प्रणाम मै शिवांशु

सातवें दिन की साधना ने दूसरी दुनिया पहुंचा ही दिया.
कल हमारे दिमाग ब्लैन्क कर दिये गये थे. उसका असर आज सुबह तक था. हम विचार शून्यता को प्राप्त थे. ये इंशान की सबसे श्रेष्ठ स्थिति होती है. अचरच की बात थी कि एक भी विचार हम पर हावी न हो पा रहा था. एेसा लग रहा था जैसे दुनियादारी से हमारा कोई नाता ही नही. किसी व्यक्ति को देखते तो याद आता कि इनका क्या नाम है. आंखों के सामने से हटते ही उसका विचार एेसे गायब हो जाता जैसे उसका हमसे कोई वास्ता ही न हो. किसी चीज को देखते तो याद आता कि इसका क्या उपयोग है. नजरों से हटते ही एेसा लगता मानो उससे कोई लेना देना ही न हो.
हम जान समझ सब रहे थे. मगर संलिप्तता किसी भी चीज से नही हो रही थी. मन एेसे निर्दोष हो चला था जैसे अबोध बच्चे हों. इसे निर्मल स्थिति कहते हैं. इस स्थिति को पाने के लिये ही ज्ञानी लोग सालों साल ध्यान साधना में संलग्न रहते हैं. मगर एक सच्चाई है कि सक्षम गुरु हो तो ये आसानी से मिल जाती है. वरना जन्मों जन्मों तक ये मृगतृष्णा सी सताती है.
मै समझता हूं कि जितने लोग भी साधनाओं सिद्धी की सही राह की तरफ बढ़ते हैं, उन सभी को इस स्थिति की प्राप्ति होती ही होगी. सिद्धी का ये एक अनिवार्य पड़ाव है.
आप में से भी जिनके पास समर्थ गुरु हैं उनमें कई लोग यहां तक पहुंचे ही होंगे.
आज सुबह जब साधना में बैठे तो देवी साधना को लेकर कोई अभिलाषा न थी. बल्कि संतृप्ति थी, निश्चिंतता थी. एेसे जैसे थोड़ी देर बाद भूख लगने वाली हो और मनचाहा खाना पैक किया सामने रखा हो. निश्चिंतता इस बात की कि खाना रखा है. संतृप्ति इस बात की कि मनचाहा खाना हमारी पहुंच में हैं.
मै समझता हूं कि आप में से भी समर्थ गुरुओं के सानिग्ध में साधना करने वालों ने साधना के प्रति ये संतृप्ति, ये निश्चिंतता जरूर अनुभव की होगी.
आज की साधना शुरू हुई.
तकरीबन 20 मिनट बाद मै फिर ब्लैन्क हो गया. मगर आज और कल की स्थितियों में फर्क था. आज मेरी इंद्रियां काम कर रही थीं. मै सोच भी पा रहा था. समझ भी पा रहा था. महसूस भी कर पा रहा था. प्रतिक्रिया भी कर पा रहा था. मगर विचार मेरे नियंत्रण में न थे. इस कारण भावनायें भी मेरे वश में न थीं.
यहां उल्टा हो रहा था. प्रायः भावनाओं के कारण विचार पैदा होते हैं. मगर अभी विचारों के कारण भावनायें अपना रूप बदल रही थीं. कुछ देर तक मैने अपने सोचने की दिशा तय करने की कोशिश की. मगर बार बार बल पूर्वक दूसरी दिशा में खींच लिया जाता था.
इसी रस्साकशी में गुरुदेव का मानसिक संदेश पहुंचा. जिसे मेरे मस्तिष्क ने पढ़ा. वे कह रहे थे * क्या जरूरी है हर समय बुद्धिजीवियों वाली हरकतें ही करो. कुछ समय के लिये खुद को फ्री छोड़ दो.*
मै सतर्क हो गया. इसका मतलब था कि गुरुवर भी साधना पर नजर रखे थे. मैने तुरंत संघर्ष रोक दिया और खुद को महराज जी की मानसिक तरंगों के हवाले कर दिया.
फिर मै शून्य में उतरता चला गया. लगातार गहराई में जाता रहा. पर मेरी इंद्रिया सक्रिय थीं. कुछ देर बाद भीनी भीनी खुशबू का अहसास हुआ. जो साधना पूरी होने तक होता रहा. जैसे दिव्य खुशबू मेरी सांसों में घुल गई हो.
दो घंटे की साधना के बाद दृश्य दिखने लगे. जैसे मै डिजिटल टी. वी. प्रोग्राम देख रहा हूं. सीन इतने क्लीयर कि मै चीजों पर पड़े धूल के कण भी देख सकता था. दृश्यों की पुष्टि के लिये मैने कई बार आंखें भी खोलीं. दोबारा आंखें बंद करने पर वे दृश्य वहीं से आगे बढ़ते दिखे. जैसे कोई सीरियल चल रहा हो. आंखें खुलते ही रुक जाता, बंद करते ही चल पड़ता. शुरूआत में तो बड़ी उत्सुकता हुई. मगर बाद में सामान्य लगने लगा. जैसे रास्ते पर चल रहा हूं और आस पास की चीजें दिख रही हों.
लेकिन वे आस पास की चीजें न थीं.
शुरूआत किसी और देश की सड़कों से हुई. वहां के लोग चलते चले जा रहे थे. कई बार उनके बीच मै खुद भी चलता दिखा. जैसे सपने में खुद को देख रहा हूं. उसके बाद पेड़, पानी और पहाड़ दिखने लगे. आसमान और फिर अंतरीक्ष.
यात्रा जारी थी.
दूसरे आयाम की दुनिया में प्रवेश हुआ. वहां के रास्ते, वहां के लोग, वहां का वातावरण. सब कुछ एेसे चल रहा था जैसे मै एनीमेटेड मूवी देख रहा हूं. दिव्य पर्यटन का आनंद आ रहा था.
विज्ञान से जुड़े लोगों से मै कहना चाहुंगा कि ये मेरी कल्पना नही थी और न ही स्वप्न था.
दिख रहे दृश्यों की खास बात ये थी कि मै किसी से बात नही कर पा रहा था. जैसा कि मैने पहले बताया मै सोच सकने की स्थिति में था. सो मैने दूसरी दुनिया के आयामों में दिख रहे लोगों से कई बार बात करने की सोची. मगर उनका कोई जवाब न मिला. जैसे वे मुझे देख ही न रहे हों. एक खास बात और थी जहां जहां के दृश्य दिखे वहां कोई वाहन चलता नजर नही आया. एेसा तब भी हुआ जब धरती के कुछ देशों के दृश्य दिखे.
दिख रहे लोग दुसरी दुनिया के हैं. ये को पता चल रहा था. मगर उनका रूप रंग चित्रों, ग्रंथों में वर्णित देवी- देवताओं, दैत्यों-राक्षसों जैसा बिल्कुल न था.
सांतवे दिन का मंत्र जाप पूरा होने के लगभग एक घंटे पहले मेरी चेतना वापस लौटी.
खुद को धरती पर ही पाया.
अगले एक घंटे तक सामान्य रूप से मंत्र जाप करता रहा. तब मेरे दिमाग पर किसी का कंट्रोल महसूस नही हुआ. शायद साधना सिद्धी के लिये मस्तिष्क की अनिवार्य प्रोग्रामिंग की जा चुकी थी.
हम खुद को आठवें दिन की साधना के लिये तैयार करने लगे.
जय माता की.
क्रमशः.
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.