
देवत्व साधना कौन करे…
1. जो परमार्थ चाहते हैं
2. जो पुरुषार्थ चाहते हैं
3. जो प्रखर व्यक्तित्व चाहते हैं
4. जो अटल अस्तित्व चाहते हैं
5. जो जीवन के बाद भी पहचान चाहते हैं
6. जो लोक परलोक में मनचाहा स्थान चाहते हैं.
देवत्व क्या है….
इसे परिभषित करने की जरूरत नहीं. बस एक सवाल भर हो सकता है कि क्या इंशान में देवत्व स्थापित हो सकता है.
बेझिझक जवाब है, हां बिल्कुल हो सकता है. बल्कि देवत्व की तरफ बढ़ना इंशानों का अधिकार है.
इसके दो तरीके होते हैं
1. स्व आचरण नियंत्रण एवं स्व शक्तियों के जागरण से
2. देवत्व साधना से अपने भीतर देव शक्तियों का आरोहण करके.
पहली विधि अपनाने के लिये आप खुद कोशिश करते ही रहते हैं. यदि किसी वजह से आपको लगता है कि इसमें सफलता नही मिल पा रही तो
देवत्व साधना कर सकते हैं.
कल रात महाशिव रात्रि के अवसर पर जिन लोगों ने दिल्ली आश्रम और मुम्बई आश्रम में रूक कर साधना की, सहस्त्र रुद्राभिषेक के बाद महायज्ञ की भस्म से हुए भस्माभिषेक में शामिल हुए. वे सभी साधक देवत्व साधना हिस्सा बन चुके हैं. गुरु जी ने उनकी उर्जाओं को देव उर्जाओं से जोड़कर देवत्व की राह दे दी है.
उन्हें देवत्व साधना के लिये किसी साधना वस्तु या विशेष विधान की आवश्यकता नही. क्योंकि उनकी उर्जा कल रात की साधना के दौरान भगवान शिव के एक हजार स्वरूपों के साथ जोड़ दी गई. साधकों के भीतर शिव के सहस्त्र स्वरूपों का आरोहण कर दिया गया.
दिल्ली में गुरू जी ने गुरू जी ने और मुम्बई में शिव प्रिया जी ने रात के चार प्रहर में जिस मंत्र का जाप कराया, वही उन साधकों के लिये देवत्व साधना का मंत्र है. वे सभी साधक सूर्योदय या सूर्यास्त के समय प्रति दिन उस मंत्र का 20 मिनट जाप करें.
जल्दी ही उनकी शक्तियां जागकर पंचतत्वों के साथ संयोग करेंगी. जिससे उनके अस्तित्व व व्यक्तित्व में देवत्व का आरोहण होगा. गुरु जी ने बताया कि आगे वे एेसे काम करने में सक्षम होंगे जिन्हे सिर्फ देवता ही कर सकते हैं.
जो लोग अपने स्थान से देवत्व साधना करना चाहते हैं वे अपने लिये कहीं से देव बूटी प्राप्त करके उसे तत्काल अपनी एनर्जी से जोड़ लें. उन्हें गुरू जी होली के शुभ मूहूर्त से देवत्व साधना शूरू कराएंगे. देव बूटी के जरिये उनकी उर्जा को देव उर्जा से कनेक्ट किया जाएगा. होली से दो दिन पहले गुरू जी उनकी देवत्व साधना का विधान और मंत्र बताएंगे. उम्मीद है कि तब तक सभी इच्छुक साधक देव बूटी प्राप्त करके उसे सिद्ध कर चुके होंगे.
देवत्व साधनाः लाखों में एक पहचान
राम राम मै शिवप्रिया
देवत्व प्राप्ति का लक्ष्य युगों युगों से चला आ रहा है. धरती पर सिर्फ इंशान को ही इसका अधिकार मिला है.
मुझे भी, आपको भी.
मै इस अवसर को पाकर बहुत उत्साहित हूं.
