अपने समर्पण को गुरु पर एहसान न समझें.
प्रणाम मै शिवांशु…
दो बरस की तड़पन मेरे लिये बड़ी दुखदायी थी. हर दिन दुनिया में होते हुए भी लगता था कि यहां मेरा कोई नही. इतनी छटपटाहट तो शायद प्रेम सम्बंधों की जुदाई में भी न होती होगी.
दो सालों में खुद से एक सवाल 2 हजार से भी अधिक बार पूछा. मुझे या किसी को साधना सिद्ध कराने के पीछे गुरुदेव के मन में क्या लालच पैदा किया जा सकता है. धन देकर या उनकी सेवा करके. अच्छे भोजन का लालच या आभूषण का लालच. उनकी जय जयकार का लालच या उनको सम्मानित करके.
जवाब न मिला.
खुद से जो जवाब मिलते थे वे कुछ यूं थे – जो हमें धनवान बनने की साधना सिद्ध करा सकते हैं. वे अपने जीवन में धन तो खुद ही उत्पन्न कर लेंगे. साधक के धन की उनको जरूरत कहां. जो ब्रह्मांडीय शक्तियों को सिद्ध करा सकते हैं उन्हें साधक की सेवा की जरूरत कहां. वे तो खुद ही दूसरों की समस्यायें हल करते रहते हैं. जिन्होंने कई सालों से भोजन ही छोड़ रखा है उनको साधक के भोजन की जरूरत ही कहां. जो आभूषण पहनते ही नहीं उन्हेंसाधक के आभूषण की जरूरत ही कहां. जो अपनी साधना की खातिर एकांत को अधिक पसंद करते हों उन्हें साधक के जयकारे की जरूरत ही कहां. जिनके साथ नाम जुड़ जाने भर से किसी का सिर फक्र से उठ जाता हो उसे साधक के सम्मान की जरूरत ही कहां.
तो क्या गुरुवर को अब कभी मेरी जरूरत नहीं पड़ेगी. वे कभी मुझे अपने पास न आने देंगे. बस यही वो विचार था जिससे मै तड़प जाता था. हर वक्त सोचता था एेसा क्या करूं, एेसा क्या दूं जो उन्हें रिझा सके.
ईश्वर हों तो उन्हें प्रार्थनायें करके मना लूं. पर ये तो ईश्वर तक पहुंचने की राह हैं. जो दूसरों को ईश्वर तक पहुंचाने की राह आसान कर देता हो उसे कोई देना भी चाहे तो क्या दे? इन सवालों ने मुझे हरा दिया. भौतिक जीवन में एेसा कुछ भी नजर न आया जिससे मै गुरुवर को अपनी तरफ आने को विवश कर सकता.
एक दिन बिठूर में मुझे एक सिद्ध संत मिले. मुझसे पूछा कोई गहरा दुख लेकर घूम रहे हो. मै कोई मदद करूं! मैने स्वीकार किया कि गहरे दुख में हूं. और उन्हें पूरी बात बता दी.
संत ने कहा भगवान को भक्ति और गुरु को विश्वास से जीता जा सकता है. गुरु के प्रति अटल विश्वास ही उन्हें रिझा सकता है. उन्हें कभी भी अपने टाइम टेबुल में उलझाने की कोशिश मत करो. जब तक पात्रता सुनिश्चित नही होगी तब तक कोई भी सक्षम गुरु साधना की अनुमति न देगा. अध्यात्म की दुनिया में जिससे मांगने गये हो उसे कुछ दे सकते हो एेसा गरूर मत पालो. गुरु के हृदय में स्थान पा लोगे. जब बात उच्च साधनाओं की हो तो इच्छाओं और साधनाओं की एक दूसरे में मिलावट मत करो. ध्यान में रखो जब साधना सिद्ध होगी तो इच्छायें खुद ही पूरी हो जाएंगी.
मैने उनसे एक और सवाल पूछ लिया. गुरुवर से सम्पर्क कैसे हो. उन्होंने कहा अपने गुरु के गुरु भगवान शिव से प्रार्थना करो.
मैने की.
सफलता मिल गई.
एक दिन गुरुवर का मैसेज आया. लिखा था मेरी फ्लाइट रात 10 बजे अमौसी एयर पोर्ट पर लैंड करेगी. आकर मिलो.
सत्यम शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.