कुण्डली आरोहण साधना- अनुभूतियां

कुण्डली आरोहण साधना- अनुभूतियां

सभी के पास कुण्डली शक्ति होती है, इसके जागते ही व्यक्ति प्रसिद्ध होने लगता है. शोहरत और धन-समृद्धि उसके पीछे लग जाती है. उसके सोचे हुए हर काम में सफलता मिलने लगती है. कामनायें पूरी होने लगती हैं. लोगों के बीच प्रतिष्ठा बढ़ने लगती है. लोक मान्यता मिलती है. व्यक्ति अपने परिवार, समाज, देश में प्रेरणाश्रोत की तरह उभर कर सामने आता. लोग उसके बनाये या बताये रास्ते पर चलने लगते हैं. 

अध्यात्म से जुड़े विद्वान मानते हैं कि कुण्डली जागरण से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. 

कुण्डली जागरण किसी भी व्यक्ति के जीवन की अत्यधिक महत्वपूर्ण घटना है. इसके लिये लाखों लोग जीवन भर साधनायें करते हैं. मगर साधना या ध्यान के जरिये कुण्डली जागरण की राह थोड़ी लम्बी है.

अगर किसी सक्षम गुरु के शक्तिपात से इसे जाग्रत किया जाये तो ये उतना ही आसान है जितना चावी घुमाकर गाड़ी स्टार्ट करना. बशर्ते चावी सही हो और उसे सही तरीके से ही घुमाया जाये. एेसा सक्षम गुरु ही कर सकता है.

कुण्डली के जाग्रत हो जाने मात्र से ही सारी उपलब्धियां नही मिल जाती. जरूरी है कि इससे काम लिया जाये. वैसे तो हर उस व्यक्ति की कुण्डली प्राकृतिक रूप से जाग्रत होती है जो शारीरिक और मानसिक श्रम बराबर अनुपात में करते हैं. मगर उन्हें पता ही नही होता कि उनकी कुण्डली जाग्रत है. एेसे में वे उससे काम ही नही ले पाते. इस कारण कुछ समय बाद कुण्डली पुनः शिथिल हो जाती है. क्योंकि हम अपने शरीर ( स्थुल या सूक्ष्म) के जिन अंगों से काम नही लेते वो निष्क्रिय होते जाते हैं. 

कुण्डली हमारे सूक्ष्म शरीर का एक अंग है. 

कुण्डली को जाग्रत करके उससे काम लेते हुए उसे मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र की तरफ ले जाने को कुण्डली आरोहण साधना कहते हैं.

कुण्डली आरोहण के लिये किये जाने वाले शक्तिपात में विशाल उर्जाओं की जरूरत पड़ती है. ताकि साधकों के उर्जा चक्रों को शोधित व उर्जित करके उन्हें कुण्डली शक्ति को धारण करने योग्य बनाया जा सके. 

अन्यथा कुण्डली शक्ति के मूवमेंट से मानसिक विकार उत्पन्न होने का खतरा रहता है.

गुरु जी के निकट शिष्य शिवांशु जी ने अपनी ई-बुक में अपनी कुंडली आरोहण साधना के बारे में विस्तार से लिखा है। जिसमें कुंडली शक्ति और उसके उपयोग से अपने भीतर देवतुल्य क्षमताये उत्पन्न कर लेने की सरल विधि पर चर्चा है. साथ ही कुंडली आरोहण साधना के विभिन्न पहलुओं की दुर्लभ जानकारी है. यहां उनकी साधना के प्रमुख अंश उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत किए गए हैं. आप शिवांशु जी के पोस्ट को  पड़े और कुंडली शक्ति को पहचाने.

(शिवांशु जी के शब्दों में… ) मै आपको बताउंगा कि जब मेरा कुण्डली आरोहण हुआ तो क्या हुआ. उससे पहले मै क्या फील कर रहा था और बाद में क्या महसूस हुआ. कुण्डली जागरण के समय की अनुभूति क्या थी. गुरुवर की कड़ी निगरानी के बाद भी मुझसे एक चूक हो गई. जिससे मै विक्षिप्त होते बचा. कैसे बचाया गुरुदेव ने मुझे. फिर उन्होंने कैसे काम लेना सिखाया अपनी कुण्डली शक्ति से. कुण्डली आरोहण साधना मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना कैसे बनी. ताकि जो साधक कुण्डली आरोहण साधना में शामिल होने जा रहे हैं. वे साधना के बीच आने वाले पड़ावों से परिचित हो जायें. और उनकी सफलता की सम्भावनायें बढ़ जाये.

17 मई 2016, 

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 1

44 सन्यासियों का कुंडली जागरण

प्रणाम

बात अगस्त 2009 की है. मै गुरुदेव के साथ एक दिन के लिये बनारस गया. वहां गुरुवर के एक अध्यात्मिक मित्र से मुलाकात हुई. वे शहर से थोड़ा हटकर गंगा जी के किनारे रुके थे. उनके साथ उनके सन्यासी शिष्यों की फौज सी थी. जब हम पहुंचे उस वक्त भी 33 शिष्य थे. जबकि कुछ शिष्य कार्यवश शहर में गए थे. वहां मौजूद सभी सन्यासी अपने अपने काम में व्यस्त थे. उनमें कई विदेशी शिष्य भी थे. सभी के दाढ़ी बाल बढ़े थे. मगर जटायें किसी की न थीं. यानि वे साबुन शैम्पू का नियमित इश्तेमाल करने वाले सन्यासी थे. एेसा प्रतीत हो रहा था, मानो सभी ने आधुनिक फैशन के हिसाब से बालों को बढ़ा रखा हो. सभी के दाढ़ी बाल करीने से संवारे हुए थे. 

सभी हल्की केशरिया पोशाक में थे. उनको देखकर पहला विचार आता कि वे माडर्न सन्यासी हैं. बहरहाल वहां बड़ा ही सम्मोहनकारी अध्यात्मिक आकर्षण था. 

ये उनका आश्रम नही था. बल्कि डेरा था. जो थोड़े समय पहले ही बना और कुछ दिनों बाद उजड़ जाने वाला था. मगर वहां की छटा किसी मनोरम आश्रम से कम न थी. 

जैसे ही हम वहां पहुंचे, सन्यासियों में खुशी की लहर दौड़ गई. जीन्स टी शर्ट में होने के बावजूद उन लोगों ने गुरुवर को पहचान लिया था. कुछ ने मुझे भी पहचाना. उनसे मै ऋषिकश में मिला था. सभी सन्यासियों के बीच खबर फैल गई कि उर्जा नायक महराज आये हैं. सब भाग कर हमारे पास आ गये. हमें अपने गुरु के कैम्प तक ले गये. कैम्प के पास जाकर वे सब बाहर ही रुक गये. 

गुरुवर रुके बिना कैम्प में प्रवेश कर गये. उनके इशारे पर मै भी कैम्प में दाखिल हो गया. वहां तुल्सीयायन महराज बैठे थे. केशरिया वस्त्रों में बड़े ही मनभावन लग रहे थे. वैसे भी गुरुवर के अध्यात्मिक मित्रों में से हम सब आपसी बातचीत में उन्हें हीरो संत कहते हैं. उनकी पर्सनालिटी ही एेसी है. 6 फुट से अधिक लम्बाई, गोरा रंग, छरहरा बदन, नीलिमई आंखे, खूबसूरत चेहरा.

सब कुछ एेसा जैसे भगवान ने कामदेव की कल्पना करते करते उन्हें बना डाला हो. 

तुल्सीयायन महराज उच्च कोटि के योगी हैं. उनका अधिकांश समय योग और ध्यान में ही बीतता है. वे बाल ब्रह्मचारी हैं. उनके शिष्यों और भक्तों की उनमें अटूट आस्था है. तुल्सीयायन महराज गुरुवर पर खुद से ज्यादा विश्वास करते है. मुझे याद है एक बार किसी बात के संदर्भ में उन्होंने मुझसे कहा था, जिस दिन उर्जा नायक से मेरा साथ छूटा उस दिन को मै अपनी मृत्यु का दिन मानुंगा.

कैम्प में दाखिल हुए गुरुदेव को देखते ही वे अपने आसन से उठ गये. और लगभग भागते हुए उन्होंने गुरुवर की तरफ बाहें फैला दीं. गुरुदेव ने उन्हें गले लगा लिया.

ये दो अध्यात्मिक मित्रों के मिलने की दुर्लभ बेला थी. उनके मिलन से उर्जाओं का एेसा संवेग उत्पन्न होता महसूस हुआ, मानों ब्रह्मांड की दो महाशक्तियां मिल रही हों. 

मैने दोनों गुरुओं को दण्डवत किया. फिर गुरुदेव के इशारे पर मै भी एक आसन पर बैठ गया. 

तुल्सीयायन महराज ने गुरुदेव को बताया कि वे एक प्रयोग करना चाहते हैं. वह ये कि अपने 44 शिष्यों की कुण्डली सामूहिक रूप से जाग्रत करके उसे मूव कराना चाहते हैं. मगर योग और ध्यान के जरिये एेसा हो नही पा रहा है. उसमें समय बहुत लग रहा है. समय अधिक लगने के कारण शिष्यों की मनःस्थिति में बदलाव आते रहते हैं. जिसके कारण बार बार उनकी पात्रता प्रभावित हो जाती है. पिछले 6 माह में दो कोशिशें हो चुकी हैं. उनमें सिर्फ 3 लोगों की ही कुंडली जाग्रत हुई है. वे भी उसे मूव करके उठा नही पा रहे हैं. 

तो आप शक्तिपात का सहारा लीजिये. गुरुदेव ने सुझाव दिया. 

किया तो, मगर पता नही क्यों बात बनी नहीं. तुल्सीयायन महराज ने विवशता सी जताई.

तो कुंडली आरोहण साधना करा दीजिये.  गुरुदेव ने सुझाव दिया.

उसके विधान की जानकारी तो है. मगर मैने इससे पहले कभी कराया नही, साधकों के साथ कुछ ऊंच-नीच न हो जाये, इसलिये उसे कराने की हिम्मत नही हुई. तुल्सीयायन महराज ने कहा.

कोई बात नही, मै करा दूंगा. गुरुदेव ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा. 

फिर मुझसे कहा बाहर जाकर सभी शिष्यों के आभामंडल और उर्जा चक्रों की जांच करों. सभी के मूलाधार, स्वाधिष्ठान, कुंडली चक्र और सहस्रार चक्र की स्थिति नोट करके मुझे बताओ. 

मै पंडाल से बाहर आ गया. क्योंकि मै समझ गया था कि अब गुरुवर तुल्सीयायन महराज से एकांत वार्ता करना चाहते हैं.

बाहर आकर मै सोच रहा था कि इसी कैम्प में गुरुवर से मै भी अपनी कुंडली का आरोहण कराउंगा. इन्हीं विचारों के साथ सन्यासियों की उर्जा जांचने लगा.

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

18 मई 2016,

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 2

44 में से 18 सन्यासी रिजेक्ट हो गये.

प्रणाम मै शिवांशु

बनारस में गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र तुल्सीयायन महाराज कैम्प कर रहे थे. वे सामूहिक रूप से अपने 44 श्रेष्ठ शिष्यों की कुंडली जाग्रत करके उसे ऊपर के चक्रों में मूव कराना चाहते थे। तुल्सीयायन महाराज उच्च कोटि के योगी थे. ध्यान साधना में भी वे सिद्ध थे. मगर ध्यान योग से एक साथ 44 शिष्यों की कुंडली आरोहण में वे सफल नही हो पा रहे थे. क्योंकि उसमें समय अधिक लग रहा था. उन्होंने गुरुवर से उर्जा विज्ञान का सहयोग मांगा. गुरुदेव ने उन्हें सहयोग का आश्वासन दिया. और मुझे उनके सभी शिष्यों की उर्जा जांच करने को कहा.

अब आगे…

मै सभी सन्यासियों की उर्जा को जांचने लगा. सबके आभामंडल और उर्जा चक्रों को स्कैन करके उनके मूलाधार, स्वाधिष्ठान, सहस्रार, और कुंडली चक्र की स्थिति दर्ज करनी थी. लगभग 3 घंटे लगे.  

इस बीच गुरुदेव तुल्सीयायन महाराज के साथ कहीं जा चुके थे. हमारा अनुमान था कि शायद वे काशी के महाराज बाबा विश्वनाथ के दर्शन को गए हों. वे पांच घंटे बाद लौटे. इस बीच मै भी कैम्प आश्रम के सन्यासियों के साथ अन्य कार्यों में लगा रहा. गुरुवर कहते हैं संत आश्रम में गया व्यक्ति अगर वहां के काम काज में हाथ न बटायें, या वहां का प्रसाद ग्रहण न करे तो उसे संत कृपा मिलनी लगभग नामुमकिन होती है.

मैने सन्यासियों से कहा मुझे भी आश्रम का कोई काम करने को दें. हलांकि मुझे झाड़ु लगाना, बर्तन धोना, खाना पकाना, कपड़े धोना और एेसे अन्य काम करने नही आते थे. मैने सोचा था मै यहां एक दिन का मेहमान हूं सो ये लोग कोई हल्का फुल्का काम दे देंगे.

मगर वे लोग तो इस मामले में कुछ ज्यादा ही ईमानदार निकले. उन्होंने सीधे मुझे लकड़ियां काटने के काम में लगा दिया. भंडारे में जलाने के लिये कहीं से लकड़ी के लट्ठे लाये गए थे. उन्हें चीरकर जलाने लायक बनाना था. मेरे तो पसीने छूट गए. मैने ये काम कभी नही किया था. वैसे तो जो कुल्हाड़ी मुझे दी गई उसका वजन 2 किलो से ज्यादा नही रहा होगा. फिर भी वो मुझे पहाड़ जैसी लग रही थी. मेरे काम में अनाड़ीपन साफ नजर आ रहा था. कुल्हाड़ी लकड़ी के लट्ठे पर मारते ही इधर उधर उछल जा रही थी. 

