कुछ बातें गुरु जी के बारे में
मृत्युंजय योग टीम का सभी को राम राम
ध्यान साधना, रिसर्च और जरूरत मंदों की सेवा में अनवरत लगे गुरुदेव के पास समयाभाव के कारण मै आपकी सेवा में रहता हूँ.
आपके लिए सजीवनी शक्ति उपचार के गुरुदेव द्वारा लिखे चैप्टर मै ही यहां आप तक पहुंचा रहा हूँ.
कई लोगों ने गुरुदेव की दिनचर्या जानने चाही है. उनके संकल्प, प्रकल्प जानने की जिज्ञासा व्यक्त की है.
इस सन्दर्भ में आज मै गुरुदेव की दिन चर्या,
उनकी जनकल्याणकारी योजनाओं सेवा प्रकल्पों के बारे में कुछ जानकारी दे रहा हूँ.
उनका संकल्प…
हर व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान हो और सबका भविष्य सुनहरा हो, हर जीवन संरक्षित हो, यही गुरुवर का संकल्प है.
उनकी योजना…
भगवान शिव को गुरु बनाकर लोकसेवा में लगे रहने वाले एनर्जी गुरु श्री राकेश आचार्या जी मानव उर्जा विज्ञान पर अपने अनुसंधान व समाधानों के कारण आज विश्य स्तर पर पहचाने जा रहे हैं. तमाम देशों के जरूरतमंद लोग उनसे समाधान लेकरप लाभांवित हो चुके हैं.
और देश विदेश के तमाम लोग उनसे संजीवनी शक्ति उपचार सीख रहे हैं.
भविष्य में भारतीय सनातन विज्ञान के आधार पर देश में ह्यूमेन एनर्जी पर आधारित संजीवनी शक्ति उपचार का विश्व विद्यालय स्थापित करना उनकी प्रमुख योजना है.
जिसके जरिये सारी दुनिया को ऊर्जा उपचार का वैज्ञानिक लाभ मिलेगा.
निश्चित रूप से यह मानव जीवन के संरक्षण के लिये दिव्य क्रांति साबित होगी.
ऊर्जा उपचार के विज्ञान को जन जन तक पहुँचाने के लिये वे
वर्षों से अति व्यस्तता के बीच भी विभिन्न टी.वी. चैनलों पर लाइव प्रोग्राम देकर लोगों की समस्याओं के समाधान देते आ रहे हैं.
आपमें से अधिकांश लोग उन्ही टी.वी. प्रोग्राम के जरिये ही गुरुदेव के सम्पर्क में आये हैं.
ऊर्जा विज्ञान पर उनकी पकड़….
ऊर्जा विज्ञान और ध्यान साधनाओं पर उनकी पकड़ बहुत गहरी है. इसी कारण भोजन अब उनकी जरूरत नही रहा. वे एनर्जी को ही भोजन के रूप में ग्रहण कर लेते हैं.
गुरुवर पिछले कई सालों से भोजन नहीं करते. उन्होंने 2004 से भोजन त्याग की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. अब सामान्य भोजन उनकी जरूरत नहीं रहा.
उनकी जवसेवा….
गुरुवर खुद भोजन ग्रहण नही करते. लेकिन 1 हजार से अधिक लोगों के भोजन की व्यवस्था अपने खर्च पर करते है.
कई सौ बच्चों की पढ़ाई का खर्च खुद उठाते हैं.
नियमित रूप से तमाम जरूरत मंदों का इलाज अपने खर्च पर कराते हैं.
सुखी जीवन या साधनाओ की सिद्धी के लिये जरूरी है कि हमारी एनर्जी और ऊर्जा चक्र ठीक हो. जिन्हें अपने ऊर्जा चक्र व् एनर्जी ठीक करनी नही आती.
उन्हें एनर्जी रिपोर्ट की जरूरत पड़ती है.
एनर्जी रिपोर्ट में अपनी एनर्जी व् चक्रों को ठीक करने की सरल व् प्रभावी तकनीक दी गई है. सभी जानते हैं कि एनर्जी ठीक होने से समस्याएं स्वतः समाप्त हो जाती हैं.
जो लोग गरीब हैं, एनर्जी रिपोर्ट बनाने पर आने वाला खर्च नहीं दे सकते, उनसे 50000 बार ॐ नमः शिवाय मन्त्र लिखवाकर उन्हें गुरुदेव अपने खर्च पर एनर्जी रिपोर्ट दिलवाते है. उसके प्रोसेस का खर्च गुरुदेव खुद उठाते हैं. गुरुदेव के आश्रम में तमाम लोग निःशुल्क साधनाएं करते हैं और निःशुल्क संजीवनी शक्ति उपचार सीखते हैं.
इन सेवाओं के लिये गुरुदेव स्वयं कठिन परिश्रम करते हैं.
एनर्जी रिपोर्ट और हीलिंग से संस्था को जो धन मिलता है उसका अधिकांश हिस्सा उपरोक्त जरूरतमन्दों पर ही खर्च कर दिया जाता है.
उनकी दिनचर्या….
वे दिन भर जरूरत मंदों की सेवा में लगे रहते हैं. रात 10 से 2 बजे तक जागकर लोगों का संजीवनी शक्ति उपचार या हीलिंग करके उन्हें लाभान्वित करते हैं. फिर 5 बजे उठकर पुनः 7 बजे तक लगातार लोगों संजीवनी शक्ति उपचार करते हैं.
उसके बाद 11 बजे तक नियमित अपनी साधनायें करते हैं. फिर लोगों से मिलकर शाम 7 बजे तक उनकी समस्याओं के समाधन देते हैं.
निःशुल्क साधनायें कराते हैं. और संजीवनी उपचार सिखाते हैं.
उसके बाद 9 बजे तक नियमित ध्यान करते हैं.
यहां फेसबुक पर भी कुछ लोग अपनी समस्याओ के बारे में सवाल करते हैं. हमारे सहयोगी उन्हें गुरुदेव तक पहुचाते हैं. समय मिलते ही गुरुदेव उन्हें एनर्जी ठीक करके समस्या मुक्ति के उपाय बताते हैं.
गुरुदेव हमेशा सबके सुनहरे कल के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं.
संजीवनी शक्ति उपचार- सुख, समृद्धि, सुरक्षा का वरदान
संस्थापक एवं लेखक- एनर्जी गुरू राकेश आचार्या

कई बार तमाम योग्यताओं, क्षमताओं के बावजूद हमें वे नतीजे नहीं मिलते जिनके हम हकदार हैं, क्यों?
हमारे संतुलित व्यवहार, मीठी वाणी और सरलता के बावजूद कई बार रिश्ते बिगड़ ही जाते हैं, क्यों?
दूसरों का हित करने पर भी कई बार बुराईयां ही हिस्से में आती हैं क्यों?
अथक मेहनत, बेदाग ईमानदारी और जुझारूपन भी कई बार वे सफलताएं नही दिला पाता जिनके हम हकदार हैं, क्यों?
