प्रणाम मै शिवांशु
पांचवे दिन की साधना तय समय पर शुरू हुई. सभी साधक सफलता के प्रति निश्चिंत थे.
अब तक सबकी अनुभूति लगभग एक जैसी थी. इसका मतलब था हम सही दिशा में बढ़ रहे थे. आज साधना में ब्रह्मांड के अनजाने आयामों को भेदकर उनके पार जाना. फिर वहां से इच्छानुसार वापस आना था.
उर्जा विज्ञान में गुरुदेव मुझे इस बारे में पहले ही बता चुके थे. हमारे उर्जा चक्र दूसरी दुनिया से जुड़ने का रहस्य समेटे हैं. हर चक्र पर सुरक्षा जाली होती है. ताकि इनके भीतर अवांछित नकरात्मक तत्व न घुस सकें. बोलचाल की भाषा में नकारात्मक तत्वों को ऊपरी बाधा कहा जाता है. जैसे भूत-प्रेत, ब्लैक मैजिक आदि. ये मौका मिलते ही चक्रों के भीतर घुसने की कोशिश करते हैं. कई बार ये सुरक्षा जाली कुतरकर चक्रों के भीतर घुस जाते हैं. तब व्यक्ति की इंद्रियों पर कब्जा कर लेते हैं. एेसे में प्रभावित व्यक्ति बेतुकी गतिविधियां करते हैं.
नकारात्मक तत्व अगर कान के उर्जा चक्रों की सुरक्षा जाली कुतर देते हैं. तो एेसे व्यक्ति को लगातार आवाजें सुनाई देती हैं. जो बेकाबू होने के कारण परेशानी का कारण बनती हैं. ये एक बीमारी की तरह है. क्योंकि पीड़ित व्यक्ति अपनी इच्छा से इन आवाजों को रोक नही सकता.ये लम्बे समय तक दुख, तनाव, विद्रोह, फ्रस्टेशन में रहने या साधनायें बिगड़ने के कारण होता है.
जबकि सही साधक साधना के द्वारा अपनी मरजी से कान के चक्रों की जाली को खोलकर ब्रह्मांड के दूसरे आयाम से जुड़ जातें हैं. वहां की आवाजें सुनकर मनचाही जानकारियां एकत्र करते हैं. काम होने के बाद चक्रों को बंद करके अपनी दुनिया में लौट आते हैं.
इसे ही सिद्धी कहते हैं.
जब नकारात्मक तत्व किसी की आंखों के चक्रों की सुरक्षा जाली को कुतर दें. तो एेसे लोगों को अज्ञात दृश्य दिखने लगते हैं. उन्हें परछाई दिखती हैं. कुछ को पूर्वज दिखते हैं. कुछ को भूत-प्रेत दिखते हैं. कुछ को देवी देवता दिखते हैं. दरअसल वे देवी देवता नही होते. बल्कि नकारात्मक तत्व अपने शिकार को भ्रमित करने के लिये उनका रूप बनाकर सामने आते हैं. ये परेशानी पुरानी होने पर पीड़ित व्यक्ति लगातार दूसरी दुनिया से जुड़ा रहता है. उसे वहां के लोग दिखते रहते हैं. वो उनसे बातें करते हैं. जिसके कारण पीड़ित व्यक्ति हवा में बातें करता सा प्रतीत होता है. लोग उसे पागल समझते हैं. मगर वो पागल नही होता. बल्कि दूसरे आयाम से जुड़ा होता है. ये बड़ी बीमारी है. क्योंकि पीड़ित व्यक्ति अपनी मरजी से चक्रों के छेद बंद नही कर पाता. और लगातार अदृश्य लोगों के सम्पर्क में रहता है. बेतुकी गतिविधियां करता नजर आता है.
मनोचिकित्सक इसे हैलोसिनेशन कहते हैं. मगर वे उन्हें ठीक नही कर पाते. तांत्रिक भी इन्हें नही ठीक कर पाते. क्योंकि उन्हें चक्रों को ठीक करना नही आता. ये लम्बे समय तक दुख, तनाव, विद्रोह, फ्रस्टेशन में रहने या साधनायें बिगड़ने के कारण होता है.
दूसरी तरफ साधक अपनी मरजी से आंखों के चक्र खोलकर दूसरी दुनिया को देख लेते हैं. वहां से जुड़कर मनचाही जानकारियां ले लेते हैं. काम होने के बाद चक्रों को बंद करके अपनी दुनिया में लौट आते हैं.
इसे ही सिद्धी कहते हैं.
कई बार नकारात्मक तत्व कुछ लोगों के हाथों के चक्र काट देते हैं. एेसे में प्रभावित लोग दिन भर हाथ साफ करते रहते हैं. या घंटों नहाते रहते हैं. बेतुके तरीके से अवांछित सफाई में लगे रहते हैं. मनोचिकित्सक इसे डिप्रेशन कहते हैं. मगर वे इन्हें ठीक नही कर पाते. एेसे लोगों को दसियों साल तक दवाएं खिलाई जाती रहती हैं. तांत्रिक इसे प्रेत बाधा बताते हैं. मगर वे भी इन्हें ठीक नही कर पाते. क्योंकि उन्हें उर्जा चक्रों के छेद भरने नही आते.
