साधना के समय कहीं दूर से आती घुंघुरुओं की आवाज, कदमों की आहट, चूड़ियों की खनक, महिला स्वर में फुसफुसाहट, हंसी, मनमोहक सुगंध, किसी सुंदरी की कोमल छुअन, आकर्षक स्त्री के पास बैठने का अहसास होने पर विचलित न हों। असमय बादलों की गड़गड़ाहट, बारिश, आंधी, तूफान हो तो भी घबरायें नही। देवी के सशरीर सामने आकर बैठने तक मंत्र जप जारी रखें।

सिद्ध हुई अप्सरा जीवन भर धन, यौवन, एश्वर्य देती है। उनकी सकारात्मक उर्जायें साधक के भौतिक जीवन में राज सुख देने में सक्षम होती हैं। अध्यात्मिक उत्थान में सक्षम होती हैं।
अप्सरायें खुद भी अपने समर्पित साधकों के प्रति सदैव आकर्षित रहती हैं। प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष दोनो ही रूपों में साधक कैसे खुश रहे, सफल रहे इसके लिये वे हमेशा तत्पर रहती हैं।
अप्सरा सिद्धि होते ही साधक का आध्यात्मिक आयाम बदल जाता है। उसको धरती पर रहते हुए ही उच्च लोकों की तरह खुशियां मिलने लगती हैं।
सिद्ध अप्सरा की उर्जायें साधक को निरंतर मिलती हैं। अप्सराओं की उर्जायें उत्साह, उमंग, उत्सव, समृद्धि, यौवन, राज सुख देने में सक्षम होती हैं।
ऋषिकाल से साधक अप्सराओं को सिद्ध करके अपने जीवन में शामिल करते आये हैं. उन्हें साक्षात् देव मित्र बनाते आयें हैं. कुछ साधक उन्हें प्रेमिका, पत्नी के रूप में सिद्ध करते हैं. महिला साधक उन्हें सहेली बना लेती हैं.
अप्सरा किसी भी रूप में सिद्ध की जाये, जीवन में उसकी उपस्थिति साधक को समृद्धिशाली बना ही देती है. साथ ही साधक का जीवन उत्साह, उमंग से भर जाता है. सदैव प्रशन्नता और उत्सव का अहसास बना रहता है. साधक का जीवन सुख, समृद्धि, वैभव और यौवन से भरा हुआ होता है.
अप्सरा सिद्धि 2 तरह की होती है
एक में अप्सरा साधक के सम्मुख आ जाती है। दूसरी स्थिति में अप्सरा सामने नही आती। किंतु साधक को अप्सरा के आस पास होने का अहसास होता है। उसकी सुगंध मिलती है। घुंघुरू, चूड़ियों की आवाज सुनाई देती है। हंसी या फुसफुसाहट सुनाई देती है। अदृश्य छुअन, पास बैठने और चहलकदमी का अहसास होता है। ऐसे ही कई और अलौकिक अनुभूतियां होती हैं जिनसे संकेत मिलते हैं कि अप्सरा जीवन में आ चुकी हैं।
तब साधक को अप्सरा से सहायता लेने की प्रक्रिया आरम्भ कर देनी होती है।
साधक का रूप रंग कैसा है. जाति धर्म क्या है. उम्र क्या है. इसका अप्सरा सिद्धि से कोई लेना देना नही.
