
जो लोग जाग्रत कुंडलिनी के उपयोग की विधि जानते हैं, उन्हें देवताओं से कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं होती। जाग्रत कुंडलिनी की उपलब्धियों की कोई सीमा नहीं। कोई गिनती नहीं। इसके प्रभाव जन्मों तक मिलते हैं। जाग्रत कुंडलिनी ब्रह्मांड की सभी शक्तियों का उपयोग करना जानती है। परिणाम इस बात पर निर्भर हैं कि साधक किन विधि विधान को अपनाता है।
कुंडलिनी जागरण का ऋषि विधान
एनर्जी गुरू श्री राकेश आचार्या जी को कुंडली जागरण का अचूक ऋषि विधान हिमालय साधना के दौरान सिद्ध संतों से प्राप्त हुआ। वे बताते हैं कि आभामंडल को ब्रह्मांडीय उर्जाओं के साथ जोड़ दिया जाये। उर्जा चक्रों में साधना मंत्र के बीज मंत्रों को स्थापित कर दिया जाये। भौतिक शरीर और मानसिक शरीर की सक्रियता बढ़ा दी जाये। भावनात्मक शरीर और ईथरिक शरीर को संतुलित कर लिया जाये। तो कुंडलिनी जाग्रत होकर शुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर जाती है। चित्रा नाड़ी की तरफ चल पड़ती है।
साधक के भीतर देव शक्तियां जाग्रत होने लगती हैं।
अधिकांश विद्वान कुंडली का उपयोग और सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय बनाये रखने के लिये उनमें निरंतर उर्जा का प्रवाह करते हैं। इसके लिये पंचतत्व अनुसंधान से सिद्ध कुंडली जागरण रूद्राक्ष या भैरवी यंत्र जैसे उर्जा उपकरणों का प्रयोग करते हैं।
कुंडली जागरण रुद्राक्ष
साधना के दौरान साधकों को सिद्ध कुंडली जागरण रुद्राक्ष या सिद्ध भैरवी यंत्र या अन्य उर्जा उपकरण का उपयोग करना ही चाहिये। ताकि आभामंडल, उर्जा चक्रों की सक्रियता स्थिर रहे। जाग्रत हुई कुंडली अटकने न पाये। अधोगामी न होने पाये।
कुंडली जागरण रुद्राक्ष को सिद्ध करने का विधान भी एनर्जी गुरूजी को हिमालय साधना के समय संतों से मिला। जिसे कोई भी अपना सकता है। कुंडली जागरण के लिये रुद्राक्ष सिद्ध कर सकता है।
खुद न कर सकें तो किसी विद्वान से सिद्ध करा लें।
चाहें तो मृत्युंजय योग संस्थान से करा लें। आगे दिए लिंक से रजिस्ट्रेशन कराने पर हमारे सहयोगी तुरंत संपर्क करेंगे। यंत्र सिद्धि अनुष्ठान हेतु डिटेल लेंगे। एनर्जी गुरु श्री राकेश आचार्या जी के मार्गदर्शन में रुद्राक्ष सिद्ध करके भेजा जाएगा। साधना में मार्गदर्शन हेतु जरूरत के अनुसार गुरुजी से बात कराई जाएगी।
रजिस्ट्रेशन लिंक
https://pay.webfront.in/webfront/#/merchantinfo/mrityunjay-yog-foundation/7842
- जाग्रत कुंडली की उपलब्धियां
- लाखों में एक व्यक्तित्व, सम्मोहन
- ब्रह्मांडीय सुरक्षा कवच
- समस्याएं, विपदाएं बेअसर
- हजारों गुना कार्य प्रगति, उन्नति
- प्रसिद्धि के साथ सिद्धि और देव शक्तियां
- राज योग और चौतरफा सम्मान
- संसार हित के लिए देव योजना में स्थान
- तन, मन, धन से लोगों की सेवा, सहायता की क्षमता।
