एक गैर जरूरी साधना- 3 (अंतिम)

बेताल मलयुद्ध करके उसे सजा देता था


16265507_360940020959419_2779255179885324349_n.jpgराम राम, मै शिवप्रिया

क्या गैरजरूरी साधनायें की जानी चाहिये. ये एक विचित्र मगर जरूरी सवाल है. इसका जवाब मुझे गुरु जी के निकट शिष्य शिवांशु जी के एक लेख में मिला. उनके लेख को मै यहां उन्हीं के शब्दों में शेयर कर रही हूं.

शिवांशु जी का लेख…

(पिछले भाग का अंतिम हिस्सा….. गुरुदेव समझ गये. मै असहज था. मेरा ध्यान बंटाने के लिये गुरुवर ने अघोरी बाबा से सवाल किया. पूछा बिरजू सोंधे ने कौन सी गैर जरूरी साधना कर डाली. बैताल उसे क्यों सजा दे रहा है. उसे सजा देने का अधिकार कहां से मिला.)

अब आगे….

अघोरी बाबा उठकर खड़े हो गये. गुरुवर से बोले मेरे साथ आइये. गुरुदेव उनके साथ चलने लगे. उनके इशारे पर मै भी साथ चल पड़ा.

अघोरी बाबा के हाथ में मध्यम आकार का त्रिशूल था. उन्होंने रास्ते में बड़े साइज की दो लकड़ियां उठाई. उन्हें अभिमंत्रित किया. फिर हमें दे दीं. एक गुरुवर को एक मुझे.

हम लकड़ियों को डंडे की तरह लेकर चलने लगे. जैसे किसी हमले की आशंका से हथियार पकड़ा हो.

अघोरी बाबा आगे चल रहे थे. उनकी उम्र 60 से अधिक थी. मगर चाल 20-25 वालों सी थी. गुरुवर के कदम उनसे मिल रहे थे. मगर मुझे लगभग दौड़कर चलना पड़ रहा था. एेसा नही था कि मै सुस्त प्राणी हूं. दौरों पर निकले नेताओं और अधिकारियों की चाल भी बहुत तेज होती है. उनके कदम से कदम मिलाकर चलते हुए इंटरव्यूह लेना, न्यूज निकालना आता था मुझे.

मगर अघोरी बाबा की चाल तो बहुत ही तेज थी.

वे शमशान की तरफ जा रहे थे.

शमशान पार करके बबूल के एक पेड़ के नीचे रूक गये.

हम भी रुक गये.

अघोरी बाबा बबूल के पेड़ की तरफ मुखातिब होकर बातें करने लगे. जैसे उस पर कोई बैठा हो.

मुझे लगा कि वे प्रपंच कर रहे हैं. मगर मै गलत था.

कुछ देर बाद उन्हें अपना त्रिशूल बबूल के पेड़ की तरफ करके चेतावनी वाले लहजे में बोले. तू जवाब देगा या मै तुझे अपना जवाब दूं.

उनके इतना कहने पर बबूल के पेड़ में हलचल शुरू हो गई. डालियां हिलने लग गईं. जैसे कोई एक डाली से दूसरी डाली पर कूद रहा हो.

मुझे कुछ नही दिखा. मगर अजीब अहसास हुआ. मै डर नही रहा था. फिर भी शरीर के रोम रोम में सिहरन दौड़ गई. कंपकंपी सी होने लगी. जैसे मै कम वोल्टेज वाले करेंट के सम्पर्क में आ गया हूं. लग रहा था गुनगुना सा करेंट मेरे शरीर में दौड़ रहा है.

एेसा लगातार होता रहा.

गुरुवर की तरफ देखा तो वे स्थिर दिखे.

अघोरी बाबा उत्तेजित थे. गुस्सा उनके चेहरे पर था.

कुछ समय यूं ही बीता.