ऐसी ही अप्सरा है उर्वसी अप्सरा
उर्वसी अप्सरा प्रमुख अप्सराओं में से एक है। वह धरती पर उत्पन्न हुई। इसलिये पृथ्वी लोक के साधकों के प्रति उर्वसी का विशेष लगाव होता है। उनके लिये वह खुद ही सिद्ध होने को तत्पर रहती है।
उर्वसी की उत्पत्ति अन्य अप्सराओं से अलग हिमालय के साधना क्षेत्र में हुई।

युगों पहले बद्रीनाथ क्षेत्र में नर-नारायण नाम के देव तप करने आये। उन्होंने बहुत कठिन तप किया। जिससे देवराज इंद्र घबरा गए। उन्हें भय लगा कि तप सिद्ध करके नर-नारायण उनके सिंहासन पर कब्जा न कर लें।
इंद्र ने उनकी तपस्या भंग करने के लिये अप्सराएं भेजीं। जो नर-नारायण को मोहित करने के लिये अपनी लीलाएं करने लगीं। नर-नारायण इससे तंग आ गए।
उन्होंने गुस्से में आकर अपनी अप्सरा पैदा कर दी। उसके लिये उरु (जंघा) के DNA का उपयोग किया। अपने DNA से एक अप्सरा पैदा की। जो इंद्र की अप्सराओं से कई गुना अधिक सुंदर थी।
उसे अपनी (जांघ) उरु अंग से उत्पन्न किया। इसलिये उसका नाम उर्वसी रखा।
ऐसा करके उन्होंने इंद्र को दिखाया कि वे देव सौंदर्य बनाने में खुद सक्षम हैं। इसलिये उससे प्रभावित होने वाले नही। न ही उन्हें इन्द्रासन में कोई दिलचस्पी है।
इंद्र निश्चिंत हुए।
अत्यंत सुंदर उर्वसी को अप्सरा का दर्जा दिया गया। उन्हें इंद्र दरबार में स्थान मिला। तब से उर्वसी इंद्र दरबार की शोभा बनी है। सबसे खूबसूरत, आकर्षक और गुणवान अप्सरा में से एक हैं वे।
धरती पर उत्पत्ति के कारण उर्वसी अप्सरा को यहां के साधकों से विशेष लगाव रहता है। वे उनसे जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं।
धरती पर उत्पन्न होने के कारण उर्वसी अप्सरा को यहां के साधकों की जरूरतों की जानकारी अधिक है। इसलिये सिद्ध होने और वे साधकों की भौतिक जरूरतों को आजीवन बिना मांगे पूरी करती रहती हैं।
जिसमें धन, समृद्धि, यौवन सुख शामिल है। मान, सम्मान, प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि भी बढ़ाती हैं। दिव्य प्रेम का सुख/अपनापन देकर मन में, जीवन में उत्साह, उमंग पैदा करती हैं।
साधक की खुशियों के लिये हमेशा तैयार रहती हैं। साधक की जानकारी के बिना ही उनकी खुशियों को बढ़ाती रहती हैं। उनके लिये सुख की परिस्थितियां उत्पन्न करती हैं। वे महिला और पुरुष सभी साधकों का समान सहयोग करती हैं।
आप में से अनेकों महिला, पुरुष साधक
ऐसे हैं जिनकी आध्यात्मिक क्षमताएं अप्सरा सिद्धि के अनुकूल हैं। वे उन्हें जीवन में उतार सकते हैं। सिद्ध अप्सरा के साथ रह सकते हैं। उनके दिव्य प्रेम का आनंद ले सकते हैं। उनसे धन, यौवन, समृद्धि सुख प्राप्त कर सकते हैं। जन्मों की दरिद्रता का नाश कर सकते हैं। पद, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि पा सकते हैं।
मनोवांछित परिणामों के लिये
साधना मंत्र के बीज मंत्र उर्जा चक्रों में स्थापित हों। साधक का आभामंडल इष्ट के आभामंडल से जुड़ा हो। आज्ञा चक्र मार्गदर्शक गुरू की उर्जा से कनेक्ट हो। तो सिद्धी दूर नही। जिसे सिद्ध करने की योजना है वही उस साधना का इष्ट देवी/देवता होता है। इष्ट देवी/देवता के साथ उर्जा कनेक्टिविटी अनिवार्य होती है। उर्जा कनेक्ट होने के बाद ही जपे गए मंत्र या किया गया आवाहन इष्ट तक पहुंचता है।
एनर्जी गुरू श्री राकेश आचार्या जी