- जीवन असंख्य लोगों के लिए कल्याणकारी बन जाता है।
कितने दिन की साधना
वैसे तो कुंडली जाग्रत होने तक साधना चलनी चाहिये।
फिर भी आप चाहें तो 9 दिन साधना करके रुक जायें। अपनी एनर्जी चेक कर लें।
जरुरत के अनुसार 4 दिन रुकने के बाद दोबारा शुरू करें। लम्बे परिणामों के लिये कुंडली जागरण को दोहराते रहना चाहिये।
सामान्य रूप से कुंडली जाग्रत होने पर व्यक्तित्व में निखार, डिवाइन ग्लो, लोगों के बीच सम्मान, रिश्तों में अपनापन, धैर्य, उत्साह, उमंग, नेम-फेम, धन के साधन, देव शक्तियों का अहसास, पूर्वाभास, टेलीपैथी, वाणी सिद्धी, सम्मोहन, आकर्षण बढ़ता है। इन लक्षणों के सामने आने पर समझ जाइये कुंडली जाग गई। सही दिशा में चल पड़ी।
साधना विधान
1- श्री गणेशाय नमः बोलकर भगवान गणेश से निर्विघ्नता का आग्रह करें
अपने मूलाधार चक्र पर ध्यान लगाएं और कहें- हे गौरीनंदन आपको हमारा प्रणाम। हमारे द्वारा सम्पन्न किये जा रहे कुंडली जागरण को निर्विघ्न करें। हमें शक्ति सम्पन्न बनाएं।
आपका धन्यवाद।
2- नवग्रहों से पंचतत्नों के लिये सकारात्मक उर्जायें मांगे
कहें- हे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध , गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु सहित सभी ग्रह नक्षत्रों आपको नमन। हमें अपने ग्रहों के दुष्प्रभावों से मुक्त रखते हुए कुंडली जागरण हेतु अपनी सकारात्मक उर्जायें प्रदान करें। मेरे भीतर पंचतत्वों को सशक्त करें।
आपका धन्यवाद!
3- संजीवनी शक्ति से शुद्धता और क्षमता का आग्रह करें
सिर के ऊपर सहस्रार चक्र पर ध्यान लगाते हुए कहें- हे दिव्य संजीवनी शक्ति आपको नमन। मुझ पर दैवीय ऊर्जाओं का शक्तिपात करें। मेरे तन, मन, मस्तिष्क, अभामंण्डल, ऊर्जा चक्रों और उर्जा नाड़ियों को स्वच्छ और शक्तिशाली बनाएं। हमें कुंडली जागरण, आरोहण हेतु सक्षम बनाएं।
आपका धन्यवाद!
4- अपनी शक्तियों से आग्रह करें
गले के बीच स्थित विशुद्धि चक्र पर ध्यान लगाते हुए कहें- मेरे तन, मन, मस्तिष्क, अभामंण्डल, ऊर्जा चक्रों, उर्जा नाड़ियों, मेरी कुंडलिनी शक्ति औऱ हृदय सहित सभी अंगों आपको नमन। आप सब ब्रह्मांड से दैवीय उर्जाओं को ग्रहण करके अपने अंदर स्थापित करें। सशक्त और सक्रिय हो जायें। मुझे कुंडली जागरण हेतु सक्षम बनाएं।
आपका धन्यवाद!
5- भगवान शिव को साक्षी बनाकर कुंडली जागरण की सफलता हेतु सहायता और सुरक्षा मांगे
छाती पर स्थित अनाहत चक्र पर ध्यान लगाकर कहें- हे देवाधिदेव महादेव आपको प्रणाम। मेरे मन को सुखमय शिव मंदिर बनाकर उसमें विराजमान हों। आपको साक्षी बनाकर मै कुंडली जागकरण सम्पन्न कर रहा हूं। इसकी सफलता हेतु मुझे अनुसति प्रदान करें। दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें। आभामंडल, उर्जा, उर्जा नाड़ियों की सक्रियता सुनिश्चित करें।
आपका धन्यवाद!
