो उसकी एक बाइट खा भी ली। छोटी बिटिया से कुछ देर बात भी की। गुरूमइया आज किसी आवश्यक कार्य से रायपुर जा रही हैं, शायद बेटी से इसी बारे में बतियाये हों।
उनकी एकांत साधना जारी रहेगी।
गुरूदेव ने साधना स्थल बदलने के निर्देश दिए हैं। अब वे हर दिन सिर्फ 10 घंटे ही साधनाकरेंगे। वह भी अपने भवन के नियमित पूजा स्थल में।
आज उन्होंने whatsapp पर आये मैसेज भी पढ़े.
उसके बाद विश्राम के लिए चले गए.
गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत…3
July 10, 2015
वह गुरुवर की साधना का पांचवां दिन था.
साधना के पांचवें दिन गुरुदेव ने मुझे अपने पास बैठने का अवसर दिया।
साथ बैठा तो वही कल वाली सम्मोहक सुगंध आज भी गुरुदेव के आस पास महसूस हुई।
आज मै अनायास इधर उधर हाथ लहराता रहा। और इंतजार करता रहा कि कल की तरह शायद फिर किसी से दिव्य टकराव हो। मगर एेसा कुछ नहीं हुआ।
लेकिन एक फायदा तो हुआ। मेरे मन की बेचैनी पर गुरुदेव को तरस आ गया। और उन्होंने मुझे एक शर्त के साथ अदभुत सुगंध और कल न दिखने वाली किसी शक्ति से टकराने के अहसास का रहस्य बता दिया।
शर्त थी मै उसकी चर्चा किसी से नहीं करुंगा।
मैने गुरूदेव से पूछा क्या वे अभी भी आपके साथ हैं।
जवाब में गुरूदेव सिर्फ मुस्करा दिये। जैसे कह रहे हों जब तुम्हें एेसी साधना कराउंगा तो खुद देख लेना।
गुरुदेव ने कल छोटी बिटिया के हाथ से दो घूट पानी पीने और तरबूज की एक बाइट खाने के बाद और कुछ ग्रहण नहीं किया। आज भी नहीं। लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर ताजगी और चमक बढ़ी है।
कल तो वे गुरू मां को सी आफ करने भी गए। गाड़ी खुद ड्राइव की। सामान्य मुसाफिरों की तरह गर्मी भरे प्लेटफार्म पर लगभग 1 घंटे रुके।
प्लेटफार्म पर दो बुजुर्ग लोगों को गाड़ी में बैठने में मदद की।
एक ठेले से खरीदकर चार भूखे बच्चों को खाना दिया।
लौटते समय धूप में बैठे कुछ जरूरतमंदों के लिए गुरुदेव ने अपना मौन व्रत तोड़ दिया. गाड़ी से उतरकर उनसे खाने के लिए पूछा।
फिर अपने हाथ से खरीदकर उनको भोजन दिया और पानी के पाउच दिये। उसके बाद गाड़ी ड्राइव करते हुए ही गुरूदेव ने दिल्ली आश्रम के सहयोगी अरुण जी और नीतू जी से फोन पर कुछ मिनट बात भी की। उनसे दिल्ली आश्रम से जरुरतमंदों को दी जाने वाली सहायता की जानकारी ली.
उसके बाद फिर मौन में चले गये.
उनकी एकांत साधना जारी रही।
गुरुदेव की साधना का छठा दिन…
आज मेरी क्लास लग गयी.
उतावलेपन में मैंने गुरुवर से एक साथ 3 सवाल पूछ दिए. गुरुदेव् को ताबड़तोड़ या गैरजरूरी सवाल पसंद नहीं।
वे हमेशा कहते है सवाल पूछना एक व्यक्ति का अधिकार हो सकता है, लेकिन उसका जवाब देंने या न देने की आजादी दूसरे को भी मिलनी चाहिये.
आज मैंने उनकी ये आजादी भंग कर दी. इस पर गुरुवर ने मुझे बहुत ही सर्द निगाहों से देखा. उनकी दृष्टि से जबरदस्त शक्तिपात का अहसास हुआ मुझे. मै उसके प्रभाव से जम सा गया। मुझे अपनी गलती का अहसास हो चुका था. पर देर हो गई।
मै नजरें झुकाये बैठा रहा. गुरुदेव चले गए।
मेरा दिल दिमाग ग्लानि से भरा था. सोच भी नही पा रहा था क्या करूँ? पेड़ के नीचे वहीँ बैठा रहा। धूप आ गयी, पसीना बहने लगा. मै जड़वत था. काफी देर बाद याद आया यह गुरुदेव की दृष्टिपात से हुए तीखे शक्तिपात का असर था. मै धूप से बचने के लिए भी वहां से हिल न सका.
लगभग 1 घण्टे बाद गुरुवर बाहर आये। शायद मुझ पर नजर पड़ते ही उन्हें याद आया होगा कि मै वहां हूँ। या फिर मेरी सजा की अवधि वही रही होगी।
गुरुदेव की दृष्टि पड़ते ही मै शक्तिपात से रिलीज हो गया। अब मै अपनी जगह मूव कर सकता था.
उन्हें मुझ पर तरस आ गया। पास आये। मेरे कन्धे पर हाथ रखा। पछतावे के कारण मेरी आँखों में गीलापन आ गया। उन्होंने मुझे गले लगा लिया।
गुरुदेव से दयालू कोई नहीं.
इस दण्ड का मुझे बहुत बड़ा पुरस्कार मिलने जा रहा है. आज की घटना के कारण वे मुझे टेलीपैथी सिखाने वाले हैं। ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर मै उनसे मन ही मन बात कर सकूँ.
इस दिव्य दिन का मै पिछले 9 साल से इन्तजार कर रहा था। इस दौरान मैंने इसके लिए उनसे कम से कम 100 बार आग्रह किया। लेकिन हर बार गुरुदेव ने मुस्कराकर टाल दिया। आज उन्हें मुझ पर दया आ ही गयी, और मुझे टेलीफैथी का दिव्य पुरस्कार मिलने वाला है.
सो आज मै आपकी शुभकामनाओं का पात्र हूँ।
गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत…4
July 11, 2015
वह गुरुवर की साधना का सातवां दिन था.
गुरु को समझने की कोशिश करना न सिर्फ गैरजरूरी होता है बल्कि खुद को उलझन में डालने की नादनी भी है।
ये कल मेरे साथ प्रमाणित हो गया। गुरूदेव के तेज दृष्टिपात से हुए शक्तिपात से उत्पन्न शन्निपात को कल मैने सजा मान ली थी। मैने सोचा कि मेरा बार बार सवाल पूछना उन्हें खराब लगा और उन्होंने मुझे तपस्वी दृष्टि डाल कर 1 घंटे के लिए जड़ बना दिया। उस दौरान मै चाहकर भी अपनी जगह से हिल न सका। जबकि गर्मी के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा था। मै चाह रहा था कि खिसककर छाया में चला जाऊं। पर हिल भी न सका।
इसी कारण लगा कि गुरूदेव ने मुझे सजा दी है।
जबकि एेसा नहीं था। यह तो मेरा टेस्ट था।
ये परख थी कि मै टैलीपैथी को सीखने लायक हूं या नहीं.
