बचपन से बड़े होने तक हम कुंडली को विशाल शक्ति के रूप में सुनते आये हैं. निश्चित रूप से कुंडली विशाल शक्ति का भंडार है. ये दैवीय शक्ति की स्वतंत्र यूनिट है. या यूं कहें कि किसी भी व्यक्ति को बिना दैवीय सहायता लिये देवताओं की तरह सक्षम बना देने वाली शक्ति है. चक्रों की उर्जा के साथ मिलकर ये चमत्कार पैदा करती है. ये तब भी काम करती है जब परिश्रम के जरिये जाग्रत होती है, और तब भी काम करती है जब योग साधनाओं के जरिये जाग्रत होती है. इसे जाग्रत करने का तरीका कोई भी अपनाया जाये. मगर इसके काम करने का प्राकृतिक तरीका एक ही है. एेसा बिल्कुल नही है कि साधु संतों की कुंडली अलग तरीके से काम करती हो, सांसारिक लोगों की अलग और अपराधियों की अलग.
21 मई 2016, मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 6
वैज्ञानिक सत्यः आलसी की कुंडली जाग्रत नही हो सकती
प्रणाम मै शिवांशु
गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र तुल्सीयायन महाराज उन दिनों बनारस में कैम्प कर रहे थे. वे सामूहिक रूप से अपने 44 श्रेष्ठ शिष्यों की कुंडली जाग्रत करके उसे ऊपर के चक्रों में मूव कराना चाहते थे। उर्जा जांच के दौरान उनमें 18 सन्यासी कुंडली जागरण के लिये अयोग्य मिले. उनकी अयोग्यता का कारण पूछा गया. गुरुवर ने कुंडली शक्ति के वैज्ञानिक रहस्य से अवगत कराया. जिस सुनकर हम चमत्कृत से हो गये.
अब आगे…
हमारे गुरुदेव उर्जा नायक महाराज ने कुंडली शक्ति का जो वैज्ञानिक सच बताया वो सीधा शिव ज्ञान था. उसे हमने पहले कभी नही सुना था. अध्यात्म और धर्म जानकारों की जानकारी से काफी अलग, मगर सच्चाई के बिल्कुल नजदीक.
गुरुदेव ने बताया कि कुंडली हमारे स्थुल शरीर का भी अंग है. ये एक स्वतंत्र तंत्रिका हैं. जो स्व पोषित इकाई के रुप में जन्म से ही हमारे साथ होती है. यानी इसकी जरुरत जन्मजात होती है. जब आप किसी नरकंकाल को देखें तो कमर के क्षेत्र में जहां दोनों पैरों की हड्डियां जुड़ती हैं, वहां एक प्लेट सी होती है. हड्ड़ी की इस प्लेट के जरिये ही दोनों पैरों का हिस्सा एक दूसरे से जुड़ता है. ये प्लेट ही कुंडली क्षेत्र है. इसके ठीक नीचे कुंडली चक्र होता है.
इसी प्लेट पर कुंडली ( तंत्रिका- एक नस के टुकड़े की तरह) अपने भोजन के इंतजार में पड़ी रहती है. इसका भोजन मस्तिष्क में बनने वाला केमिकल होता है. उसी से कुंडली का प्राकृतिक रूप से जागरण होता है. एेसे में किसी योग, साधना, सदाचरण या किसी विशेष अनुष्ठान या क्रिया की जरूरत नही होती. इसे पाकर कुंडली खुद जाग जाती है और ऊपर की तरफ बढ़ने लगती है.
मस्तिष्क में दो तरह का तरल रसायन लगातार बनता है. एक गरम, दूसरा ठण्डा. ये तरल पदार्थ हमारी इडा और पिंगला नाड़ियों के जरिये मस्तिष्क से बहकर नीचे की तरफ जाते हैं. अंत में ये शरीर के आखिरी छोर कटि क्षेत्र में पड़ी कुंडली तंत्रिका पर बूंद बूंद करके टपकते हैं. इसे ग्रहण करके कुंडली की प्यास बुझती है. उसमें जान आने लगती है. वो लगातार मजबूत और संतुष्ट होती जाती है. फिर एक समय एेसा आता है, जब ये अपनी धुरी पर 90 डिग्री पर खड़ी हो जाती है. इसे ही कुंडली जागरण कहते हैं. जाग्रत होने के बाद इसका ऊपर उठना जरूरी होता है. मस्तिष्क से आ रहा रसायन लगातार मिलता रहे तो कुंडली तंत्रिका ऊपर उठकर शुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर जाती है. फिर सिलसिलेवार मूलाधार और स्वाधिष्ठान क्षेत्र का भेदन करती हुई ऊपर के चक्रों की तरफ बढ़ती है.
कुंडली जगाने वाला मस्तिष्क का ये रसायन हमारे कर्मयोग अर्थात श्रम से पैदा होता है. जब हम फिजिकल वर्क अधिक करते हैं तो मस्तिष्क का दायां हिस्सा सक्रिय होता है. जिससे गरम रसायन पैदा होता है. मगर ये कुंडली को संतुष्ट नही कर पाता. इसे आप एेसे समझें जैसे एक प्यासे व्यक्ति को गरम पानी का गिलास दे दें. वो पानी पी तो लेगा. मगर उससे उसकी प्यास नही बुझेगी.