ने साधना के ऋषि विधान को उर्जा विज्ञान के अनुरूप प्रस्तुत किया है। उनको अप्सरा सिद्धि का ऋषि विधान हिमालय साधना के दौरान सिद्ध संतों से प्राप्त हुआ। एनर्जी गुरूजी ने युगों पुराने विधान को उर्जा विज्ञान के साथ प्रस्तुत किया है। जिससे आज के युग में भी साधाना सटीक हो जाती है। सिद्धि की सम्भावनायें अनेकों गुना प्रबल हो जाती हैं। साधक व साधना मंत्र के साथ हुई उर्जा कनेक्टिविटी से अप्सरा खिंची चली आती है। अनगिनत साधकों ने इसका लाभ उठाया है। आप भी उठायें।
सक्षम गुरू अपनी उर्जा शक्तियों का उपयोग करके
साधक की उर्जाओं को इष्ट के साथ सीधे कनेक्ट कर देते हैं। जो सिद्धि के लिये पर्याप्त होता है। किंतु यदि साधक के विचारों में भटकन हो तो गुरू द्वारा की गई उर्जा कनेक्टिविटी भंग हो जाती है। तब उर्जा उपकरण की जरूरत होती है। जो साधक और इष्ट को लगातार जोड़ कर रखे।
ऋषियों और विद्वानों ने उर्जा उपकरण के रूप में
यंत्र, मणि, गुटिका, बूटी, रुद्राक्ष आदि को सिद्ध करने का विधान बनाया। जो युगों से प्रभावी है। सिद्ध करके इनके भीतर आभामंडल, उर्जा चक्र, उर्जा नाड़ी, कुंडलिनी, पंचतत्व, सूक्ष्म चेतना को प्रबल बनाने वाली उर्जायें स्थापित कर दी जाती हैं। उनकी प्रोग्रामिंग करके साधक और इष्ट के साथ जोड़ दिया जाता है। इस तरह उर्जा उपकरण के रूप में सिद्ध ये वस्तुवें न सिर्फ इष्ट से जोड़कर रखती हैं बल्कि साधक के सूक्ष्म शरीर को सिद्धि हेतु सबल बनाये रखती हैं।
इन्हें आमतौर से गुरू या सक्षम आचार्य मंडल सिद्ध करते हैं। जिन्हें विधान अभ्यस्त है वह कोई भी कर सकता है।
आप भी सिद्ध कर सकते हैं, विधान
इसके लिये शुद्ध यंत्र, मणि, गुटिका, बूटी, रुद्राक्ष का चयन करें। उसके भीतर मौजूद पूर्व की नकारात्मक उर्जाओं, नकारात्मक भावनाओं को डिफ्यूज करें। अपने आभामंडल, उर्जा चक्र, कुंडलिनी, उर्जा नाड़ी, पंचतत्व और सौभाग्य चक्र की उर्जाओं के साथ जोड़ दें। सम्बंधित मंत्र का निर्धारित संख्या में जप करें। दशांश हवन, तर्पण, मार्जन करें। दान आदि करें।
इस तरह सिद्ध वस्तु की उर्जा प्रोग्रामिंग करके साधना के इष्ट की उर्जाओं से जोड़ दें। अंत में सिद्धी हेतु अखंड कनेक्टिविटी की प्रोग्रामिंग करें। फिर उपयोग करें। शानदार परिणाम प्राप्त करें।
खुद न कर सकें तो सक्षम विद्वानों से करायें। चाहें तो मृत्युंजय योग संस्थान से भी करा सकते हैं।
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रजिस्ट्रेशन होने पर गुरूजी साधक की लेटेस्ट फोटो मंगाकर आभामंडल के द्वारा उनकी अध्यात्मिक उर्जा को डिकोड करते हैं। आभामंडल और पंचतत्वों की परख करते हैं। आभामंडल की प्रवृत्ति के अनुसार निर्धारित करते हैं किस साधक को मणि, गुटिका, बूटी या यंत्र में से किसका उपयोग करना चाहिये। साथ ही गुरूजी साधना की क्षमता प्रखर करने के लिये रजिस्टर्ड साधकों के आभामंडल, उर्जा चक्र और पंचतत्वों को सशक्त करते हैं। साधना के दौरान भी आवश्यकता होने पर उर्जाओं की जांच करके जरूरी दिय़ा निर्देश देते हैं। ताकि साधक उत्साह पूर्नक सफलतायें अर्जित करने में सक्षम बनें।
उर्वसी अप्सरा साधना विधान
उर्वसी अप्सरा से उर्जा कनेक्टिविटी अनुष्ठान सम्पन्न होने के बाद शुभ मुहूर्त वाले किसी शुक्रवार से साधना आरम्भ करें। साधना 3 दिन चलेगी। एकांत में साधना करें। रात 10 बजे के बाद का समय इसके लिये अधिक उपयुक्त माना जाता है। क्योंकि उस समय बिना बाधा के एकांत मिल जाता है। किसी कारण वश रात में साधना न कर सकें तो अपनी सुविधानुसार कोई भी समय फिक्स कर लें। हर दिन एक ही समय पर साधना करें। साधना के समय साधना कक्ष में किसी और का प्रवेश बिल्कुल न हो। ताकि देवी बेझिझक वहां आ जा सकें।
साधना सामग्री-
- स्फटिक माला 108 मनके वाली