चक्रों की सुरक्षा जाली को अपनी मरजी से खोल लेना और अपनी मरजी से दोबारा बंद कर लेने को ही सिद्धी कहा जाता है. जबकि उन्हें अपनी मरजी से बंद न कर पाने को ऊपरी बाधा कहा जाता है.
जो लोग साधनायें करते हैं. उन्हें इस बारे में बहुत सतर्क रहने की जरूरत होती है. क्योंकि साधना के दौरान आमंत्रित विशाल उर्जायें चक्रों की सुरक्षा जाली पर दबाव बनाती हैं. इस दबाव के कारण चक्र अक्सर उन्हें अंदर आने का रास्ता दे देते हैं. मगर आमंत्रित उर्जाओं का प्रवाह लगातार बने रहने पर चक्रों की सुरक्षा जाली में विकृत्ति उत्पन्न हो जाती है. जिससे सुरक्षा जाली कमजोर हो जाती है. नकारात्मक तत्व उसमें छेद बनाकर भीतर घुस जाते हैं. ये खतरनाक है. एेसे में साधक सिद्धी पाने की बजाय ऊपरी बाधा का शिकार हो जाते हैं.
सक्षम गुरु की देखरेख के बिना की गई 1000 साधनाओं में से 970 से भी ज्यादा मामलों में एेसा ही होता है. इस विकृत्ति का शिकार साधक और उनके परिवार के लोग बार बार परेशानी में घिरे रहते हैं. कई बार वे जीवन भर इस परेशानी से नही निकल पाते. ऊपर से प्रतीत होता है कि वे दूसरों की परेशानी दूर करने में सक्षम हैं. मगर सच्चाई ये है कि वे खुद की ही परेशानी खत्म नही कर पाते.
सक्षम गुरु ही दूसरे आयाम से जुड़ने के बाद साधक को सुरक्षित अपने आयाम में लौटना सिखा सकता है. पांचवे दिन की देवी महासाधना में मेरे साथ के साधकों को यही सीखना था. मेरे लिये ये नया नही था. उर्जा विज्ञान की तकनीक के जरिये गुरुवर ये मुझे पहले ही सिखा चुके थे.
मगर मै तब दंग रह गया जब पांचवे दिन की साधना के दौरान खुद के मस्तिष्क पर कंट्रोल होता पाया. वे महराज जी थे. जो मेरे दिमाग को अपने कंट्रोल में ले रहे थे. मै सोच भी नही सकता था कि मंत्रों के जरिये भी इतने प्रभावशाली तरीके से किसी के दिमाग को नियंत्रित किया जा सकता है. मै जान रहा था कि एेसा किया जा सकता है. मै इससे बचना भी जानता था. मगर बच न सका.
मंत्र जाप करते हुए लगभग 4 घंटे हुए होंगे. जब मेरा दिमाग नियंत्रित कर लिया गया. अब मै अपनी मरजी से कुछ नही कर पा रहा था. बस मंत्र जाप चलता रहा. महाराज जी ने दूसरे आयाम में प्रवेश से पहले सभी साधकों को अपने नियंत्रण में ले लिया था. ताकि साधक दूसरी दुनिया में भटक न जायें. ये हमारे हित में था.
अब हम ब्रह्मांड यात्रा पर थे. अपनी मरजी से विभिन्न आयामों में प्रवेश करते और वापस आते रहे. हर जगह देवी शक्ति का अहसास साथ था. उनसे रिश्ता गहराता ही रहा.
मंत्र जाप पूरा होने से कुछ ही देर पहले पता चला कि साधक अपनी मरजी से ब्रह्मांड भ्रमण नही कर रहे थे. बल्कि महराज जी जहां जहां ले जा रहे थे. हमारी चेतना वहीं जा रही थी.
कल जो आवाजें सुनाई दे रही थीं. आज उनके साथ ही कई बार किसी के आस पास होने का अहसास भी होता रहा. पांचवे दिन की साधना पूरी होने के बाद मै सोचता रहा कौन था जो मेरे आस पास घूम रहा था. साथी साधकों से पूछा तो पता चला उनके साथ भी कुछ एेसा ही हुआ.
छठे दिन की साधना में पता चलने वाला था कि कौन था हमारे आस पास.
क्रमशः.
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.
Ram ram ji….
Kal ki devi mahasadhna me 3rd eye chakra per kuch pain feel hua….or jaise 2 mantra jaap me krta raha bohot jor 2 se ubasai ane lagi jo jab tak nahi ruki jab tak mai mantra jaap karta raha..
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