गुरुदेव कुंडली का वैज्ञानिक रहस्य बता रहे थे. हम सब मंत्र मुग्ध से सुनते जा रहे थे.
उन्होंने आगे बताया. जब हम मानसिक श्रम अधिक करते हैं तो ठण्डा रसायन अधिक बनता है. मगर उससे भी कुंडली संतुष्ट नही होती. इसे आप एेसे समझें जैसे प्यासे व्यक्ति को जीरो डिग्री के आस पास ठण्डा पानी दें. वो उसे ठीक से पी ही नही पाएगा. इसी तरह कुंडली भी उसका सही उपयोग नही कर पाती. जब हम मानसिक और शारीरिक श्रम समान रूप से करते हैं तो ठण्डा और गरम केमिकल बराबर बनते हैं. वे मस्तिष्क से बहते हुए इडा और पिंगला नाड़ियों के अंतिम छोर पर मिलकर सामन्य प्रकृति में आ जाते हैं. कुंडली इसी से संतुष्ट होती है.
यही वो आसान और प्राकृतिक तरीका है जिससे कुंडली न सिर्फ जाग जाती है बल्कि चक्रों का भेदन शुरू कर देती है. जैसे ही ये मूलाधार चक्र का भेदन करती है, वैसे ही व्यक्ति समृद्धि की तरफ बढ़ने लगता है. क्योंकि मूलाधार चक्र समृद्धि का भी केंद्र है. जैसे ही कुंडली स्वाधिष्ठान चक्र का भेदन करती है वैसे ही व्यक्ति द्वारा बनाई योजनायें सफल होने लगती हैं. क्योंकि स्वाधिष्ठान चक्र स्रजन का केंद्र है. जैसे ही कुंडली नाभि चक्र का भेदन करती है वैसे ही व्यक्ति की कामनायें पूरी होती हैं और वो मशहूर होने लगता है. लोगों पर उसकी छाप पड़ने लगती है. लोग उसकी बातों को मानते हैं और उसे फालो करते हैं. एेसे ही अन्य चक्रों के भेदन पर अलग अलग तरह की उपलब्धियां मिलती हैं. जिनके बारे में हम आगे बात करेंगे.
ये कुंडली और उसके जागरण का भौतिक स्वरूप था. जिसे जीवन देने वाले विधाता ने निर्धारित नियम के मुताबिक सबके लिये एक जैसा बनाया है. नियम सिर्फ ये ही कि व्यक्ति को परिश्रमी होना चाहिये. आलसी लोगों की कुंडली कभी नही जागती. इसी तरह आधारहीन बातें करने वाले या फालतु विचारों में घिरे रहने वाले या कन्फ्यूज रहने वाले लोगों की भी कुंडली कभी नही जागती.
गुरुदेव ने बताया कि तनाव कुंडली का सबसे बड़ा दुश्मन है. तनाव में गये लोगों की जाग्रत कुंडली भी निष्क्रिय हो जाती है. क्योंकि तनाव से मस्तिष्क में बन रहा रसायन दूषित हो जाता है. जिसका कुंडली पर बहुत खराब प्रभाव पड़ता है.
गुरुवर बोले अब हम बात करते हैं कुंडली के सूक्ष्म स्वरूप की. जिसकी चर्चा अध्यात्म और धर्म से जुड़े जानकार करते रहते हैं. बचपन से बड़े होने तक हम कुंडली को विशाल शक्ति के रूप में सुनते आये हैं. निश्चित रूप से कुंडली विशाल शक्ति का भंडार है. ये शक्ति की स्वतंत्र यूनिट है. या यूं कहें कि किसी भी व्यक्ति को बिना दैवीय सहायता लिये देवताओं की तरह सक्षम बना देने वाली शक्ति है. चक्रों की उर्जा के साथ मिलकर ये चमत्कार पैदा करती है.
जो लोग जाग्रत कुंडली से काम लेना जानते हैं उनके लिये दुनिया का कोई भी काम नामुमकिन नही.
ये तब भी काम करती है जब परिश्रम के जरिये जाग्रत होती है और तब भी काम करती है जब योग साधनाओं के जरिये जाग्रत होती है. इसे जाग्रत करने का तरीका कोई भी अपनाया जाये. मगर इसके काम करने का प्राकृतिक तरीका एक ही है. एेसा बिल्कुल नही है कि साधु संतों की कुंडली अलग तरीके से काम करती हो और अपराधियों की अलग तरीके से.
गुरुदेव ने बताया भौतिक जीवन जीने वालों का कुंडली जागरण जितना आसान है, सन्यासी जीवन जीने वालों का उतना ही मुश्किल. अद्यात्म की राह पर चल कर कुंडली जागरण और भी कठिन है.
इस बात को सुनकर हम सब चकित हो गये.
और गुरुदेव द्वारा इसका कारण बताये जाने का इंतजार करने लगे.
…. क्रमशः ।
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.
Ati sundar …