पत्नी के श्राप से जन्मों तक रूठ गई लक्ष्मी मां
[स्वर्णेस्वरी यक्षिणी वर्ग की देवी हैं. वे सिद्ध होने पर साधक के जीवन में चौतरफा सोना भर देती हैं. इसीलिये कुछ विद्वान इन्हें धनदा यक्षिणी भी कहते हैं. गुरुजी के निकट शिष्य शिवांशु जी ने स्वर्णेश्वरी सिद्धी की करके गुरु जी के निर्देश पर उन्हें अपना अध्यात्मिक मित्र बना लिया. यक्षिणी सिद्धी के अपने अनुभवों को उन्होंने प्रस्तावित ई बुक में लिखा है. हम यहां उनके अनुभव के कुछ अंश उन्हीं के शब्दों में शेयर कर रहे हैं. ताकि साधक लाभ उठा सकें. धनदा सिद्धी कर सकें…. अरुण]
साधना वृतांत शिवांशु जी के शब्दों में….

गिरधर महाराज इस जन्म में सिद्ध संत बने. उनके पास रहने को ठीक झोपड़ी और खाने को दो समय का आनाज भी नही जुट पाता था. उनके साथ रहने वाले संत भी इसी हात में थे. लक्ष्मी मइया उनसे रूठी थीं. क्योंकि पूर्व जन्म में उन्होंने अनजाने में पत्नी को बहुत अपमानित किया था. क्षुब्ध होकर उनकी पत्नी ने श्रापित कर दिया था.
ये बात मुझे उनके पूर्व जन्म में जाकर पता चली. जोगी महराज मुझे समाधि के द्वारा गिरधर महराज के पास्ट में ले गये. ये गजब की सिद्धी थी. तब तक गुरुदेव ने मुझे समाधि में जाना नही सिखाया था. फिर भी मै समाधिस्थ हो गया. जब मै जोगी महराज के समक्ष आंखे बंद करके बैठा तो लगा जैसे मेरे सिर पर बोझ सा लाद दिया गया हो. पहले मैने सोचा था कि जोगी महराज मेरे आज्ञा चक्र को अपने नियंत्रण में लेकर पास्ट में ले जाएंगे. मगर ये क्रिया वैसी नही थी. ये तो मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व को नियंत्रित करने जैसा था. मेरे सोचने समझने से पहले ही कब्जा हो चुका था. मै घोर अंधकार में लुढ़कता जा रहा था. जैसे किसी काली सुरंग में ढ़केल दिया गया हो. चाहकर भी सम्भल नही पा रहा था. सोचने समझने की शक्ति से परे था.
बिल्कुल पराधीन.
नही पता कितनी देर.
जब चेतना का अहसास हुआ तब किसी और दुनिया में था. वो राजाओं का युग था. मै उस युग का हिस्सा नही था. सिर्फ वहां का दर्शक सा लगा.
गिरधर जी मुझे वहां नजर आये. वे वहां के राजगुरू थे. बहुत ज्ञानी, बहुत तेजस्वी, बहुत सम्मानित, उच्च कोटि के साधक. उनके साथ शिष्यों का जमावड़ा. किसी बात पर पत्नी से तर्क हो रहा था. दोनो गुस्से में थे. कहते हैं गुस्सा ज्ञान को खा जाता है. यही मुझे उस वक्त भी नजर आया. तर्क ने सीमा लांघी. तो कुछ अपशब्ध हावी होने लगे. गिरधर जी की पत्नी सहम सी गईं. पर गिरधर जी न रुके. अपने शिष्यों के सामने ही कुछ एेसी बातें बोलीं जो मर्यादा के उलट थीं.
उनकी पत्नी रोने लगीं. शब्दों से आहत पत्नी ने श्रापित किया. कहा हे मां लक्ष्मी यदि मै मन से इनका (गिरधर जी का) त्याग कर रही हूं, यदि मैने सच्चाई से आपको माना है तो आप भी इन्हें त्याग देना. एेसा कहकर वे भवन के भीतर चली गईं. वे मां लक्ष्मी की सच्ची साधक थीं. लक्ष्मी मां ने उनकी पुकार अपना ली. मगर अपने क्रोध के वश में हुए गिरधर जी ने पत्नी के श्राप पर ध्यान नही दिया.