10 मिनट. एक भी लकड़ी तैयार न कर पाया. चेहरा पसीने से नहा गया.मै परेशान हो गया. मै थक गया. अब कुल्हाड़ी उठाना मेरे लिये मुश्किल हो रहा था. मुझे बड़ी शर्मिंदगी सी होने लगी कि मै काम तो कर रहा था. मगर उसके नतीजे जीरो थे. 10 मिनट बाद उनमें से एक वरिष्ठ सन्यासी स्वरुपानंद दी मेरे पास आये. मुझे लगा शायद उन्हें मेरी हालत पर तरस आ गया हो.

उन्होंने मुझे पास बैठने को कहा. आपको इसका अनुभव नही है मित्र. थोड़ा विश्राम कर लें.

10 मिनट वे मेरे पास बैठकर अपनी बातों से मेरी थकावट दूर करते रहे. मै मन ही मन सोच रहा था कि शायद अब वे मुझे ये काम न करने को कहेंगे.

मगर एेसा न हुआ. 10 मिनट बाद वे मुझे सिखाने लगे कि लकड़ी कैसे चीरते हैं. पांच मिनट तक उन्होंने लट्ठे पर कुल्हाड़ी चलाई. जलाने लगयक काफी लकड़ी तैयार कर ली. फिर मुझे कुल्हाड़ी पकड़ाकर बोले अभी एेसे ही करना. वे दूसरे काम के लिये चले गये. मै फिर से लकड़ी चीरने लग गया. इस बार मेरी कुल्हाड़ी इधर उधर नही पड़ रही थी. अगले 20 मिनट में मैने कुछ लकड़ियां जलाने लायक बना लीं.

मै थक गया. कुल्हाड़ी वहीं रखकर पानी पीने चला गया. लौटा तो देखा मेरी कुल्हाड़ी से एक अन्य सन्यासी लकड़ी काट रहे थे. यानि कि उस दिन लकड़ियों की जरूरत थी. मै उन्हें लकड़ियों काटते देखने लगा. तो उन्होंने इशारे से पास पड़ी झाड़ू उठाने को कहा. मैने उठा लिया. तो उन्होंने सफाई का इशारा किया. मै समझ गया. उन्हें मेरी हालत पर तरस आया था. और उन्होंने अपना काम मुझसे बदल लिया था. मै झाड़ू लगाने की कोशिश करने लगा. भीतर से आशंकित था कि कहीं इसमें भी फेल न हो जाऊं. क्योंकि मैने पहले कभी झाड़ू भी नही लगाई थी.

सारे काम निपटने के बाद सन्यासियों को मेरे इलाज में जुटना पड़ा. क्योंकि कुल्हाड़ी चलाने से मेरे दायें हाथ की हथेली में दो फफोले से उभर आये थे. उनमें काफी तेज दर्द था. दांया हाथ होने के कारण मै अपनी संजीवनी हीलिंग भी नही कर पा रहा था.

लौटने पर गुरुवर ने मेरा संजीवनी उपचार किया. साथ ही हिदायत दी कि जो काम तुम्हारे वश का नही उसे मत किया करो. संत आश्रम की सेवा के लिये अपने करने लायक काम तुम्हे खुद चुनना चाहिये था. उन लोगों ने तो जो ज्यादा जरूरी था वो काम तुम्हें दे दिया. वे तो सन्यासी हैं. न उन्हें किसी से मोह करना आता है और न ही भेदभाव. 

मैने गुरुवर को सन्यासियों की उर्जा रिपोर्ट दी.

मेरी तैयार रिपोर्ट के आधार पर 18 सन्यासियों को कुंडली आरोहण साधना में शामिल होने से रोक दिया गया. उनकी पात्रता कमजोर थी.

क्या पात्रता होती है कुंडली आरोहण की. ये मै आपको आगे बताउंगा. साथ ही बताउंगा कि मै तब उस साधना का पात्र था या नहीं. 

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

20 मई 2016, 

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 3

कुंडली शक्ति का चौकाने वाला रहस्य खुला

हर उस व्यक्ति की कुंडली जाग्रत है जो मशहूर है. जिनकी बातों का प्रभाव लोगों पर या किसी समूह विशेष पर पड़ता है. दरअसल जब तक किसी व्यक्ति की कुंडली जाग्रत होकर नाभि चक्र का भेदन नही कर लेती तब तक वो व्यक्ति प्रसिद्ध नही हो सकता. तब तक उसकी बातों का सामूहिक रूप से लोगों पर प्रभाव नही पड़ता. तब तक लोगों के बीच उसे मान्यता नही मिलती. समृद्धि उसके जीवन में नही टिक सकती. इससे कोई फर्क नही पड़ता कि वो व्यक्ति काम क्या करता है, नैतिक है या अनैतिक है, सच्चा है या झूठा है, ईमानदार है या बेइमान है, संत है या असंत है… गुरुदेव ने रहस्य खोला तो हम सब चकित रह गये.

प्रणाम मै शिवांशु

बनारस में गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र तुल्सीयायन महाराज कैम्प कर रहे थे. वे सामूहिक रूप से अपने 44 श्रेष्ठ शिष्यों की कुंडली जाग्रत करके उसे ऊपर के चक्रों में मूव कराना चाहते थे। उर्जा जांच के दौरान उनमें 18 सन्यासी कुंडली जागरण के लिये अयोग्य मिले. 

अब आगे…

जिन 18 सन्यासियों की उर्जा कुंडली जागरण के लिये तैयार नही थी. उनमें एक सीतारमणम् जी भी थे. वे तुल्सीयायन महाराज के बहुत ही प्रिय शिष्यों में से थे. वे एक अच्छे योगी थे. कई कई घंटे ध्यान लगाने में समर्थ थे. उनकी अयोग्यता ने तुल्सीयायन महाराज को विचलित किया.

पहली बार मैने संत मोह देखा. अपने शिष्य के प्रति मोह. मेरी नजर में तुल्सीयायन महाराज की छवि एक बड़े त्यागी की भी थी. मगर उस दिन मै एक त्यागी को भी मोह ग्रस्त देख रहा था. तब मै समझ पा रहा था कि गुरुदेव शिष्यों के प्रति खुद को निर्मोही सा बनाकर क्यों रखते हैं. उन्हें भगवान शिव का निर्मोही स्वरूप ही क्यों सबसे ज्यादा पसंद है.

उच्च कोटि के संत होते हुए भी तुल्सीयायन महाराज सीतारमणम् जी की पात्रता न होने से खुद को विचलन से रोक नही पा रहे थे. उनके चेहरे पर पहली बार मै उलझन देख रहा था. योगी के चेहरे पर बेचैनी भा नही रही थी. फिर भी वे बेचैन थे.

वे गुरुदेव के सिद्धांतों से परिचित थे. जानते थे कि उर्जा नायक जी उर्जा के स्तर पर कमजोर मिले लोगों को कुंडली आरोहण साधना में शामिल होने की इजाजत बिल्कुल नही देंगे. इसलिये उन्होंने गुरुदेव पर सीतारमणम् जी या किसी अन्य को साधना में शामिल करने का दबाव नही बनाया. मगर विचलित इतने थे कि साधना की पात्रता न रखने वाले लोगों की घोषणा खुद नही की. बल्कि गुरुदेव से आग्रह किया कि वे लोगों को इसकी जानकारी दें.

मुझे याद है गुरुवर उस समय बड़े ही अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कराये थे. जैसे कह रहे हों मोह की अधिकता तनाव का कारण बनती है. फिर गुरुवर ने मेरी तरफ देखा. ये मेरे लिये इशारा था कि मै एकांत में जाकर तुल्सीयायन महाराज की संजीवनी हीलिंग करके उनके मन से विचलन की नकारात्मक उर्जायें निकाल दूं. मै धीरे से उठा और पंडाल के पीछे एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया. वहां बैठकर मैने तुल्सीयायन महाराज का संजीवनी उपचार किया.

जब लौटा तब तक साधना में शामिल किये जाने वाले नामों की घोषणा हो चुकी थी. अब गुरुदेव एक सवाल का जवाब दे रहे थे. सवाल पूछा था पंचानन जी ने. उनका नाम भी उन 18 सन्यासियों में था जिन्हें साधना से अलग रखा गया था. उन्होंने अपने गुरु तुल्सीयायन महाराज से आज्ञा लेकर गुरुदेव से पूछा था कि हम कई वर्षों से योग और ध्यान कर रहे हैं. ब्रह्मचर्य सहित उन सभी नियमों का पालन कर रहे हैं, जो कुंडली आरोहण के लिये जरूरी हैं. गुरु महाराज (तुल्सीयायन महाराज को वे लोग गुरु महाराज कहते हैं) ने हम पर अथक परिश्रम किया है. फिर हमारी उर्जायें इस योग्य क्यों नही बन पायीं. आप कारण बतायें तो हम आगे सुधार और एहतियात बरतते चलेंगे.   

जवाब में गुरुदेव ने कुंडली शक्ति का रहस्य खोला. जिसकी जानकारी मुझे भी पहले नही थी. तुल्सीयायन महाराज की प्रतिक्रिया से एेसा प्रतीत हो रहा था जैसे वे भी इस सत्य से पहली बार रुबरू हो रहे थे. 

गुरुदेव ने बताया कि कुंडली जागरण की प्रक्रिया किसी साधना, योग, त्याग, नैतिकता या सदाचरण की मोहताज नहीं. ये एक प्राकृतिक अवस्था है. तमाम लोगों के जीवन में ये अवस्था खुद उत्पन्न हो जाती है. मगर जानकारी न होने के कारण वे कुंडली शक्ति का उपयोग नही कर पाते. सो उन्हें इसका व्यापक लाभ नही मिलता. जैसे अधिकांश नेताओं, प्रसाशनिक अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों, फिल्मी कलाकारों, खिलाड़ियों की कुंडली जाग्रत होती है. लेकिन ये बात उन्हें नही पता क्योंकि उन्होंने कुंडली जागरण के लिये कभी कोई प्रयास ही नही किया. न कोई साधना की, न इसके लिये योग किया. बल्कि उनमें से ज्यादातर ने तो इस बारे में सोचा भी नहीं. फिर भी जब मै टी वी चैनलों पर उनको देखकर उनकी कुंडली रीड करता हूं तो वो जाग्रत मिलती है. यहां तक कि कई कुख्यात अपराधियों, आतंकवादियों की भी कुंडली जाग्रत मिलती है. जबकि वे नैतिकता, सदाचरण से कोसों दूर हैं.

हर उस व्यक्ति की कुंडली जाग्रत है जो मशहूर है. जिनकी बातों का प्रभाव लोगों पर या किसी समूह विशेष पर पड़ता है. दरअसल जब तक किसी व्यक्ति की कुंडली जाग्रत होकर नाभि चक्र का भेदन नही कर लेती तब तक वो व्यक्ति प्रसिद्ध नही हो सकता. तब तक उसकी बातों का सामूहिक रूप से लोगों पर प्रभाव नही पड़ता. तब तक लोगों के बीच उसे मान्यता नही मिलती. समृद्धि उसके जीवन में नही टिक सकती. इससे कोई फर्क नही पड़ता कि वो व्यक्ति काम क्या करता है, नैतिक है या अनैतिक है, सच्चा है या झूठा है, ईमानदार है या बेइमान है, संत है या असंत है… गुरुदेव ने रहस्य खोला तो हम सब चकित रह गये. 

मित्र इस बारे में इन लोगों को विस्तार से बतायें. तुल्सीयायन महाराज ने गुरुदेव से कहा.  

कुंडली के इस रहस्य को जानने के लिये हम सबकी जिज्ञासा चरम सीमा पर थी. गुरुदेव बताते जा रहे थे हम सुनते जा रहे थे.

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

21 मई 2016, 

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 4

वैज्ञानिक सत्यः आलसी लोगो की कुंडली जाग्रत नही हो सकती

बचपन से बड़े होने तक हम कुंडली को विशाल शक्ति के रूप में सुनते आये हैं. निश्चित रूप से कुंडली विशाल शक्ति का भंडार है. ये दैवीय शक्ति की स्वतंत्र यूनिट है. या यूं कहें कि किसी भी व्यक्ति को बिना दैवीय सहायता लिये देवताओं की तरह सक्षम बना देने वाली शक्ति है. चक्रों की उर्जा के साथ मिलकर ये चमत्कार पैदा करती है. ये तब भी काम करती है जब परिश्रम के जरिये जाग्रत होती है, और तब भी काम करती है जब योग साधनाओं के जरिये जाग्रत होती है. इसे जाग्रत करने का तरीका कोई भी अपनाया जाये. मगर इसके काम करने का प्राकृतिक तरीका एक ही है. एेसा बिल्कुल नही है कि साधु संतों की कुंडली अलग तरीके से काम करती हो, सांसारिक लोगों की अलग और अपराधियों की अलग.

प्रणाम मै शिवांशु

गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र तुल्सीयायन महाराज उन दिनों बनारस में कैम्प कर रहे थे. वे सामूहिक रूप से अपने 44 श्रेष्ठ शिष्यों की कुंडली जाग्रत करके उसे ऊपर के चक्रों में मूव कराना चाहते थे। उर्जा जांच के दौरान उनमें 18 सन्यासी कुंडली जागरण के लिये अयोग्य मिले. उनकी अयोग्यता का कारण पूछा गया. गुरुवर ने कुंडली शक्ति के वैज्ञानिक रहस्य से अवगत कराया. जिस सुनकर हम चमत्कृत से हो गये.

अब आगे…

हमारे गुरुदेव उर्जा नायक महाराज ने कुंडली शक्ति का जो वैज्ञानिक सच बताया वो सीधा शिव ज्ञान था. उसे हमने पहले कभी नही सुना था. अध्यात्म और धर्म जानकारों की जानकारी से काफी अलग, मगर सच्चाई के बिल्कुल नजदीक.

