गुरुदेव की एकांत साधना: वृतांत…12

राम राम मै अरुण
गुरुदेव की एकांत साधना
शिवांशु जी की बुक से साभार….

गुरुवर की साधना का 27 वां दिन.
गुरुदेव के तप की ऊर्जाएं मै स्पष्ट महसूस कर रहा हूँ. हर क्षण उनकी तरफ खिंचा जाता हूँ. उनको देखने, उनके साथ बैठने, उनसे बातें करने और उत्तरोत्तर कुछ सीखते रहने की चाहत बढ़ती चली जा रही है.
उनकी कठिन तप की क्षमता और उसके परिणाम देखकर बार बार मन में भ्रम सा होने लगता है जैसे इससे पहले मै उनके बारे में अनजान था.

कल योगिनी से बात करने के बाद, उन्होंने दिल्ली आश्रम के निटक सहयोगी अरुण जी से कुछ देर फोन पर बात की। उन्हें कुछ निर्देश दिये। उसके बाद से उनका मौन जारी है।
वे 15 को दिल्ली आश्रम पहुंच जाएंगे। 17 को उनकी शादी की सालगिरह है। सो गुरुमइया और दोनो बिटिया भी उनके साथ दिल्ली जा रही हैं। मेरा भी बहुत मन था। उनके साथ दिल्ली जाने का। मगर गुरुदेव ने मुझे तुरंत मारीशस जाने का निर्देश दिया है।
वहां गुरुवर का नया आश्रम बनाया जाना है। गुरुवर के फालोअर और मेरे कई मित्र मारीशस में हैं. जो लम्बे समय से वहां गुरुदेव का आश्रम बनाने का अनुरोध कर रहे थे. इस बार गुरुदेव ने उन्हें अनुमित दे दी है।

इस बीच गुरुदेव ने ग्रुप के सभी लोगों को सख्त हिदायत दी है कि कोई भी उनकी तुलना भगवान् से न करे. उनका कहना है * शीश तो शिव जी के चरणों में ही झुकाएं. उन्हें ही अपना गुरु भी बना लें. मै तो बस उनका सेवक हूँ. उनकी इच्छा पर आप सबकी भी सेवा में हूँ. और सदैव आपके साथ हूँ. *

सत्यम शिवम् सुंदरम
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुदेव को नमन.

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