देवत्व साधना कौन करे…
1. जो परमार्थ चाहते हैं
2. जो पुरुषार्थ चाहते हैं
3. जो प्रखर व्यक्तित्व चाहते हैं
4. जो अटल अस्तित्व चाहते हैं
5. जो जीवन के बाद भी पहचान चाहते हैं
6. जो लोक परलोक में मनचाहा स्थान चाहते हैं.
……
देवत्व साधना कौम नही कर सकता……
1. जो अभिमान नही छोड़ना चाहता
2. जो खुद पर भी विश्वास नही करता
3. जो देव सत्ता को नही जानना चाहता
4. जो खुद को तुक्ष प्राणी मात्र मानता है
5. जिसका स्वार्थ परमार्थ पर भारी है
6. जो जीवन को सिर्फ कमाने खाने का सबब मानता है
…….
देवत्व साधना का उद्देश्य…
अपने भीतर की शक्तियों को जगाकर उन्हें देवत्व में परिवर्तित करना. ताकि जरूरत पड़ने पर हजारों, लाखों लोगों की तन-मन-धन से सेवा व सहायता करने योग्य क्षमतावान बन सकें
…..
देवत्व साधना के गुरू….
भगवान शिव
…..
इस देवत्व साधना के मार्गदर्शक….
उर्जा नायक श्री राकेश आचार्या जी
……
इस देवत्व साधना का मंत्र…
ऊं. उमा सहित शिवाय नमः
…..
देवत्व साधना का मुहूर्त…
होली की गोधूली
….
देवत्व साधना की समग्री…
ब्रह्मकमल से सिद्ध देव बूटी
….
देवत्व साधना का परहेज
तर्क निसिद्ध
………
सभी में देवत्व जाग्रत हो, यही गुरू जी की कामना है.
देव बूटी को जहरीली सुगंध वाले ब्रह्मकमल में रखकर सिद्ध करते हैं
देवत्व साधना के लिये इसका होना जरूरी है
राम राम, मै शिवप्रिया.
देवत्व साधना के संदर्भ में प्रमोद लोहिया जी, अर्चना जी, नीतू जी सहित आप में से कई लोगों ने देव बूटी के बारे में जानकारी चाही है.
इस बारे में गुरू जी से जानकारी लेकर हम यहां आपके साथ शेयर कर रहे हैं.
देव बूटी एक पहाड़ी बूटी है. जो बद्रीनाथ और केदारनाथ के मध्य पहाड़़ी खाईयों में मिलती है. अक्सर वहां प्रमण करने वाले साधु संत इसे निकाल लाते हैं. क्योंकि वे इसे पहचानते हैं और इसके साधना महत्व को जानते हैं.
पहाड़ी झाड़ियों से निकालकर इसे 11 घंटों के भीतर सुखा लिया जाता है. नाजुक होने के कारण उसके बाद बूटी सड़ने लगती है.
सुखाने के बाद बूटी को 13 दिन के लिये ब्रह्मकमल के बीच रख दिया जाता है. जिससे ये स्वतः सिद्ध हो जाती है.
ये बड़े आश्चर्य की बात है कि ब्रह्मकमल के सम्पर्क में देव बूटी स्वतः सिद्ध हो जाती है.
ब्रह्मकमल केदारनाथ की घाटी में ऊंची पर्वत श्रंखला में मिलता है. वहां ये पहाड़ी चट्टानों को तोड़कर बाहर आ जाता है.
केदारनाथ धाम के पुजारी दुर्गम रास्तों से होते हुए भोर में इसे लेने जाते हैं.
ये बहुत जहरीला होता है. धूप पड़ने पर इससे जहरीली सुगंध निकलती है. जिससे लोग बेहोश होकर मर सकते हैं.
इस लिये केदारनाथ धाम के पुजारी सुबह तड़के ही ब्रह्मकमल लेने के लिये केदार धाम से भी ऊंची पहाड़ियों पर चढ़कर जाते हैं. वहां अक्सर उन पर पहाड़ी भालू हमला कर देते हैं. क्योंकि ब्रह्मकमल उनका भोजन है.