गुरुदेव ने बताया कि कुंडली हमारे स्थुल शरीर का भी अंग है. ये एक स्वतंत्र तंत्रिका हैं. जो स्व पोषित इकाई के रुप में जन्म से ही हमारे साथ होती है. यानी इसकी जरुरत जन्मजात होती है. जब आप किसी नरकंकाल को देखें तो कमर के क्षेत्र में जहां दोनों पैरों की हड्डियां जुड़ती हैं, वहां एक प्लेट सी होती है. हड्ड़ी की इस प्लेट के जरिये ही दोनों पैरों का हिस्सा एक दूसरे से जुड़ता है. ये प्लेट ही कुंडली क्षेत्र है. इसके ठीक नीचे कुंडली चक्र होता है.

इसी प्लेट पर कुंडली ( तंत्रिका- एक नस के टुकड़े की तरह) अपने भोजन के इंतजार में पड़ी रहती है. इसका भोजन मस्तिष्क में बनने वाला केमिकल होता है. उसी से कुंडली का प्राकृतिक रूप से जागरण होता है. एेसे में किसी योग, साधना, सदाचरण या किसी विशेष अनुष्ठान या क्रिया की जरूरत नही होती. इसे पाकर कुंडली खुद जाग जाती है और ऊपर की तरफ बढ़ने लगती है.

मस्तिष्क में दो तरह का तरल रसायन लगातार बनता है. एक गरम, दूसरा ठण्डा. ये तरल पदार्थ हमारी इडा और पिंगला नाड़ियों के जरिये मस्तिष्क से बहकर नीचे की तरफ जाते हैं. अंत में ये शरीर के आखिरी छोर कटि क्षेत्र में पड़ी कुंडली तंत्रिका पर बूंद बूंद करके टपकते हैं. इसे ग्रहण करके कुंडली की प्यास बुझती है. उसमें जान आने लगती है. वो लगातार मजबूत और संतुष्ट होती जाती है. फिर एक समय एेसा आता है, जब ये अपनी धुरी पर 90 डिग्री पर खड़ी हो जाती है. इसे ही कुंडली जागरण कहते हैं. जाग्रत होने के बाद इसका ऊपर उठना जरूरी होता है. मस्तिष्क से आ रहा रसायन लगातार मिलता रहे तो कुंडली तंत्रिका ऊपर उठकर शुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर जाती है. फिर सिलसिलेवार मूलाधार और स्वाधिष्ठान क्षेत्र का भेदन करती हुई ऊपर के चक्रों की तरफ बढ़ती है.

कुंडली जगाने वाला मस्तिष्क का ये रसायन हमारे कर्मयोग अर्थात श्रम से पैदा होता है. जब हम फिजिकल वर्क अधिक करते हैं तो मस्तिष्क का दायां हिस्सा सक्रिय होता है. जिससे गरम रसायन पैदा होता है.  मगर ये कुंडली को संतुष्ट नही कर पाता. इसे आप एेसे समझें जैसे एक प्यासे व्यक्ति को गरम पानी का गिलास दे दें. वो पानी पी तो लेगा. मगर उससे उसकी प्यास नही बुझेगी.

गुरुदेव कुंडली का वैज्ञानिक रहस्य बता रहे थे. हम सब मंत्र मुग्ध से सुनते जा रहे थे.

उन्होंने आगे बताया. जब हम मानसिक श्रम अधिक करते हैं तो ठण्डा रसायन अधिक बनता है. मगर उससे भी कुंडली संतुष्ट नही होती. इसे आप एेसे समझें जैसे प्यासे व्यक्ति को जीरो डिग्री के आस पास ठण्डा पानी दें. वो उसे ठीक से पी ही नही पाएगा. इसी तरह कुंडली भी उसका सही उपयोग नही कर पाती. जब हम मानसिक और शारीरिक श्रम समान रूप से करते हैं तो ठण्डा और गरम केमिकल बराबर बनते हैं. वे मस्तिष्क से बहते हुए इडा और पिंगला नाड़ियों के अंतिम छोर पर मिलकर सामन्य प्रकृति में आ जाते हैं. कुंडली इसी से संतुष्ट होती है.

यही वो आसान और प्राकृतिक तरीका है जिससे कुंडली न सिर्फ जाग जाती है बल्कि चक्रों का भेदन शुरू कर देती है. जैसे ही ये मूलाधार चक्र का भेदन करती है, वैसे ही व्यक्ति समृद्धि की तरफ बढ़ने लगता है. क्योंकि मूलाधार चक्र समृद्धि का भी केंद्र है. जैसे ही कुंडली स्वाधिष्ठान चक्र का भेदन करती है वैसे ही व्यक्ति द्वारा बनाई योजनायें सफल होने लगती हैं. क्योंकि स्वाधिष्ठान चक्र स्रजन का केंद्र है. जैसे ही कुंडली नाभि चक्र का भेदन करती है वैसे ही व्यक्ति की कामनायें पूरी होती हैं और वो मशहूर होने लगता है. लोगों पर उसकी छाप पड़ने लगती है. लोग उसकी बातों को मानते हैं और उसे फालो करते हैं. एेसे ही अन्य चक्रों के भेदन पर अलग अलग तरह की उपलब्धियां मिलती हैं. जिनके बारे में हम आगे बात करेंगे.

ये कुंडली और उसके जागरण का भौतिक स्वरूप था. जिसे जीवन देने वाले विधाता ने निर्धारित नियम के मुताबिक सबके लिये एक जैसा बनाया है. नियम सिर्फ ये ही कि व्यक्ति को परिश्रमी होना चाहिये. आलसी लोगों की कुंडली कभी नही जागती. इसी तरह आधारहीन बातें करने वाले या फालतु विचारों में घिरे रहने वाले या कन्फ्यूज रहने वाले लोगों की भी कुंडली कभी नही जागती.

गुरुदेव ने बताया कि तनाव कुंडली का सबसे बड़ा दुश्मन है. तनाव में गये लोगों की जाग्रत कुंडली भी निष्क्रिय हो जाती है. क्योंकि तनाव से मस्तिष्क में बन रहा रसायन दूषित हो जाता है. जिसका कुंडली पर बहुत खराब प्रभाव पड़ता है.

गुरुवर बोले अब हम बात करते हैं कुंडली के सूक्ष्म स्वरूप की. जिसकी चर्चा अध्यात्म और धर्म से जुड़े जानकार करते रहते हैं. बचपन से बड़े होने तक हम कुंडली को विशाल शक्ति के रूप में सुनते आये हैं. निश्चित रूप से कुंडली विशाल शक्ति का भंडार है. ये शक्ति की स्वतंत्र यूनिट है. या यूं कहें कि किसी भी व्यक्ति को बिना दैवीय सहायता लिये  देवताओं की तरह सक्षम बना देने वाली शक्ति है. चक्रों की उर्जा के साथ मिलकर ये चमत्कार पैदा करती है.

जो लोग जाग्रत कुंडली से काम लेना जानते हैं उनके लिये दुनिया का कोई भी काम नामुमकिन नही.

ये तब भी काम करती है जब परिश्रम के जरिये जाग्रत होती है और तब भी काम करती है जब योग साधनाओं के जरिये जाग्रत होती है. इसे जाग्रत करने का तरीका कोई भी अपनाया जाये. मगर इसके काम करने का प्राकृतिक तरीका एक ही है. एेसा बिल्कुल नही है कि साधु संतों की कुंडली अलग तरीके से काम करती हो और अपराधियों की अलग तरीके से.  

गुरुदेव ने बताया भौतिक जीवन जीने वालों का कुंडली जागरण जितना आसान है, सन्यासी जीवन जीने वालों का उतना ही मुश्किल. अद्यात्म की राह पर चल कर कुंडली जागरण और भी कठिन है.

इस बात को सुनकर हम सब चकित हो गये.

और गुरुदेव द्वारा इसका कारण बताये जाने का इंतजार करने लगे.

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

23 मई 2016, 

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 5

अपना काम दूसरों पर डालने वालों की कुंडली कभी जाग्रत नही होती.

प्रणाम मै शिवांशु

हमारे गुरुदेव उर्जा नायक महाराज ने कुंडली शक्ति का जो वैज्ञानिक सच बताया वो सीधा शिव ज्ञान था. उसे हमने पहले कभी नही सुना था. अध्यात्म और धर्म के जानकारों की जानकारी से काफी अलग, मगर सच्चाई के बिल्कुल नजदीक.

अब आगे…

अपने 44 शिष्यों के साथ कुंडली शक्ति की वैज्ञानिक सच्चाई सुन रहे तुल्सीयायन महाराज ने गुरुदेव से कहा मित्र शिष्यों को इस मानसिक और शारीरिक श्रम की विस्तार से जानकारी दीजिये. ये भी बताइये कि योग-साधनाओं की राह पर चलने वालों के लिये कुंडली जागरण इतना सरल होते हुए भी अधिक कठिन क्यों हो जाता है. और क्या योग शारीरिक श्रम की परिधि में आता है या नही.

गुरुदेव ने पहले शारीरिक श्रम की व्याख्या की. बताया हर वो काम जिससे कैलरी बर्न होती है वो शारीरिक श्रम होता है. सरल भाषा में हर वो काम जिसमें हाथ, पैर तथा शरीर के ऊपरी अंगों का व्यापक उपयोग किया जाये, और पसीना निकलने की गुंजाइश हो वो शारीरिक श्रम होता है. उसी से मस्तिष्क के दाहिने हिस्से द्वारा गरम रसायन बनता है. जो कुंडली जागरण के लिये जरूरी होता है. उदाहरण के लिये मेहनत-मजदूरी, खेलकूद, जिम, एक्सरसाइज, साइकिलिंग, स्वीमिंग, डांसिग, कुस्ती, भागदौड़, आदि शारीरिक श्रम हैं. कुंडली जागरण के लिये पर्याप्त रसायन उत्पन्न हो इसके लिये जरूरी है कि शारीरिक श्रम अनवरत जारी रहे.

योग दो तरह का होता है. एक योग मानसिक शांति के लिये ध्यान के साथ किया जाता है. उसमें शारीरिक श्रम नही होता. दूसरा योग शरीरिक पुष्टता और सुडौलता के लिये किया जाता है. ये अच्छे किस्म के शरीरिक श्रम की श्रेणी में आता है. 

अब हम मानसिक श्रम की बात करते हैं. जब किसी लक्ष्य को लेकर लगन के साथ सोच-विचार किया जाये तो मस्तिष्क की सक्रियता केंद्रित हो जाती है. इसी से मस्तिष्क के बायें हिस्से में ठंडा रसायन उत्पन्न होता है. जो कुंडली जागरण के लिये जरूरी होता है. इसे सरल भाषा में यूं समझें कि किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये लगन से काम किया जाये तो मानसिक श्रम होता है. यहां गौरतलब है कि भले ही वांछित लक्ष्य पूरा न हो फिर भी लगन से काम करने की प्रक्रिया स्वरूप कुंडली के जाग्रत होने की सम्भावनायें प्रबल होती जाती हैं. 

मस्तिष्क में बनने वाले यही ठंडे और गरम रसायन इडा, पिंडला नाड़ियों के जरिये बहकर नीचे कुंडली तंत्रिका पर टपकते हैं. तो कुंडली जाग्रत होकर सुषुम्ना नाड़ी में चढ़ जाती है.

इसे ही कुंडली जागरण कहा जाता है.

कुछ उदाहरण समझें. एक नेता अपने पद को पाने के लिये जबरदस्त भागदौड़ करता है. उसके विचार पद पाने पर केंद्रित होते हैं. अनवरत की गई ये क्रिया कुंडली जागरण करा देती है. एक अधिकारी अपने पद की जिम्मेदारियां निभाने के लिये काफी भागदौड़ और मानसिक सोच विचार करता है. ये क्रिया कुंडली जागरण कराती है. एक खिलाड़ी टीम में स्थान पाने के लिये अपने लक्ष्य पर ध्यान जमाये हुए भरपूर मेहनत करता है. ये क्रिया कुंडली जागरण कराती है. यहां मै आपको बताता चलूं कि नीयत कैसी भी हो मगर राजनीति, प्रशासन, खेलकूद, फिल्मों से जुड़े लोग सामान्य लोगों की अपेक्षा कई गुना अधिक मानसिक व शारीरिक श्रम करते हैं. इसी कारण उनकी कुंडली दूसरों की अपेक्षा जल्दी जाग जाती है.

एक मजदूर भारी शारीरिक श्रम करता है. मगर उसके सामने रोटी पाने की जरूरत के अलावा कोई विशेष लक्ष्य नही होता है. सो वह सोच विचार या मानसिक श्रम नही करता. इसलिये कठोर शारीरिक श्रम के बावजूद उसकी कुंडली जाग्रत नही होती. जबकि उससे काम लेने वाला ठेकेदार भागदौड़ के साथ ही मजदूरों से काम लेने के लक्ष्य को पूरा करने के लिये दिमागी काम भी करता है. उसकी कुंडली जाग्रत होने की गुंजाइश बराबर होती है. 

एक व्यक्ति एकाउंटिंग का काम करता है. दिन भर लिखा-पढ़ी और भारी दिमागी काम करता है. मगर वह पर्याप्त शारीरिक श्रम नही करता. उसकी कुंडली जाग्रत नही होती. जबकि उससे काम लेने वाला सी.ए. उससे कम लिखा पढ़ी करता है. मगर वह अपनी प्रतिष्ठा व जिम्मेदारियों के मद्देनजर क्लाइंट को संतुष्ट करने के लिये भागदौड़ भी करता है. उसकी कुंडली जाग्रत होने की गुंजाइश बराबर बनी रहती है.

जो लोग अपना काम दूसरों पर डालने की आदत के शिकार हैं. उनकी कुंडली कभी जाग्रत नही होती.