- घी का दीपक
- गुलाब के फूलों की माला
- दूध से बनी मिठाई
- लाल आसन
- गुलाब का इत्र
- गुलाब की सुगंध वाली धूपबत्ती
- सिद्ध उर्जा उपकरण मणि/गुटिका/बूटी/ यंत्र/ रुद्राक्ष आदि। इनमें से किसी एक का उपयोग करना है। आपकी एनर्जी चेक करके गुरू बताएंगे इस साधना में आपके लिये इनमें से किस चीज की जरूरत है।
साधना की तैयारी
साफ सुथरे, आकर्षक और सुगंधित कपड़े पहनें।
गुलाब की सुगंध वाला इत्र लगायें।
आसन से स्थायित्व का आग्रह करें
कहें- हे दिव्य आसन साधना की सफतला हेतु आप मेरे कुंडली चक्र, मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र में धरती की दैवीय शक्तियां स्थापित करें। अविचलित साधना हेतु मुझे स्थायित्व प्रदान करें।
आपका धन्यवाद।
उसके बाद मूलाधार चक्र पर ध्यान लगाते हुए
श्री गणेशाय नमः बोलें और आसन पर आराम से बैठ जायें।
5 मिनट ताली बजायें या कोई योग या इक्सरसाइज करें।
16 बार लम्बी गहरी सांसें धीरे धीरे लें, धीरे धीरे छोड़ें।
दीपक जला लें।
पुष्प पर उर्वसी अप्सरा का आवाहन करें
गुलाब का एक खिला हुआ पुष्प सामने किसी प्लेट या कटोरी में रखें। उस पर अप्सरा का आवाहन करें।
कहें- हे सौंदर्य की देवी उर्वसी अप्सरा आइये और इस पुष्प में आसन ग्रहण करें। पंचोपचार पूजन और साधना स्वीकार करें। साकार करें। सिद्ध सामग्री मणि/गुटिका/बूटी/ यंत्र/ रुद्राक्ष के द्वारा सिद्धि हेतु हर क्षण मुझसे जुड़ी रहें।
सिद्ध होकर मेरे मन में आ जायें। मेरे जीवन में आ जायें। मुझे सशरीर अपने सानिध्य का सुख प्रदान करें।
धन, यौवन, समृद्धि सुख प्रदान करें।
आपका धन्यवाद।
पुष्प पर जल छिड़ककर देवी को प्रतीकात्मक स्नान करायें।
वस्त्र के रूप में कलावा का एक टुकड़ा फूल पर रख दें।
कुमकुम का तिलक कर दें।
थोड़े अक्षत चावल छिड़क दें।
दीपक दिखायें।
गुलाब के सुगंध वाली धूप बत्ती जला दें।
मिठाई का भोग लगाकर 4 बार जल अर्पित करें।
पान सुपारी इलायची लौंग अर्पित करें।
दक्षिणा के रूप में सुपारी अर्पित करें।
इसी तरह पुष्प को रोज बदलकर उस पर देवी का आवाहन करें। पंचोपचार पूजन करें।
1- सिद्ध सामग्री मणि/गुटिका/बूटी/ यंत्र/ रुद्राक्ष हाथ लेकर सिद्धि का आवाहन करें
कहें- हे दिव्य सिद्ध सामग्री मणि/गुटिका/बूटी/ यंत्र/ रुद्राक्ष आपको उर्वसी सिद्धि हेतु मेरे लिये जाग्रत किया गया है। मेरी भावनाओं के साथ जुड़ जाइये। सदैव जुड़े रहिये। ब्रह्मांड से उर्वसी सिद्धि देने वाली उर्जायें ग्रहण करके मेरे आभामंडल में भर दें। उर्वसी सिद्धि हेतु मुझे सक्षम बनायें।
आपका धन्यवाद।
उसके बाद सिद्ध सामग्री मणि/गुटिका/बूटी/ यंत्र को उर्वसी आवाहन वाले पुष्प पर रख दें। इनमें से किसी एक का उपयोग करना है। किसका यह गुरू बताएंगे।
साधना के समय सामग्री स्थापित रखें।
2- श्री गणेशाय नमः बोलकर भगवान गणेश से निर्विघ्नता का आग्रह करें
अपने मूलाधार चक्र पर ध्यान लगाएं और कहें हे गौरीनंदन आपको हमारा प्रणाम। हमारे द्वारा सम्पन्न की रही उर्वसी अप्सरा साधना को निर्विघ्न करें। हमें शक्ति सम्पन्न बनाएं।
आपका धन्यवाद।
3- नवग्रहों से पंचतत्नों के लिये सकारात्मक उर्जायें मांगे
कहें- हे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध , गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु सहित सभी ग्रह नक्षत्रों आपको नमन। हमें अपने ग्रहों के दुष्प्रभावों से मुक्त रखते हुए उर्वसी अप्सरा सिद्धि हेतु अपनी सकारात्मक उर्जायें प्रदान करें। मेरे भीतर पंचतत्वों को सशक्त करें।
आपका धन्यवाद!
