
● साधना के दौरान देवी कभी भी आ सकती हैं
● आते ही उन्हें गुलाब माला पहनाकर उनसे जीवन भर साथ रहने का वचन लें
● इसलिये साधना में गुलाब की 2 माला पास रखें
● जप के दौरान घुंघुरुओं की या संगीत की आवाज सुनाई दे तो विचलित न हों
● जप के समय किसी के आसपास होने या छूने का अहसास हो तो भी जप न रोकें
● किसी के पास आकर बैठने का अहसास हो तो भी जप न रोकें
ये साधना क्या क्या दे सकती है
● राज सुख के लिये विशेष प्रभावी
● ज्ञात अज्ञात बताने वाली यक्षिणी सिद्धि
● धन, यौवन, आरोग्य, समृद्धि, सुख प्राप्ति
● देव संपर्क की क्षमताओं की स्थापना
सुर सुंदरी नाम की यक्षिणी अति शक्तिशाली यक्षिणियों में से हैं। उन्हें ब्रह्मांड के सभी सुख देने में सक्षम माना जाता है। खुश होने पर देवी साधक को राजाओं जैसा बना देती हैं। यक्षिणी सिद्धि का ऋषि विधान युगों से अचुक साबित होता आया है। यहां दिये ऋषि विधान से नये साधक भी सरलता पूर्वक साधना सम्पन्न कर लेते हैं।
यक्षिणी साधना का 3 दिन का सरल ऋषि विधान
यक्षिणी सिद्धि का ऋषि विधान
गुरु शिष्य परम्परा के तहत एक से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचने वाला यह विधान एनर्जी गुरू श्री राकेश आचार्या जी को हिमालय साधना के दौरान सिद्ध संतों से प्राप्त हुआ। उन्होंने साधकों के लिये आज के समय के अनुसार इसे सरल करके प्रस्तुत किया है। जिससे साधक प्रभावशाली तरीके से इसका लाभ उठा सकें।
ऋषि विधान में साधना मंत्र को साधक के आभामंडल के साथ जोड़ दिया जाता है। मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, सौभाग्य चक्र, थर्ड आई चक्र और अनाहत चक्र में स्थापित कर दिया जाता है।
इसके दो तरीके अधिक प्रचलित हैं।
एक यह कि साधक साधनाः से पहले 19 दिन तक साधना के मंत्र से प्रतिदिन 108 आहुतियां दें। उससे पहले रोज नवग्रहों की 21-21 आहुतियां देकर अपने सूक्ष्म शरीर में पंचतत्वों को स्ट्रांग करें। हवन में नवग्रह संविधा और अनार दानों का उपयोग करें। साधक खुद यज्ञ करना न जानते हों तो किसी सक्षम कर्म कांडी विशेषज्ञ के साथ मिलकर इसे पूरा करें।
इसे न कर सकें तो दूसरा तरीकाः
इसका दूसरा तरीका है सिद्ध उर्जा उपकरण। इसके लिये विद्वान जड़ी, बूटियों, रत्नों, माला, कंठी, यंत्रों व कई अन्य तरह की अलौकिक उर्जा देने वाली प्राकृतिक चीजों का उपयोग करते हैं। इनमें सिद्ध हुआ यक्षिणी यंत्र बहुत प्रभावशाली होता है। सिद्ध यंत्र धारण करते ही साधक के आभामंडल को यक्षिणी के आभामंडल के साथ जोड़ देता है। साधना के दौरान साधक के आभामंडल को लगातार यक्षिणी के आभामंडल के साथ जोड़ कर रखता है। ब्रह्मांड से यक्षिणी सिद्धि की उर्जायें ग्रहण करके साधक के सूक्ष्म शरीर में स्थापित करता है। उर्जा चक्रों में स्थापित करता है।
इसे विशेष ऋषि विधान से सिद्ध करें। खुद न कर सकें तो किसी सक्षम विशेषज्ञ से करा लें। चाहें तो दिये लिंक द्वारा मृत्युंजय योग संस्थान से भी सिद्ध करा सकते हैं।
आगे के लिंक से रजिस्ट्रेशन कराने पर हमारे सहयोगी आपसे संपर्क करेंगे। यंत्र सिद्धि अनुष्ठान हेतु आपकी डिटेल लेंगे। एनर्जी गुरु श्री राकेश आचार्या जी के मार्गदर्शन में यंत्र सिद्ध करके आपको भेजा जाएगा। साधना में मार्गदर्शन हेतु जरूरत के अनुसार आपकी गुरुजी से बात कराई जाएगी।
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1 - साधना मन्त्र
ॐ ह्रीं सुर सुंदरी आगच्छ आगच्छ स्वाहा
2- जप माला... स्फटिक या शंख माला
3- आसान... पीला या लाल
4- वस्त्र... साफ, सुगंधित सफेद या पीले
5- दीपक... सरसों के तेल का (थोड़ा कपूर मिला लें)
6- भोग... दूध से बनी मिठाई
7- बलि... रोज नीबू बलि दें
इसके लिये बेदाग नीबू को बीच से चीर दें। उसमें थोड़ा कपूर रखकर जला दें। बलि से साधना में रुकावट बनने वाली आंतरिक और बाहरी नकारात्मक उर्जायें खत्म हो जाती हैं।
इसलिये बलि मन्त्र जप शुरू करने से पहले दें।
8- योग... साधना से पहले कम से कम 5 मिनट का योग या एक्सरसाइज करें।
कुछ न आता हो तो 5 मिनट ताली बजाएं। इससे स्थूल शरीर ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं को ग्रहण करने लायक सक्षम बन जाता है।
9- प्राणायाम... साधना के शुरू में 5 मिनट का प्राणायाम करें।
प्राणायाम में लंबी और गहरी सांस ली जाती है। थोड़ी देर रोकी जाती है। फिर धीरे धीरे छोड़ी जाती है। फिर थोड़ा रिलैक्स होकर इसे दोहराया जाता है।
इससे सूक्ष्म शरीर ब्रह्मांड से मन्त्र की ऊर्जाओं को ग्रहण करने में सक्षम बनता है।
10- जप की दिशा और समय
उत्तर मुख।
इसके लिये रात 10 बजे के बाद कोई समय अधिक उपयुक्त माना जाता है। जिनके पास रात का समय नही वे सुविधानुसार कोई भी टाइम फिक्स कर लें।
11- जप संख्या... 11 माला प्रतिदिन
12- भगवान शिव को साक्षी बनाएं
कहें- हे देवाधि देव महादेव आपको प्रणाम। आपको साक्षी बनाकर मै यक्षिणी सिद्धि साधना सम्पन्न कर रहा हूँ। इसकी सफलता हेतु मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें। यक्षिणी की अुकूलता प्रदान करें। आपको धन्यवाद!