भौतिक जीवन की सक्रियता वाले लोगों की कुंडली जाग्रत होकर अधिकतम मणिपुर चक्र का ही भेदन कर पाती है. क्योंकि समृद्धी, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धी, योजनाओं की सफलता, उत्तरोत्तर उन्नति, कामना पूर्ति के लिये मणिपुर चक्र व उससे नीचे के चक्रों की उर्जायें ही पर्याप्त होती हैं. जाग्रत कुंडली ऊपर उठती हुई जिस जिस चक्र की उर्जाओं से होकर गुजरती है. उससे जुड़े सभी भौतिक कार्य पूरे होते जाते हैं. 

अब हम बात करते हैं अध्यात्म की दुनिया से जुड़े लोगों की कुंडली की. अध्यात्म से जुड़े लोग प्रायः अधिक शारीरिक श्रम नही करते. क्योंकि उन पर अध्यात्म की नीली या बैंगनी उर्जाओं का प्रवाह अधिक होता है. यह स्थित लम्बी खिंचे तो शारीरिक शिथिलता उत्पन्न होने लगती है. जो शारीरिक श्रम में भी बाधक होती है. यह दशा कई बार आलस्य में बदलती है. 

पर्याप्त शारीरिक श्रम न कर पाने के कारण ही उनका कुंडली जागरण कठिन होता है.

यही हाल साधु संतों और धर्म से जुड़े अधिकांश लोगों का होता है. उनमें से भी ज्यादातर लोग शारीरिक श्रम कम ही करते हैं. वे साधनाओं और योग के जरिये कुंडली जागरण करने की कोशिशें करते हैं. जो कि प्राकृतिक न होकर कृतिम सा होता है. इसी कारण उन्हें सफलता देर से मिलती है.

इसे ऐसे समझें कि एक व्यक्ति पीने का पानी प्राकृतिक रूप से बह रहे झरने से ले ले. तो उसके लिये ये आसान होगा. दूसरा व्यक्ति पीने का पानी लेने के लिये कुआ खोदे, फिर उससे पानी प्राप्त करे. ये कृतिम तरीका होगा. इसमें समय और प्रयासों की अधिकतम जरूरत होगी.

आगे गुरुदेव ने बताया कि अध्यात्म के लोगों द्वारा कुंडली का उपयोग कर पाना सांसारिक लोगों की अपेक्षा अधिक कठिन क्यों होता है.

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

26 मई 2016,

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 6

कुंडली शक्ति से दुनिया की अनहोनी रोक देते हैं तपस्वी

प्रणाम मै शिवांशु

हमारे गुरुदेव उर्जा नायक महाराज कुंडली शक्ति के जिस विज्ञान की चर्चा कर रहे थे, वो सीधा शिव ज्ञान था. गुरुवर ने बताया कि शारीरिक व मानसिक श्रम करने वालों की कुंडली बिना योग-साधना किये खुद ही जाग्रत हो जाती है. जिसके कारण वे प्रसिद्ध होने लगते हैं. समृद्ध होने लगते हैं. प्रभावशाली होने लगते हैं. जैसे राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, फिल्मी कलाकार, खिलाड़ी आदि. साथ ही उन्होंने बताया कि योग-साधनाओं, पूजा पाठ, अध्यात्म की राह पर चलने वालों का कुंडली जागरण सामान्य सांसारिक व्यक्ति की अपेक्षा कठिन क्यों होता है.  

अब आगे…

44 शिष्यों के साथ कुंडली शक्ति का वैज्ञानिक पक्ष जान रहे तुल्सीयायन महाराज ने गुरुदेव से कहा मित्र इन लोगों को बताओ कि क्या कुंडली शक्ति मोक्ष का कारण बन सकती है. और साधु-संतों के लिये इसका उपयोग कितना सरल है.

कुंडली शक्ति का मोक्ष से सीधा ताल्लुक नही है. गुरुवर ने बताना शुरू किया. ये एक स्वतंत्र और प्राकृतिक शक्ति है. जो दैवीय कृपा की मोहताज नही. इसी का उपयोग करके दैत्य व राक्षस वंश के योद्धा देवताओं के लोक में बल पूर्वक घुस जाया करते थे. यहां तक कि वे देवताओं को जीत भी लेते थे. उनके राज्य पर कब्जा भी कर लेते थे. जाहिर है कि देवताओं को जीतने के लिये कोई दैवीय शक्ति तो मदद करेगी नही. कुंडली शक्ति ही उनकी जीत का आधार होती थी. उसमें कुछ विशेष वरदान शामिल होने से देवताओं का सीमा बंधन हो जाता था. 

गुरुदेव ने आगे बताया कुंडली शक्ति देवतुल्य क्षमतायें जगाने में सक्षम है. ये हमारे चक्रों में मौजूद पंचतत्वों की उर्जाओं के साथ मिलकर ब्रह्मांड के अधिकतम रहस्यों का उपयोग कर लेती है. बस इसका उपयोग करना आना चाहिये. उपयोग सक्षम गुरु ही बता सकता है.

शायद इसी कारण सक्षम गुरु को कई बार भगवान से अधिक महत्व दिया गया है. क्योंकि भगवान भक्त की कामनायें पूरी करते हैं. जबकि कुंडली का उपयोग करके व्यक्ति दूसरों की भी कामनायें पूरी करने में सक्षम हो जाता है. वो मांगने वाले से देने वाला बन जाता है. लेकिन विशेष ध्यान रखें इसे सक्षम गुरु से ही सीखें. अगर गलती से कुंडली शक्ति के उपयोग में गड़बड़ हुई तो व्यक्ति का जीवन तबाह होने से कोई नही बचा सकता. इसे एेसे समझें कि अगर गैस सिलेंडर का उपयोग करना नही आता है, तो गलत तरीके से उपयोग करने पर गैस खाना पकाने की बजाय पूरे घर को जला देगी. 

अब बात करते हैं कुंडली जागरण से मोक्ष प्राप्त करने की. गुरुवर ने कहा, सीधे तौर पर कुंडली मोक्ष का कारण नही बन सकती. हां ये व्यक्ति को इतना सक्षम बना देती है कि वो मोक्ष की राह पर आसानी से बढ़ सके.

साधु संतों का कुंडली जागरण मुश्किल तो है मगर उनका उद्देश्य बड़ा होता है. वे कुंडली शक्ति से समृद्धी, प्रसिद्धी, मान्यता या प्रभावशाली होते जाने की कामना नही करते. एक तपस्वी गुफाओं कंदराओं में बैठकर सालों साल कुंडली जागरण में लगा रहता है. कुंडली जाग्रत हो जाने के बाद भी वह वहीं रहता है. न उसे प्रसिद्ध होने से मतलब है और न ही प्रभावशाली होने से. वो तो दूसरे ही उद्देश्य से तपस्यारत है. वह उद्देश्य भौतिक जीवन से बिल्कुल अलग है.

उनके उद्देश्य क्या होते हैं. ये सवाल मैने पूछा था.

उनके उद्देश्यों को विस्तार से नही बताया जा सकता. बस ये समझो कि वे दुनिया की भलाई के लिये वे ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने में लगे होते हैं. कुछ तपस्वी ब्रह्मांड में घटने वाली एेसी अज्ञात घटनाओं पर नियंत्रण की कोशिश करते हैं जो अवांक्षित और जनमानस के लिये हानिकारक होती हैं. उदाहरण के लिये इन दिनों ब्रह्मांड के पश्चिमी क्षोर से उठ रही उर्जा की विशाल तरंगे उत्तर की तरफ मुड़ रही हैं. जो कि अवांक्षित है. क्योंकि उन्हें पूरब की तरफ जाना चाहिये. इससे विचित्र सी बीमारियां फैल सकती हैं. या जल क्षेत्र में खतरनाक हलचल होगी.

प्रायः वैज्ञानिक समय रहते इसे नही समझ पाते. इसी कारण संकट के समय उनके पास समाधान नही होता.

उच्च तपस्वियों को इस तरह के बदलावों का अहसास समय रहते हो जाता है. वे अपनी उर्जाओं का उपयोग करके खतरनाक बदलावों पर नियंत्रण की कोशिश में जुटे रहते हैं. इस तरह से दुनिया में आने वाले कई तरह के संकट उच्च तपस्वियों द्वारा तबाही से पहले ही रोक दिये जाते हैं.

हम मान सकते हैं कि उच्च तपस्वियों की सजगता से दुनिया को सिर्फ 17 प्रतिशत संकटों का ही सामना करना पड़ता है. बाकी को आने से पहले ही रोक दिया जाता है. लेकिन ब्रह्मांड में घट रही हर घटना को नही रोका जा सकता. कुछ घटनायें दूसरे ग्रहों की हलचल से उत्पन्न होती हैं. उन्हें रोक पाना कठिन होता है. उदाहरण के लिये किसी देश द्वारा अचानक बड़ी तादाद में नदी का पानी छोड़ दिया जाये, तो उससे आगे के देशों में बाढ़ आ ही जाएगी. पता चल जाने के बाद भी उसे नही रोका जा सकता है. दूसरे उदाहरण में समझें कि पड़ोसी देश में परमाणु बम फटें. जिसकी विनाशक परिधि 500 किलोमीटर हो. जहां बम फटा वो क्षेत्र किसी दूसरे देश की सीमाओं से लगा हो. तो बम का नुकसान दूसरे देश के उन इलाकों में भी होगा जो वहां से 500 किलोमीटर की परिधि में आते हैं. उसे भी रोका नही जा सकता. इसे कहते हैं पड़ोसी हरकतों से होने वाला नुकसान.

यहां हम जान लें कि उच्च तपस्वियों के काम देश की सीमाओं में बंधे नही होते. पूरी धरती ही उनका कार्य क्षेत्र है.

उच्च स्तर पर उपयोग किया जाये तो कुंडली शक्ति ब्रह्मांड में होने वाले अवांक्षित बदलावों को रोक पाने में बहुत कारगर होती है. तपस्वी इसी शक्ति का उपयोग करते हैं.

कैसे करते हैं वे इस शक्ति का उपयोग. इसके जवाब में गुरुदेव ने जो जानकारी दी वो मै आपको आगे बताउंगा.

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

27 मई 2016, 

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 7

कुंडली शक्ति में दुनिया बदलने की क्षमता

प्रणाम मै शिवांशु

अब तक आपने जाना बनारस में कैम्प किये योग गुरु तुल्सीयायन महाराज अपने 44 शिष्यों का सामूहिक कुंडली जागरण करना चाहते थे. मगर योग-साधना के द्रारा सामूहिक रूप से एेसा नही हो पा रहा था. तो उन्होंने हमारे गुरुवर एनर्जी गुरु से उर्जा विज्ञान की मदद मांगी. गुरुवर को उनके अध्यात्मिक मित्र उर्जा नायक कहकर सम्बोधित करते हैं. उर्जा नायक महाराज ने उन्हें कुंडली शक्ति के विज्ञान की जानकारी देकर बताया कि पर्याप्त शारीरिक व मानसिक श्रम करने वालों की कुंडली बिना योग-साधना के ही जाग जाती है. तपस्वी अपनी कुंडली शक्ति का उपयोग करके दुनिया पर आने संकटों को रोक लेते हैं. 

अब आगे…

कुंडली शक्ति कितनी पावर फुल होती है और ये कैसे काम करती है. ये सवाल भी मैने ही पूछा. दरअसल तुल्सीयायन महाराज के शिष्यों के मन में उठे सवाल भी मुझे ही पूछने पड़ रहे थे. क्योंकि उन्हें सवाल पूछने से पहले अपने गुरु की आज्ञा लेनी होती थी. सो वे धीरे से मुझसे ही पूछ लेते और मै गुरुदेव के समक्ष सवाल रख देता था.

कुंडली शक्ति वाकई बहुत पावर फुल होती है. कल्पना से भी कई गुना ज्यादा. गुरुदेव ने बताया. इसकी शक्ति का अंदाजा आज तक कोई नही लगा पाया. मेरा अनुमान है कि इसमें ब्रह्मांड बनाने बिगाड़ने भर की उर्जा से भी अधिक पावर होती है. सबसे खास बात ये ही कि कुंडली शक्ति स्वपोषित होती है. इसे किसी भी बाहरी शक्ति की जरूरत ही नही होती. ये सिर्फ इंशान के भीतर की शक्तियों का उपयोग करके ही व्यक्ति को देवताओं की तरह शक्ति सम्पन्न बना देती है. दरअसल इसे ब्रह्मांड की सभी शक्तियों के रहस्य जान लेना आता है. साथ ही उनका उपयोग करना भी आता है. 

इसे आप एेसे समझे जैसे किसी व्यक्ति के पास हवाई जहाज नही है. मगर उसे पता है कि हवाई जहाज कहां और कैसे मिलेगा. वो वहां पहुंच भी जाये. उसे हवाई जहाज उड़ाना भी आता है. सो उसने हवाई जहाज उड़ाया भी, अपना काम किया. और वापस लाकर जहाज वहीं छोड़ दिया जहां खड़ा था. इस तरह उसने हवाई जहाज का मालिक न होते हुए भी उसका इश्तेमाल मालिक की तरह ही कर लिया.

यहां ध्यान रखें प्राकृतिक सम्पदा पर तेरा मेरा का कानून लागू नही होता. जिसने इश्तेमाल कर ली सम्पदा उसी की.

इसी तरह कुंडली शक्ति भी ब्रह्मांड की शक्तियों का इश्तेमाल करके अपने काम निकाल लेती है.

प्राकृतिक रूप से कुंडली शक्ति के काम करने का अपना कोई उद्देश्य नही होता है. ये तो सिर्फ उस व्यक्ति की मंशा और जरूरत को पूरा करती है जिसने इसे जगाया है.

अब मै बताता हूं कि ये कब और कैसे काम करती है. गुरुदेव ने आगे जानकारी देते हुए कहा. मूल रूप से कुंडली शक्ति पंचतत्वों की उर्जाओं को अपनी शक्ति के रूप में इश्तेमाल करती है.