4- संजीवनी शक्ति से शुद्धता और क्षमता का आग्रह करें
सिर के ऊपर सहस्रार चक्र पर ध्यान लगाते हुए कहें हे दिव्य संजीवनी शक्ति आपको नमन। हम पर दैवीय ऊर्जाओं का शक्तिपात करें। हमारे तन, मन, मस्तिष्क, अभामंण्डल, ऊर्जा चक्रों को स्वच्छ और शक्तिशाली बनाएं। हमें उर्वसी अप्सरा सिद्धि हेतु सक्षम बनाएं।
आपका धन्यवाद! सिद्ध सामग्री मणि/गुटिका/बूटी/ यंत्र के द्वारा मुझे मेरे गुरूदेव के चरणों से जोड़कर रखते हुए मेरे आभामंडल को उर्वसी अप्सरा के आभामंडल को साथ जोड़ दें। और लगातार जोड़ कर रखें।
यदि आपने किसी को गुरू धारण करके रखा है तो उन्हें मन ही मन प्रणाम करें। अन्यथा भगवान शिव को गुरू बनाकर उन्हें प्रणाम करें।
5- भगवान शिव को साक्षी बनाकर साधना की सफलता हेतु उनसे सहायता और सुरक्षा मांगे
छाती पर स्थित अनाहत चक्र पर ध्यान लगाकर कहें हे देवाधिदेव महादेव आपको हमारा प्रणाम। हमारे मन मंदिर में विराजमान हों। आपको साक्षी बनाकर मै उर्वसी सिद्धि साधना सम्पन्न कर रहा हूं। इसकी सफलता हेतु मुझे अनुसति प्रदान करें। दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें। उर्वसी अप्सरा की अनुकूलता प्रदान करें।
आपका धन्यवाद!
6- उर्वसी अप्सरा से सिद्धि का आग्रह
कहें- हे सौंदर्य की देवी उर्वसी अप्सरा मेरे मन मंदिर में आकर विराजमान हो जायें। मै भगवान शिव को साक्षी बनाकर उर्वसी सिद्धि मंत्र
ॐ ह्रीं उर्वसी अप्सराये आगच्छ आगच्छ स्वाहा
का जप कर रहा हूं। इसे स्वीकार करें। साकार करें। मेरे लिये सिद्ध हो जायें। मेरे समक्ष आ जायें। सदैव मेरे साथ रहें। धन, यौवन, समृद्धि सुख दें।
आपका धन्यवाद!
7- मन्त्र से सिद्ध शक्ति का आग्रह
अपनी भौहों के बीच पर स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाकर कहें हे दिव्य मन्त्र
ॐ ह्रीं उर्वसी अप्सराये आगच्छ आगच्छ स्वाहा
आपको नमन। आप बीज मंत्रों सहित हमारे तन, मन, मस्तिष्क, अभामंण्डल, ऊर्जा चक्रों, हृदय सहित सभी अंगों और रोम रोम में व्याप्त हो जाएं। मेरी भावनाओं से जुड़कर हमारे लिए सिद्ध हो जाएं। हमें उर्वसी अप्सरा सिद्धि प्रदान करें।
आपका धन्यवाद!
