17 मई 2016, मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 3
44 सन्यासियों का कुंडली जागरण
प्रणाम मै शिवांशु
बात अगस्त 2009 की है. मै गुरुदेव के साथ एक दिन के लिये बनारस गया. वहां गुरुवर के एक अध्यात्मिक मित्र से मुलाकात हुई. वे शहर से थोड़ा हटकर गंगा जी के किनारे रुके थे. उनके साथ उनके सन्यासी शिष्यों की फौज सी थी. जब हम पहुंचे उस वक्त भी 33 शिष्य थे. जबकि कुछ शिष्य कार्यवश शहर में गए थे. वहां मौजूद सभी सन्यासी अपने अपने काम में व्यस्त थे. उनमें कई विदेशी शिष्य भी थे. सभी के दाढ़ी बाल बढ़े थे. मगर जटायें किसी की न थीं. यानि वे साबुन शैम्पू का नियमित इश्तेमाल करने वाले सन्यासी थे. एेसा प्रतीत हो रहा था, मानो सभी ने आधुनिक फैशन के हिसाब से बालों को बढ़ा रखा हो. सभी के दाढ़ी बाल करीने से संवारे हुए थे.
सभी हल्की केशरिया पोशाक में थे. उनको देखकर पहला विचार आता कि वे माडर्न सन्यासी हैं. बहरहाल वहां बड़ा ही सम्मोहनकारी अध्यात्मिक आकर्षण था.
ये उनका आश्रम नही था. बल्कि डेरा था. जो थोड़े समय पहले ही बना और कुछ दिनों बाद उजड़ जाने वाला था. मगर वहां की छटा किसी मनोरम आश्रम से कम न थी.
जैसे ही हम वहां पहुंचे, सन्यासियों में खुशी की लहर दौड़ गई. जीन्स टी शर्ट में होने के बावजूद उन लोगों ने गुरुवर को पहचान लिया था. कुछ ने मुझे भी पहचाना. उनसे मै ऋषिकश में मिला था. सभी सन्यासियों के बीच खबर फैल गई कि उर्जा नायक महराज आये हैं. सब भाग कर हमारे पास आ गये. हमें अपने गुरु के कैम्प तक ले गये. कैम्प के पास जाकर वे सब बाहर ही रुक गये.
गुरुवर रुके बिना कैम्प में प्रवेश कर गये. उनके इशारे पर मै भी कैम्प में दाखिल हो गया. वहां तुल्सीयायन महराज बैठे थे. केशरिया वस्त्रों में बड़े ही मनभावन लग रहे थे. वैसे भी गुरुवर के अध्यात्मिक मित्रों में से हम सब आपसी बातचीत में उन्हें हीरो संत कहते हैं. उनकी पर्सनालिटी ही एेसी है. 6 फुट से अधिक लम्बाई, गोरा रंग, छरहरा बदन, नीलिमई आंखे, खूबसूरत चेहरा.
सब कुछ एेसा जैसे भगवान ने कामदेव की कल्पना करते करते उन्हें बना डाला हो.
तुल्सीयायन महराज उच्च कोटि के योगी हैं. उनका अधिकांश समय योग और ध्यान में ही बीतता है. वे बाल ब्रह्मचारी हैं. उनके शिष्यों और भक्तों की उनमें अटूट आस्था है. तुल्सीयायन महराज गुरुवर पर खुद से ज्यादा विश्वास करते है. मुझे याद है एक बार किसी बात के संदर्भ में उन्होंने मुझसे कहा था, जिस दिन उर्जा नायक से मेरा साथ छूटा उस दिन को मै अपनी मृत्यु का दिन मानुंगा.
कैम्प में दाखिल हुए गुरुदेव को देखते ही वे अपने आसन से उठ गये. और लगभग भागते हुए उन्होंने गुरुवर की तरफ बाहें फैला दीं. गुरुदेव ने उन्हें गले लगा लिया.
ये दो अध्यात्मिक मित्रों के मिलने की दुर्लभ बेला थी. उनके मिलन से उर्जाओं का एेसा संवेग उत्पन्न होता महसूस हुआ, मानों ब्रह्मांड की दो महाशक्तियां मिल रही हों.
मैने दोनों गुरुओं को दण्डवत किया. फिर गुरुदेव के इशारे पर मै भी एक आसन पर बैठ गया.
तुल्सीयायन महराज ने गुरुदेव को बताया कि वे एक प्रयोग करना चाहते हैं. वह ये कि अपने 44 शिष्यों की कुण्डली सामूहिक रूप से जाग्रत करके उसे मूव कराना चाहते हैं. मगर योग और ध्यान के जरिये एेसा हो नही पा रहा है. उसमें समय बहुत लग रहा है. समय अधिक लगने के कारण शिष्यों की मनःस्थिति में बदलाव आते रहते हैं. जिसके कारण बार बार उनकी पात्रता प्रभावित हो जाती है. पिछले 6 माह में दो कोशिशें हो चुकी हैं. उनमें सिर्फ 3 लोगों की ही कुंडली जाग्रत हुई है. वे भी उसे मूव करके उठा नही पा रहे हैं.
तो आप शक्तिपात का सहारा लीजिये. गुरुदेव ने सुझाव दिया.
किया तो, मगर पता नही क्यों बात बनी नहीं. तुल्सीयायन महराज ने विवशता सी जताई.
तो कुंडली आरोहण साधना करा दीजिये. गुरुदेव ने सुझाव दिया.
उसके विधान की जानकारी तो है. मगर मैने इससे पहले कभी कराया नही, साधकों के साथ कुछ ऊंच-नीच न हो जाये, इसलिये उसे कराने की हिम्मत नही हुई. तुल्सीयायन महराज ने कहा.
कोई बात नही, मै करा दूंगा. गुरुदेव ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा.
फिर मुझसे कहा बाहर जाकर सभी शिष्यों के आभामंडल और उर्जा चक्रों की जांच करों. सभी के मूलाधार, स्वाधिष्ठान, कुंडली चक्र और सहस्रार चक्र की स्थिति नोट करके मुझे बताओ.
मै पंडाल से बाहर आ गया. क्योंकि मै समझ गया था कि अब गुरुवर तुल्सीयायन महराज से एकांत वार्ता करना चाहते हैं.
बाहर आकर मै सोच रहा था कि इसी कैम्प में गुरुवर से मै भी अपनी कुंडली का आरोहण कराउंगा. इन्हीं विचारों के साथ सन्यासियों की उर्जा जांचने लगा.
…. क्रमशः ।
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.