जब ये मूलाधार चक्र का भेदन करती है, तब इसे पृथ्वी तत्व की शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं. एेसे में जिसकी कुंडली ने मूलाधार का भेदन किया है उसे इसके उपयोग की विधि न मालुम हो तो भी ये पृथ्वी तत्व से जुड़ी उपलब्धियां स्वतः दे देगी. जैसे समृद्धि, साहस, आत्मबल आदि.  

जो लोग इसका ब्रह्मांडीय इश्तेमाल करना जानते हैं वे इसके द्वारा गुरुत्वाकर्षण पर नियंत्रण पा लेते हैं. हनुमान जी को पृथ्वी तत्व का व्यापक उपयोग आता था. जिसके कारण वे हवा में उड़े जाते थे. पृथ्वी तत्व की उर्जाएं लाल होती हैं. इसी कारण हनुमान जी को लाल चोला चढ़ाया जाता है. ज्योतिषीय उपायों के दौरान हनुमान जी की इन्ही उर्जाओं को प्राप्त करके मंगल ग्रह को भी ठीक किया जाता है. क्योंकि मंगल ग्रह की उर्जायें भी पृथ्वी तत्व से प्रभावित हैं. शायद इसी कारण मंगल को धरती का पुत्र कहा जाता है.    

जब कुंडली स्वाधिष्ठान चक्र का भेदन करती है तो जल तत्व का उपयोग करती है. उसके प्रभाव से जल तत्व जाग्रत हो जाता है. एेसे में व्यक्ति की रचनात्मक क्षमता फलीभूत होती है. कला के क्षेत्र से जुड़े लोग फेमस होने लगते हैं. बनाई गई योजनायें सफल होने लगती हैं. धर्म के जानकार कहते हैं कि एेसे व्यक्ति में यहां मौजूद ब्रह्मा जी की शक्तियों का जागरण हो जाता है. कई तपस्वी कुंडली शक्ति के द्वारा जल तत्व की शक्ति का उपयोग करके जल प्रलय जैसी स्थितियों को नियंत्रित करने की कोशिश करते रहते हैं. 

जब कुंडली मणिपुर चक्र का भेदन करती है तो अग्नि तत्व का उपयोग करती है. प्राकृतिक रूप से एेसा व्यक्ति जबरदस्त प्रसिद्धी हासिल करता है. उसका सोचा हुआ हर काम सफल होने लगता है. बड़े बड़े मंत्री, राजा, महाराजा भी एेसे व्यक्ति से मिलकर खुद को गौरान्वित महसूस करते हैं. उसके किये हुए कार्यों से लाखों लोगों का पालन पोषण होता है. धर्म के जानकार मानते हैं कि मणिपुर चक्र पर पहुंची कुंडली व्यक्ति के भीतर विष्णु तत्व का जागरण कर देती है. दूसरे शब्दों में व्यक्ति विष्णु की तरह तेजस्वी पालनकर्ता बन जाता है. क्योंकि यहां कुंडली मणिपुर चक्र में मौजूद विष्णु की ब्रह्मांडीय उर्जाओं का इश्तेमाल करने लगती हैं.

जब कुंडली अनाहत चक्र का भेदन करती है तो व्यक्ति के भीतर के वायु तत्व का उपयोग करती है. साथ ही उसके भीतर का शिव तत्व जाग्रत हो जाता है. तब व्यक्ति शिव के समान दयालु, उदार, सुखी और शक्ति सम्पन्न हो जाता है. एेसे में व्यक्ति को मन की गति से ब्रह्मांड की सारी गतिविधियों की जानकारी मिल जाती है. किसी जमाने में तपस्वी और दानव योद्धा कुंडली के द्वारा वायु तत्व पर नियंत्रण करके वायुगमन किया करते थे.

धर्म के जानकार कहते हैं कि एेसे व्यक्ति में शिव की शक्तियां समाहित हो जाती हैं. कुछ तो मानते हैं कि व्यक्ति शिव समान हो जाता है. क्योंकि यहां कुंडली अनाहत चक्र में मौजूद शिव की ब्रह्मांडीय उर्जाओं का इश्तेमाल करने लगती हैं.

जब कुंडली गले में स्थित विशुद्धी चक्र का भेदन करती है तो आकाश तत्व का उपयोग करती है. जिसके कारण व्यक्ति का आत्म जागरण हो जाता है. वह अंतरीक्ष के सभी रहस्यों को जानने लगता है. यहां तक कि उसे ब्रह्मांड संचालन में अपनी भूमिका का भी पता चल जाता है. वह जीवन मरण और उसके बीच के सभी रहस्यों को जान लेता है. या यूं कहें कि उसके लिये कुछ भी जानना शेष नही बचता.

जब कुंडली आज्ञा चक्र का भेदन करती है तो वह गुरु तत्व का उपयोग करती है. एेसे व्यक्ति के भीतर गुरुतत्व जाग जाता है. उसमें सब कुछ जानने वाले व्यक्ति का भी गुरु बनने की सामर्थ्य आ जाती है. वह हर तरह के हालातों पर नियंत्र करने में सक्षम हो जाता है.

जब कुंडली ब्रह्म चक्र अर्थात सहस्रार चक्र का भेदन करती है तो वह विधाता अर्थात दुनिया बनाने वाले तत्व का उपयोग करती है. एेसे में व्यक्ति के भीतर रचयिता की क्षमता जाग उठती है. धर्म के जानकार कहते हैं कि एेसा व्यक्ति ब्रह्ममय होकर स्वयं ब्रह्म हो जाता है. वो ब्रह्मांड बनाने की क्षमताओं से भर जाता है.

हम सब विशुध से गुरुदेव की बातें सुन रहे थे. उनकी एक चुटकी ने हमारी तंद्रा भंग की. वे बोले इससे एेसा मत कहने लगना कि मै हवा में चल कर दिखाऊं या दूसरी दुनिया का निर्माण कर दूं. मैने तो शिव गुरु द्वारा दिया ज्ञान बताया है. कुंडली का एेसा उपयोग मुझे नही आता.

उनकी बात सुनकर हममें से ज्यादातर ने एेसी गहरी सांस ली जैसे सोचे बैठे थे कि अभी गुरुवर हमें आकाश गमन सिखाएंगे. और अचानक हमें मना कर दिया गया हो. दरअसल हम सब उनकी बातों में इतना खो गये थे कि अपनी कुंडली को ब्रह्म चक्र तक पहुंची मान बैठे.

गुरुदेव ने कहा कुंडली का उपयोग जरूरत के मुताबिक ही किया जाना चाहिये.

कैसे. ये मै आपको आगे बताउंगा. 

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

29 मई 2016,

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 8

हठ योगियों को कुंडली रातों रात सिद्ध पुरुष बना देती है.

प्रणाम मै शिवांशु

कुण्डली शक्ति विष्णु तत्व का उपयोग करके व्यक्ति को विष्णु तुल्य और शिव तत्व का उपयोग करके शिव तुल्य बनाने में सक्षम है. ये आपने जान लिया. ये भी जाना कि कुंडली शक्ति सभी तरह के भौतिक सुख उत्पन्न करती है.

अब आगे…

भौतिक जीवन के परिश्रमी लोगों की कुंडली खुद ही जाग जाती है. तुल्सीयायन महाराज ने गुरुदेव से अपने शिष्यों की तरफ से सवाल किया. तो क्या योगियों के लिये भी ऐसी कोई अवस्था है ? इनको बताएं.

हाँ बिलकुल है. आपको भी कुंडली शक्ति की बारीकियां भली भांति पता हैं. गुरुवर ने पहली बार अपने जवाब में जाहिर किया कि वे जो बता रहे हैं उनमें से ज्यादातर बातें तुल्सीयायन महाराज को पहले से ही मालूम हैं.

ये सुनकर मै दंग रह गया. तुल्सीयायन महाराज के ज्यादातर शिष्य भी अचरज में जाते दिखे. क्योंकि पूरी व्याख्या के दौरान तुल्सीयायन महाराज गुरुदेव को ऐसे सुन रहे थे जैसे हमारी तरह वे भी ये सब पहली बार सुन रहे हों. इससे मुझे उनसे ये सीखने को मिला कि एक अच्छा श्रोता होना महानता की पहचान है.

तुल्सीयायन महाराज बस मुस्कराकर रह गए. उनके दमकते चेहरे पर मुस्कराहट सदैव सम्मोहन पैदा करती है.

गुरुदेव ने आगे बताया योगियों की कुंडली तो जाग्रत होने के लिये उतावली सी बैठी रहती है. बशर्ते योगी उसकी गतिविधियों को समझ पाएं. सूर्य नमस्कार का योग कुंडली पर तेज असर डालता है. प्राय: सभी तपस्वी सूर्य नमस्कार अपनाते हैं. वे शारीरिक श्रम की भरपाई इसी से करते हैं. अष्टक योग भी काफी कारगर होता है. तपस्वियों द्वारा इसे भी व्यापक रूप से अपनाया जाता है.

मानसिक श्रम के रूप में तपस्वी अपन विचार गुरु पर या अपने इष्ट पर केंद्रित करते हैं.

हठ योग विचारों को तेजी से केंद्रित करता है. ये मानसिक श्रम के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है. इसी कारण हठ योगियों की कुंडली जागते ही दूसरों की अपेक्षा ज्यादा तेजी से चक्रों का भेदन करती हैं. और देखते ही देखते वे सिद्ध पुरुष बन जाते हैं. मगर हठ योग अपनाने से पहले उसके भले बुरे सभी पक्षों को अच्छी तरह समझ लेना अनिवार्य होता है.

प्राय: साधू , सन्यासी और योगी कम शारीरिक श्रम के कारण ही कुंडली जागरण में पिछड़ते हैं. ऐसा नही है कि वे आलसी होते हैं. दरअसल उनके पास करने के लिये कुछ खास काम ही नही होता. ये विज्ञान उन्हें पता ही नही होता. जिसके कारण इस तरफ उनका ध्यान ही नही जाता. उन्हें तो सिर्फ ये बताया जाता है कि ज्यादा से ज्यादा ध्यान साधनाओं और भगवत भजन से कुंडली जागती है. सो वे अपना अधिकांश समय उसी में लगते हैं. इस तरह वे मानसिक श्रम तो कर रहे होते हैं, मगर शारीरिक श्रम से दूर रह जाते हैं. जिससे उनकी कुंडली जागने की प्राकृतिक संभावनाएं लगातार कम होती जाती हैं.

एक अनुमान के मुताबिक 4 प्रतिशत से भी कम सन्यासियों को कुंडली जागरण में सफलता मिल पाती है. उनकी अपेक्षा योगियों की कुंडली जागरण की सम्भावना 50 गुना अधिक होती है. मगर ज्यादातर योगी मानसिक श्रम में चूक जाते हैं.

जो सक्षम गुरु होते हैं वे अपने खास शिष्यों से बहुत शारीरिक श्रम कराते हैं. साथ ही उनसे पर्याप्त ध्यान साधनाएं भी कृते हैं. जो उनकी कुंडली को जाग्रत करने में सहायक होता है.

अघोरी सन्यासियों की क्रियाओं में मानसिक और शारीरिक श्रम की व्यापक गतिविधियाँ होती हैं. यही कारण है कि इस पंथ के सन्यासियों को दूसरे सन्यासियों की अपेक्षा सिद्धियां जल्दी प्राप्त हो जाती हैं.

मित्र इन लोगों को कुंडली जागरण साधनाओं की भ्रांतियों और खतरों का विज्ञान भी बताएं. तुल्सीयायन महाराज ने गुरुवर से कहा. वे ऐसे जिज्ञासा व्यक्त कर रहे थे जैसे हमारे गुरुवर ऊर्जा नायक के मुह से कुंडली का विज्ञान पहली बार सुन रहे हों. और सुनने में उन्हें बहुत मजा आ रहा हो.

गुरुवर उनकी तरफ देखकर मुस्कराये.

उसके बाद गुरुदेव ने जो जानकारी दी वो वाकई डराने वाली थी. उन्होंने बलपूर्वक या नादानी पूर्वक कुंडली जगाने वाली साधनाओं के दुष्परिणामों के बारे में बताया.

जिसे सुनकर कुछ समय के लिये हम सभी साधक भीतर ही भीतर डर गए.

ऐसा क्या बताया गुरुवर ने. ये मै आपको आगे बताऊंगा.

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

30 मई 2016

मेरी कुंडली आरोहण साधना… 9

… तब कुंडली साधक को बरबाद कर डालती है.

प्रणाम मै शिवांशु

हमारे गुरुदेव ऊर्जा नायक महाराज अपने आध्यात्मिक मित्र  तुल्सीयायन महाराज के 44 शिष्यों को कुंडली शक्ति विज्ञान की जानकारी दे रहे थे. उन्होंने विस्तार से बताया कि सांसारिक जीवन जी रहे लोगों की तुलना में सन्यासियों की कुंडली का जागरण क्यों अधिक मुश्किल होता है. 

अब आगे…

सन्यासी कुंडली जागरण के लिए प्राकृतिक राह पर चलने की बजाय विभिन्न तरह की साधनाओं का सहारा लेते हैं। जो इस काम के लिये लंबा और कम सफलताओं वाला रास्ता है. लेकिन कुंडली विज्ञान का तकनीकी पक्ष न पता होने के कारण साधू, सन्यासी इसी डगर पर चलते रहते हैं.

हमारे समाज में नकलची हर जगह सक्रिय हैं. गुरुदेव ने आगे की जानकारी देते हुए बताया. अध्यात्म में भी नकलचियों की कमी नही. खासतौर से लोग साधू सन्यासियों द्वारा की जाने वाली क्रियाओं, गतिविधियों की नकल कुछ ज्यादा ही करते हैं. क्योंकि एक आम  धारणा है कि पूजा पाठ, ध्यान, योग, साधना में साधू सन्यासियों को महारत हासिल है, सो वे जो करते हैं वो ठीक ही होता है. 

जबकि सच्चाई ये नही है. 