हर पल पाजिटिव रहने के संकल्प के बावजूद कई बार हम नकारात्मकता से घिर जाते हैं, क्यों?
दूसरों से कई गुना काबिल होने के बावजूद कई बार हम उनसे पिछड़ जाते हैं, क्यों?
राष्ट्रभक्ति और अविचलित कर्मयोग के बावजूद कई बार मान, सम्मान, यश कीर्ति नहीं मिलती, क्यों?
अच्छे से अच्छे इलाज के बावजूद कई वार स्वास्थ नहीं सुधरता, क्यों?
पूरी आस्था, अटूट भक्ति और संदेहरहित समर्पण के बावजूद कई वार भगवत् कृपा प्राप्ति नही पो पाती, क्यों?
इन जैसे और भी तमाम सवाल हैं जिनका सामना हमें हर दिन करना पड़ता है। इनका जवाब पाने के लिए हमें जीवन चलाने वाली दैवीय शक्ति संजीवनी से परिचित होना होगा।
इसके पास हमारे जीवन के पल पल का हिसाब है। यही शक्ति हमारे आभामंडल और उर्जा चक्रों का संचालन करती है। सजीवनी शक्ति बगड़ने पर आभामंडल और उर्जा चक्र ठीक से काम नहीं कर पाते।
इसी कारण असफलताओं, बीमारियों, बदनामी, गुस्सा, अहंकार, आर्थिक संकट, दुर्घटनाओं, मुसीबतों और दुखों का सामना करना पड़ता है।
आप जानकर चकित हो जाएंगे कि सर्दी जुकाम, कील, मुहासे, फुंसी से लेकर कैंसर, एड्स तक सभी रोग संजीवनी शक्ति बिगड़ने से ही पैदा होते हैं। इसको ठीक करके रोगों को भी ठीक किया जा सकता है।
इसी तरह पढ़ाई में मन न लगना, शादी व्याह में देरी से लेकर कर्ज, कलह, विवादों और समस्त प्रकार की रुकावटों के पीछे भी संजीवनी शक्ति बिगड़ने का ही कारण होता है। इसको ठीक करने से ये परेशानियां भी खत्म हो जाती हैं।
संजीवनी उपचार में मै आपको संजीवनी शक्ति को ठीक करके अपने व दूसरों के जीवन को संवारना सिखाउंगा।
चैप्टर 1
इसके लिये आभामंडल और उर्जा चक्रों को ठीक करना होता है. इसे करना उतना ही आसान है, जितना गिलास उठाकर पानी पीना. बस अपनी शक्तियों का उपयोग करना आना चाहिये. इसे सीखना उतना ही आसान है, जैसे स्मार्ट फोन का इश्तेमाल करना.
अब आप भी संजीवनी शक्ति उपचारक बनने जा रहे हैं। विश्व विख्यात एनर्जी गुरु एवं शिव शिष्य श्री राकेश आचार्या जी संजीवनी शक्ति उपचार इस ग्रुप में निःशुल्क सिखा रहे हैं। अपने और दूसरों के जीवन को तनाव व समस्याओं से मुक्त कर देने वाली यह महान हीलिंग टेक्निक है।
अपनी कुंडली और उर्जा चक्रों को एक्टिव करके उनका उपयोग करने वाली इस महान तकनीक से आप न सिर्फ खुद की समस्यायें मिटा देंगे. बल्कि दूसरों को भी दुखों से मुक्त करने में सक्षम हो जायेंगे.
चमत्कारी व्यक्तित्व की राह पर बढ़ने के लिए हमारी शुभकामनायें.
दिल से सीखें और अपने व दूसरों के दुखों को दूर करें।
सुपर हीलिंग के तहत संजीवनी शक्ति उपचार विद्या।
यह ब्रह्मांड चलाने वाला बड़ा ज्ञान है। इसको सीखने के बदले गुरुदक्षिणा या आज की भाषा में कहें तो फीस तो देनी ही होगी आपको। वो भी एडवांस।
मेरी फीस के रूप में आप सभी किसी गरीब परिवार को भोजन दें। उन्हें हर माह उनकी जरूरत के मुताबिक आटा दान करें। इसके लिए अपने आस पास कोई परिवार ढ़ूंढ लीजिए। अगर आपको एेसा कोई परिवार न मिले या आप में से कोई धनाभाव के कारण एेसा न कर सकें तो हम मिलकर लोगों का पेट भरेंगे।
उसके लिए नीचे की बातों पर ध्यान दें
1. यदि आप में से किसी के पास आटा दान के लिए धन नहीं है तो भी आप एक गरीब परिवार को मदद के लिए अपनायें। उसका खर्च हमारी संस्था देगी। उस परिवार को हर माह आटा देने पर जितना खर्च होगा वह हम यहां से भेजेंगे। आपके एकाउंट में।
2. यदि आप को दान के लिए कोई गरीब परिवार न मिले तो हमारी संस्था के जरिए आटा दान कर सकते हैं। हमारी संस्था द्वारा हर माह तमाम परिवारों को अन्न दान दिया जाता है। उसी में से मदद के लिए कोई परिवार आप अपना सकते हैं। इस दशा में आपको आटे का पैसा हमारी संस्था के एकाउंट में भेजना होगा।
3. आप स्वयं कोई गरीब परिवार अपनाएं और अपने खर्च पर हर माह उसे जरूरत भर का आटा दें।
तीनों में से कोई भी बिन्दु आप तत्काल अपना लें।
जिन घरों में कलह या कर्ज की समस्या अधिक हो उनके लिए अन्नदान से बड़ा कोई उपाय नहीं। उन्हें एेसा हमेशा करते रहना चाहिए। इससे अकारण दुख पैदा करने वाली उर्जाएं घर से निकल जाती हैं। और समृद्धि स्थापित होती है।
और हां भगवान शिव को गुरू बनाकर रोज राम राम सुनाना न भूलें। इससे बिगड़ते रिश्ते बनने लगते हैं और मान सम्मान में बढ़ोत्तरी होती है।
चैप्टर 2

संजीवनी शक्ति को देखने से हमारे लिए इसका लगाव बढ़ता है। साथ ही ये डिवाइन पावर हमारा साथ देने के लिए तैयार हो जाती है।
इसे देखने के लिए खुले आसमान के नीचे आ जायें। वहां सूरज की तरफ पीठ करके खड़े हो जायें। फिर आसमान की तरफ देखना शुरू करें। अपने से लगभग 5 फीट की दूरी पर नजरें टिका दें। और अपलक एक ही जगह देखते रहें।
कुछ ही देर में वहां चमकते हुए पुच्छल तारे से नजर आने लगेंगे। उन्हें ध्यान से देखते रहें। थोड़ी ही देर में उनकी पूंछ गायब हो जाएगी। और वहां चांदी की तरह चमकते बिन्दु दिखने लगेंगें। जो इधर उधर भागते नजर आएंगे।