इस बीच गुरुवर को मेरी दशा का आभास हो गया. उन्होंने मेरा एक हाथ पकड़ लिया. जैसे सहमे हुए बच्चे को संरक्षण देने के लिये पिता हाथ अपने हाथ में ले लेता है. उनके संरक्षण से मै राहत महसूस कर रहा था.

मगर शरीर में झुरझुरी का अहसास फिर भी होता रहा.

अघोरी बाबा बबूल के पेड़ से लगातार बातें कर रहे थे. चेतावनी दे रहे थे.

कई बार पेड़ पर जबरदस्त हलचल हुई. जैसे कोई शक्ति प्रदर्शन करते हुए पेड़ को तोड़ देना चाहता हो.

ये सब 40 मिनट से भी अधिक समय तक चला. गुरुवर मेरा हाथ पकड़े रहे. एेसा न होता तो शायद मै सामान्य न बचता.

फिर पेड़ की हलचल थम गई.

चला गया. अघोरी बाबा बोले और वापस लौट पड़े.

गुरुदेव ने मेरा हाथ छोड़ दिया और अघोरी बाबा के साथ चल दिये.

मै भी.

वापस आकर धूनी के पास बैठकर अघोरी बाबा ने बिरजू और बैताल की कहानी बतानी शूरू की.

उन्होंने बताया कि बेताल काफी समय से बबूल के पेड़ पर रहता था. इस बात की जानकारी बिरजू को हो गई. क्योंकि वो उधर शौच के लिये जाया करता था.

एक दिन बिरजू ने अघोरी बाबा से बैताल सिद्धी करने की इच्छा जाहिर की. वो बबूल वाले बैताल को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहता था.

बाबा ने उसे मना कर दिया. कहा कि ये साधना तेरे जीवन में बैताल की आवश्यकता नही. इसलिये ये साधना तेरे लिये गैर जरूरी है. तुम्हे कोई दूसरी सिद्धी करा दी जाएगी.

मगर बिरजू नही माना. वो अघोरी बाबा के पीछे लगा रहा. भावनात्मक दबाव बनाकर उसने बाबा से बैताल साधना की विधि जान ली.

और साधना शुरू कर दी.

साधना की निर्धारित प्रक्रिया पूरी होने पर बैताल उसके पास आने लगा. मगर बिरजू उसे नियंत्रित नही कर पाया. क्योंकि उसे बेताल से लेने के लिये कोई काम ही नही था. इस बात से उत्तेजित बैताल ने बिरजू से मलयुद्ध शुरू कर दिया. अक्सर ही उसके साथ मल युद्ध करने आ जाता था. जिसमें बिरजू लहू लुहान हो जाता था.

आज तो उसकी हालत मरणासन्न सी हो गई.

अघोरी बाबा ने बताया कि चूंकि बैताल को बिरजू ने सिद्ध किया था, इसलिये साधना नियमों के मुताबिक उसे हटाने के लिये बिरजू की सहमति जरूरी थी।

आज घायलावस्था में बिरजू ने अघोरी बाबा को इसकी सहमति दी.

तो क्या अब बैताल बिरजू से कुस्ती लड़ने नही आयेगा. गुरूवर ने पूछा

नही अब नही आएगा. बिरजू से उसका नाड़ी विच्छेद (लिंक विच्छेद) कर दिया है.

वो अब ये जगह छोड़कर चला गया है.

अघोरी बाबा की बातों को मेरे भीतर का पत्रकार स्वीकार नही कर रहा था. मगर बबूल के पास जो अहसास हुआ. वह मुझे ये सोचने को मजबूर कर रहा था कि कुछ तो एेसा है जिसे मै देख नही सकता, सुन नही सकता. फिर भी उसका वजूद है. वो मेरी समझ से परे है. मेरे तर्कों से परे है. मेरे भौतिक ज्ञान से परे है. विज्ञान से परे है.

मगर कुछ अंजाना है जरूर. बिना छुवे ही जिसकी छुअन ने मेरे रोंगटे खड़े कर दिये थे.

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