6- सिद्ध कुंडली जागरण रुद्राक्ष से उर्जा कनेक्टिविटी का आग्रह
कहें- हे दिव्य कुंडली जागरण रुद्राक्ष आपको मेरे लिये सिद्ध किया गया है। सदैव मेरी भावनाओं के साथ जुड़े रहिये। मेरी भावनाओं के अनुरूप कुंडली जागरण में औरिक सहयोग करें। ब्रह्मांड की सक्षम उर्जायें मेरे आभामंडल में भर दें। मेरे कुंडली चक्र को निरंतर सक्रिय बनायें रखें। मेरी उर्जा नाड़ियों को निरंतर सक्षम बनाये रखें। जागरण और आरोहण हेतु मेरी कुंडली को हर क्षण हर पल उर्जावान बनायें रखें।
आपका धन्यवाद।
7- कुंडली जागरण मंत्र से आग्रह
कहें- हे दिव्य कुंडली जागरण मंत्र ‘ॐ मणि पद्मे हं कुंडली आरोहणं’ आपको मेरा नमन। मेरी भावनाओं से जुड़कर मेरे लिये सिद्ध हो जाइये। अपनी उर्जाओं से मेरी कुंडली का जागरण करें। आरोहण करें।
आपका धन्यवाद।
ऊपर दिये संकल्प पूरे करने के बाद आगे दी विधि से रोज साधना सम्पन्न करें।
विधि और नियम
कुंडली जागरण के लिये इडा, पिंगला नाड़ियों में मष्तिश्कीय दृव्य का प्रचुर और शुषुम्ना नाड़ी की सक्रियता अनिवार्य है। उर्जा विज्ञान के मुताबिक इसके लिये शारीरिक श्रम और मानसिक श्रम जरूरी है। दोनों साथ साथ किये जाने चाहिये। एनर्जी गुरूजी द्वारा बताये विधान में शारीरिक श्रम के लिये पैदल चलने और मानसिक श्रम के लिये मंत्र जप करने का प्रावधान है। उसी के अनुसार साधना सम्पन्न करें।
1- कुंडली जागरण साधना के दिनों में कुंडली जागरण रुद्राक्ष या जो भी उपलब्ध हो वह उर्जा उपकरण धारण करके रखें। ताकि हर दिन होने वाली प्रगति बनी रहे। प्राप्त उपलब्धियां अधोगति की तरफ न जाने पायें।
2- रोज लगातार कम से कम 5 किलोमीटर पैदल चलें।
पैदल चलने के दौरान कुंडली आरोहण मंत्र
‘ॐ मणि पद्मे हं कुंडली आरोहणं’
मंत्र का जप करते रहें। मंत्र जप के समय मोबाइल बंद रखें। रास्ते में किसी से बात न करें।
ऐसा दिन में दो बार करें।
कुंडली जागरण के लिये पहाड़ों पर चढ़ी गई चढ़ाई बहुत प्रभावी होती है।
जो साधक पहले ही से पर्याप्त शारीरिक श्रम कर रहे हैं। उन्हें अलग से पैदल चलने की अनिवार्यता नही।
फिर भी चल लें तो अच्छा ही होगा।
जितना अधिक श्रम उतनी जल्दी कुंडली जागरण की सम्भावना।
किंतु हड़बड़ी में अति परिश्रम न करें। अपनी शारीरिक क्षमतानुसार ही श्रम करें। बीमार हैं तो डाक्टर की सलाह लेकर ही मेहनत वाला काम करें।
3- शारीरिक श्रम के तहत पैदल चलने के साथ मंत्र जप करके मानसिक श्रम पूरा करें।
साथ ही खाली समय में सोचें कि कुंडली आपकी सभी बातों को उर्जा में बदलकर अपने भीतर स्थापित कर रही है। कालांतर में उन्हें फलीभूत करेंगी। अपना कोई एक लक्ष्य निर्धारित करें। हर समय उसी के बारे में सोचें। लक्ष्य मिल जाने पर आपके साथ क्या क्या होना सम्भावित है। आप क्या क्या करेंगे। उत्साह के साथ मन में अपनी पसंद की बातें चलायें।
4- साधना के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करें।
5- आलोचनाओं और गुस्से से बचें।
6- कम और सुपाच्य खायें।
7- कम बोलें, तर्क न करें।
8- दूसरों को सलाह देने से बचें।
9- अपने नियमित और जरूरी काम खुद करें।
मृत्युंजय प्राणायाम करें
साधना के लिये शांत एकांत स्थान को चुनें। सुखासन पर पूर्व मुख होकर आराम से बैठ जायें। कुछ सुगंध कर लें। पीने का पानी साथ रखें। कपड़े ढ़ीले व साफ सुथरे पहनें।