यही संजीवनी शक्ति है। इसे ध्यान से देखते रहें। धीरे धीरे यह घनी होती जाएगी। और सिल्वर प्वाइंट अपनी तरफ आते नजर आएंगे। इन्हें देखने की प्रेक्टिस करते रहें तो यह शक्ति हमसे रिश्ता मजबूत कर लेती है। और हमारे इशारे समझने लगती है। हमारे मनोभावों के मुताबिक काम करने को तैयार हो जाती है। इसकी प्रेक्टिस आजीवन करते रहनी चाहिए। इससे ग्रह व वास्तुदोष का दुष्प्रभाव भी समाप्त होता है।
संजीवनी शक्ति को हम चांदनी रात में भी देख सकते हैं। रात के समय चांद की तरफ पीठ करके खड़े हो जायें। फिर किसी पेड़ की पत्तियों को देखें। किसी एक जगह नजर टिका कर अपलक देखते रहें। थोड़ी देर बाद पेड़ के पत्तों और डालियों पर फैली संजीवनी शक्ति दिखने लगेगी।
पत्ते और डालियां चांदी से चमकते नजर आएंगे। यह बड़ा ही मनमोहक लगता है। इसे देखने से जीवन में शांति और खुशियां स्थापित होती हैं।
आगे मै आपको संजीवनी शक्ति को छूना और नापना सिखाउंगा।
चैप्टर 3


संजीवनी शक्ति को छूकर नापें……
संजीवनी उपचार के तहत अब मै आपको संजीवनी शक्ति को छूना और नापना सिखाउंगा। दोनों हाथों को आपस में रगड़ें, लगभग 20 बार। रगड़ते समय ध्यान रखें कि हथेलियां और उंगलियां बराबर रगड़ें।
इससे हमारे हाथ संजीवनी के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। तब हमारे लिए संजीवनी शक्ति को छू पाना आसान हो जाता है।
इसके बाद दोनों हथेलियों को थोड़ा मोड़ लें। पहले चित्र में दिखाये गए हाथों की तरह। दोनों हथेलियों को एक दूसरे से लगभग 4 फीट की दूरी पर ले जायें। हाथों और हथेलियों को ढ़ीला रखें। फिर दोनों हाथ धीरे धीरे एक दूसरे की तरफ लाना शुरू करें।
इस क्रिया को करते समय अपनी जबान ऊपर तालू से चिपकाकर रखें। और मन में संजीवनी उत्पादक मंत्र ऊं. ह्रौं जूं सः का जाप करते रहें। इस मंत्र का जाप करने से संजीवनी शक्ति के साथ हमारा जुड़ाव बढ़ जाता है।
हाथों को एक दूसरे की तरफ लाते समय आप पाएंगे कि एक जगह पर आकर हथेलियां रुक सी रही हैं। और एक दूसरे को पीछे ढकेल रही हैं। बस इसी जगह हाथों को रोक लें। यह संजीवनी शक्ति की छुवन हैं। आपने अपने आभामंडल को छू लिया।
कुछ लोगों को संजीवनी की छुवन हथेलियों में कम्पन या ठण्ढक या गर्मी या झनझनाहट या खुजली के रूप में महसूस होगी। जिनका आभामंडल बहुत कमजोर है उनकी हथेलियां एक दूसरे की तरफ अपने आप खिंचती सी महसूस होंगी।
इस क्रिया को बार बार दोहरायें। इसकी आगे बहुत जरुरत पड़ने वाली है। पहली बार संजीवनी शक्ति छूने में कुछ समय लग सकता है। क्योंकि शुरूआत में हम इसकी छुवन से परिचित नहीं होते। अगर एक दो बार में संजीवनी न छू सकें तो निराश न हों। अभ्यास करते रहें। हो ही जाएगा। एेसा कोई नहीं जो इसे न कर सके।
इस तरह से आप न सिर्फ अपने आभामंडल को संचालित कर रही संजीवनी शक्ति को छू लेंगे बल्कि अपनी उर्जा को नाप भी लेंगे।
सामान्य स्थितियों में आप देखेंगे कि आप के हाथ बार बार एक ही दूरी पर रुक रहे हैं। जब आपका आभामंडल सामान्य होगा तो हाथ लगभग दो फीट की दूरी पर रुकेंगे। आभामंडल के कमजोर होने पर हथेलियां इससे कम दूरी पर रुकेंगी।
कमजोर आभामंडल अक्सर मुसीबतें खड़ी करता है। सो एेसा हो तो संजीवनी उत्पादक मंत्र ऊं. ह्रौं जूं सः का जाप करें। थोड़ी देर बाद पुनः नापें। तो पाएंगे कि अब हथेलियां पहले से अधिक दूर रुकने लगी हैं। अर्थात मंत्र जाप से आभामंडल तुरंत बढ़ गया।
इस अभ्यास को करने के बाद दूसरे चित्र की तरह हथेलियां फैलायें। और इसी मंत्र का जाप करते हुए संजीवनी शक्ति का आवाह्न करें। कहें हे दिव्य शक्ति मेरे हाथों के बीच आ जायें। कुछ देर इंतजार करें। आप पाएंगे कि हथेलियों में दबाव या भारी पन महसूस हो रहा है। बस समझ जाइये महान संजीवनी शक्ति आपके इशारे पर काम करने को तैयार है।
आगे मै आपको खुली आंखों से अपनी उर्जा और आभामंडल को देखना सिखाउंगा
चैप्टर 4

संजीवनी उपचार के तहत अब मै अपनी उर्जा और आभामंडल को देखने
का तरीका सिखा रहा हूं। इसके लिए किसी प्लेन बैक ग्राउण्ड को चुने। बैक ग्राउण्ड सफेद हो तो बेस्ट रहेगा। अब अपने एक हाथ की मुट्ठी बंद करें। उसके अंगूठे को ऊपर उठायें।
अंगूठे को प्लेन व ब्राइट बैक ग्राउण्ड की तरफ उठायें। फिर अंगूठे पर कहीं एक जगह अपनी नजरें टिका दें। उसे अपलक देखें। देखें पहला चित्र। बिल्कुत इसी तरह से करना है।
इस बीच संजीवनी उत्पादक मंत्र ऊं. ह्रौं जूं सः का मानसिक रूप से जाप करें। तो अभ्यास अधिक प्रभावशाली होगा।
कुछ ही देर में अंगूठे के पीछे से रोशनी सी आती दिखने लगेगी। अंगूठे के ऊपरी भाग पर प्रकाश की चमकती पतली लाइन सी दिखेगी। शुरूआत में सफेद और अभ्यास बढ़ाने पर अलग अलग रंग दिखेंगे। ये आपके आभामंडल में संजीवनी शक्ति की पहली पर्त है। आपने अपनी एनर्जी देखनी शुरू कर दी।
पहले आपने आभामंडल की पहली पर्त देखी। अब मै आपको आभामंडल को देखना सिखाता हूं।