टेलीपैथी सीखने के लिए कल रात जब मै उनके पास बैठा तो गुरूदेव ने पुनः सुबह की तरह मुझपर तेज दृष्टि डाली। कुछ पलों बाद मै फिर जड़वत हो गया। एकदम सुन्न।
सुन सब रहा था। मगर बोल कुछ नहीं पा रहा था।
बिल्कुल सुबह वाली स्थिति लग रही थी। फर्क यह था कि इस बार गुरूदेव मेरे मस्तिष्क पर अपना कंट्रोल कर रहे थे। मुझे अपने मस्तिष्क में उनकी तरंगों का अहसास साफ साफ हो रहा था।
कुछ देर बाद गुरूदेव वहां से चले गए। बिना कोई दिशा निर्देश दिए।
मै बैठा रह गया. यूं ही.
समझ सब रहा था, पर मेरी दशा उठने लायक नहीं थी। धीरे धीरे आस पास की आवाजें सुनाई देनी बंद हो गईं। लगा जैसे मै गहरे ध्यान में चला गया।
लगभग आधे घंटे बाद मेरे मस्तिष्क ने गुरूदेव को सुनना शुरू कर दिया। वे सामने नहीं थे। आस पास कोई नहीं था। गुरुवर मंत्र जाप कर रहे थे। उनके द्वारा मन में जपा जा रहा मंत्र मै साफ सुन रहा था। लगभग 25 मिनट मै उनका मंत्र जाप सुनता रहा। उनके मंत्र जाप के प्रभाव से मेरा सारा शरीर कंपकपाने लगा।
लगा जैसे मै किसी और दुनिया में प्रवेश कर गया हूं। उर्जा का प्रचंड प्रवाह हो रहा था मुझ पर. जैसे अंतरीक्ष में दिव्य उर्जाओं के तमाम स्रोत मेरे लिए खुल गए हों. उनकी उर्जाएं मेरे सिर से पैर तक प्रवाहित हो रही थीं. रीढ़ से कुंडली क्षेत्र तक जबरदस्त कंपकपी के अहसास ने मुझे चकित कर दिया था. मै दंग था. एक तपस्वी द्वारा मंत्र जाप से उत्पन्न उर्जाओं को मेरे लिए सह पाना मुश्किल सा होता जा रहा था.
सच कहूं भय लगने लगा। क्योंकि इससे पहले इतनी उर्जा का सामना मैने कभी नहीं किया था। कुछ देर बाद गुरूदेव वहां आये. मंत्र मुग्ध कर देने वाली मुस्कान के साथ मुझे देखा। अब उनकी आवाज मुझे नही सुनाई दे रही थी।
इशारे से पूछा क्या सुना। मैने उन्हें मंत्र सुना दिया। तो उन्होंने सहमति में सिर हिलाया। फिर मेरे कंधे पर हाथ रखा।
उनके हाथ रखते ही मै शन्निपात से रिलीज हो गया।
फिर उन्होंने मुझे भारी शक्तिपात से उत्पन्न होने वाली शन्निपात की स्थिति से बचने के लिए कुछ अभ्यास सिखाये। जिन्हें लगातार करना है। उसके बाद टेलीपैथी के स्टेप सिखाएंगे।
टेलीफैथी का पहला अनुभव ही बहुत दिव्य रहा। ऐसा दिव्य दिन भी जीवन में आएगा, कभी सोचा न था.
कल दिन में कानपुर से गुरूवर के एक डाक्टर मित्र आये थे।
उन्होंने गुरूदेव का पूरा चेकअप किया। उन्हें नियमित पानी और दूध, दही, फल ग्रहण करने की सलाह दी।
जैसे कि गुरूदेव बड़ी ही सहजता से सभी विद्वानों की सलाह पर सहमित प्रकट करके उन्हें संतुष्ट कर देते हैं. वैसे ही अपने मित्र डाक्टर की सलाह पर भी सहमित प्रकट करके उन्हें खुश कर दिया। उनसे वादा किया कि वे ये चीजें जरूर ग्रहण करेंगे। मित्र के आग्रह पर एक गिलास पानी भी पिया।
मगर उसके बाद रात तक कुछ नहीं लिया। आज भी सुबह से कुछ नहीं लिया। आज दोपहर मै उनसे दूध पीने का विशेष आग्रह करुंगा। ऐसा करने के लिए उनके डॉ. मित्र ने मुझसे कहा है.
गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत…5
July 12, 2015
आज गुरूदेव की साधना का आठवां दिन था.
गुरुदेव कल शाम पुनः गहन साधना में चले गये.
तब से अभी तक साधना से नहीं निकले। आज सफाई के उद्देश्य में मै साधना स्थल पर गया. तो वहां दूध और पानी वैसे ही रखा मिला. गुरुवर ने उसमें से कुछ भी ग्रहण नहीं किया. उसे बदल दिया गया.
आप में से कई लोगों ने मेरे लिखने के तरीके को सराहा है.