8- अपनी शक्तियों में मन्त्र स्थापना करें
गले के बीच स्थित विशुद्धि चक्र पर ध्यान लगाते हुए कहें मेरे तन, मन, मस्तिष्क, अभामंण्डल, ऊर्जा चक्रों, हृदय सहित सभी अंगों और रोम रोम आपको नमन। आप सब
ॐ ह्रीं उर्वसी अप्सराये आगच्छ आगच्छ स्वाहा
मंत्र के साथ जुड़ जाएं। इनके बीज मंत्रों को अपने अंदर स्थापित करें। मन्त्र की शक्तियों को ब्रह्मांड से ग्रहण करके अपने अंदर धारण करें। मुझे उर्वसी अप्सरा सिद्धि हेतु सक्षम बनाएं।
आपका धन्यवाद!
9- विधान सम्पादन और प्रबलता के लिये एनर्जी गुरू जी की उर्जाओं का आवाहन करें
दोनों भौहों के बीच आज्ञा चक्र पर धायन लगाते हुए कहें- एनर्जी गुरू राकेश आचार्या जी ऋषियों द्वारा निर्मित साधना सिद्धि विधान को उर्जा प्रखंड में सम्पादित करके अति प्रभावशाली बनाने के लिये आपका धन्यवाद। साधना सिद्धि के लिये आप अपनी सूक्ष्म चेतना और सकारात्मक उर्जाओं के द्वारा हमें निरंतर सहयोग करें।
10- माला से मंत्र सिद्धि का आग्रह करें
जपने की लिये लाई माला को हाथ में लें। उस पर चम्मच यी हाथ से थोड़ा जल डालें।
कहें- हे दिव्य जप माला आपको मेरी साधना सिद्धि हेतु नमन। मेरी भावनाओं से जुड़कर मेरे लिये सिद्ध हो जायें। मेरे द्वारा किये जाने वाले मंत्र जप को शुद्ध, सिद्ध और सुफल बनायें। मुझे सिद्धि अर्जित करने हेतु सक्षम बनायें। आपका धन्यवाद।
11- मन्त्र जप
इसके बाद पुष्प पर रखी सिद्ध सामंग्री को बिना पलक झपकाये एकटक देखते हुए बिना गिने मानसिक मंत्र
ॐ ह्रीं उर्वसी अप्सराये आगच्छ आगच्छ स्वाहा मंत्र का जप करें। यह त्राटक जप है। जितनी ज्यादा देर सम्भव हो इस तरह त्राटक करते हुए मंत्र जपें। जब बोझल होने लगें तब आंखें बंद कर लें और माला से मंत्र जब करना शुरू करें।
मन्त्र का स्फटिक माला से जप करें।
रोज 21 माला मंत्र जप करें।
जप पूरा होने के बाद ॐ इन्द्राय नमः कहते हुए धरती पर मत्था टेकें और उठ जाएं।
ऐसा 3 दिन करें।
रोज नये गुलाब पुष्प पर पंचोपचार पूजन करके साधना करें।
तीसरे दिन की साधना में गुलाब की 2 माला लेकर बैठें। जब देवी का आगमन हो तब एक माला उन्हें पहना दें। देवी द्वारा दूसरी माला साधक को पहनाई जाती है। फिर देवी से वचन लें कि जब जहां बुलायें। वे आ जायें। सशरीर अपना सानिध्य प्रदान करें। वैभव पूर्ण जीवन, एश्वर्य, मान, सम्मान, राज सुख प्रदान करें।
देवी वचन देकर चली जाएंगी।
जीवन में परोक्ष अपरोक्ष रूप से उनके प्रवेश से हर तरफ सकारात्मकता बढ़ने लगती है। धन, एश्वर्य, वैभव चौतरफा बढ़ता है।
जब देवी को बुलाना हो तो साधक इसी मंत्र का 1 माला जप करके उनका आवाहन करते हैं। वचनवद्ध हुई देवी आ जाती हैं।
साधना सम्पन्न होने के बाद
1- साधना सामग्री को विसर्जित कर दें।
2- नदी, नहर, झील, समुद्र में विसर्जित करें। जहां नदी, नहर, झील, समुद्र नही है वहां के लोग सामग्री किसी पुराने बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे रख दें।
3- रोज लगाया जाने वाला भोग प्रसाद परिवार जनों के साथ ग्रहण कर लें।
रोज भोग के साथ जो पान, इलायची, लौंग अर्पित करते हैं उसका भी प्रसाद के रूप में सेवन कर सकते हैं।
या फिर उसे अलग रखते जाएं। बाद में फूलों के साथ विसर्जित कर दें।
शिव शरणं।