एक बड़े आइने के सामने खड़े हो जायें। वहां रोशनी थोड़ी कम होनी चाहिए। खुद को आइनें में देखना शुरू करें। अपने एक कंधे पर नजरें टिका दें और अपलक देखें। कुछ ही देर में अपने शरीर से प्रकाश निकलता दिखने लगेगा। जो शरीर से बाहर की तरफ जा रहा होगा। शुरूआत में यह पीला दिखेगा। बाद में इसके अलग अलग रंग दिखने लगेंगे। दूसरे चित्र में दिख रहे आभामंडल की तरह आप इसे देख सकेंगे। यही आपका आभामंडल है।
इस बीच संजीवनी उत्पादक मंत्र ऊं. ह्रौं जूं सः का मानसिक रूप से जाप करें। तो अभ्यास अधिक प्रभावशाली होगा। आगे जब आप दूसरों के आभामंडल और उर्जा चक्रों को खुली आंखों से देखने की दिव्य दृष्टि पाना चाहेंगे तो इस अभ्यास की बहुत जरुरत पड़ेगी। इसलिए इसे अच्छे से करें।
आइने में खुद को देखने का अभ्यास करते समय कुछ बातें विशेष रूप से ध्यान रखें।
1. यदि आपको अपना चेहरा डरावना दिखने लगे तो डरें नहीं। यह संजीवनी शक्ति की सफाई के समय कई बार स्वतः हो जाता है।
2. यदि आइनें में कुछ और आकृतियां दिखें तो घबरायें नहीं यह कई बार उर्जा चक्रों की स्वतः सफाई के दौरान एेसा हो जाता है।
3. यदि आइनें से खुद का अश्क गायब होकर दिखना बंद हो जाये तो भी घबरायें नहीं, इस अभ्यास के दौरान कई बार यह सामान्य रूप से हो जाता है।
आगे मै आपको बताउंगा कि संजीवनी शक्ति हमारे जीवन को क्यों और कैसे चलाती है।
चैप्टर 5

संजीवनी शक्ति उपचार में आपने संजीवनी शक्ति को देखना, अपनी उर्जा को छूना, नापना और अपने आभामंडल को देखना सीखा। इससे एनर्जी की दुनिया में आपका सीधा प्रवेश हो गया। साथ ही महान संजीवनी के प्रति आपका विश्वास पक्का हुआ होगा।
अब हम जानेंगे कि संजीवनी शक्ति जीवन कैसे चलाती है।
मृत्युंजय शिव संजीवनी शक्ति के स्रोत हैं।
लघु मृत्युंजय मंत्र ऊं. ह्रौ. जूँ सः धरती पर संजीवनी का उत्पादक मंत्र है। संजीवनी शक्ति से ही जीवन का निर्माण हुआ है। पहले इसके पीछे का विज्ञान समझ लेते हैं। संजीवनी शक्ति सीधे पंच तत्वों को नियंत्रित करती है।
पंच तत्व यानी पृत्थी तत्व, जल तत्व, अग्नि तत्व, वायू तत्व और आकाश तत्व।
पंच तत्व आभामंडल और उर्जा चक्रों को निर्मित करके सेल्स यानी कोशिकाओं का निर्माण करते हैं। कोशिकाएं टिशू बनाती हैं। टिशू से अंग बनते हैं। अंगों से शरीर बनता है। इस तरह पंच तत्व शरीर और शरीर से चलने वाले जीवन पर कंट्रोल करते हैं। और संजीवनी शक्ति पंच तत्वों पर कंट्रोल करती है।
वैसे तो इन तत्वों के बारे में आपने पहले ही सुना और जाना होगा। आगे मै आपको इनका विस्तार से परिचय दूंगा। संजीवनी के जरिए इन्हें ही कंट्रोल करके जीवन को जीतने का विज्ञान है संजीवनी शक्ति उपचार।
पंच तत्व अंसतुलित होकर शरीर को बिगाड़ने लगते हैं। इसी से शरीर में छोटी बड़ी सभी तरह की बीमारियां होती हैं। पंच तत्वों का असंतुलन चक्रों को बिगाड़ता है। बिगड़े हुए चक्र मन मस्तिष्क को भी बिगाड़ देते हैं। प्रायः इसी कारण शुरू होता हैं नकारात्मक भावनाओं और नकारात्मक विचारों का विनाशकारी सिलसिला।
यही असंतुलन नाकामयाबी, रुकावटों, विवादों, अभाव, बेचैनी, तनाव, गुस्से और बीमारियों का कारण बनकर जीवन में दुख पैदा करता है। अगर पंच तत्वों को नियंत्रित करके संतुलित कर लिया जाये, तो जीवन से दुख मिट जाते हैं।
संजीवनी शक्ति के जरिए हम पंच तत्वों को बहुत आसानी से संतुलित और कंट्रोल कर सकते हैं। कैसे, ये मै आगे सिखाउंगा।
कल से मै आपको पंच तत्वों के गुण और उपयोगिता की जानकारी दूंगा।
चैप्टर 6

आज हम पृथ्वी तत्व से परिचित होंगे।
इस तत्व के देवता भगवान गणेश हैं।
जैसा कि नाम से पता चलता है पृथ्वी तत्व धरती से जुड़ी उर्जा है। हमारे शरीर में इसका केन्द्र मूलाधार चक्र होता है। मूलाधार को कुछ लोग रूट या बेसिक चक्र के नाम से जानते हैं। पैरों के तलवों और हथेंलियों में स्थित उपचक्र इसके सपायक होते हैं। जो पृत्थी तत्व की उर्जाएं धरती से लेकर मूलाधार को देते रहते हैं। स्वयं मूलाधार भी प़थ्वी तत्व की उर्जाएं धरती से लेता रहता है।
मूलाधार चक्र हमारे शरीर में मंगल ग्रह की उर्जाओं का भी केन्द्र होता है। जिनमें पृथ्वी तत्व की बहुतायत होती है।
एक पौराणिक गाथा के मुताबिक पूर्व काल में उज्जैन के पास भगवान शिव का राक्षसों के साथ भयानक युद्ध हुआ। जो लम्बे समय तक चला। उस दौरान प्रक्षेपास्त्रों के भारी उपयोग से वहां की धरती प्रचंड रूप से तपने लगी। उसका रंग लाल हो गया।
भारी रक्तपात और शिव के प्रचंड पसीने के धरती पर गिरने से धरती का एक भाग ठण्डा होकर टूट गया। और अंतरीक्ष में उड़ गया। वहां एक जगह रुककर केंद्रित हो गया।
जिसे बाद में मंगल ग्रह का नाम दिया गया। क्योंकि उसके टूटकर उछलते ही दानव घबरा गए। वे शिव से पराजित हुए। और धरती पर पुनः मंगल हो गया। इसीलिए ज्योतिष में मंगल ग्रह को लाल ग्रह और धरती का पुत्र भी कहा जाता है। और इसी कारण ही मंगल ग्रह धरती पर उज्जैन से सबसे नजदीक है।