13- देवी का आवाहन
शक्तिशाली और देवी सुर सुंदरी आपको नमन। आप मेरे मन मंदिर में विराजमान हों। मेरे द्वारा किये जा रहे मन्त्र जप को स्वीकार करें। साकार करें। मेरे लिये सिद्ध होकर सशरीर मुझे अपने सानिध्य का सुख प्रदान करें। धन, यौवन, समृद्धि, सुख प्रदान करें। राज सुख प्रदान करें।
आपको धन्यवाद!
14- मन्त्र से आग्रह
हे यक्षिणी सिद्धि दिव्य मन्त्र
ॐ ह्रीं सुर सुंदरी आगच्छ आगच्छ स्वाहा
आपको मेरा नमन। मेरी भावनाओं से जुड़कर मेरे लिये सिद्ध हो जाएं। मुझे यक्षिणी सिद्धि प्रदान करें।
आपको धन्यवाद!
मन्त्र जप
उत्तर मुख होकर उपरोक्त विधान पूरा करें। 11 माला मन्त्र जप पूरा करें।
मन्त्र जप आराम से करें। मन्त्र जल्दी जल्दी न जपें।
15- मन्त्र ध्यान
जप पूरा होने के बाद माला रख दें। आंखें बंद कर लें। मन्त्र को मन में जपते हुए देवी का 10 मिनट ध्यान करें।
ध्यान में सोचें कि शक्तिशाली और सुंदर देवी बादलों को चीरती हुई आ रही हैं। उनके आने से बादल गरज रहे हैं। देव संगीत बज रहा है। सुगन्ध फैल रही है। घुघरू बज रहे हैं। देवी की हंसी गूंज रही है। तेज प्रकाश के साथ वे साधना कक्ष में प्रवेश कर रही हैं।
ध्यान के दौरान बहुत बार लगेगा कि देवी आ गयी हैं। आसपास टहल रही हैं। मगर आंखे न खोलें।
जब स्पष्ट लगे कि देवी ने पास में बैठकर आपका हाथ अपने हाथ में ले लिया है।
तभी आंखें खोलें।
पास रखा गुलाब का हार उनके गले में पहना दें। दूसरा हार वे साधक को पहना देती हैं। फिर पूछती हैं क्या चाहिए?
तब कहें - मुझे अध्यात्मिक मित्र स्वरूप में आप चाहिये। वचन दें मै जब इच्छा करूँ तब आप मेरे पास आये। जगत कल्याण हेतु सशरीर मुझे अपने सानिध्य का सुख प्रदान करें। मेरी कामनाएं पूरी करें।
देवी वचन देकर चली जाती हैं।
वहीं से साधना पूर्ण हो जाती है।
फिर साधक जब कभी इस मन्त्र का 1 माला जप करता है तब देवी उसके समक्ष आती हैं। इच्छा पूरी करती हैं।
यदि 9 दिन पूरे होने के बाद भी देवी सामने न आएं। तो भी निराशा की बात नही।
देवी के सामने न आने पर भी पहले चरण के पूरा होते ही साधक के जीवन में धन, समृद्धि, प्रतिष्ठा, मान, सम्मान, आरोग्य बढ़ने लगता है। देव शक्तियों की सहायता मिलने लगती है।
पहली बार में देवी के सशरीर सामने न आने पर इसी विधान से दूसरे चरण को दोहरायें।
ऋषि विधान में अधिकतम 4 चरण पूरे होंते होते देवी को आना ही होता है।
पूरी साधना के दौरान साधक खुद पर और अपने इष्ट पर विश्वास बनाये रखें। साधना के सम्बंध में दिमाग में संसय और गैर जरूरी सवाल बिल्कुल न आने दें।