सभी साधू सन्यासी ध्यान, योग, साधना, पूजा पाठ में पारंगत नही होते. वे तो खुद ही इनकी सटीक जानकारी के लिए गुरुओं के दर पर सालों भटकते रहते हैं. 

हाँ वे अपनी लग्न के पक्के होते हैं. उनके जीवन में तनाव कम होने के कारण उनमें धैर्य अधिक होता है. सो एक बार उन्हें पता चल जाये कि फला व्यक्ति से उन्हें साधना सिद्धि की सटीक जानकारी मिल सकती है तो वे उसका पीछा नही छोड़ते. कई बार तो वे उनसे जानने, सीखने के लिये सालों इंतजार करते हैं. मै कई ऐसे सन्यासियों को जानता हूँ जो साधना सिद्धि के लिये अपने मार्गदर्शक की हाँ का 20 साल से इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें पता है कि अध्यात्म के रहस्यों को ठीक से जानने और सफल साधनाएं कराने वालों की बहुत कमी होती है. 

साधू सन्यासियों में सामान्य साधकों की तुलना में साधनाओं सिद्धियों के लिये उतावलापन कम होता है. वे सिद्ध साधना कराने वालों की हाँ का जवाब पाने के लिये महीनों, सालों यहां तक कि जन्मों तक इंतजार का धैर्य रखते हैं. क्योकि सिद्धि ही तो उनकी कमाई है. 

एक और खास बात. प्रायः सन्यासी किताबें पढ़कर साधनाएं नही करते. वे सिद्ध मार्गदर्शक के सनिग्ध में ही साधनाएं करते हैं. वे  साधनाओं की विफलता से घबराते भी नही हैं. क्योंकि उन्हें विश्वास होता है कि जो सिद्ध है वो उनको भी सिद्धि दिला ही देगा. अपने गुरु के कहने पर वे कई कई साल खुद को साधना के लायक बनाने में समय खर्च करते हैं. वे बार बार अपना गुरु नही बदलते. साधू, सन्यासी अपने गुरुओं से कभी कोई सवाल नही करते. जो उनके गुरु ने  बता दिया, वे आँख बन्द करके उसी रास्ते पर चल पड़ते हैं.

फिर भी उनका कुंडली जागरण भौतिक संसार में जीने वालों की तुलना में देर से होता है. क्योंकि वे कुंडली विज्ञान का प्राकृतिक तरीका नही जानते. उन्हें नही पता कि नियमित शारीरिक और मानसिक श्रम करने से कुंडली खुद ही जाग जाती है. उनके पास शारीरिक और मानसिक श्रम करने के मौके भी कम होते हैं. 

सो वे योग, मुद्राओं, साधनाओं, बंध, नाड़ियों, जाप व् अन्य आध्यात्मिक क्रियाओं का सहारा लेते हैं. उनके पास उपलब्ध जानकारियों के मुताबिक कुंडली जागरण के यही श्रेष्ठ साधन हैं. ऐसा नही है कि ये साधन हर बार फेल ही हो जाते हैं. कई साधक इसमें सफल भी होते हैं. बल्कि ये कहने में कोई संसय नही कि युगों युगों से साधक इन्हें अपना रहे हैं. मगर इनमे समय और संयम बहुत लगाना पड़ता है. कलयुग में लोगों के पास संयम की कमी हैं.

कुंडली जागरण साधनाओं के लिये बहुत जरूरी है कि साधक के ऊर्जा चक्र पूरी तरह सक्रिय हों. अगर उनमें नकारात्मक या बीमार ऊर्जाओं का जमाव हुआ तो चक्र का भेदन करते ही कुंडली के पथ भ्रष्ट होने का खतरा रहता है. 

गुरुदेव ने कुंडली साधना के खतरों के बारे में बताना शुरू किया. पथ भ्रष्ट कुंडली साधक के विनाश का कारण बनती है. दरअसल प्रकृति ने कुंडली शक्ति में नकारात्मक ऊर्जाओं के साथ काम करने का फीचर डाला ही नही है. सो गंदी या बीमार ऊर्जा वाले चक्र पर पहुँचते ही इसका व्यवहार अनियंत्रित हो जाता है. 

इसे ऐसे समझें जैसे कम्प्यूटर में वायरस फ़ैल गया हो. 

इस दशा में तमाम लोगों का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है. वे बेतुकी गतिविधियाँ करने लगते हैं. कुछ तो बहुत उग्र हो जाते हैं. ऐसा बिहैव करते हैं जैसे उन पर प्रेत चढ़ गया हो. 

कालान्तर में ऐसे साधक अपनी योग्यताओं, क्षमताओं का उपयोग नही कर पाते. वे भारी आर्थिक संकट में फंस जाते हैं. उनकी सभी योजनाएं फेल होने लगती हैं. रिश्ते टूटने लगते हैं. ऐसी बीमारियां घेर लेती हैं जिनके कारण ही समझ में नही आते. वे इधर उधर मारे मारे घूमते हैं. उनकी ऊर्जाओं में हर समय विस्फोट होता रहता हैं. जिससे वे बेहाल हो जाते हैं. उनकी दशा न डॉ की समझ में आती है और न गुरु की. 

कई गुरुओं को मैंने कुंडली बिगड़ जाने पर अपने शिष्यों को भटकने के लिए छोड़ते देखा है. गुरुदेव ने बताया. दरअसल वे समझ ही नही पाते हैं कि करें तो क्या करें! क्योंकि ऐसी साधनाएं, क्लासेस ऑर्गनाइज करने वाले अधिकांश गुरुओं, मास्टरों को पता ही नही होता कि बिगड़ी कुंडली शक्ति पर काबू कैसे पाया जाये. वे तो बस थोड़े से निजी लाभ के लिये बिच्छू का मन्त्र जाने बिना सांप के बिल में हाथ डालने जैसा काम कर रहे होते हैं. 

एक लाइन में कहा जाये तो कुंडली का बिगड़ जाना भयानक दुर्भाग्य होता है. 

सो कुंडली जागरण साधना कराने से पहले साधकों की पात्रता परखना बहुत जरूरी होता है. ताकि गड़बड़ी होने की गुंजाइश न रहे. यदि फिर भी गड़बड़ हो जाये तो उसे संभाला जा सके. 

गुरुदेव ने बताया कि ऐसी दशा में सबसे पहले बिगड़ी कुंडली शक्ति की प्रोग्रामिंग करके उसे फिक्स कर देना चाहिये. उसे तत्काल सातवें सुरक्षा चक्र के भीतर सीमांकित कर देना चाहिये. 

यदि साधक पर पागलपन के लक्षण नजर आने शुरू हो गए हों तो तुरन्त मानसिक चिकित्सक की मदद भी लें. उनकी राय पर दवाएं देकर मस्तिष्क का शिथिलीकरण कराना काफी सुरक्षित होता है. 

साथ ही जहां कुंडली बिगड़ी है उस चक्र को और उसके आगे वाले चक्र को लगातार तब तक उपचारित किया जाये, जब तक साधक सामान्य न हो जाये. हो सकता है उसे सामान्य होने में कुछ महीने या साल लगें. उसके जीवन को बचाने के लिये धैर्य के साथ चक्रों को उपचारित करते ही रहें. किसी भी हालत में उपचार बीच में रुकने न पाये.

भविष्य में ऐसे साधक को कुंडली जागरण की साधना से सदैव दूर रखा जाना चाहिये. अगर बहुत जरूरी हो तो उसकी कुंडली जागरण के लिये शारीरक, मानसिक श्रम की प्राकृतिक तकनीक ही अपनाएं. उससे पहले साधक के सभी चक्रों को व्यवस्थित करना न भूलें.

गुरुदेव की बातें सुनकर हम सबकी बोलती बंद हो गयी. जिसे हम दुनिया जीत लेने वाली मुफ़्त की ताकत समझ रहे थे, वो तो विनाश की परछाई भी निकली. 

आगे गुरुदेव ने उन साधकों के बारे में बताया जो नकलची होते हैं. किसी को देखकर या किताबों में पढ़कर साधनाएं करने बैठ जाते हैं. उनका जीवन तो बड़े ही खतरे में रहता है.

कैसे? ये मै आगे बताऊंगा.

क्रमश: …

सत्यम शिवम् सुंदरम

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

28 जून 2016

मेरी कुंडली आरोहण साधना… 10

कुंडली आरोहण उपकरण तैयार हो गये.

प्रणाम मै शिवांशु

उन दिनों गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र तुल्सीयायन महाराज बनारस में कैम्प कर रहे थे. वे सामूहिक रूप से अपने 44 श्रेष्ठ शिष्यों की कुंडली जाग्रत करके उसे ऊपर के चक्रों में मूव कराना चाहते थे। तुल्सीयायन महाराज उच्च कोटि के योगी थे. ध्यान साधना में भी वे सिद्ध थे. मगर ध्यान योग से एक साथ 44 शिष्यों की कुंडली आरोहण में वे सफल नही हो पा रहे थे. क्योंकि उसमें समय अधिक लग रहा था. उन्होंने गुरुवर से उर्जा विज्ञान का सहयोग मांगा. गुरुदेव ने उन्हें सहयोग का आश्वासन दिया. और मुझे उनके सभी शिष्यों की उर्जा जांच करने को कहा. मैने उनके आभामंडल व उर्जा चक्रों की जांच की. जिसके आधार पर 18 सन्यासियों को कुंडली आरोहण साधना में शामिल होने से रोक दिया गया.

अब आगे…

मुझे उर्जा की जांच करनी तो आती थी. मगर कुंडली जागरण के लिये उर्जा स्तर के पैमाने की जानकारी नही थी. सो मै नही जान पाया कि गुरुदेव ने जिन सन्यासियों को कुंडली जागरण साधना में शामिल होने से रोका उनकी उर्जा में क्या विकार थे. मै डरा हुआ था कि कहीं मेरी उर्जा भी कुंडली शक्ति के आरोहण के लायक न निकली तो क्या होगा. जब गुरुवर ने बताया कि तुम्हें साधना में शामिल किया जा रहा है. तो एेसा लगा जैसे सारी खुशियां एक साथ मिल गई हों. 

साधना से पहले तुल्सीयायन महाराज के आग्रह पर गुरुदेव ने कुंडली शक्ति के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला. उसके हानि लाभ से अवगत कराया. जिसे जानकर सभी साधक कुंडली शक्ति के उपयोग के लिये व्याकुल से हो उठे. 

साधना का दिन आ गया. सामूहिक कुंडली आरोहण साधना. ज्यादतर साधकों ने बिना मंत्र की साधना करने की इच्छा जताई थी. सो गुरुदेव ने वैसी ही तैयारी कराई. सभी चयनित साधकों के लिये कुंडली आरोहण यंत्र का निर्माण किया गया था. आपको बताता चलूं कि इस यंत्र का निर्माण बिल्ली की नाल (झेर) पर किया जाता है. बिल्ली की नाल की उर्जाओं की खासियत है कि वे समृद्धि की उर्जाों को तेजी से आकर्षित करती हैं. कुंडली की उर्जाओं की प्रवृत्ति भी समृद्धी की होती है. 

इस नाते दोनो के बीच समधर्मी उर्जाओं का रिश्ता बनता है.सभी जानते हैं कि समधर्मी उर्जायें एक दूसरे को आकर्षित करती हैं. इसके कारण तकनीकी तौर पर ये यंत्र कुंडली आरोहण के लिये बहुत सक्षम होता है. मगर बिल्ली की नाल बहुत ही दुर्लभ होती है. उसका मिल पाना बहुत कठिन होता है. जिनके पास बिल्ली की असली नाल होती है उनके पास धन हमेशा खुद ही आकर्षित होकर आता रहता है. उनके खाते भरे रहते हैं. इसलिये वे उसे लाखों रुपये लेकर भी इसे किसी को देना ही नही चाहते. 

गुरुदेव के एक अध्यात्मिक मित्र के आश्रम में तमाम बिल्लियां पली हैं. डिलिवरी के समय पीड़ा से बचने के लिये वे आश्रम के स्वामी जी की गोद में आकर बैठ जाती हैं. स्वामी जी उसी समय उनकी नाल को कपड़े से ढककर सुरक्षित कर लेते हैं. अन्यथा बिल्लियां बच्चा देते ही उनकी सफाई करते समय अपनी नाल खुद ही खा डालती हैं. कुंडली आरोहण यंत्र निर्माण के लिये गुरुवर के आग्रह पर स्वामी जी ने ही बिल्ली की नालों को भेजवाया था. उन्हीं पर यंत्र तैयार हुए. 

उर्जा विज्ञान की भाषा में साधना सिद्धी के एेसे यंत्रों को उर्जा उपकरण कहा जाता है.    

साधकों को यंत्र पहना दिये गये. साधना से पहले गुरुदेव ने बताया कि कुंडली जागरण करके उसे ऊपर के चक्रों में आरोहित करने के लिये दूषित व बाधित उर्जाओं से मुक्त होना जरूरी होता है. वर्ना कुंडली जागरण में मुश्किल होती है. अगर कुंडली जाग भी जाये तो उसके व्यवहार में विकार की आशंका रहती है. जो विनाशकारी भी हो सकती है. इसके तहत साधना से पहले साधक को ग्रहों की दूषित उर्जा, देवदोष यानि बिगड़ी साधनाओं की उर्जा, पितृ दोष यानि डी.एन.ए. की असंतुलित उर्जा और तंत्र यानि नकारात्मक भावनाओं के घुसपैठियों की दूषित उर्जा से मुक्त किया जाता है. 

गुरुदेव ने इनके नियमों की जानकारी देकर दूषित उर्जाओं का मुक्तीकरण शुरू कराया. 

जिसे मै आगे विस्तार से बताउंगा. ताकि अपनी कुंडली आरोहण साधना के समय आप लोग उसे विधि पूर्वक कर सकें. 