यह पौराणिक कथा अपनी जगह सत्य हो या फिर कारण कुछ और हो। लेकिन मंगल ग्रह की उर्जा में पृथ्वी तत्व बहुत अधिक होता है। उसके गुण धरती के तत्व के समान ही होते हैं। उसका हमारे शरीर और मन मस्तिष्क पर सीधा असर पड़ता है।
पृथ्वी तत्व मूलाधार चक्र को नियंत्रित करके शरीर का निर्माण करता है। यह कोशिकाओं, खून, हड्डियों, मांसपेशियों, त्वचा, बालों, नाखूनों के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाता है। इन्हें कंट्रोल भी करता है। शारीरिक व मानसिक शक्ति यहीं से पैदा होती। इस तत्व के बिगड़ने से मूलाधार चक्र बिगड़ जाता है। जिससे खून, हड्डियों, मांसपेशियों, त्वचा, बालों के रोग पैदा होते हैं। हृदय और मस्तिष्क के रोगों का कारण भी कई बार यही होता है।
कमजोरी, आलस्य, निराशा, आर्थिक तंगी, बेरोजगारी, डिप्रेशन, आत्मबल में कमी भी मूलाधार चक्र के बिगड़ने से होता है। इसमें पृथ्वी तत्व कम हो जाये तो व्यक्ति आत्महत्या करने पर आमादा हो जाता है। मूलाधार में यह तत्व अधिक हो जाये तो व्यक्ति हिंसक होकर हत्या तक कर डालता है।
पृथ्वी तत्व को संतुलित करके मूलाधार को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। संजीवनी शक्ति पंच तत्वों को कंट्रोल करती है। सो संजीवनी शक्ति उपचार करके पृथ्वी तत्व को सरलता से संतुलित किया जा सकता है।
कल मै आपको जल तत्व की भूमिका और उपयोगिता की जानकारी दूंगा।
चैप्टर 7

संजीवनी शक्ति उपचार में हम बात कर रहे हैं पंच तत्व अर्थात पंच महाभूतों की। यही हैं जीवन को शिखर पर पहुंचाने की असली चावी। गरुण पुराण में तो इन पर नियंत्रण करके अगले जीवन को भी संवारने की चर्चा हुई है। मोक्ष की राह भी इनसे होकर गुजरती है। त्रेता उपनिषद में पंच तत्वों और आभामंडल व उर्जा चक्रों पर कंट्रोल करने की तकनीक विस्तार से दी गई है।
संजीवनी शक्ति उपचार भी एेसी ही महान तकनीक है जो न सिर्फ इस जीवन को संवारती है बल्कि आने वाले जन्म भी इससे सुधारे जा सकते हैं। इसके प्रथम चरण में मै आपको पंचतत्वों का उपयोग करके उर्जा चक्रों को सही रखना और जाग्रत करना सिखाउंगा।
इसके लिए जरूरी है कि हम पंच तत्वों की उपयोगिता और उनकी शक्तियों से परिचित हों।
पहले हमने पृथ्वी तत्व की बात की। इसकी शक्तियां विशाल हैं। इस पर नियंत्रण करना आ जाये तो गुरुत्वाकर्षण को न्यूटल करके व्यक्ति हवा में उड़ सकता है। इसे वस में करने वाला अजर होकर इच्छा मृत्यु की शक्तियां हासिल कर लेता है। धरती पुत्री सीता मइया को पृत्थी तत्व पर नियंत्रण करना बहुत अच्छी तरह आता था। रावण उनकी इसी शक्ति से घबराता था। इसी कारण विवाह के लिए वह उन पर कभी बल प्रयोग न कर सका। सीता जी ने पहले से ही पृथ्वी तत्व का मनचाहा उपयोग करने वाले हनुमान जी को इस पर नियंत्रण करना भी सिखा दिया। जिससे वे अजर अमर हो गए।
मतलब ये कि पंच तत्वों को नियंत्रित करके इस शरीर से संचालित सारी गितविधियों को कंट्रोल किया जा सकता है।
अब मै आपको जल तत्व की जानकारी दे रहा हूं। हमारे शरीर में कमर से थोड़ा नीचे और जननांगों से ऊपर स्थित स्वाधिष्ठान चक्र इसका केन्द्र है।
गरुण पुराण के मुताबिक इस केन्द्र के देवता भगवान ब्रह्मा होते हैं। यह आनंद और क्रिएशन का केन्द्र है। इसका अपना कोई रंग नहीं होता। नीचे पृथ्वी तत्व की लाल और ऊपर अग्नि तत्व की पीली उर्जा को मिलाकर यहां बीच में नारंगी रंग नजर आता है। इस तत्व पर शुक्र और चन्द्र ग्रह की उर्जाओं का प्रभाव होता है।
जल तत्व जीवन को स्रजन और प्रवाह प्रदान करता है। पृथ्वी तत्व के साथ मिलकर यह जीवन का स्रजन करता है। अग्नि तत्व के साथ मिलकर यह अध्यात्मिक प्रखरता का स्रजन करता है। वायु तत्व के साथ मिलकर उर्ध्य गामी हो जाता है। एेसे में यह सिद्धियों का स्रजन करता है। आकाश तत्व के साथ मिलकर यह उत्तरोत्तर उन्नति का स्रजन करता है। शिव तत्व के साथ मिलकर व्यक्ति को शिव मय कर देता है। इसके जागरण और संतुलन के बिना किसी की भी कुण्डली का जागरण नहीं हो सकता।
जल तत्व असंतुलित हो तो स्वाधिष्ठान चक्र बिगड़ जाता है। एेसे में नपुंसकता, बांझपन, सभी तरह के गुप्त रोग, माहवारी की तकलीफ, मूत्र रोग, आकर्षण में कमी, जीवन में जड़ता, कला के क्षेत्र की रुकावटें, नीरसता, सिद्धियों में रुकावटें, प्रगति में रुकावटें और अपनों से दूरियां पैदा होने लगती हैं।
जल तत्व को नियमित करके उक्त स्थितयों को सरलता से दूर किया जा सकता है। अपनी भी दूसरों की भी। महान संजीवनी का उपयोग करके कैसे करें जल तत्व पर कंट्रोल। ये तकनीक मै आपको सभी तत्वों और उर्जा चक्रों से परिचित कराने के बाद सिखाउंगा, ताकि आप चमत्कारिक शक्ति का मनचाहा उपयोग करते समय कभी फेल न होने पायें।
कल मै आपको अग्नि तत्व की उपयोगिता और शक्तियों की जानकारी दूंगा।
चैप्टर 8

संजीवनी शक्ति उपचार
अपना और दूसरा का जीवन सुधारने की दिव्य क्षमता वाले संजीवनी उपचार को
