अचानक लगे साधना स्थल में अनजानी सुगंध भर गयी। कोई अदृश्य टहल रहा है। अपनेपन में फुसफुसा रहा है। उठ जाओ। थक गये हो। नियम तोड़ दो। रिलेक्स हो जाओ। फिर साधना करो। साधना के समय थक जायें। कमर, पैर, पीठ में अकड़न हो। दर्द होने लगे। मन भटकने लगे। विचार दूषित होने लगें। उलझन होने लगे। तभी अपनेपन के साथ अदृश्य आवाज का आभास हो। तो न विचलित हों न कन्फ्यूज न हो। ये वही देवी हैं। जिन्हें सिद्ध करने के लिये बैठे हो। समझो साधना सही दिशा में बढ़ रही है। देवी चाह रही हैं तुम्हें बिना तकलीफ सिद्धी मिलें।

ये उच्चिष्ट यक्षिणी हैं। जो बिल्कुल नही चाहतीं कि उनका साधक परीक्षाओं से गुजरे। कष्ट से गुजरे। वे यही चाहती हैं कि साधक उन्हें सिद्ध कर ले। सिद्ध होने पर देवी साधक को अभाव मुक्त करती हैं। धन की कमी, मान-सम्मान की कमी, पद- प्रतिष्ठा की कमी, उन्नति की कमी, सुखों की कमी और पराजय। ये सब देवी को पसंद नही। सो वे अपने साधक के पास भी इन्हें रुकने नही देतीं।
- इनकी साधना से साधक के परिवार और व्यवसाय को सुरक्षा मिलने की बात कही जाती है।
- मुख्य रूप से भौतिक जीवन में सफलता, धन प्राप्ति, व्यापार में वृद्धि और जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए की जाती है।
- माना जाता है कि सिद्ध होने पर यक्षिणी साधक की मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उन्हें अलौकिक शक्तियों से संपन्न करती हैं।
- अध्यात्म श्रद्धा, विश्वास और संचित कर्मों का विषय है। साधकों को उसी के अनुसार परिणाम प्राप्त होते हैं।
साधना विधान
देवी उच्चिष्ट यक्षिणी के साथ उर्जा कनेक्टिविटी सम्पन्न होने के बाद किसी भी शुभ मुहूर्त में साधना आरम्भ करे।
कनेक्टिविटी के लिये प्रदत्त अनुष्ठान के द्वारा साधक अपने आभामंडल को देवी के आभामंडल के साथ जोड़ लें। निर्धारित साधना मंत्र के बीज मंत्रों को अपने उर्जा चक्रों में स्थापित कर लें। अपने 33 लाख रोम छिद्रों को मंत्र जप के लिये प्रोग्राम कर लें। मंत्र को अपनी भावनाओं के साथ जोड़ लें। उसके बाद ही साधना आरम्भ करें।
साधना मंत्र – ॐ जगत्रय मातृके पद्मनिभे स्वाहा
(मंत्र का अर्थः मैं तीनों लोकों की माता, कमल जैसी आभा वाली देवी को अपना सम्मान अर्पित करता हूँ। )
साधना का समय- रात 10 बजे के बाद
आसन- आरामदायी लाल या पीला
माला- रुद्राक्ष
जप संख्या- 1000 मंत्र रोज
साधना अविध- 10 दिन
भोग प्रसाद- दूध खोया से बनी कोई भी मिठाई
दीपक- भैस के घी का दीपक
सुगंध- चंदन की सुगंध वाली धूप
वस्त्र- साफ सुथरे आकर्षक वस्त्र
दिशा- उत्तर मुख
कलश- जिनके पास कुम्भ कलश है। वे उसी का उपयोग करें। जिनके पास नही है वे तांबे के लोटे में गंगा जल भर लें। गंगाजल न हो तो मिनरल वाटर भर लें। उसमें एक सिक्का और एक मोती (ठीक से साफ करके) डाल दें। ढक्कन ठीक से बंद कर दें ताकि उसमें कीड़े व धूल धक्कड़ न जा सके। एक सुपारी में कलावा लपेट लें। उसे कलश के ढककन पर स्थापित कर दें।