आप सबका धन्यवाद। लेकिन शायद आप नहीं जानते कि इस रूप में भी आपने गुरूवर को ही सराहा है।
मैने लिखना उन्हीं से सीखा।
बात 18 साल पहले की है। जब मै पहली बार उनसे मिला। तब वे कानपुर में तेज तर्रार रिपोर्टर थे। उनकी जबरदस्त शोहरत थी। पत्रकार जगत में उनकी प्रतिष्ठा और ईमानदारी अलग ही नजर आती थी। प्रभावशाली राजनीतिज्ञ और अधिकारी भी उनसे हाथ मिलाकर गर्व महसूस करते थे।
मेरे पिता भी एक अधिकारी थे। उनके कई मित्र अधिकारी प्रायः घर में आकर महफित जमाते थे। वे अक्सर अखबारों की खबरों पर चर्चा किया करते थे। गुरूदेव उन दिनों देश के प्रमुख अखबार दैनिक जागरण के मुख्यालय में स्टाफ रिपोर्टर थे। उन लोगों की बातचीत में अक्सर गुरू जी के नाम के चर्चे होते थे। वे लोग इनकी तेज तर्रार लेखनी और ईमानदार पत्रकारिता के कायल थे।
कई बार गुरूदेव द्वारा उनके विभाग के खिलाफ खबर छापे जाने पर भी उनकी तारीफ करते थे। अधिकारी उनकी पैनी पत्रकारिता से डरते भी थे।
पिता जी और उनके अधिकारी मित्रों की बातें सुन सुनकर गुरूदेव मेरे दिमाग में हीरो की तरह छा गए। फिर एक दिन पिता जी के साथ मुझे गुरूदेव से मिलने का मौका मिला। मै उन्हें देखता ही रह गया। सोचता रहा इतनी कम उम्र में इतना बुलंद जलवा। अधिकारियों के बीच उनकी बेखौफ स्टाइल और सवाल पूछने के तेज तर्रार तरीके से मेरे दिल दिमाग में उनका ग्लैमर छा गया।
मैने अपने पिता जी से उनसे मिलवाने की जिद की। पिता जी ने उनसे मेरा परिचय दिया तो वे बड़ी बेपरवाही से मुझसे हाथ मिलाकर आगे निकल गए।
तब मुझे बहुत बुरा लगा।
तभी मैने देखा कि प्रेस कांफ्रेस के बाद कई अधिकारी भी उनसे हाथ मिलाना चाह रहे थे. लेकिन वे अपने काम में मगसूल अपनी ही मस्ती में किसी की परवाह किए बिना कमरे से बाहर निकल गए।
अब तो मेरे सिर पर उनसे मिलने का भूत सा सवार हो गया। पिता जी से कहकर उन्हें खाने पर घर बुलाना चाहा। पता चला वे किसी अधिकारी या नेता से न तो गिफ्ट स्वीकारते हैं और न ही किसी अधिकारी या नेता के घर खाने पर जाते हैं।
गजब का सिद्धांत था उनका।
फिर एक दिन मै खुद उनसे मिलने दैनिक जागरण के आफिस जा पहुंचा। काफी देर इंतजार करने के बाद वे मुझसे मिले। उनके काम के ग्लैमर के बाद अब मै उनकी सादगी देख रहा था। मैने उनसे कहा मै भी पत्रकार बनना चाहता हूं। और आपसे सीखना चाहता हूं। उनका जवाब था- बड़े बाप के बेटे हो, तुमसे न होगा। पत्रकारिता तो अतिरिक्त समर्पण और त्याग की दुनिया है।
उन्होंने मुझे अस्वीकार कर दिया।
फिर भी मै पत्रकारिता सीखने के अनुरोध के साथ उनसे अक्सर मिलने जाता रहा। एक साल लगा उन्हें मनाने में मुझे। वे मान गए। अपने साथ रिपोर्टिंग में लेकर जाने लगे। लिखने की जो कला सिखाई वह आपके सामने है।
लिखते समय मै हमेशा उनकी कापी करने की कोशिश करता हूं। बस अच्छा अपने आप लिख जाता है।
साधना का नौवां दिन…
गुरूवार की शाम साधना कक्ष में गए गुरुदेव अभी भी वहीं हैं. लगभग 40 घण्टे से वे अखण्ड ध्यान में हैं.
मैंने कई बार उनसे मानसिक संपर्क की कोशिश की. मगर कामयाब न हो सका.
शायद इस समय उनकी ऊर्जा का स्तर बहुत ज्यादा स्ट्रांग है. जिसके कारण मेरी मानसिक तरंगे उन तक नही पहुंच पाईं।
हम उनके ध्यान से बाहर आने का इंतजार करेंगे.
गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत..6
July 13, 2015
वो साधना का 10 वां दिन था.
लगभग 64 घंटे पूर्व गुरुवार से दोबारा शुरू हुआ था उनका ये सघन ध्यान.
उनकी ऊर्जाओं का स्तर बहुत विशाल हो चला है.
कल लखनऊ का तापमान 44 को पार कर गया. ए.सी. व् कूलर के बिना गुरुदेव की गहन साधना को लेकर थोड़ी चिंता हो रही थी.
सो आज व्यवस्थागत कार्यों के बहाने मै साधना स्थल में दोबारा चला गया.
गुरुदेव ध्यानस्थ थे।
वहां गीली मिट्टी की सी सोंधी सुगन्ध थी।
साधना स्थल का तापमान चकित कर देने वाला मिला.
बिलकुल सामान्य।
जैसे प्रचण्ड गर्मी ने तप क्षेत्र को अपने ताप से मुक्त रखा हो।
मुझे याद आया जरूरत पड़ने पर गुरुदेव नीली ऊर्जा का उपयोग करके अपने आस पास का तापमान कंट्रोल कर लेते हैं.
बड़ी तसल्ली हुई.
दोबारा शुरू हुई अखण्ड साधना के चौथे दिन भी पानी व् दूसरे पेय पदार्थों को यूज नहीं किया गया था. उन्हें बदल दिया गया था.
आज साधना स्थल का वातावरण बहुत रहस्यमयी सा था। मै कुछ देर वहां रुकना चाहता था, मगर रुक न सका।
मुझे भारी दबाव का अहसास हुआ. इतना अधिक कि मै 5 मिनट में 4 बार बाहर भागा। जैसे वहां कुछ अदृश्य शक्तियां हों। और उन्हें मेरी उपस्थिति से एतराज हो।
मै जानना चाहता था, कि वहां न दिखने वाले कौन लोग हैं ? लेकिन मुझे रुकने न दिया गया।
अज्ञातरूप से मै वहां से भगा दिया गया। एक बार तो ऐसा लगा जैसे मुझे बाहर की तरफ ढ़केल दिया गया हो।
मै विश्मित था. भयभीत भी.
कौन है जो मुझे वहां रुकने नहीं देना चाहता ?
गुरुदेव ने मुझे साधनाओं के तमाम रहस्य बता रखे हैं, लेकिन ऐसी किसी स्थिति के बारे में कभी कोई जिक्र नहीं किया।
विवश हो मै बाहर आ गया। और अनुमान लगाता रहा कि वहां क्या हो सकता है ?
अभी मेरे पास इस बारे में सिर्फ सवाल ही हैं. वे भी ढेरों!
जवाब किसी का नहीं।
आज की इस स्थिति ने मुझे इतना अधिक चकित या सही कहें तो भयभीत सा कर रखा था कि संजीवनी उपचार का अगला चैप्टर भी तैयार न कर सका.
दिन भर ब्याकुल सा रहा. रात में सो न सका. सवालों के बवंडर ने मन को बेचैन कर रखा था. जवाब सिर्फ गुरुवर ही दे सकते थे.
वे साधना में लीन थे.
गुरूवर की साधना का 11 वां दिन।
अभी कुछ देर पहले ही लगभग 91 घंटे बाद गुरूवर सघन साधना से बाहर आये।
उनके चेहरे पर अविरल शांति है। तपस्वी की दमक है। लोकहितकारी संतुष्टि है। सिद्धों वाली सरलता है। आज उनके साथ पहले वाली सुगंध नहीं है।
उसकी जगह तपती भूमि पर पहली बारिश की बूंदें गिरने से उत्पन्न होने वाली सोंधी सुगंध है।
मैने गुरूदेव से कल अपने साथ हुए वाकये के बारे में जानने की इच्छा जताई।
मै अब तक डरा हुआ था.