सीखने के तहत हम इन दिनों पंच तत्वों की बात कर रहे हैं।
अभी तक आपने पृथ्वी व जल तत्व को जाना। अब हम अग्नि तत्व की बात करेंगे। हमारे शरीर में इसका केन्द्र मणिपुर चक्र है। जो नाभि से ऊपर दोनो पसलियों के बीच स्थित होता है।
गरुण पुराण के मुताबिक इसके देवता विष्णु हैं। यह भावनाओं और सफलताओं का केन्द्र है। प्रसार इसकी प्रवृत्ति है। इस तत्व पर सूर्य ग्रह का पूर्ण प्रभाव होता है। शरीर में यह तत्व संतुलित हो तो चेहरे पर चमक, व्यक्तित्व में तेज, सोसाइटी में पापुलरिटी, कामों में सफलता, स्वभाव में साहस, लोगों में मान्यता और जीवन में उन्नति होती है। यही तत्व हमारे भीतर दुनिया जीत लेने का हौसला और क्षमता पैदा करता है। यह पाचन तंत्र को भी नियंत्रित करता है।
अग्नि तत्व असंतुलित हो तो तनाव, बेवजह गुस्सा, अकारण भय, हिंसा की प्रवृत्ति, नशे की आदत, झूठ बोलने की आदत, धोखा देने की आदत, अपराध में रुझान, आलोचना की आदत, असफलताएं, फ्रस्टेशन, चिड़चिड़ापन, अपनी कमियां दूसरों में थोड़ने की प्रवृत्ति पैदा होती है। साथ ही एसिडिटी, पेट के रोग, हृदय के रोग, सुगर, थायराइड, लीवर, किडनी के रोग उत्पन्न होते हैं। मन हमेशा अशांत रहता है। डिप्रेशन सहित तमाम तरह के मनोरोगों का कारण भी इसी से पैदा होता है।
महान संजीवनी शक्ति का उपयोग करके इस तत्व और इससे प्रभावित होने वाले उर्जा केन्द्रों को आसानी से ठीक कर लिया जाता है। इसके नियंत्रित होने से जीवन जीने का असली सुख मिल ही जाता है।
आगे के चैप्टर्स में महान संजीवनी शक्ति का उपयोग करके पंच तत्वों और उनके उर्जा चक्रों को नियंत्रित करने की तकनीक मै सिखाउंगा।
कल बात करेंगे दुनियां की खुशियां जीतने में सक्षम वायु तत्व की।
चैप्टर 9

संजीवनी शक्ति उपचार
अपनी शक्तियों को जगाकर जीवन जीतने की इस तकनीक में हमने अब तक अग्नि तत्व की उपयोगिता और अनिवार्यता जानी। अब हम वायू तत्व की बात करेंगे।
शरीर में वायुतत्व का केन्द्र हृदय स्थल पर स्थित अनाहत चक्र होता है। गरुण पुराण के मुताबिक शिव इसके देवता हैं। यह उच्च भावनाओं का केन्द्र है। करुणा और दया इसकी प्रवृत्ति है। प्रेम और सुख इसके गुण हैं।
वायु तत्व नियंत्रित हो तो मन में सदैव उत्साह और उमंग भरा रहता है। प्यार से किसी को भी जीता जा सकता है। जिसमें वायु तत्व संतुलित हो वह व्यक्ति को प्यार में कभी धोखा नही मिलता है और न वह किसी को धोखा देता है। दूसरों पर दया करना, उनकी मदद करना, मानवता का सम्मान करना और सम्मान पाना ये सब उसके जीवन के अंग होते हैं। एेसे व्यक्ति का जीवन सुख और शांति से भरा होता है।
वायु तत्व के बिगड़ने से एेसा महसूस होता है जैसे भगवान ही रूठ गए। जीवन से सुख गायब हो जाते हैं। मन उत्साहहीन हो जाता है। तमाम साधन होते हुए भी सुख की अनुभूति नहीं होती। जीवन नीरसता से भर जाता है। प्यार में धोखा मिलता है। नफरत का सामना करना पड़ता है। दिल की बीमारियां लग जाती हैं।
संजीवनी शक्ति उपचार करके इस तत्व को हम आसानी से ठीक कर सकते हैं।
कल बात करेंगे अपने व्यक्तित्व को ऊंचाईयां देने में सक्षम आकाश तत्व की।
चैप्टर 10

महान संजीवनी शक्ति का उपयोग करके जीवन में अमूल चूल परिवर्तन की तकनीक संजीवनी शक्ति उपचार में हमने अबतक पृथ्वी, जल,अग्नि और वायु तत्वों को जाना।
आज हम आकाश तत्व से परिचित होंगे।
शरीर में इसका केन्द्र गले के बीचोबीच स्थित विशुद्धी चक्र है। गरुण पुराण के मुताबिक इसके अधिष्ठाता देव आत्म चेतन है। यह उच्च स्रजन का केन्द्र है।
शरीर का आकाश तत्व जाग्रत करके नियंत्रित कर लिया जाये तो आसमान में उड़ने की शक्ति मिल जाती है। देवलोक के लोग इस तत्व का बहुतायत उपयोग करते है। इस तत्व की स्थिति अच्छी होने पर व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली बन जाता है। व्यक्ति की प्रतिभा और क्षमताएं आसमान छू लेती हैं। एेसा व्यक्ति खुद को हर जगह प्रूफ कर लेता है।
शरीर में यह तत्व बिगड़ जाये तो व्यक्ति अपनी बात को ठीक से प्रस्तुत नहीं कर पाता है। पर्सनालिटी बुझी सी रहती है। तमाम योग्यताएं, क्षमताएं होने के बावजूद एेसा व्यक्ति खुद को प्रूफ नहीॆ कर पाता और उसके किए हुए ज्यादातर कामों का क्रे़डिट दूसरे ले जाते हैं।
इसके बिगड़ने से आत्म जागरण कठिन होता है। गला, कान, नाक सम्बंधी सभी रोग इसी के बिगड़ने से होते हैं।
चैप्टर 11

संजीवनी शक्ति उपचार में अब मै आपको उर्जा चक्रों की जानकारी दे रहा हूं। इन्हें आप ध्यान से समझ लें और याद रखें। यही उपचार के उपकरण हैं और इन्हीं को ठीक करके पंचतत्वों को ठीक करना है।
हमारे शरीर में 76 हजार मिलियन से भी अधिक छोटे बड़े उर्जा चक्र होते हैं। ये मुख्य चक्र, उप चक्र, लघु चक्र और अति लघु चक्रों के रूप में वर्गीकृत हैं। हमारा शरीर सेल्स ( कोशिकाओं ) से बना होता है। हर सेल का एक उर्जा चक्र होता है। यही सेल को उर्जा देता है। इन्हें अति लघु चक्र कहते हैं। ये रोम रोम में होते हैं।