जिसका परिणाम पिछले दो जन्मों से भुगत रहे थे. उनके साथ धनहीनता का जीवन जी रहे संतों में से कुछ पूर्व जन्म के शिष्य ही थे. पिछले जन्म में गिरधर जी मजदूर थे. कड़ी मसक्कत के बाद भी वे भर पेट भोजन की व्यलस्था नही कर पाते थे. पूर्व की साधनाओं के प्रभाव से एक संत ने उन्हें शिष्य के रूप में अपना लिया. साधनायें सिखायीं. मगर वे सिद्धियां अर्जित कर पाते उससे पहले ही उनके गुरू ने शरीर छोड़ दिया. उनकी साधनायें अधूरी रह गईं.
इस बार भी उनका जन्म बहुत गरीब परिवार में हुआ. पिछले जन्म की भक्ती-साधना भाव के प्रभाव से इस जन्म में 14 साल की उम्र में ही गुरू का साथ मिल गया. जब तक वे अपने गुरू के सानिग्ध में रहे तब तक तो ठीक था. मगर गुरू के शरीर छोड़ने के बाद वे दोबारा लक्ष्मी हीनता से ग्रसित हो गये. इस बीच वे कई सिद्धों के सम्पर्क में आ चुके थे. कुछ सिद्धियां भी अर्जित कीं. अपनी महागरीबी का कारण भी जान लिया.
गिरधर महराज का पास्ट जानने के बाद भी मेरे दिमाग में सवाल बचे रह गये.
जोगी महराज मेरी मनोदशा जान गये. उन्होंने कहा अब कुछ नये सवाल तुम्हें परेशान कर रहे होंगे.
मैने हां में सिर हिला दिया.
पूछो, उन्होंने अनुमति दी.
जब गिरधर जी ने सिद्धियां अर्जित कर ली हैं तो भी वे श्राप मुक्त नही हो पाये, एेसा क्यों. मैने पूछा.
पहली बात तो सिद्धियां अर्जित करना और श्राप मुक्त होना, दोनो अलग अलग विषय हैं. जोगी महराज ने बताया. साधना सिद्धियों से उन्होंने भगवान की नजदीकियां तो अर्जित कर लीं. मगर श्राप मोक्ष नही हुआ.
तो क्या भगवान की नजदीकियां भी श्राप मुक्त नही कर सकतीं. मैने पूछा.
ब्रह्मांड में संचालन और दंड के नियम लागू हैं. श्राप एक दंड है. जिसे भुगतना ही होता है. मगर भगवान दंड पाये भक्तों के लिये सरलता के रास्ते भी निकाल देते हैं. जोगी महराज ने कहा.
जो गिरधर महराज का श्राप कैसे खत्म होगा. मैने पूछा. भगवान ने उनके लिये कोई सरल रास्ता क्यों नही निकाला.
अगले जन्म में वे श्राप मुक्त हो जाएंगे. इसके लिये उनकी वही पत्नी पुनः उनके जीवन में आएंगी. वही श्राप मुक्त करेंगी. ये रास्ता बनाया है भगवान ने उनकी श्राप मुक्ति के लिये. जोगी महराज ने बताया. रही बात श्राप के कठिन दौर में सरलता से जीने की तो कुछ समय बाद उर्जा नायक (ये सम्बोधन उन्होंने गुरुवर के लिये किया था, गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र उन्हें उर्जा नायक कहकर पुकारते हैं) उन्हें लक्ष्मी सम्मोहन साधना कराने जा रहे हैं. जिससे बात बन जाएगी.