वे मुस्कराये। कुछ देर बाद रहस्य खोला।
उनके मुताबिक इस तरह की अखंड साधना का ये एक पड़ाव है। जहां साधक के सम्पर्क में कुछ उच्च स्तरीय उर्जाएं आ जाती हैं। जिन्होंने कभी उत्तरोत्तर साधनाएं कीं । मगर साधना की सफलता से पहले किसी वजह से उनका शरीर छूट गया।
अखंड साधनाओं में इन्हें अध्यात्मिक मित्र कहा जाता है। जो अपनी साधनाओं में जहां तक पहुंचे थे वहां तक की राह सुझाते हैं। साथ ही साधक के जरिए अपना आगे का अध्यात्मिक सफर तय करते हैं।
जिसको पा लेने के बाद वे लोक कल्याणकारी देवदूतों की श्रेणी में आ जाते हैं।
यानी जिन्होंने मुझे आपके पास रुकने से रोका वे अतृप्त आत्माएं थीं? मैने सशंकित सा प्रश्न किया था।
नहीं उन्हें इस श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिये. वे अपने उद्देश्य पूरे कर रहे हैं. जिनमें विश्वकल्याण निहित है. जवाब मिला।
तो मेरे साथ इतनी बुरी तरह क्यों पेश आये थे वे, मैने पूछा।
क्योंकि तुम्हारी उपस्थिति से उन्हें असुविधा हो रही थी।
उनमें से कुछ को बहुत लम्बे इंतजार के बाद मै माध्यम के रूप में मिला था। वे यह मौका खोना नहीं चाहते थे। सो थोड़ा उतावले से हो रहे थे।
तो क्या इसके लिए उन्हें किसी के साथ हिंसा करने की छुट मिली होती है। मेरा प्रश्न था।
नहीं एेसा नहीं है. जवाब मिला. उनमें से कुछ को बहुत लम्बे समय से माध्यम का इंतजार था। और जब मै उन्हें माध्यम के रूप में मिला तो वे बीच में किसी को आने नही देना चाहते थे। उनका उद्देश्य तुम्हारे उद्देश्य से बड़ा था। गुरुवर के स्पष्ट किया.
और यदि मै जिद करके वहां रुकना चाहता तो ! मेरे मुंह से अनायास सवाल निकला.
तो हम तुम्हें देखने अस्पताल आते। डराने वाला रहस्य खुला।
वे कितने थे और कितनी देर रहे आपके साथ? मैंने पूछा।
तुम्हारी सोच से भी ज्यादा। जवाब मिला। बीती रात तक साथ रहे। अब वे एक नए ग्रह की खोज करेंगे, वहां नई दुनिया बसाएंगे। भविष्य में वैज्ञानिकों को एक नए ग्रह का पता चलेगा। यह वही ग्रह होगा।
इससे आपका और आपको चाहने वालों का क्या फायदा हुआ? भावावेश में मै एक गैरजरूरी सा सवाल पूछ बैठा।
गुरुदेव ने स्थिर दृष्टि से मुझे देखा। जैसे कह रहे हों हर लम्हा नफा नुकसान से नहीं आँका जाना चाहिये।
लेकिन मुझे विश्वास है ये शक्तियां जब जब जरूरत होगी तब तब गुरुवर और उनमें श्रद्धा रखने वालों के काम जरूर आती रहेंगी.
आज मुझे गुरूदेव का ज्ञान तिलिस्म सा लगा।
जो मेरे मन मस्तिष्क में लगातार घूम रहा है।
सवालों की लम्बी फेहरिस्त अभी भी दिमाग में बची है, लेकिन अब नही पूछ सकता. क्योंकि मानसिक सम्पर्क भंग करके वे विश्राम के लिये चले गए.
गुरुवर की एकांत साधना: वृतांत…7
July 14, 2015
एकांत साधना के 12 वें दिन.
गुरुदेव ने whatsapp के शिव साधक और शिव साधिका
ग्रुप के लोगों को अज्ञात जानने की साधना कराने का फैसला लिया.
मैंने ग्रुप में इसकी सुचना दी तो सभी ख़ुशी से झूम उठे.
सबने साधना की तैयारी शुरू कर दी.
साधना का 13 वां दिन .
आज मै गुरुवर की 13 दिन की साधना का हिसाब पेश कर रहा हूं।
इससे पहले बता दूं कि गुरुवर पूरी तरह स्वस्थ और तरोताजा दिख रहे हैं। आज दोपहर 12 बजे से पहले मै साधना स्थल पर गया। तो वहां बड़ी ही सम्मोहक फिजा थी।
मन मस्तिष्क को वश में कर लेने वाली सुगंध थी। फिजा में छाये सम्मोहन ने मुझे रोक लिया। जैसे वहां बहुत से अपने लोग हों और बेआवाज कह रहे हों तुम्हारा स्वागत है, रुक जाओ न।
आज पहली बार साधना स्थल में बहुत अपनापन सा लगा। बिना योजना मै एक तरफ बैठ गया।
ध्यानस्थ गुरुदेव को निहारने लगा। बस निहारता रहा।
कुछ समय बाद गुरुवर ने आंखें खोलीं।
मुझे देखा।
मै उनके चरणों में लेट गया।
वह मनमोहक सुगंध अभी तक मेरी सांसों में है।
लग रहा है जैसे तमाम न दिखने वाले मेरे अपने आज मेरे साथ हैं। और उनकी मौजूदगी मन मस्तिष्क को आसमानी उड़ान दे रही है. पैर तो जमीं पर हैं मगर मन को पर से लग गए हैं.
दिल में यूँ ही उत्साह और उमंग उमड़ रही है। मेरे भीतर की दुनिया में बहारें घिर आई हैं। झुलसा देने वाली गर्मी का मौसम भी सावन सा सुहाना लग रहा है। दुनिया बड़ी रुमानी लग रही है।
मेरे जीवन का यह अमूल्य अनुभव है।
इस आतंरिक खुशी को मै शब्दों में बयां नहीं कर सकता।
बिना परोक्ष कारण के भी इतना खुश हूं कि बताने को शब्द घट जाये.
लग रहा है जैसे अब जीवन को कोई दुख भेद न सकेगा।
इसके लिए गुरुवर पर करोड़ों कुर्बानियां।
अब मै गुरुवर की साधना का हिसाब पेश कर रहा हूं…
* 15 तारीख से अब तक 13 दिन.
* इस बीच डेढ़ गिलास पानी पिया.
* एक गिलास नीबू पानी लिया.
* एक बाइट तरबूज की चखी.
* एक दिन दिल्ली आश्रम के विशेष सहयोगी अरुण और नीतू से मोबाइल पर कुछ मिनट बात की.
* एक दिन दिल्ली आश्रम की सहयोगी अंजली से whatsapp पर कुछ मिनट की चैट करके हीलिंग चार्ट भेजने को कहा.
* एक दिन मेरे आग्रह पर whatsapp पर अत्यधिक परेशानी से जूझ रही एक महिला से 2 मिनट की चैट करके उसे सुझाव दिये.
* 13 दिनों में उनके खाने पीने सहित सभी तरह की जरुरतों का खर्च रु. 0.00/- .
* एक दिन कुछ जरूरतमंदों को भोजन कराने में उनके हाथ से खर्च हुए रु. 700/
* उनके द्वारा यूज किए जा रहे कपड़े दो पीली धोती, दो सफेद ओढ़न, 1 तौलिया.
* मौन के कारण अपनी जरूरत बताने के लिए कागज पेन/पेंसिल का इश्तेमाल- एक बार भी नहीं किया.
अर्थात उनकी अपनी जरूरतें शून्य रहीं.