हर उर्जा चक्र का अपना पावर हाऊस होता है। ब्रह्मांड से संजीवनी को रिसीव करके चक्र अपनी उर्जा का प्रबंधन खुद करते हैं। अति लघु चक्र सेल्स को उर्जावान बनाते हैं। इसी उर्जा से सेल्स काम करते हैं। सेल्स की सक्रियता से ही जीवन चलता है।
अति लघु चक्रों की उर्जा धारण करने की क्षमता बहुत अधिक नहीं होती। इसी कराण कुछ समय बाद ये कमजोर होने लगते हैं। एक समय एेसा आता है जब अति लघु चक्र निष्क्रिय हो जाते हैं। तब उनसे जुड़े सेल मर जाते हैं। इसी कारण बीमारियां और बुढ़ापा आता है। इन उर्जा चक्रों को पुनर्जनित करके सेल के मरने की गति न्यूनतम की जा सकती है। एेसा करके न सिर्फ बीमारियों से बचा जा सकता है बल्कि बुढापे को भी रोका जा सकता है।
जैसे अति लघु उर्जा चक्रों की निष्क्रयता से सेल मर जाते हैं। उसी तरह लघु चक्रों की निष्क्रयता से टिशू मरने लगते हैं। उप चक्रों की निष्क्रियता शरीर के अंगों के मरने या निष्क्रिय होने का कारण बनती है। मुख्य चक्रों की निष्क्रयता से शरीर में पंच तत्व क्रियाहीन हो जाते हैं। इसी दशा को मृत्यु कहते हैं।
अक्षमता, अभाव, असफलता, अपयश, रुकावटें, बीमारियां, संकट, कलह, कर्ज सहित जीवन में जितनी भी परेशानियां दिखती हैं उन सबका कारण उर्जा चक्रों में खराबी ही होता है। एक संजीवनी उपचारक के तौर पर सदैव ध्यान रखें कि दिखने वाले कारण चाहे कोई भी हों लेकिन हर समस्या का सिर्फ एक ही कारण हैं और वह है उर्जा चक्रों में खराबी।
उर्जा चक्रों को ठीक रखकर जीवन को न सिर्फ निष्क्रियता से बचाया जा सकता है बल्कि दुख, समस्याओं और रुकावटों को समूल खत्म किय जा सकता है। यहां आपको बताता चलूं कि ग्रह-नक्षत्रों के दुष्प्रभाव, वास्तुदोष के दुष्प्रभाव, ब्लैक मैजिक के दुष्प्रभाव भी उर्जा चक्रों को ही बिगाड़ते हैं। अतः इन्हें ठीक करके उक्त तरह की सारी परेशानियां सरलता से हटाई जा सकती हैं।
उर्जा चक्रों का निर्माण महान संजीवनी शक्ति द्वारा किया जाता है। इसीलिए इसके द्वारा चक्रों को सरलता से ठीक किया जा सकता है।
सभी धर्मों के पूजा-पाठ, ज्योतिष के उपाय, दान, मंत्र जाप, ध्यान, योग, साधना, व्यायाम आदि उर्जा चक्रों को ठीक रखने के अपरोक्ष तरीके हैं। जो लाखों सालों से कामयाब साबित होते आये हैं।
अगर इनको दिखावा और पाखंड से मुक्त रखकर अपनाया जाये तो सुखी जीवन का इनसे सरल कोई उपचार नहीं।
इसी तरह दया, करुणा, प्रेम, सदाचार और परोपकार एेसी अवस्थाएं हैं जो उर्जा चक्रों को बिगड़ने से बचाती हैं। इनका प्रयोग भी कभी विफल नहीं जाता है।
आगे मै आपको बताउंगा कि उर्जा चक्र बिगड़ते कैसे हैं
चैप्टर 12

अब जान लेते हैं कि उर्जा चक्र बिगड़ते कैसे हैं।
इससे पहले जानना जरूरी होगा कि उर्जा चक्रों का तकनीकी कार्य क्याहै। ये अपनी धुरी पर गोल घुमते हैं। जब सीधे घूमते हैं तो बाहर की उर्जाओं को अंदर लेते हैं। जब उल्टे घूमते हैं तो अंदर की यूज हो चुकी उर्जा को बाहर निकालते हैं।
सीधे घूमने के दौरान पंचतत्वों की रंगीन उर्जाएं ब्रह्मांड ग्रहण करते हैं। उन्हें जीवन संचालन के लिए ईंधन की तरह यूज करने हेतु शरीर के अंगों को देते हैं। कुछ समय उल्टे घूमकर प्रयुक्त (यूज की हुई) उर्जा को शरीर से बाहर निकालते हैं। जिस तरह भोजन के उपयोग के बाद यूज किया हुआ पदार्थ मल, मूत्र नकारात्मक हो जाता है उसी तरह यूज हो चुकी उर्जा भी नकारात्मक हो जाती है।
अगर प्रयुक्त की हुई उर्जा को समय से हटाया न जाये तो वह चक्रों पर बाहर की तरफ से जमने लगती है। एेसे में चक्र फंस जाते हैं औऱ उनकी घूमने की स्पीड कम हो जाती है। कई बार तो इससे चक्र जाम हो जाते हैं। यह चक्रों के बिगड़ने का एक स्थिर कारण हैं। जो भले-बुरे सभी तरह के लोगों पर समान रूप से लागू होता है। यही कारण है कि कई बार सिद्ध संतों की भी मृत्यु बीमारियों या दुर्घटनाओं से हो जाती है।
मल मूत्र की तरह इस उर्जा की भी नियमित सफाई बहुत जरूरी है।
चक्रों के बिगड़ने के अन्य कारणों में गुस्सा, आलोचना, बदनीयती, नफरत, हिंसा, कट्टरता, गलत संगत, कुविचार, दुर्भावनायें, वातावरण की खराब उर्जा, खराब माहौल, दूषित या गैरजरूरी भोजन, नशेबाजी,पाखंड, गलत तरीके से किया गया पूजा-पाठ, गलत तरीके से हुई साधनाएं, गलत तरीके से किया गया ध्यान-योग, बददुवायें, ब्लैक मैजिक, ग्रह-नक्षत्र-वास्तु के दुष्प्रभाव आदि।
संजीवनी शक्ति उपचार के जरिए हम उर्जा चक्रों को सरलता से ठीक कर सकते हैं। इनमें सात चक्रों के बारे में आपने सुना या जाना होगा। ये हैं मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार चक्र।
किन्तु तन, मन की निरोगता और सुखी जीवन के लिए 30 चक्रों पर सदैव ध्यान रखा जाना चाहिए। उनका ठीक रहना जरूरी है। संजीवनी उपचार में हम इन 30 चक्रों को ठीक करना सीखेंगे। इनके नाम और लोकेशन नीचे लिख रहा हूं, उन्हें याद कर लें।