क्रमश:…

सत्यम शिवम् सुंदरम

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

29 जून 2016

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 11

इलाज के लिये ग्रहों की उर्जाओं को हथेली पर बुला लिया गया

प्रणाम मै शिवांशु

गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र तुल्सीयायन महाराज अपने 44 श्रेष्ठ शिष्यों की कुंडली जाग्रत करके उसका ऊपर के चक्रों में आरोहण कराना चाहते थे। मगर ध्यान योग से एक साथ इतने लोगों की कुंडली आरोहण में वे समय अधिक लग रहा था. सो उन्होंने गुरुवर से उर्जा विज्ञान का सहयोग मांगा. गुरुदेव ने उनके शिष्यों की कुंडली जगाकर ऊपर उठाने के लिये साधना शुरू कराई.

अब आगे….

कुंडली जागरण के लिये जरूरी था कि सभी साधकों के आभामंडल व उर्जा चक्रों की स्थिति निर्मल हो. अक्सर ग्रह-नक्षत्रों, तंत्र बाधा, देव बाधा, पितृ बाधा के कारण के ही उर्जायें दूषित होती हैं. इसलिये साधकों के उर्जा क्षेत्र को इनसे मुक्त किया जाना जरूरी था. कुछ ही मिनटों में इन उर्जाओं को हटाया जाना अपने आप में बड़ा काम है. क्योंकि इनके लिये बड़े बड़े अनुष्ठानों का सहारा लिया जाता है. जो खर्चीले होने के साथ ही समय भी बहुत लेते हैं.

गुरुदेव ने इसके लिये उर्जा विज्ञान का उपयोग किया. क्योंकि उसके जरिये ही कम समय में इस तरह की दूषित उर्जाओं को आभामंडल से हटाया जा सकता है. सबसे पहले उन्होंने ग्रहों की दूषित उर्जाओं का इलाज शुरू कराया. जिसमें समधर्मी उर्जा आकर्षण के सिद्धांत को अपनाया गया.

सिद्धांत ये है कि समधर्मी उर्जायें एक दूसरे को आकर्षित करती हैं. यही कारण है कि टोने टोटकों में अलग अलग समस्याओं के लिये अलग अलग वस्तुओं का इश्तेमाल किया जाता है. जैसे शनि की खराब उर्जाओं को हटाना हो तो सरसों के तेल का दान बताया जाता है. सरसों के तेल की उर्जाएं शनि की उर्जाओं जैसी ही होती है. सरसों के बीज से लेकर पौधों तक में श्याह नीली उर्जायें होती हैं. जो शनि ग्रह से आने वाली उर्जाओं को अपनी तरफ आकर्षित करके अवशोषित करती रहती हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो सरसों की फसल के तैयार होने में शनि ग्रह की उर्जाओं की बड़ी हिस्सेदारी होती है. यही कारण है कि जिस बरस शनि की ब्रह्मांडीय स्थिति खराब होती है उस साल सरसों की फसल कमजोर होती है.

सामान्य स्थितियों में ग्रहों की उर्जायें किसी के लिये भी खराब नही होतीं. आभामंडल की ऊपरी परत से लेकर भीतर की 16 वीं परत तक ग्रहों की उर्जाओं को ग्रहण करने के रंगीन पैच बने होते हैं. कई बार इन पैचों पर दूषित उर्जाओं के जाल से बन जाते हैं. जब किसी ग्रह की उर्जा दूषित जाल से होकर गुजरती है तो दूषित होकर नुकसान दायक हो जाती है.

ज्योतिष की भाषा में इसे ग्रह का खराब होना बोला जाता है.

आभामंडल के भीतर बने रंगीन पैच के ऊपर से दूषित उर्जा के जाल को हटा दिया जाये तो सम्बंधित ग्रह की लाभकारी उर्जा ही प्राप्त होती है. इसी के लिये ज्योतिषीय उपाय के तहत दान, जल प्रवाह, जानवरों को वस्तुवें खिलाने, पक्षियों को दाना डालने, गरीबों को भोजन कराने आदि के उपाय कराये जाते हैं.

उदाहरण के लिये किसी व्यक्ति का शनि खराब है. उसे एक उपाय बताया गया कि बहते पानी में सरसों का तेल गिरा दें. जब वह व्यक्ति हाथ में सरसों का तेल लेगा, तो उसके आभामंडल में शनि ग्रह की उर्जा ग्रहण करने वाले पैच के दूषित जाल की उर्जा समधर्मी होने के कारण आकर्षित होकर सरसों के तेल के साथ जुड़ जाएगी. फिर जब व्यक्ति उस तेल को बहते पानी में डालेगा तो तेल के साथ दूषित उर्जा का जाल खुलता हुआ पानी में बह जाएगा. ठीक वैसे ही जैसे स्वेटर की ऊन का एक सिरा पकड़ कर खीचा जाए तो पूरा स्वेटर खुल जाता है.

पानी में बह जाने के कारण दूषित उर्जा व्यक्ति के पास वापस नही आ पाती.

दूसरा उदाहरण. किसी व्यक्ति को शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिये रोटी में सरसों का तेल लगाकर खिलाने को बताया गया. जब वह रोटी अपने हाथ में लेकर उस पर सरसों का तेल लगाएगा, तो उसके आभामंडल में बने शनि के ग्रह के उर्जा पैच पर फैले दूषित उर्जा जाल की उर्जायें सरसों के तेल की तरफ आकर्षित होकर उससे जुड़ जाएंगी. फिर जब रोटी को गाय को खिलायेगा तो उसके साथ जुड़े दूषित उर्जा जाल की हानिकारक उर्जायें गाय के पेट में चली जाएंगी. गाय के पैरों के नाखूनों में दूषित उर्जाओं को पाताल अग्नि में भेज देने की प्राकृतिक क्षमता होती है. इस तरह से रोटी के साथ खायी दूषित उर्जाओं को गाय पाताल अग्नि में भेजकर जला देती है. और दूषित उर्जा व्यक्ति के पास वापस नही आ पाती.

आपको बताता चलूं कि ज्योतिष एक श्रेष्ठ विज्ञान है. उसके उपाय पूरी तरह से वैज्ञानिक उपचार होते हैं. भेले ही उन्हें बताने वाला या करने वाला विज्ञान के बारे में कुछ जानता हो या न जानता हो. अगर उपाय बिना मिलावट या बिना बिगाड़े मूल रूप में किये जायें तो निश्चित रूप से काम करते ही हैं.

गुरुदेव ने इसी विज्ञान की उच्च तकनीक का उपयोग किया. सभी ग्रहों की उर्जाओं को साधकों की हथेली पर केंद्रित कराया. फिर ग्रहों की दूषित उर्जाओं को निकालकर ग्रहों पर ही वापस भेजा गया. ताकि लम्बे समय तक साधक ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचे रहें. इसका व्यवहारिक प्रयोग जो साधक 19 जुलाई की कुंडली महासाधना में दिल्ली पहुंच रहे हैं. वे अपनी आंखों से देखेंगे और सीखेंगे.

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

1 जुलाई 2016

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 12

देव बाधा मुक्ति के लिये पारद शिवलिंग का उपयोग हुआ

प्रणाम मै शिवांशु

गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र तुल्सीयायन महाराज अपने 44 श्रेष्ठ शिष्यों की कुंडली जाग्रत करके उसका ऊपर के चक्रों में आरोहण कराना चाहते थे। मगर ध्यान योग से एक साथ इतने लोगों की कुंडली आरोहण में वे समय अधिक लग रहा था. सो उन्होंने गुरुवर से उर्जा विज्ञान का सहयोग मांगा. गुरुदेव ने कुंडली आरोहण से पहले सभी साधकों को दूषित उर्जाओं से मुक्त कराया. उसके लिये सबसे पहले ग्रहों की पिंड उर्जाओं कुंडली जागरण रुद्राक्ष के द्वारा साधकों की हथेली पर बुलाया गया. उनके जरिये ग्रहों की दूषित उर्जाओं को ग्रहों पर ही विस्थापित कर दिया गया. जो साधक 19 जुलाई या 19 सितम्बर के कुंडली महासाधना शिविर में आ रहे हैं. वे इस विज्ञान को प्रत्यक्ष जानेंगे और स्वयं करेंगे.

अब आगे….

ग्रहों की दूषित उर्जाओं को हटाने के बाद गुरुदेव ने साधकों को देव बाधा से मुक्ति का अनुष्ठान शुरू कराया. इसे समझने से पहले जान लेते हैं कि देव बाधा होती क्या है. और इसके क्या नुकसान हैं.

अक्सर हमारे पूजा पाठ बिगड़ने से देव बाधा पैदा होती है. इसके कुछ कारण आगे बता रहा हूं.

1. अगर कोई व्यक्ति एेसी पूजा पाठ करता है जिनकी उर्जाओं की उसे जरूरत नही होती. तो उनसे प्राप्त गैर जरूरी उर्जायें उसके आभामंडल और उर्जा चक्रों को असंतुलित कर देती हैं. जिसके कारण पूजा पाठ से लाभ होना तो दूर, बने काम भी बिगड़ने लगते हैं. ये देव बाधा का एक रूप है.

2. अगर कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा पूजा पाठ, साधना करता है. तो उससे प्राप्त अतिरिक्त उर्जाएं उसके आभामंडल और उर्जा चक्रों के रंगों के घनत्व को असंतुलित करती हैं. जिससे बीमारियां और गैर जरूरी खर्चों की स्थिति पैदा होती है. ये भी देव बाधा का एक रूप है. ध्यान रखें अति हर चीज की बुरी ही होती है.

3. अगर कोई व्यक्ति किसी मनौती, पूजा पाठ, अनुष्ठान या साधना का संकल्प लेकर उसे पूरा नही करता है. तो उसका अवचेतन मन अपने आप विपरीत कमांड  ग्रहण कर लेता है. जिससे अवचेतन शक्ति विपरीत काम करने लगती है. ये स्थिति बहुत खतरनाक है. अपनी ही अवचेतन शक्ति द्वारा जीवन में उथल पुथल मचा दी जाती है. एेसे व्यक्ति को भारी अस्थिरता, समस्याओं और अपयश का सामना करना पड़ता है. ये भी देव बाधा का एक रूप है.

4. अगर कोई व्यक्ति बीज मंत्रों का जाप करता है. मगर उसे बीज मंत्रों की छंद ( लय) नही आती या उसका उच्चारण दोष पूर्ण है. तो ब्रह्मांडीय सोर्स से भारी मात्रा में प्राप्त होने वाली उर्जाओं में विकृत्ति उत्पन्न होती है. ये बहुत खतरनाक है. इससे आभामंडल और उर्जा चक्रों पर बहुत ही विनाशकारी असर पड़ता है. शुरूआत में तो जाप करने वालों को कुछ समय अच्छा लगता है. मगर कालांतर में चक्र दुर्दशाग्रस्त होकर अंतहीन बीमारियां और समस्याएं पैदा करने लगते हैं. ये भी देव बाधा का एक रूप है.

5. अगर कोई व्यक्ति मंत्रों का उच्चारण दोष पूर्ण करता है. या उसके छंद के विपरीत जप करता है. तो उसी क्षण उर्जा चक्रों में प्रदूषण पैदा होने लगता है. जिससे कामकाज में रुकावटें होती हैं. साथ ही शारीरिक क्षमतायें कमजोर होती हैं. 

अक्सर देखने में आता है कि लोग माला जाप के दौरान मंत्रों की गिनती पूरी करने के चक्कर में जल्दी जल्दी जाप करते हैं. क्योंकि जाप बताने वाले ने उन्हें उस मंत्र के छंद की आवृत्ति की जानकारी नही दी होती है. जिससे मंत्र की पूर्व निर्धारित छंद टूट जाती है. एेसे में मंत्र जाप ही समस्याओं का कारण बन जाता है. छंद मंत्र जाप के उच्चारण की लय को कहते हैं. उसके अनुसार ही मंत्र की तरंगे उत्पन्न होती हैं. निर्धारित तरंगों से ही वांछित रंग की उर्जा प्राप्त होती है. यही रंगीन उर्जा चक्रों का जागरण करती है. जाग्रत चक्र बड़ी शक्ति के रूप में काम करते हैं. चक्रों को जगाने को ही अध्यात्म की भाषा में सिद्धी कहा जाता है.  गलत तरीके से मंत्र जप करके चक्रों पर बिगड़ी उर्जा बुला ली जाये तो वे दूषित होकर विनाशकारी परिणाम देते हैं. ये भी देव बाधा का एक रूप है.

6. जल्दबाजी में की जाने वाली पूजा पाठ, टोका टाकी के बीच की जाने वाली पूजा पाठ, आपस में बातचीत करते हुए की जानी वाली पूजा पाठ, गुस्से में की जाने वाली पूजा पाठ, तनाव में की जाने वाली पूजा पाठ से अर्जित देव उर्जाएं भी दूषित होकर निरंतर समस्याएं पैदा करती हैं. ये भी देव बाधा का एक रूप है.

7. नियम, संयम और भली नीयत वाले लोगों के बारे में खराब सोचने से लोगों के आभामंडल में छेद हो जाते हैं. जिससे काम होते होते रुकने लगते हैं. बार बार अपमान का सामना करना पड़ता है. ये भी देव बाधा का एक रूप है.

8. जो सिद्ध साधक हैं, संत प्रवृत्ति वाले हैं, आदतन लोगों के लिये हितकारी हैं. उनके खिलाफ सोचने वाले लोगों के भी आभामंडल में छेद हो जाते हैं. जिससे काम होते होते रुकने लगते हैं. बार बार अपमान का सामना करना पड़ता है. ये भी देव बाधा का एक रूप है.

9. देव स्थलों की आलोचना करने वाले, वहां तोड़ फोड़ करने वाले, वहां अव्यवस्था फैलाने वाले या वहां गंदगी फैलाने वाले लोगों के आभामंडल टेढ़े हो जाते हैं. एेसे में उन्हें बहुत उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ता है. ये भी देव बाधा का एक रूप है.

