मृतात्मा से मेरा पहला सम्पर्क..अंतिम
जब डेंजर जोन में मेरी जंदगी अटक गई…
राम राम मै शिवांशु
संजीवनी उपचार में किसी भी मृत व्यक्ति से सम्पर्क का सबसे खतरनाक पहलू है *डेंजर जोन *. आप सब जब इसे करेंगे तो सावधान रहना होगा. डेंजर जोन में 30 सेकेंड से अधिक अटके तो मस्तिष्क की नशें फट सकती हैं, कोमा में जा सकते हैं. मृत्यु हो सकती है. इन सबसे बचे तो मानसिक विक्षिप्त तो हो ही जाएंगे. इसे 14 सेंकेंड के भीतर पार करना होता है. मै वहां 27 सेकेंड फंसा रहा. गुरुदेव ने बचा तो लिया, मगर बाद में इसके लिये मुझे कड़ी सजा दी.
सुभाष के मर चुके गुरु भगत जी से सम्पर्क की तैयारी हो गई.
गुरुदेव ने निर्देश देने शुरू किये और मैने उनका पालन. कुछ लम्बी और गहरी सांसें लेकर आंखें बंद कर लीं.
गुरुदेव ने कहा अपने कुंडली चक्र को उत्तेजित करके उसकी उर्जा का प्रवाह सहस्रार चक्र की तरफ ले जाओ. मैने एेसा ही किया. दोनों चक्रों की उर्जाओं का मिलान हुआ तो लगा मेरे भीतर भूचाल आ गया. कुछ ही क्षणों में मेरे सिर के ऊपर उर्जा का तेज बवंडर बन गया. जिसका केन्द्र सहस्रार था. प्रतीत हो रहा था बवंडर की नोक भाले की तरह सिर को छेदकर बीच से फाड़ देगी.
मै भारी दबाव और पीड़ा में था.
यहां आपको बताता चलूं की ये क्रिया कुंडली जागरण की स्थिति का एक हिस्सा है. अगर सक्षम गुरु की देख रेख के बिना कोई व्यक्ति इस दशा में पहुंच जाये तो वह विक्षिप्त हो जाता है. और जीवन भर ठीक नही हो पाता.
उर्जा समूह को तीसरे नेत्र के बीच से नीचे उतारो. गुरुदेव ने अगला निर्देश दिया. मैने वैसा ही किया. उर्जा का बवंडर मेरे तीसरे नेत्र को चीरता हुआ आज्ञा चक्र पर आ गया. अब उसका केंद्र आज्ञा चक्र था. उसकी तेजी से आज्ञा चक्र की सक्रियता सैकड़ों गुना बढ़ गई. लगा कि मस्तिष्क खंड खंड हो जाएगा. दिमाग की नशें चटखती सी प्रतीत हुईं. लग रहा था मानो खून नशों को फाड़कर बाहर बिखर जायेगा. होश में होते हुए भी मै अचेतन में पहुंच गया.
यही है संजीवनी उपचार का डेंजर जोन.
मुझे 14 सेंकेंड के भीतर इस स्थिति से बाहर निकलना था. मैने अतिरिक्त उर्जाओं को आज्ञा चक्र की सभी पंखुड़ियों पर जल्दी जल्दी बिखेरना शुरू किया. 14 सेकेंड पार हो गए. फिर 20 सेकेंड गुजर गये. लेकिन सभी पंखुड़ियों पर उर्जा का प्रवाह समान न हो सका. शायद मेरी हड़बड़ी इसका कारण थी. समय बीत रहा था. अगर इसमें 30 सेकेंड से ज्यादा लगे तो दिमाग की नशें फट सकती थीं. मै कोमा में जा सकता था. मेरी मृत्यु हो सकती थी. इन सबसे बचता तो मानसिक रूप से विक्षिप्त तो हो ही जाता.
मै अटक गया था. 25 सेकेंड पार हो गये. हालात मेरे नियंत्रण में न थे. मै लाचार हो चला. मन में मृत्यु की कल्पना उमड़कर डराने लगी.
बस गुरुवर साथ थे तो निश्चिंत था, वे मरने न देंगे.
27 सेकेंड बीत गए. एक तेज झटका लगा. मै समझ गया. गुरुदेव ने मेरे आज्ञा चक्र से अतिरिक्त उर्जाओं को बल पूर्वक हटा दिया है.
मै सामान्य हो गया. मै बच गया.
10 मिनट तक प्राणायाम करके खुद को स्थिर करता रहा. मन ही मन जिंदा होने की खुशी मनाता रहा.
अब पूरी क्रिया मुझे दोबारा करनी थी. इस बार चूक नही हुई. 12 सेकेंड में डेंजर जोन पार करके खुद पर काबू पा लिया.