ब्रह्मकमल को तोड़ने के समय पुजारी मुंह व नाक पर कपड़ा लपेटे रहते हैं. एेसा न करें. तो कमल से निकलने वाली सुगंध से वे बेहोश हो जाते हैं. निर्जन पहाड़ियों में उन्हें बचाने वाला कोई नही होता.
बड़े आश्चर्य की बात है कि केदारनाथ के शिवलिंग पर चढ़ाते ही ब्रह्मकमल का जहर बुझ जाता है. तब वो किसी को नुकसान नही करता. पुजारी इसे भक्तों को प्रसाद स्वरूप देते हैं.
ब्रह्मकमल केदारनाथ भगवान पर चढ़ाया जाने वाला अनिवार्य पुष्प है. मान्यता है कि इसके बिना केदारनाथ की पूजा पूरी नही होता. भक्तों के लिये वहां के पुजारी भारी जोखिम उठाकर इन्हें एकत्र करते हैं.
सूखे ब्रह्मकमल के साथ 13 दिन रखने से देव बूटी खुद सिद्ध हो जाती है.
सिद्ध होने के बाद देव बूटी देवत्व साधना, अदृश्य साधना, वायु साधना, शून्य साधना, वायुगमन साधना सहित कई तरह की विलक्षण साधनाओं में यूज होती है.
गुरू जी ने बताया कि देव बूटी में देव उर्जाओं को धरती की तरफ आकर्षित करके साधक तक पहुंचाने की अचम्भित करने वाली प्राकृतिक क्षमता होती है.
इसे इंशानों और देवताओं के मध्य सम्पर्क स्थापित करने वाला शक्तिशाली यंत्र कहा जाये तो सटीक होगा।
देव बूटी सामान्य बाजार में उपलब्ध नही है. क्योंकि साधनाओं के अतिरिक्त इसका कहीं उपयोग होने की जानकारी नहीं. हो सकता है किसी रूप में इसका कहीं औषधीय उपयोग होता हो, मगर हमें इसकी जानकारी नहीं.
प्रायः पहाड़ों में विचरण करने वाले साधुओं के पास ये मिल जाती है. क्योंकि उच्च साधना के लालच में मिलने पर साधु इसे अपने पास रख ही लेते हैं.
मगर इसके उपयोग की विधि न मालुम होने के कारण ज्यादातर साधु इसका सही उपयोग नही कर पाते. दरअसल साधना में उपयोग के लिये इसे साधक की उर्जा के साथ जोड़ना अनिवार्य होता है. इसे एेसे समझें जैसे सिम को एक्टिवेट न किया जाये तो वो मोबाइल में डालने पर भी काम नही करता. इस उदाहरण में देव बूटी को सिम और साधक को मोबाइल मानें.
जिन साधुओं के पास ये सालों से रखी है वे मांगने पर इसे मुफ्त में ही दे देते हैं. जो इसे बेचने के लिये संग्रहीत करते हैं, वे मुंहमागी कीमत चाहते हैं. क्योंकि उनको इसका महत्व पता होता है.
तांत्रित सामान बेचने वाले कुछ दुकानदार भी इसे रखते हैं. मगर कम मात्रा में क्योंकि खपत कम होने के कारण इसमें उनका पैसा फंसा पड़ा रहता है. खपत कम इसलिये क्योंकि खास लोग ही इसका उपयोग जानते हैं.
आप में से जिस साधक को जहां कहीं से मिले देवत्व साधना के लिये देव बूटी प्राप्त कर लें. कहीं से न मिले तो कुछ देव बूटी हमारे संस्थान में भी उपलब्ध हो सकती हैं.
पिछले दिनों गुरू जी हिमालय साधना पर गये थे. वहां से ले आये थे.
मगर उनकी संख्या बहुत कम है.