01. कुण्डली चक्र
1. मूलाधार चक्र
पीठ में सबसे नीचे
2. स्वाधिष्ठान चक्र
आगे कमर से नीचे जननांगो पर
3. नाभि चक्र
नाभि के ऊपर
4. मैगमेन चक्र
नाभि से पीछे पीठ पर
5. मणिपुर चक्र (2)
नाभि से ऊपर दोनों पसलियों के बीच
इसके ठीक पीछे पीठ पर भी
6. किडनी चक्र (2)
दोनो किडनियों पर
7. पेनक्रीयाज चक्र
पेनक्रियाज ग्लैंड
8. प्लीहा चक्र (2)
बायीं पसली के नीचे
ठीक पीठे पीठ पर भी
9. अनाहत चक्र (2)
हृदय स्थल पर
ठीक पीछे पीठ पर भी
10. थाइमस ग्लैड चक्र
थाइमस ग्लैंड पर
11. विशुद्धि चक्र
गले के बीच में
12. लघु कंठ चक्र
गले के निचले हिस्से में
13. थायराइड ग्लैंड चक्र (2)
गले के दोनो तरफ
14. जबड़ा चक्र (2)
दोनो जबड़ों पर
15. कर्ण चक्र (2)
दोनो कानों पर
16. कनपटी चक्र (2)
दोनो कनपटी पर
17. आज्ञा चक्र
भौंहों के बीच
18. थर्ड आई चक्र
माथे के बीचो बीच
19. पश्च सिरः चक्र
सिर के पीछे
20. पिनियल ग्लैंड चक्र
सिर में पिनियल ग्लैंड पर
21. मस्तिष्क चक्र (2)
सिर में दोनों तरफ के मस्तिष्क पर
22. हथेली चक्र (4)
दोनो हथेलियों में
23. कुहनी चक्र
दोनो कुहनी में आगे की तरफ
24. बगल चक्र
दोनो बगलों (अंडर आर्स्म) में
25. तलवा चक्र (4)
दोनो पैरों के तलवों में
26. घुटना चक्र (2)
दोनों घुटनों के पीछे
27. हिप्स चक्र
आगे जांघों और कमर के जोड़ों पर
28. फेफड़ा चक्र (5)
दोनो फेफड़ों पर 2 बाई तरफ 3 दाई तरफ
29. लीवर चक्र (3)
लीवर पर 2 दाई तरफ 1 बाई तरफ
30. स्टमक चक्र
पेट में ऊपर (पसलियों के नीचे)
चैप्टर 13
एक सुपर हीलर में जो गुण अनिवार्य रूप से होने चाहिये, उन्हें मै लिख रहा हूँ. पढ़ें और तुरन्त अपनाएं. इनको अपनाकर ही सुपर हीलर बना जा सकता.
1. सकारात्मक बनें….
इससे हीलिंग पॉवर बढ़ती है. इसके लिये लोगों में अच्छाइयां देखें, उनकी कमियों पर कम से कम ध्यान दें.
2. रेसिप्टिवटी बढ़ाएं…
संजीवनी शक्ति को जो जितनी आसानी से ग्रहण कर सकता है वो उतना ही कुशल उपचारक होता है. इसके लिये जो जैसा है पहले उसे वैसे ही स्वीकारें. बाद में जरूरत के मुताबिक उसे बदलें.
3. तर्क न करें….
तर्क करने से अपनी एनर्जी दूषित हो जाती है. इसलिए अपनी बात मनवाने के लिये किसी से तर्क न करें.अपनी बात कहकर छोड़ दें. सच्चाई होगी तो उसे स्वीकारा ही जायेगा. गुरुदेव हमेशा कहते हैं जिस बात में दम होती है उसे मनवाने के लिये अपना दम नही लगाना पड़ता.
4. प्रकृति के नियमों का पालन करें…
महान संजीवनी से मन मुताबिक चमत्कारिक काम लेने के लिये प्रकृति के अनुकूल बने रहें. इससे संजीवनी शक्ति हमारी बातें आसानी से स्वीकार कर लेती है. इसके लिये आप सोने के समय ही सोएं, खाने के समय ही खाएं, सुबह औरों से थोडा जल्दी उठें, रोज कुछ समय पेड़ पौधों के बीच बिताएं, उनसे बातें करके अपने भीतर टेलेपैथी की पॉवर जगाएं, उन्हें रोज पानी दें.
5. मीठा बोलें….
ये बहुत जरूरी है. मीठा बोलना अपने आप में हीलिंग की एक मजबूत तकनीक है. इसे आज से ही अपनाएं. इसके लिये झूठ या सच के मुकाबले दूसरों के मन को सुकून देने वाली बातों को अधिक महत्व दें.
6. कठोरता छोड़ें….
अच्छे से जान लें कि कठोरता से संजीवनी शक्ति की दुश्मनी है. इसके चलते अच्छा उपचारक नही बना जा सकता. इसके लिये जैसा व्यवहार आप दूसरों से चाहते हैं वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करें.
7. सरल व् उदार बनें….
ये बहुत जरूरी है. एक उदार व्यक्ति ही कामयाब उपचारक बन सकता है. इसके लिये सबके भले की बात सोचें.
8. दान करते रहें…
दान से नकारात्मक ऊर्जाएं हमारे आभामण्डल से निकल जाती हैं. इसलिए खुद को समस्याओं से बचाये रखने के लिये दान लगातार करते रहें. जो लोग खुद को समस्याओं से बचाये रख सकते हैं वही सफलता पूर्वक दूसरों को मुसीबतों से बचा सकते हैं.
9. हल्का खाएं…
एक सफल सुपर हीलर को हमेशा हल्का भोजन करना चाहिए. हो सके तो दिन में सिर्फ एक बार या कम से कम भोजन करें. इससे संजीवनी शक्ति हीलर का पोषण स्वयम् करने लगती है. साथ ही हीलर की हीलिंग पॉवर बढ़ाती है. साथ ही संजीवनी शक्ति उपचारक के जीवन में हर तरह से आत्मनिर्भरता स्थापित करने के लिये भी सक्रिय हो जाती है. उनकी कामनाएं पूरी करती है.
10. ध्यान, योग और साधनाएं नियमित करें…
ये बहुत ही जरूरी है. इससे संजीवनी शक्ति का उपयोग मन माफिक करने की क्षमताएं निरन्तर बढ़ती हैं. अगर करते हैं तो अपनी पूजा पाठ भी नियमित करें. मगर वो संतुलित और सुचारू हो इसका ख्याल जरूर रखें.
11. माफ़ी देते रहें….
लोगों को माफ़ करने की दैवीय आदत डाल लें. ये बहुत जरूरी है. इससे कोई भी चूक या गलती हो जाये तो भी महान संजीवनी उपचारक को संरक्षण देती है. साथ ही उपचारक का तन मन प्रदूषित होने से बचा रहता है. मन के प्रदूषण से मुक्त व्यक्ति ही सुपर हीलर हो सकता है. इसके लिये हर व्यक्ति का आकलन उसकी क्षमताओं व् कर्म के मुताबिक करें. माफ़ करना सरल हो जायेगा.