शायद अब मै समझ पा रहा हूं कि हलचल भरी इस दुनिया में अपनी जरूरतों को न्यूनतम कर लेना ही असली साधना है।
गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत…8
July 15, 2015
गुरुवर की साधना के 16 दिन पूरे हुए।
वे जिस सिद्धी का लक्ष्य लेकर चले थे वह 14 वें दिन ही पूरा हो गया. आमतौर से साधक इस साधना का अनुमानित समय 30 दिन लेकर चलते हैं. कई लोगों को सिद्धी 12 से 25 दिन के भीतर मिल जाती है.
कुछ को 1 माह या कई माह लग जाते हैं. कुछ को कई साल और कुछ को इसे पाने में कई जीवन लगते हैं.
साधना सिद्धी में सफलता ने गुरुवर की आभा कई गुना बढ़ा दी है. उनकी आँखों में गजब का तेज है. उनकी सरलता जादुई सी हो गई है.
उस दिन गुरुदेव ने अपनी साधना में ब्रेक लिया.
ताकि शिव साधक व् शिव साधिका ग्रुप के लोगों को अज्ञात जानने की साधना शुरू करा सकें. अगले दिन WhatsApp के ग्रुप से जुड़े साधकों को अज्ञात जानने की साधना शुरू कराकर गुरुवर पुनः अपनी ध्यान साधना में व्यस्त हो गए.
तीन दिन और बीत गए.
साधना का 20 वां दिन.
वे पिछले 3 दिन से गहन साधना में थे. यह उनकी तीसरी बार शुरू हुई गहन साधना का तीसरा दिन था.
सुबह जल्दी ही मैंने साधना स्थल की सफाई कर दी थी.
लेकिन दोपहर से थोडा पहले मै गुरुदेव के साधना स्थल में दोबारा चला गया.
दरअसल साधना स्थल से बड़ी सम्मोहक सुगन्ध आ रही थी. जिसका कारण जानने की उत्सुकता में मै साधना स्थल पर खिंचा चला गया.
गुरुदेव ने इस बार अपने आसन के पास एक खाली आसन भी लगवाया था. तब मै जिज्ञासा से भरा था. खाली आसन क्यों?
अब मेरे पास इसका जवाब था. एक सपना सा जवाब. अब वह आसन खाली नही था. किसी देवी की प्रतिछाया उस पर विराजमान थी. सुगन्ध उनसे ही आ रही थी. उनकी आभा अत्यंत सम्मोहक थी. मै उनकी पीठ की तरफ था. बाल खुले थे. पहनावा दैवीय था. पीछे से ही उनके अकथनीय रूप रंग की छवि का आभास हो रहा था.
इतना सम्मोहन किसी में कभी नही देखा मैंने.
उनकी झलक मात्र से मै जड़ सा हो गया.
दिमाग काम नही कर रहा था.
क्योंकि ऐसी किसी स्थिति के बारे में गुरुदेव ने पहले कभी कुछ नही बताया था.
मुझे ऐसे दृश्य की कल्पना भी न थी.
मै आगे बढ़ने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था. उनके ओज से मेरी आँखे बोझिल होने लगीं.
कितनी देर यूँ ही खड़ा रहा, नही पता.
मै वहां कब बैठ गया, पता नहीं.
आँखे बन्द हो गयीं, दिमाग भी. विचारों का बवंडर कही गुम था.
शायद मै होश खो चुका था. कितनी देर नही पता.
मेरी जगह कोई भी होता तो उसका भी यही हाल होता.
जब आँख खुली तो सामने गुरुदेव खड़े थे. तब तक घण्टों समय गुजर चूका था, मै यूँ ही बैठा रहा था.
अब मेरे चेहरे पर गीलापन था. यानि गुरुवर ने मेरे चेहरे पर पानी डाला था. जिससे मेरी चेतना वापस लौटी.
मैंने दूसरे आसन की तरफ देखा. अब वहां कोई नही था. आसन देखते ही प्रतीत हो रहा था कि उसका उपयोग हुआ है.
मै सवालो से भरा था.
मगर कुछ पूछने से पहले ही गुरुदेव का जवाब आ गया * जो देख लिया वही काफी है तुम्हारे लिये, तुम्हें दोबारा यहां नही आना था.*
मै समझ गया, अब उनसे किसी सवाल का जवाब नही मिलेगा.
तब से गुमशुम सा हूँ, किसी काम में मन नही टिक रहा. जो देखा दिमाग उसे स्वीकार नही कर पा रहा. मगर जानता हूँ ये साधना की डगर है, यहां कुछ भी असम्भव नही.
जिज्ञासा ने मन में आंदोलन छेड़ रखा है.
और….. गुरुदेव आराम कर रहे हैं.
गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत….9
July 16, 2015
साधना का 22 वां दिन.
आज गुरुवर ने अज्ञात जानने की साधना कर रहे whatsapp ग्रुप के साथियों की एनर्जी चेक की. जिसमे पता चला की कुछ लोग बहुत अच्छी कोशिश कर रहे हैं. साधना सिद्धि के लिये गुरुदेव ने उनके ऊर्जा चक्रों और आभामण्डल को उपचारित किया. उनकी कुंडली जाग्रत करने के लिये अतिरिक्त ऊर्जा का प्रवाह किया.