कलश को साधना स्थल पर स्थापित करके कहें- हे दिव्य कलश वरुण देव के रूप में आपको प्रणाम। मेरे द्वारा सम्पन्न की जा रही साधना आराधना की उर्जाओं को अपने भीतर संकलित करें। साधना सिद्धी हेतु मुझे वे उर्जायें निरंतर प्रदान करें।
आपका धन्यवाद।
बलि– रोज एक नीबू की बलि दें ।
इसके लिये बेदाग नीबू को बीच से चीर दें। उसमें थोड़ा कपूर रखकर जला दें। बलि से साधना में रुकावट बनने वाली आंतरिक और बाहरी नकारात्मक उर्जायें खत्म हो जाती हैं।
इसलिये बलि मन्त्र जप शुरू करने से पहले दें।
योग– साधना से पहले कम से कम 5 मिनट का योग या एक्सरसाइज करें।
कुछ न आता हो तो 5 मिनट ताली बजाएं। इससे स्थूल शरीर ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं को ग्रहण करने लायक सक्षम बन जाता है।
प्राणायाम– साधना के शुरू में 5 मिनट का प्राणायाम करें।
प्राणायाम में लंबी और गहरी सांस ली जाती है। थोड़ी देर रोकी जाती है। फिर धीरे धीरे छोड़ी जाती है। फिर थोड़ा रिलैक्स होकर इसे दोहराया जाता है।
इससे सूक्ष्म शरीर ब्रह्मांड से मन्त्र की ऊर्जाओं को ग्रहण करने में सक्षम बनता है।
भगवान शिव को साक्षी बनाएं
कहें- हे देवाधि देव महादेव आपको प्रणाम। आप सपरिवार मेरे मन मंदिर में विराजमान हों। आपको साक्षी बनाकर मै यक्षिणी सिद्धि साधना सम्पन्न कर रहा हूँ। इसकी सफलता हेतु मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें। यक्षिणी की अुकूलता प्रदान करें। आपको धन्यवाद!
देवी का आवाहन
हे देवी उच्चिष्ट यक्षिणी आपको नमन। आप मेरे मन मंदिर में विराजमान हों। मेरे द्वारा किये जा रहे मन्त्र जप को स्वीकार करें। साकार करें। मेरे लिये सिद्ध हों। मुझे धन, यौवन, समृद्धि, सुख प्रदान करें। सम्मान पूर्वक राज सुख प्रदान करें। लोक कल्याण हेतु मुझे अपनी शक्तियां प्रदान करें। अपना सानिघ्य प्रान करें।
आपको धन्यवाद!
मन्त्र से आग्रह
हे यक्षिणी सिद्धि दिव्य मन्त्र
ॐ जगत्रय मातृके पद्मनि भे स्वाहा
आपको मेरा नमन। मेरी भावनाओं से जुड़कर मेरे लिये सिद्ध हो जाएं। मुझे यक्षिणी सिद्धि प्रदान करें।
आपको धन्यवाद!
मन्त्र जप
उत्तर मुख होकर उपरोक्त विधान पूरा करें। रोज 1000 मन्त्र जप पूरा करें।
मन्त्र जप आराम से करें। मन्त्र जल्दी जल्दी न जपें।
मन्त्र ध्यान
जप पूरा होने के बाद माला रख दें। आंखें बंद कर लें। मन्त्र को मन में जपते हुए देवी का 10 मिनट ध्यान करें।
ध्यान में सोचें कि शक्तिशाली और सुंदर देवी आपके आस पास हैं। वे आपकी साधना से खुश हैं। साधना सिद्धी में आपको अदृश्य सहयोग दे रही हैं। उनकी उपस्थिति से आपकी उर्जायें लगातार बढ़ रही हैं। देव संगीत बज रहा है। आपकी साधना ब्रह्मंडीय इतिहास रचने जा रही है।
ध्यान के दौरान बहुत बार लगेगा कि देवी आ गयी हैं। आस पास टहल रही हैं। मगर आंखे न खोलें। जितनी देर आनंद आये ध्यान करते रहें।
शिव शरणं।
साधना हेल्पलाइनः 9210500800
उर्जा कनेक्टिविटी रजिस्ट्रेशन लिंक…
https://pay.webfront.in/#/merchantinfo/mrityunjay-yog-foundation/8327