अब तेज रफ्तार आज्ञा चक्र मेरे वश में था. तभी गुरुवर का अगला निर्देश सुनाई दिया अपने आज्ञा चक्र की प्रोग्रामिंग करो. वो अनाहत से मिलने वाले सभी संदेशों को मन की गति से डिकोड करे. साथ ही तुम्हारे संदेश अनाहत को पुनः प्रसारित करने के लिए सिलसिलेवार देता रहे. मैने प्रोग्रामिंग कर दी.
अब अपने अनाहत चक्र की प्रोग्रामिंग करो. वह मन की गति से भगत जी से सम्पर्क स्थापित करे. उनके संदेश लेकर आज्ञा चक्र को दे और आज्ञा चक्र के संदेश उन तक पहुंचाये. मैने प्रोग्रामिंग कर दी.
तलाश शुरू हो गयी. मेरे अनाहत चक्र ने कुछ ही क्षणों में भगत जी को ढ़ूंढ़ लिया.
क्यों परेशान किया जा रहा है मुझे. सम्पर्क में आते ही भगत जी ने कड़ी आपत्ति की. मैने भगत जी की बात को अपने होठों से दोहराया. ताकि गुरुवर उनकी बातें सुने और अगले कदम के लिये मुझे निर्देशित करते रहें.
-हमें आपकी मदद चाहिये.
-नहीं मै नहीं करना चाहता किसी की मदद.
-इसमें आपके परिवार का हित है.
-अब मेरा कोई परिवार नहीं.
-सवाल आपके शिष्य के जीवन का है.
-अब मेरा कोई शिष्य नहीं.
-फिर भी हमें आपका सहयोग चाहिये.
-ये तो अपनी शक्तियों का मुझ पर दुरुपयोग कर रहे हैं आप.
-क्षमा करें, लेकिन एेसा करना जरूरी है. कई जिंदगियों का सवाल है.
-ठीक है मुझे स्थान दो. भगत जी की इस बात के साथ ही कमरे में उनकी उपस्थिति का अहसास होने लगा. मैने आंखें खोल लीं. क्योंकि वे मेरे आभामंडल के दायरे में आ चुके थे. अब मेरी मर्जी के बिना वापस नही जा सकते थे. गुरुवर के इशारे पर मैने उन्हें खाली पड़े फूलों का आसन ग्रहण करने का इशारा किया. आंखों से न दिखते हुए भी आसन पर किसी के होने के साफ संकेत मिलने लगे.
-सुभाष का जीवन नर्क हो चला है. मैने भगत जी से कहा.
-ये दुर्दशा के ही लायक है, जो हो रहा है वो इसके कर्मों की जरूरी सजा है.
-आप तो गुरु रहे हैं, जानते हैं मृत्यु पर किसी का जोर नहीं. हो सकता है इलाज के बाद भी आपकी मृत्यु हो जाती.
-मुझे अपना इलाज न हो पाने का रोष नही है. मृत्यु को टाला नही जा सकता था. मगर इसने निर्दोषों को परेशान किया.
-सुभाष प्रायश्चित को तैयार है. इससे आपके मोक्ष की राह भी खुल जाएगी.
-अब मुझे इस पर यकीन नहीं. हां आपके गुरु की शक्तियों पर भरोसा हो रहा है. अगर वे वचन दें तो मै इसे माफ कर सकता हूं.
-मै वचन देता हूं. गुरुवर ने फूलों के आसान की तरफ देखते हुए कहा. अगर सुभाष ने आपके परिजनों के साथ न्याय न किया तो मै वचन देता हूं कि इसकी जिंदगी में मौत से भी भयानक तबाही उत्पन्न कर दूंगा.
-अब मै निश्चिंत हुआ. भगत जी भावुक से हो गये. अब मुझे मुक्ति मिल जाएगी. गुरुवर से बोले आपका यश संसार में फैलेगा.
वे चले गये. सुभाष गुरुवर के कदमों में गिर गया और बोला मुझे अपना शिष्य बना लीजिये. गुरुवर ने इंकार कर दिया. कहा मैने भगत जी को जो वचन दिया है उसके लिये आपके पास 24 घंटे हैं.
मै फ्लैट की चावी तो बिट्टू भगत को आज ही दे दूंगा. मगर सुरेंद्र जी को देने के लिये मेरे पास अभी 23 लाख नही हैं. सुभाष ने मजबूरी जताई.
गुरुदेव ने उसे सख्त निगाहों से देखा और कहा ये विषय मेरा नही. आपके पास सिर्फ 24 घंटे ही हैं.
हम मेरठ से लौट गए. दूसरे दिन गुरुवर के मित्र ने सूचना दी कि सुभाष ने सुरेंद्र को 23 लाख भी दे दिये हैं.
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिवगुरु को प्रणाम.
गुरुवर को नमन.