इस बीच कई लोगों ने जानना चाहा है कि गुरूदेव पत्रकार से साधक कैसे बने? उनकी साधना यात्रा को जानना चाहा है।
वैसे तो सब कुछ नियति के मुताबिक घटता है। मगर आज मै आपको इस बदलाव का भौतिक कारण बताता हूं।
बात उन दिनों की है जब गुरूवर टी.वी. पर दिखाये जाने वाले एक न्यूज प्रोग्राम के ब्यूरो इंचार्ज बने। कानपुर छोड़कर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहने लगे। क्योंकि ब्यूरो का मुख्यालय वहीं था।
तब वे ज्योतिष और तंत्र में विश्वास नहीं करते थे। उनका टी.वी. न्यूज का अत्यधिक देखा जाने वाला प्रोग्राम पैनी नजर ज्योतिषियों और तांत्रिकों के खिलाफ ही था। मगर संतों की संगत उन्हें तब भी बहुत पसंद थी।
2001 में गुरूदेव को एक बड़े हादसे का सामना करना पड़ा। उनके छोटे भाई सुनील सिंह उर्फ सीताशरण दास ने शरीर छोड़ दिया। वे बाल ब्रह्मचारी संत थे। गुरुदेव से 2 साल छोटे। बहुत छोटी उम्र से ही उन्होंने सन्यास ले लिया था। घर छोड़कर अपने गुरू के आश्रम में रहने चले गए थे। उनके गुरू बहुत ही सिद्ध और प्रसिद्ध थे। उन्होंने सुनील सिंह को संत समाज का नाम सीताशरण दास दिया था। वे अपने गुरू के बहुत चहेते थे।
गुरू के आदेश पर वे कुछ सालों के लिए देश भ्रमण के लिए निकले। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ के पास पहाड़ी इलाके में उन्हें एक जगह पसंद आ गई। वहीं उन्होंने धूनी जमा दी थी। सीताशरण दास जी अत्यधिक साहसी और हठयोगी थे। महीनों तक खाना-पानी त्यागकर उत्तरोत्तर साधनाओं में लगे रहते थे। एक साधना के दौरान उन्होंने 1 साल का मौन निभाया। वे समाधि विद्या में निपुण थे। कई दिनों तक समाधि में रह लेते थे।
उनकी साधनाएं लोकहित कारी थीं। उन्हें मंत्रों से रोग ठीक करने की विशेष सिद्धी प्राप्त थी। खासतौर से सफेद दाग के रोगी उनके दर से कभी निराश नहीं लौटे। उनके दर्शनार्थियों की भीड़ दिन भर रहती थी। वे हनुमान जी के परम भक्त थे। दो दर्जन से अधिक साधुवेषधारी शिष्य उनके साथ रहकर उनसे साधनाएं सीखते थे। उनके शिष्य और अनुयायी उन्हें स्वामी जी कहकर संबोधित करते थे।
उनके हजारों अनुयायिओं में तमाम प्रभावशाली राजनेता और अधिकारी भी शामिल थे।
अपनी साधनाओं का लाभ जनमानस को पहुंचाकर कुछ ही दिनों में उन्होंने टीकमगढ़ में एक दिव्य आश्रम का निर्माण किया। उनका आश्रम लगभग 500 एकड़ में फैला था। उसमें 300 वर्ग मीटर से भी अधिक बड़ी यज्ञशाला थी। 100 गायों की गौशाला थी। दर्जन भर से ज्यादा हिरन पले थे। जो उनके आस पास ही रहा करते थे।
वहां गरीब बच्चों की निःशुल्क पढ़ाई के लिए गुरुकुल था। आश्रम में जगह जगह मोर और दूसरे पक्षी विचरते दिखते थे।
तब आश्रम बड़ा ही मनोहारी था।
एक रात वहीं से उनकी मृत्यु की खबर आई थी। डाकू गिरोह ने आश्रम पर हमला किया था। उस समय स्वामी जी एक पुराने पीपल की जड़ के नीचे बनी गुप्त गुफा में साधना कर रहे थे। जहां डाकू नहीं पहुंच सकते थे। डाकुओं ने आश्रम में पहुंचकर मारपीट शुरू कर दी।
शिष्यों को बचाने के लिए स्वामी जी ने अपने प्राणों की परवाह नहीं की। उनकी चीख पुकार सुनकर क्षतीय वंशी साहसी स्वामी जी गुफा से बाहर आ गए और डाकुओं को ललकारा। डाकू हथियारों से लैस थे। उनसे संघर्ष निहत्थे स्वामी जी के लिए प्राणघातक सिद्ध हुआ।
सूचना मिलने पर गुरुदेव के साथ तमाम लोग टीकमगढ़ के लिए निकल पड़े। मै भी। झांसी के रास्ते हम लोगों को वहां पहुंचने में कई घंटे लगे।
उस दिन आश्रम का दृष्य बड़ा ही ह़दयविदारक था।
आश्रम के मंदिरों की देव प्रतिमाएं प्राणहीन सी हो गई थीं। वहां स्वामी जी के हजारों अनुयायियों की भीड़ इकट्ठा थी। लोग बच्चों की तरह विलख विलखकर रो रहे थे। जैसे उनका रखवाला चला गया हो। दिन भर स्वामी के साथ हठखेलियां करने वाले हिरन एक जगह इकट्ठे होकर उनके शव को निहार रहे थे। उन बेजुबानों की आंखें भी नम दिखीं। बेजुबान गायें रभा रभाकर रो रही थीं, उनमें से कुछ रस्सियां तोड़कर शव के पास आ गईं थी। उनकी आखें के आसू थम ही नहीं रहे थे।
आश्रम में हर व्यक्ति, हर जीव की आंखें अपने स्वामी जी के लिए रोए चली जा रही थीं। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनका संरक्षक चला गया।
स्वामी जी के साधुवेशधारी शिष्य क्रोध और दुख में मरने मारने को उतारू थे। उन्हें बचाने के लिए ही तो स्वामी जी ने अपने प्राण दांव पर लगा दिए थे।
जैसे ही लोगों को पता चला कि स्वामी जी के परिवार के लोग आये हैं, सब हमारी तरफ ही आ गए। वहां मौजूद कई प्रशासनिक अधिकारी पास आ गए। गुरुवर को एक तरफ ले जाकर उन्हें घटना की जानकारी देने लगे। अधिकारियों ने वहां का महौल नियंत्रित करने में गुरुदेव से मदद मांगी। क्योंकि घटना से गुस्साए स्वामी जी के हजारों अनुयायी धरना प्रदर्शन को आमादा थे.
स्वामी जी के शिष्यों ने बताया कि उन दिनों स्वामी जी दस महा विद्याओं में से एक तारादेवी की साधना कर रहे थे।
* उनकी साधना सिद्धी के बहुत करीब थी। तभी इस घटना में उन्हें शरीर छोड़ना पड़ा।*
साधना के लिए देवी की सवा किलो की सोने की मूर्ति बनवाई थी। साथ में कुछ अन्य देवी देवताओं की चांदी की कई मूर्तियां भी थी। आशंका जताई जा रही थी कि डाकुओं को उन मूर्तियों की जानकारी हो गई थी। उन्हीं को लूटने के लिए आश्रम पर हमला हुआ। घटना के बाद से वे मूर्तियां गायब थीं।
दूसरे दिन स्वामी जी के भक्तों और क्षेत्र के तमाम प्रभावशाली लोगों ने आश्रम के संचालन के लिए एक मीटिंग की। जिसमें प्रशासन के भी लोग थे। सबने एकमत से गुरुजी को आश्रम का मालिक घोषित किया और उनसे आश्रम संचालित करने का आग्रह किया।
सबका कहना था स्वामी जी ने करोड़ों का आश्रम अपनी तपस्या से अपने बूते पर खड़ा किया। इसे किसी और के हाथों में नहीं जाना चाहिए। आश्रम का वारिश सक्षम होना चाहिए। जो आश्रम की सम्पत्ति को ठीक से सम्भाल सके और स्वामी जी के हत्यारों को सजा दिला सके।
गुरुदेव ने स्वामी जी के भक्तों को मनाकर दिया। मुझे अच्छी तरह याद है स्वामी जी के भक्तों ने इसके लिए गुरू जी से बहुत याचना की थी। उनके इंकार पर बहुत रोए थे वे लोग। गुरुदेव ने कहा था मै संत समाज और उनकी पद्धति से परिचित नहीं सो ये जिम्मेदारी नहीं निभा सकता।
गुरुदेव के कहने पर स्वामी जी के एक शिष्य को वहां की जिम्मेदारी सौंपी गई।
मै गुरुवर की कार्य पद्धति से भलीभांति परिचित था। उन्होंने लौटने से पहले टीकमगढ़ में अपने खबरियों का पूरा नेटवर्क खड़ा कर दिया। उनके लोगों ने डाकू गिरोह के हर उस व्यक्ति का पता लगा लिया जो आश्रम के हमले में शामिल था। कुछ समय बाद उन सभी डाकुओं के बारी बारी से मरने की खबर मिली। उनको किसने मारा बस ये पता न चल सका। शायद भगवान ने उन्हें इस तरह से दंडित किया।
मैने इस घटना के बाद से गुरुदेव में बैराग्य के भाव उत्पन्न होते देखें। धीरे धीरे वे पत्रकारिता को छोड़ते गए।
उनका रुझान अध्यात्मिकता में बढ़ता गया।
इस बीच कुछ लोगों ने कहना शुरु किया कि स्वामी जी ने मरणोपरांत गुरुदेव से सम्पर्क बनाये रखा और धीरे-धीरे अपनी शक्तियां और सिद्धियां उनमें ट्रांसफर कर दीं। उनके कारण ही गुरुदेव पत्रकारिता के जबरदस्त ग्लैमर को छोड़कर साधना के पथ पर आकर्षित हुए।
लेकिन मुझे एेसा कभी नहीं लगा।
गुरुदेव के लिए विषय बहुत भावुकता का है इसलिए इस बारे में मै गुरुदेव से कभी खुलकर पूछ भी न सका।
आज हम सब हनुमान भक्त स्वामी जी की आत्मा की परम शांति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करेंगे।
गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत…10
July 17, 2015
स्वामी की घटना से कई सदस्य दुःख में हैं.