इस जानकारी ने मुझे बहुत राहत दी. क्योंकि गुरुवर द्वारा कराई जाने वाली लक्ष्मी सम्मोहन साधना जन्मों से चली आ रही गरीबी को हटाने में सक्षम होती ही है.
बाद में समय मिलने पर मैने गुरुवर से पूछा गिरधर जी आप लोगों से सीधा सहयोग क्यों नही लेते.
क्योंकि एेसा करने से उनके प्रारब्ध बचे रह जाएंगे. गुरुदेव ने बताया. जिनके लिये दोबारा तकलीफों भरा जन्म जीना पड़ेगा. वे इसी जन्म में सारी सजा भुगत लेना चाहते हैं. क्योंकि अब उन्हें अपनी पुरानी गलतियों का अहसास है.
मां लक्ष्मी ने उनकी पत्नी की बात को ही क्यों स्वीकारा. मैने गुरूदेव से श्राप भलित होने का कारण पूछा. गिरधर जी भी तो उस जन्म में उच्च साधक थे. उन पर दया क्यों नही दिखाई.
पत्नी तो खुद ही लक्ष्मी होती है. गुरूदेव ने कहा. उसका श्राप और साथ अपने आपमें लक्ष्मी जैसा ही होता है. भगवती लक्ष्मी उसकी भावनाओं के विरुद्ध नही जातीं.
यदि कोई पत्नी ही ठीक न हो. वह अकारण पति से झगड़े, ईगो का शिकार हो, गलत राह पर चल पड़े तो. मैने आज की सामाजिक स्थिति को देखते हुए पूछा.
गिरधर जी की पत्नी एेसी नही थी. गुरुदेव ने बताया. दूसरी बात पत्नियों को प्यार से जीता जा सकता है. तीसरी बात कोई पत्नी अकारण गलत राह पर नही चल पड़ती. यदि किसी में एेसा दोष उत्पन्न हो तो ये प्रारब्ध के कारण ही होता है.
क्या बिगड़ी हुई पत्नी के कारण भी एेसा श्राप लग सकता है. मैने पूछा.
यदि उसके बिगड़ने के लिये रंच मात्र भी पति जिम्मेदार है तो जरूर लग सकता है. गुरुदेव बोले. अब पत्नी पुराण छोड़ो और जोगी जी के साथ जाने की तैयारी करो. वे तुम्हें स्वर्ण यक्षिणी की साधना कराएंगे. मगर ध्यान रखना ये साधना तुम स्वर्ण प्राप्ति के लिये करने नही जा रहे. बल्कि यक्षिणी को अपना अध्यात्मिक मित्र बनाने के लिये करोगे. इसलिये यदि साधना काल में देवी तुम्हारे समक्ष सशरीर न आयें. तो भी विचलित न होना. सिद्ध होने के बाद वे सदैव तुम्हारे साथ ही रहेंगी. सिद्ध होने के बाद मै तुम्हें उनसे देवदूतों की तरह काम लेने की विधि सिखाऊंगा.
मै खुशी से झूम उठा. जोगी जी ने अभी तक अपने भी किसी शिष्य को ये सिद्धी नही कराई थी. उन्होंने मुझे चुना, इस बात की बड़ी खुशी थी.
मै यक्षिणी को अपना मित्र बनाने की तैयारी में जुट गया.
आगे मै आपको गुरुवर द्वारा कराई जाने वाली लक्ष्मी सम्मोहन साधना की जानकारी दूंगा. जिसे अपनाकर गिरधर महराज को राहत मिल गई. उनका श्राप पोस्टफोन सा हो गया. वैसे भी लक्ष्मी सम्मोहन करके लोग आर्थिक संकट से बाहर आ ही जाते हैं.
क्रमश…
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.
( साधारण से असाधारण बनने के लिये, सक्षम साधनाओं की दुनिया में प्रवेश करें. इस विषय पर सहयोग के लिये हम सदैव आपके साथ हैं. हमारा सम्पर्क- 9999945010… टीम मृत्युंजय योग)
आपका जीवन सुखी हो, यही हमारी कामना है.