10. हरे पेड़ काटने वाले लोग, नदियों व जलासयों में गंदगी फैलाने वाले लोगों के आभामंडल हमेशा असंतुलित होकर एक ही दिशा में भागते रहते हैं. एेसे में कर्ज और कलह से छुटकारा मिल पाना मुश्किल होता है. ये भी देव बाधा का एक रूप है.

देव बाधा, पितृ बाधा और तंत्र बाधा से मुक्ति के लिये गुरुदेव ने पारद शिवलिंग का उपयोग कराया. 

पारद शिवलिंग किस तरह से इन बाधाओं को हटाता है. उसके पीछे का विज्ञान क्या है. ये मै आगे बताउंगा.

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

6 जुलाई 2016

मेरी कुण्डली आरोहण साधना- अंतिम

प्रणाम मै शिवांशु

बनारस में कैम्प कर रहे  गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र तुल्सीयायन महाराज अपने 44 श्रेष्ठ शिष्यों की कुंडली जाग्रत करके उसका ऊपर के चक्रों में आरोहण कराना चाहते थे। मगर ध्यान योग से एक साथ इतने लोगों की कुंडली आरोहण में वे समय अधिक लग रहा था. सो उन्होंने गुरुवर से उर्जा विज्ञान का सहयोग मांगा. गुरुदेव ने कुंडली आरोहण से पहले सभी साधकों को दूषित उर्जाओं से मुक्त कराया. उसके लिये सबसे पहले ग्रहों की पिंड उर्जाओं कुंडली जागरण रुद्राक्ष के द्वारा साधकों की हथेली पर बुलाया गया. उनके जरिये ग्रहों की दूषित उर्जाओं को ग्रहों पर ही विस्थापित कर दिया गया. देव बाधा, पितृ बाधा और तंत्र बाधा की उर्जाों को समाप्त करने के लिये गुरुवर ने पारद शिवलिंग का उपयोग कराया.

अब आगे….

पारद शिवलिंग के मध्य भाग को प्रोग्राम करके नकारात्मकता को हटाना के लिये तैयार किया जाता है. इसके लिये शुद्ध पारद शिवलिंग को संजीवनी शक्ति से शोधित करके सिद्ध किया जाता है. फिर उसकी प्रोग्रामिंग की जाती है. इसे आप एेसे समझें जैसे किसी स्मार्ट फोन को चार्ज करके आन किया जाये. फिर उसमें विभिन्न एप डाउनलोड करके उसकी प्रोग्रामिंग की जाये. फिर वो इस्टाल एप यानी प्रोग्रामिंग के मुताबिक काम करता है.

एेसा शिवलिंग किसी भी व्यक्ति को ग्रहदोष, वास्तुदोष, तंत्रदोष, पितृदोष, देवदोष की उर्जाओं को नष्ट करने में सक्षम होता है. गुरुवर ने हम सभी साधकों को सिद्ध और प्राग्राम्ड शिवलिंग दिये. हम उन्हें हाथ में लेकर बैठ गये. जैसे ही गुरुदेव ने शिवलिंग से नकारात्मकता हटाने का आग्रह किया. हमें लगा जन्मों से हमारे भीतर घुसी नकारात्मक उर्जायें निकल रही हैं. हम सबने अपने भातर से निकलती नकारात्मक उर्जाओं को काफी देर तक फील किया. हम सोच भी नही सकते थे कि इतनी पूजा पाठ, ध्यान साधना करने के बाद भी हमारे भीतर इतना कचरा बाकी है.

इस अनुष्ठान के बाद हमें पता चला कि वास्तव में नकारात्मकता से मुक्त होने पर कितना सुखद लगता है. अब हम हवा में उड़ से रहे थे. एेसा अहसास जैसा कभी न हुआ था. सफलता का आत्मबल खुद ब खुद आसमान छूने लगा. मन के सारे संसय मिट चुके थे. निगेटिविटी से मुक्त हमारी अपनी उर्जाओं ने मूक घोषणा सी कर दी कि अब तो कुंडली शक्ति जागेगी ही.

कुंडली जागरण और आरोहण में मुझे छोड़कर शेष सभी साधक तुल्सीयायन महाराज के शिष्य थे. सो गुरुवर ने कुंडली जागरण का शक्तिपात तुल्सीयायन महाराज से ही कराना तय किया. मै इस बात का मतलब साफ समझ रहा था. गुरुवर चाहते थे कि तुल्सीयायन महाराज के शिष्यों के मन में ये संदेश न जाने पाये कि उनके गुरु इस काम के लिये सक्षम नही थे. वे चाहते थे कि उनके सभी शिष्यों का अपने गुरु के प्रति विश्वास अटल बना रहे. इसके लिये गुरुदेव ने तुल्सीयायन महाराज से विधिवत आग्रह किया कि कुंडली जागरण का शक्तिपात शुरू करें. तुल्सीयायन महाराज भी इस बात का अर्थ समझ रहे थे. उन्होंने कुछ मिनटों तक गुरुवर से एकांत वार्ता की औक शक्तिपात के लिये हमारे बीच आ गये.

साधकों को कुंडली आरोहण यंत्र धारण करने के निर्देश मिले. शिवलिंग को हाथ से हटाकर अलग रख दिया गया. उससे पहले गुरुदेव ने बताया कि किसी भी साधक के जीवन में जब कोई भी समस्या आये या साधना में विघ्न आये तो वह शिवलिंग को सामने रखकर उसे 10 मिनट अपलक देखे. समाधान स्वतः निकलकर सामने आ जाएगा.

जो लोग आगामी कुंडली महासाधना शिविर में आ रहे हैं. वे भी कुंडली महासाधना के बाद अपने शिवलिंग का एेसा उपयोग सदैव कर सकेंगे.

हम शक्तिपात ग्रहण करने के लिये तैयार हो चुके थे. तुल्सीयायन महाराज ने शक्तिपात प्रारम्भ किया. कुछ ही क्षणों बाद हमें गले में धारण यंत्र पर दबाव महसूस हुआ. मै हैरान था. पहला दबाव सिर के ऊपर सहस्रार पर होना चाहिये था. मगर दबाव यंत्र पर था. यानी कि यंत्र शक्तिपात की उर्जायें सीधे अपनी तरफ खींच रहा था. तभी याद आया कि कुंडली का आरोहण तो नीचे से ऊपर की तरफ होना है. एेसे में शक्तिपात का आरोहण सहस्रार से नीचे की तरफ जाना उचित न होता. अब यंत्र की उपयोगिता समझ पा रहा था.

जैसे जैसे शक्तिपात का वेग बढ़ता गया, वैसे वैसे यंत्र पर दबाव स्थिर होता गया. सामान्यतः ध्यान के समय मुझे सहस्रार, तीसरे नेत्र, आज्ञा चक्रों पर उर्जा उतरती लगती थी. मगर आज एेसा न था. कई मिनट बीत गये. मेरे किसी भी चक्र पर उर्जा का दबाव महसूस नही हो रहा था. जबकि ध्यान-साधना में बैठते के एक मिनट के भीतर ही मेरे अधिकांश चक्र सक्रिय होकर मुझे अपनी उपस्थिति का अहसास कराने लगते हैं. अगर गुरुदेव सामने न बैठे होते तो शायद मै भ्रमित हो जाता कि शक्तिपात का मुझ पर कोई असर ही नही हो रहा.

मैने खुद को ढ़ीला छोड़ दिया. क्योंकि समझ चुका था कि मेरी इस साधना में मेरे किसी एक्शन की कोई भूमिका ही नही है. जो होगा वो गुरुदेव द्वारा तैयार यंत्र ही करेगा. शायद गुरुदेव ने यंत्र की प्रोग्रामिंग में टाइमिंग भी तय की थी. वो शक्तिपात की उर्जाओं को अपने मुताबिक साधकों के चक्रों पर पहुंचा रहा था. इस साधना में हमें किसी मंत्र का जाप भी नही करना था. एेसा गुरुदेव का निर्देश था. क्योंकि साधकों ने बिना मंत्र की साधना कराने का आग्रह किया था.

गुरुवर का निर्देश था कि अगर किसी का मन बहुत ज्यादा इधर उधर भागे तो वे मन ही मन कहें * हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं. मुझ शिष्य पर दया करें. मेरे भीतर के शिव को जगाकर मेरा कुंडली आरोहण स्वीकार करें और साकार करें*.

कुछ देर बाद मुझे दोनो पैरों के बीच सनसनाहट होती लगी. रीढ़ की हड्डी में सर्द सिहरन सी दौड़ गई. जैसे किसी ने मेरी रीड़ को नीचे और ऊपर से पकड़कर खींच दिया हो. ये मेरे लिये अपनी तरह का पहला अनुभव था. खिचाव एेसा था कि रीढ़ के निचले हिस्से में गुदगुदी होने लगी. मन रोमांच से भर गया. स्पष्ट रूप से मेरे शरीर के भीतर बदलाव हो रहा था.

कुछ समय यूं ही बीता. फिर अचानक तेज गर्मी का अहसास हुआ. न दिखने वाला पसीना शरीर के कई हिस्सों में रिसता सा लगा.  एेसे लगा जैसे शरीर के भीतर का कोई हिस्सा तपती आग के सम्पर्क में आ गया है. कुछ क्षण यूं ही बीते. रोमांच बढ़ रहा था. अब मै अपने भीतर अतिरिक्त उर्जाओं का संचार महसूस कर रहा था. जो अपनी विशालता का अहसास करा रही थीं.

शिव गुरु याद आ रहे थे. लग रहा था वे मेरे भीतर आकर जागने के लिये निकल पड़े हैं. दिमाग में विचार तो थे. मगर अस्पष्ट से. सो मुझे गुरुदेव द्वारा बताये ऊपर के वाक्यों का जाप करने की जरूरत नही लगी.

एकाएक रीढ़ में ठंड का अहसास होने लगा. जो बढ़ता जा रहा था. एक समय एेसा आया जब मै कंपकंपा सा गया. किट क्षेत्र में रीढ़ पर बर्फ सी ठंड को अहसास होने लगा. आंतरिक उर्जाओं का स्तर बढ़ता जा रहा था. मन में सफलता का आनंद अपने आप व्याप्त होता गया. मन ने खुद को बड़ी शक्तियों के उपभोक्ता के रूप में स्वीकार कर लिया. लगने लगा कि अब मै बहुत खास हो गया हूं. इतना कि कुछ भी करने का फैसला ले सकता हूं. जो करूंगा वो सफल ही होगा.

सच कहूं तो उन क्षणों में मेरा अपनी शक्तियों से परिचय हो रहा था. ये सारे अहसास एेसे थे कि उन्हें बताने के लिये आज तक मुझे उपयुक्त शब्द नही मिल पाये. कभी कभी सोचता हूं शायद उस अहसास को परिभाषित करने वाले शब्द किसी डिक्सनरी में हों ही न. 

आप में से जो लोग भविष्य की कुंडली महासाधनाओं में शामिल हो रहे हैं. वे जब अपने अनुभव शेयर करेंगे तो शायद ज्यादा बातें स्पष्ट हो पायें. मेरे साथ कुंडली आरोहण कर रहे अन्य साधकों में से अधिकांश के अनुभव एक जैसे ही थे. कुछ एेसे भी थे जिनके अहसास हमसे अलग थे.

इस बारे में मैने बाद में गुरुवर से बात की तो उन्होंने बताया कि अनुभव अलग होने से कुंडली आरोहण पर कोई फर्क नही पड़ता. कुछ लोगों के अनुभव पूर्वाग्रह से प्रभावित होते हैं.

हां उर्जा प्रवाह की गति का असर जरूर पड़ता है. उर्जा प्रवाह की गति मन की स्थिति से प्रभावित होती है. इसे एेसे समझों कि एक क्लास में 50 स्टूडेंड हैं. उन्हें एक ही कोर्स एक ही साथ एक ही तरह से पढ़ाया जाता है. मगर उनके नम्बर अलग अलग होते हैं. ये उनकी लगन और समझ पर निर्भर है. एेसे ही कुंडली आरोहण साधक की मनोदशा से भी प्रभावित होता है. इसीलिये जिन लोगों को अपने मार्ग दर्शक पर जरा भी संसय हो उन्हें कुंडली आरोहण की साधनाओं से दूर रहना चाहिये.

तुल्सीयायन महाराज ने जब शक्तिपात रोका. तब तक हमें अपनी नाभि क्षेत्र में उर्जाओं का जमाव लगने लगा था. बड़ा अच्छा लग रहा था. हवा में उड़ने का अहसास तो नही था. मगर आनंद उससे कम भी न था. शक्तिपात रुका तो साफ पता चल रहा था कि शरीर के भीतर कोई हलचल रोक दी गई है. रुकने से अधुरापन तो न था. मगर ये सिलसिला चलता ही रहे. एेसी ख्वाहिश पनप रही थी.

गुरुदेव ने बताया कि नाभि से ऊपर का आरोहण अगली साधना में होगा. तब तक सभी साधक अपनी कुंडली शक्ति का उपयोग शुरु कर दें. गुरुवर ने सभी को कुंडली शक्ति का उपयोग सिखाया. तो हम दंग रह गये. सोचते थे ये काम पहाड़ हटाने जैसा भारी भरकम होगा. मगर गुरुवर के अनुसंधान ने इसे गिलास उठाकर पानी पीने जैसा आसान बना दिया था. इसके लिये सभी साधक उनके ऋणी हो गये.

हम सफल हुये. हमारी शक्ति को ऊपर की राह मिल चुकी थी. अब हम उसका इश्तेमाल कर सकते थे. अब हम समझ सकते थे कि देवी देवता क्यों खास होते हैं. हम उनके कितने नजदीक हैं. जो वे कर सकते हैं, उनमें से हम क्या क्या कर सकते हैं. गुरुवर ने सभी साधकों से कहा *अहंकार नही करना है. मगर खुद को देवदूतों की तरह शक्तिवान मानों और जरुरतमंदों के काम आओ. ये मेरा आदेश है. यही मेरी गुरुदक्षिणा है.*

…. क्रमशः ।

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.