शिव साधिका dinga ji ने स्वामी जी की घटना पर एक सवाल पूछा है. जो इस तरह है…
Shivanshuji ek baat jo hai man mai badi khatakti hai ki is tarah aadhyatmik jagat ka insaan khatam Ho jaye aur bramhand ki koi shakti iski raxa ke liye nahi aayi? Kabhi mauka milne per is vishay per Guruji se gyan avashya lijiyega. Ye aap se binti hai.
भगवान में विश्वास रखने वालों के लिये ये बड़ा स्वाभाविक सवाल है। इसके जवाब में मै आपको एक प्रकरण बताता हूँ.
एक सन्त थे. भगवान् विष्णु के अनन्य भक्त. जंगल में कुटिया बनाकर रहते थे. शालिगराम को स्नान कराने से बना चरणामृत ही ग्रहण करते थे.
उनकी भक्ति इतनी प्रगाढ़ थी की नारायण खुद आकर उनसे बातें करते थे. वही उनके दोस्त थे वही रिश्तेदार। संत उनसे सदैव मोक्ष मागते थे.
एक दिन वहाँ 9 डाकुओं का एक गिरोह आ गया. डाकुओं ने सन्त को पकड़ लिया. उनसे कहा जो कुछ है सारा माल निकालकर ले आओ. सन्त ने बताया कि उनके पास कुछ नही. डाकुओ के सरदार ने साथिओ से कहा इसने आज की शुरुआत खराब कर दी. इसे मार डालो.
वे सब तलवार लेकर सन्त को मारने के लिये झपटे. सन्त इंतजार कर रहे थे कि भगवान् नारायण अभी कुटिया से निकलेंगे. डाकुओ को मारकर उनकी रक्षा करेंगे. पर नारायण नही निकले.
मृत्यु के अंतिम पल देखकर सन्त ने सरदार से कहा, मुझे कुछ देर की मोहलत दो. कुटिया में मेरा एक मित्र है. मै उनसे मिल लूँ. फिर मार देना. सरदार ने उन्हें 2 मिनट के लिए कुटिया में जाने की मोहलत दे दी. वे कुटिया में गए. नारायण वहीं थे.
सन्त बोले भगवन मैंने आपकी भक्ति में कहां चूक की ? जो आप मेरी रक्षा को बाहर नही आये! मैंने क्या पाप किये जो आपने मेरे लिये इतनी भयानक मृत्यु तय की है.
नारायण बोले न तो तुमने पाप किया न ही तुम्हारी भक्ति में कमी है. ये तो तुमने जो मेरी सेवा की है उसका फल है.
ये कैसा फल है ? सन्त विश्मित हो गए.
तुमने ही तो मोक्ष माँगा है. नारायण बोले.
हाँ तो! सन्त ने कहा ये मोक्ष कहाँ है ? उलटे इस अकाल मृत्यु से मै प्रेत योनि में जाऊंगा.
भगवान मुस्कराये और रहस्य खोला. तुमने पूर्व के जन्मों में इन 9 लोगों की हत्या की थी. कर्म प्रभाव के तहत मोक्ष के लिए जरूरी है कि ये लोग भी तुम्हारी हत्या करके बदला चुकाएँ. अगर ये बारी बारी से तुम्हारी हत्या करें. तो मोक्ष के लिये तुम्हें 9 जन्म लेने पड़ेंगे.
इसीलिये मैंने इन्हें तुम्हारी हत्या की खातिर एक साथ एकत्र कर दिया है। सब मिलकर तुम्हे एक साथ मार देंगे. तो एक ही बार में इन सबका बदला पूरा हो जायेगा. बस मै तुम्हें मोक्ष दे सकूँगा. अब जैसा तुम कहो मै वैसा ही करूँ?
सन्त समझ गए और मोक्ष की खातिर बेख़ौफ़ होकर बाहर निकल पड़े.
गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत…11
July 17, 2015
गुरुदेव की साधना का 26 वां दिन.
लगभग 100 घण्टे की अखण्ड साधना के बाद आज दिन में लगभग 11 बजे गुरुदेव गहन साधना से बाहर आये।
बीते शुक्रवार को तड़के लगभग 3 बजे साधना में गए थे। इस बार उन्होंने साधना स्थल पर अपने पास दो अतिरिक्त आसन भी लगवाये थे। पहली बार फूल और माताएं रखवायी थीं। फल, मेवा और मिष्ठान भी वहां रखवाये थे।
इससे पहले उन्होंने सभी सघन साधनाएं बिना सामग्री के कीं.
लगता है इस बार उनके सभी उद्देश्य पूरे हो गये।
क्योंकि साधना से बाहर आते ही उन्होंने साधना स्थल से वे सभी विशेष इंतजाम हटवा दिए जो 15 मई को कराये थे.
इस बीच मै सिर्फ 4 बार ही उनके पास साधना स्थल पर गया।
हर बार वे ध्यानस्थ मिले।
एक बार मुझे लगा जैसे साधना स्थल पर नजर न आने वाले तमाम लोग हैं। क्योंकि वहां कई तरह की उर्जाओं का आभास हो रहा था। कुछ कोमल कुछ सख्त। सभी की छुवन सकारात्मक ही थी। तब साधना स्थल की ऊर्जा अपार मिलीं. जैसे वहां साक्षात् देवगणों का वास हो.