ये गुरू शिष्य परम्परा के तहत सिद्ध होने वाली साधना है। शास्त्रों में इसका जिक्र अधिक नही मिलता। प्राकृत तंत्र में थोड़ा उल्लेख है। कुछ विद्वान मंत्र दधोचि में भी बताते हैं। किंतु व्यक्तिगत रूप से हमें उसके संदर्भ नही मिला।
- हिमालय साधना के दौरान एनर्जी गुरू शअरी राकेश आचार्या जी को एक सिद्ध संत ने उच्चिष्ट यक्षिणी का विधान बताया। उन दिनों वे अपने एक शिष्य को यह साधना करा रहे थे। उनके बताये विधान के अनुसार साधना से पहले देवी से कनेक्टिवटी मजबूत होनी चाहिये। तो देवी किसी भी नियम की इच्छुक नही होतीं।
- तंत्र साधना में इसके लिये देवी आवाहन के साथ साधना मंत्र से आहुतियां 1 हजार देनी होती हैं। यज्ञ सामग्री के साथ अनार के दानों का उपयोग करना होता है। इस तरह देवी की उर्जाओं के साथ हुआ साधक का संयोग सिद्घी को आसान कर देता है। देवी स्वयं साधक का सहयोग करती हैं।
- एनर्जी गुरू जी ने उर्जा परीक्षम के समय पाया कि साधक का आभामंडल देवी के आभामंडल से जुड़ा हो। साधना मंत्र साधक के उर्जा चक्रों में स्थापित हो। तो देवी स्वयं ही सिद्ध होने के लिये तत्पर मिलती हैं।
- जिज्ञासा वश दिमाग में सवाल आता है कि ये देवी खुद साधक की सहायता क्यों करती हैं। तंत्र के कुछ विद्वान मानते हैं कि ये महालक्ष्मी वर्ग की शक्तिशाली यक्षिणी हैं। इनको उच्चिष्ट होने का श्राप लगा है। उच्चिष्ट का अर्थ होता है उठे रहना। भटकते रहना। चैन से न बैठ पाना। जब कोई साधक सिद्ध करता है तो वे श्राप मुक्त हो जाती हैं।
- साधक से कनेक्टिविटी अनुष्ठान मजबूत होने पर देवी को पता चल जाता है कि अमुक साधक सफल हो सकता है। उसकी साधना से श्राप मुक्ति मिल सकती है। तब वे साधक को खुद ही सहयोग करने लगती हैं।
- देवी साधक को नियमों में बंधा नही देखना चाहतीं। इसलिये आसन, माला, वस्त्र, दीपक, सुगंध, सुद्धता, अशुद्धता, भोग, प्रसाद, फूल-माल, दिशा, स्थान, ज्ञान किसी तरह का बंधन नही डालतीं। वे खुद ही कहती हैं ये सब रहने दो। बस मंत्र जप कर लो। वह भी बिना थके। बिना कष्ट के।
- यह एक एेसी साधना है जिसे साधक जूठे मुंह भी कर सकते हैं। बिस्तर पर बैठकर भी कर सकते हैं। चलते फिरते भी कर सकते हैं। कुछ विद्वान तो हैं तक मानते हैं कि अपवित्र स्थिति में भी साधना कर सकते हैं।
- ब्रह्मचर्य का पान किया जाये तो सिद्ध और आसान हो जाती है।
- एक स्तर तक मंत्र जप की उर्जायें स्पंदित होने पर देवी को प्राप्त हो जाती हैं। वे सिद्ध हो जाती हैं। साधक के जीवन से सभी तरह की कमियों को पूरा करती हैं।
- इन देवी को आलोचनाओं के कारण श्राप लगा था। सो उन्हें आलोचनायें पसंद नही। साधक आलोचना न करे तो देवी जीवन भर उनके लिये सिद्ध रहती हैं। जीवन भर साधक को धन-धान्य, सुख-सुविधायें, पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, विजय देती ही रहती हैं।
- खास बात यह है कि सिद्ध होने पर देवी आयें या न आयें। किन्तु साधना के समय यदि साधक को कष्ट होता है तो जरूर आती हैं। इंट्यूट करती हैं कि थक गये हो। आराम कर लो। कुछ खा पी लो। मन में आ रहे उल्टे सीधे विचारों पर ध्यान न दो। सब ठीक चल रहा है। रिलेक्स होकर दोबारा साधना आरम्भ करो।