जो लोग संस्थान से देव बूटी का आग्रह करना चाहते हैं वे 9999945010 पर अरुण जी से वाट्सएप द्वारा सम्पर्क कर लें.
हम वादा तो नही करते लेकिन कोशिश करेंगे कि देव बूटी आप तक पहुंचे.
सबके जीवन में देवत्व स्थापित हो, गुरु जी की यही कामना हैं.
जहरीली सुगंध वाला ब्रह्मकमल खुश कर देता हैं केदारेश्वर
राम राम, मै शिवप्रिया
ग्रुप के कुछ साधकों ने ब्रह्मकमल के बारे में विस्तार जानकारी देने का आग्रह किया है.
ब्रह्मकमल केदारनाथ की घाटी में ऊंची पर्वत श्रंखला में मिलता है. वहां ये पहाड़ी चट्टानों को तोड़कर बाहर आ जाता है.
केदारनाथ धाम के पुजारी दुर्गम रास्तों से होते हुए भोर में इसे लेने जाते हैं.
ये बहुत जहरीला होता है. धूप पड़ने पर इससे जहरीली सुगंध निकलती है. जिससे लोग बेहोश होकर मर सकते हैं.
इसे प्राप्त करना बड़ा ही कठिन काम है. ये केदारनाथ धाम से काफी ऊपर पहाड़ियों में होते हैं. वहां तक पहुंचने में कई घंटे लगते हैं. पैदल रास्ता है. बीच में दुर्गम झाड़ियां हैं. उन्हें पार करते हुए पहुंचना बहुत जोखिम भरा होता है.
खतरा यही खत्म नही होता. ऊपर पहुंच गए तो पहाड़ी भालुओं का खतरा रहता है. पहाड़ी रीक्ष बहुत ही हमलावर होते हैं. एेसे समझें कि केदार घाटी का ये निर्जन क्षेत्र उनके साम्राज्य जैसा है. वे वहां इंशानों की आवाजाही से भड़क जाते हैं. ब्रह्मकमल उन भालुओं का भोजन है. ब्रह्मकमल तोड़ने वालों पर वे घात लगाकर हमला करते हैं. उनके हमले से जिंदा बच पाना मुश्किल होता है.
पहाड़ी भालुओं से बचने के लिये पुजारी समूह में वहां जाते हैं.
ऊपर एक घाटी है. ब्रह्मकमल वहीं होते हैं.
ये प्रकृति का चमत्कार ही है कि ब्रह्मकमल पत्थरों को चीरकर बाहर निकल आते हैं. देखने से एेसा लगता है जैसे पत्थर ही पेड़ हों, जिन पर फूल लगे हैं. वैसे तो ब्रह्मकमल घाटी बड़ी मनोरम है. मगर यहां रुकना जानलेवा साबित हो सकता है. क्योंकि ब्रह्मकमल से जहरीली सुगंध निकलती है. जिससे लोग तुरंत बेहोश हो जाते हैं.
वैसे तो पता ही नही चलता कि उनमें कोई सुगंध है. फिर भी उनके सम्पर्क में आते ही लोग बेहोश हो जाते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि वो सुगंध नही है बल्कि ब्रह्मकमल से निकलने वाली जहरीली गैस है.
उसके जहर से बचने के लिये पुजारी मुंह में कपड़ा लपेटकर फूल तोड़ते हैं. वे सब स्थानीय रहने वाले हैं. केदारनाथ धाम के सभी पुजारी आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वाले हैं. उनकी कई पीड़ियों केदारनाथ की पूजा में लगे हैं. देश के विभिन्न हिस्सों को उन्होंने अपने यजमान के रूप में बांट रखा है. जैसे ही कोई केदारनाथ दर्शन हेतु जाता है तो वे पूछते हैं कि वे कहां से आये हैं. अपने क्षेत्र/ शहर का नाम बताने पर उस क्षेत्र के पुजारी के पास भेज दिया जाता है. क्योंकि उस शहर के लोग उसी पुजारी के यजमान होते हैं.