उस समय साधना स्थल कई तरह की सुगंध से भरा था। मगर कोई भी सुगंध दूसरी सुगंध के अस्तित्व को बिगाड़ नहीं रही थी। सबका अस्तित्व बरकरार था।
एेसी सुगंध धरती पर तो नहीं मिलती।
नजर न आने वाले लोग वहां मेहमान थे या मेजबान, नहीं पता। उनमें किसी को मुझसे न कोई एेतराज न था और न ही कोई लगाव। जैसे मेरी उपस्थिति उनके लिए बेअसर हो।
कल तो गुरुवर के गले में माला थी। जो साधना स्थल पर पहले से रखी मालाओं में से एक थी। मुझे ठीक से पता है गुरुवर को माला पहनना पसंद नहीं। यानि वह माला उन्होंने खुद नहीं पहनी होगी। तो किसने पहनायी उन्हें माला, इस सवाल के जवाब का इंतजार मुझे कब तक करना होगा, नहीं पता।
योगिनी से बातें करने के बाद कुछ देर पहले गुरुदेव विश्राम करने चले गये।
योगिनी के बारे में बताना तो मै आपको भूल ही गया।
बड़ी चहेती बन गई है गुरुवर की।
आश्रम में रोज आने वाली एक गौरैया चिड़िया का नाम है योगिनी। गुरुदेव ने ही उसे नाम दिया है। शुक्रवार से बड़ी बेचैन थी. गुरुदेव के दर्शन नहीं कर पा रही थी इसलिये।
रोज आकर गुरुदेव का घंटों इंतजार करती थी।
15 मई को गहन साधना में जाने के बाद जब गुरुवर ध्यान से बाहर आये, उसके बाद ही योगिनी ने आश्रम में आना शुरू किया था।
आश्रम के पश्चिमी छोर पर माल्टा का पेड़, उसके पीछे आवलें का और बगल में अमरूद का बड़ा पेड़ है। तीनों पेड़ों के मिलान से वहां घनी छाया बन जाती है। फुरसत के वक्त गुरुदेव उन्हीं की छाया में कुर्सी डलवाकर बैठते हैं।
वहां छाया में चिड़ियों के पीने का पानी रखा जाता है। उनके चुगने के लिए गुरुदेव वहां आनाज के दाने डलवाते हैं। वहां दाने चुगने, पानी पीने, खेलकूद व आराम करने तमाम चिड़िया आती हैं।
उनमें जंगली कबूतरों का एक जोड़ा काफी दिनों से आकर गुरुदेव के पास बैठता है। मादा कबूतर तो अक्सर उनके खड़ाऊं से खेलती रहती है। जैसे उनकी सफाई करना चाहती हो।
इस बीच 19 मई से एक गौरैया आकर गुरूदेव के पास बैठने लगी। वह निडर होकर गुरुदेव के नजदीक तक पहुंच गई। गुरुदेव ने उसे अपने हाथ से दाने खिलाने चाहे तो उनकी कुर्सी के हत्थे पर बैठने लगी. जब तक गुरुदेव वहां बैठते वह उन्हीं के आस पास रहती.
गुरुदेव उसे शिव सहस्त्रनाम सुनाते हैं. जिसमें लगभग 20 मिनट लगते हैं। इस बीच वह उनके पास एक ही जगह बैठी रहती है।
गुरुदेव ने उसे योगिनी नाम दिया है. वह गुरुवर से बातें करती है. मै आपको बताना भूल गया कि गुरुवर को पशु-पक्षियों और पेड़, पौधों से बातें करनी आती हैं।
जब गुरुदेव गहन साधना में होते हैं तब योगिनी बेचैन हो जाती है।
वहां आती तो रोज है, मगर न दाने चुगती है और न ही पानी पीती है। जैसे उसने भी व्रत रखना सीख लिया हो। दूसरी चिड़यों के साथ फुदकती और चिचियाती भी नहीं है। जैसे वह भी मौन में चली जाती हो।
इस बार भी बेचैन थी।
रोज खाली कुर्सी के पास आकर उसका घंटों बैठना, गम्भीरता के साथ अपने नन्हें पैरों से इधर उधर टहलना, शांत रहना और कुछ न खाना पीना. एेसा लगता था जैसे योगिनी भी तप कर रही है. शायद गुरुदेव की सलामती और कामयाबी के लिये।
मगर उसका भाग्य तो देखिए, आज जब गुरुवर सबसे लम्बी गहन साधना से बाहर निकले तो सबसे पहले उसी से मिले। क्योंकि वह सुबह से ही आकर वहां बैठी थी। साधना स्थल से बाहर आते ही गुरुवर की नजर योगिनी पर ही पड़ी. और वे उसके पास चले गये. उसे पानी पिलाया. दाने चुगाये. कुछ देर बातें कीं।
तब तक मै गुरुवर के पास पहुंच गया।
मैने सुना वे योगिनी से कह रहे थे *अब तुम चली जाना, अपना ध्यान रखना* कुछ समय पहले तक योगियों सी गम्भीरता धारण किए बैठी योगिनी अब चंचलता से फुदक रही थी। उनकी बात पर बड़ी नजाकत से इतराकर एेसे फुदकने लगी जैसे कह रही हो *आप फिक्र न करिए जी, अपना ध्यान रखना मुझे आता है।* गुरुदेव मुस्कराते हुए मेरी तरफ आ गये।
गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत…12
July 18, 2015
गुरुवर की साधना का 27 वां दिन.
गुरुदेव के तप की ऊर्जाएं मै स्पष्ट महसूस कर रहा हूँ. हर क्षण उनकी तरफ खिंचा जाता हूँ. उनको देखने, उनके साथ बैठने, उनसे बातें करने और उत्तरोत्तर कुछ सीखते रहने की चाहत बढ़ती चली जा रही है.
उनकी कठिन तप की क्षमता और उसके परिणाम देखकर बार बार मन में भ्रम सा होने लगता है जैसे इससे पहले मै उनके बारे में अनजान था.
कल योगिनी से बात करने के बाद, उन्होंने दिल्ली आश्रम के निटक सहयोगी अरुण जी से कुछ देर फोन पर बात की। उन्हें कुछ निर्देश दिये। उसके बाद से उनका मौन जारी है।
वे 15 को दिल्ली आश्रम पहुंच जाएंगे। 17 को उनकी शादी की सालगिरह है। सो गुरुमइया और दोनो बिटिया भी उनके साथ दिल्ली जा रही हैं। मेरा भी बहुत मन था। उनके साथ दिल्ली जाने का। मगर गुरुदेव ने मुझे तुरंत मारीशस जाने का निर्देश दिया है।
वहां गुरुवर का नया आश्रम बनाया जाना है। गुरुवर के फालोअर और मेरे कई मित्र मारीशस में हैं. जो लम्बे समय से वहां गुरुदेव का आश्रम बनाने का अनुरोध कर रहे थे. इस बार गुरुदेव ने उन्हें अनुमित दे दी है।
इस बीच गुरुदेव ने ग्रुप के सभी लोगों को सख्त हिदायत दी है कि कोई भी उनकी तुलना भगवान् से न करे. उनका कहना है * शीश तो शिव जी के चरणों में ही झुकाएं. उन्हें ही अपना गुरु भी बना लें. मै तो बस उनका सेवक हूँ. उनकी इच्छा पर आप सबकी भी सेवा में हूँ. और सदैव आपके साथ हूँ. *