यही पुजारी अपने यजमानों के लिये भारी जेखिम उठाकर ब्रह्मकमल इकट्ठे करते हैं. यजमानों को पूजा करने के लिये देते हैं. क्योंकि मान्यता है कि बिना ब्रह्मकमल के केदारनाथ की पूजा पूरी नही होती.
इस लिये केदारनाथ धाम के पुजारी सुबह तड़के ही ब्रह्मकमल लेने के लिये केदार धाम से भी ऊंची पहाड़ियों पर चढ़कर जाते हैं. वहां अक्सर उन पर पहाड़ी भालू हमला कर देते हैं. क्योंकि ब्रह्मकमल उनका भोजन है.
ब्रह्मकमल को तोड़ने के समय पुजारी मुंह व नाक पर कपड़ा लपेटे रहते हैं. एेसा न करें. तो कमल से निकलने वाली सुगंध से वे बेहोश हो जाते हैं. निर्जन पहाड़ियों में उन्हें बचाने वाला कोई नही होता.
बड़े आश्चर्य की बात है कि केदारनाथ के शिवलिंग पर चढ़ाते ही ब्रह्मकमल का जहर बुझ जाता है. तब वो किसी को नुकसान नही करता. पुजारी इसे भक्तों को प्रसाद स्वरूप देते हैं.
ब्रह्मकमल केदारनाथ भगवान पर चढ़ाया जाने वाला अनिवार्य पुष्प है. मान्यता है कि इसके बिना केदारनाथ की पूजा पूरी नही होता. भक्तों के लिये वहां के पुजारी भारी जोखिम उठाकर इन्हें एकत्र करते हैं.
देव अनुष्ठान के बाद अब बारी देवत्व साधना की
राम राम, मै अरुण
महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर आज दिल्ली और मुम्बई आश्रम में देव अनुष्ठान सम्पन्न हुआ. दिल्ली में एनर्जी गुरू जी के सानिग्ध में हुआ. और मुम्बई में शिवप्रिया जी के सानिग्ध में.
देव अनुष्ठान में आकर हिस्सा लेने वाले साक्षात् शिव समक्ष हुए. जिन लोगों ने घर से ही देव अनुष्ठान का संकल्प लिया था, उनकी उर्जाओं को गुरू जी ने कल रात से ही अनुष्ठान की उर्जाओं के साथ जोड़ दिया था. उनके लिये पारद शिवलिंग सिद्ध करने की देवत्व साधना आज रात भर चलेगी. रात के चारो प्रहर दिल्ली में गुरू जी और मुम्बई में शिवप्रिया जी साधकों को साधना कराएंगी.
देव अनुष्ठान के तहत एक हजार रुद्राभिषेक की श्रंखला होती है. इसके अंतर्गत पारद शिवलिंग पर अभिषेक किये जाते हैं. साथ ही महायज्ञों की श्रंखला चलती है. देव अनुष्ठान की पूर्णता पर इन्हीं पारद शिवलिंग का महायज्ञों की भस्म से भस्माभिषेक किया जाता है.
जिससे पारद शिवलिंग में साधक के भीतर पंचतत्व को जाग्रत करके देव तत्व उत्पन्न करने की क्षमता उत्पन्न होती है. एेसे शिवलिंग के समक्ष की गई कामनायें पूरी होती हैं. साधनायें सिद्ध होती हैं. व्यक्तित्व में देवत्व उत्पन्न होता है.
गुरुजी जी दिल्ली आश्रम में और शिवप्रिया जी मुम्बई आश्रम में महाशिवरात्रि की चार प्रहर की साधना में भस्माभिषेक करेंगी. उनके साथ साधक भी देवत्व साधना का हिस्सा बनेंगे.
गुरुदेव ने आश्वासन दिया है कि वे इच्छुक साधकों को घर बैठे देवत्व साधना करके देव सिद्धी अर्जित करने की विधि देंगे.
सबके जीवन में देवत्व स्थापित हो, यही गुरू जी की कामना हैं.