16 बार लम्बी गहरी सांसें लें। सांस को नाभि तक ले जायें।
5 मिनट मृत्युंजय प्रणायाम करें।
इसके लिये संजीवनी मंत्र ‘ॐ जुं सः’ का उपयोग करें। ॐ के साथ सांस धीरे धीरे अंदर खींचें। जुं के साथ थोड़ी देर रोकें। सः के साथ धीरे धीरे निकालें। थोड़ा रुकें। फिर पूरी प्रक्रिया दोहरायें।
इसे मृत्युंजय प्राणायाम कहते हैं।
मंत्र जप करें
मंत्र- ‘ॐ मणि पद्मे हं कुंडली आरोहणं’
समय-
सुबह 5.40 बजे से 6.20 बजे तक
दोपहर 11.40 बजे से 12.20 बजे तक
शाम 5.40 बजे से 6.20 बजे तक
रात 11.40 बजे से 12.20 बजे तक
ऊपर दिये समय में सुषुम्ना नाड़ी की सक्रियता होती है।
उसी समय दिये गये मंत्र ‘ॐ मणि पद्मे हं कुंडली आरोहणं’ का जप करें।
जप के समय ध्यान अपनी नाभि चक्र पर लगायें। यह उर्जाओं का स्टोर रूम है। सोचें कि ब्रह्मांड की शक्तिशाली उर्जायें वहां एकत्र हो रही हैं। कुंडली को खींचकर नाभि तक ला रही हैं।
इस विधि से कुंडली जागरण साधना के दौरान तमाम तरह के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलाव दिखेंगे। उन्हें गम्भीरता से लें। समीक्षा करें। फिर आगे बढ़ें।
सावधानी और सटीकता से अपनाया गया विधान कुंडली जाग्रत करके साधक को देवतुल्य स्थिति में पहुंचाता है। इस साधना को सक्षम गुरू के मार्गदर्शन में ही करें। मनमाने तरीके से की गई कुंडली जागरण साधना मानसिक असंतुलन या पागलपन का कारण बन सकती है।
कुंडलिनी जागरण का प्राकृतिक विज्ञान
जो लोग राजनीति में हैं। जो शासन प्रशासन में हैं। जो भागदौड़ वाले बिजनेस में हैं। जो खेलकूद में हैं। जो एक्टिंग, नृत्य आदि कला के क्षेत्र में हैं। जो योग में हैं। जो इक्सरसाइज में हैं। उनमें बहुतों का कार्यक्रमों, आयोजनों और सार्वजनिक सरोकार की भागदौड़ के कारण शारीरिक श्रम होता रहता है।
शारीरिक श्रम में पैदल चलना कुंडली जागरण में अत्यधिक प्रभावी होता देखा गया है।
इसी तरह कई अन्य क्षेत्रों में जो लोग हर दिन लगातार यहां से वहां आते जाते हैं। जिसमें पैदल चलना भी शामिल होता है। जिससे पर्याप्त शारीरिक श्रम हो जाता है।
साथ ही ऐसे लोग मानसिक रूप से अपने लक्ष्य के बारे में लगातार सोचते रहते हैं। जैसे पद, प्रतिष्ठा, धन, सम्पत्ति, नेम, फेम पाना आदि।
इससे पर्याप्त मानसिक श्रम हो जाता है।
लगातार एक ही विषय पर सोचते रहने से मानसिक श्रम प्रभावकारी होता है।
तब उनका मस्तिष्क काफी मात्रा में ठंडा, गर्म दृव्य बनाता है। जो इडा, पिंगला के द्वारा कुंडली को मिलता है।
उसे पाकर कुंडली जाग जाती है। ऊपर चल पड़ती है।
इसी तरह दूसरे लोग भी शारीरिक व मानसिक श्रम करके कुंडली जागरण का लाभ उठा सकते हैं।
उन्हें इसके लिये अलग से किसी साधना, तपस्या, पूजा पाठ, उपाय, अनुष्ठान, अनुसंधान की जरूरत नही।
मतलब यह हुआ कि कुंडली जागरण सिर्फ साधना, तपस्या, अध्यात्म का विषय नही।
यह कर्मयोग की प्राकृतिक और स्वाभाविक प्रक्रिया है।
कर्म योगियों की कुंडली खुद जाग जाती है
रोज कम से कम 4 घंटे शारीरिक व मानसिक श्रम करने वालों की कुंडली खुद ही जाग जाती है। फिर कर्म जैसे भी हों। कुंडली जागरण का अच्छे बुरे कर्मों से कुछ लेना देना नही। कुंडली भले बुरे का भेद नही करती। उसे सिर्फ अपना काम करना होता है।
दुनिया में अनगिनत ऐसे लोग भी होते हैं। जिन्हें कुंडली के बारे में कुछ पता ही नही होता। फिर भी उनकी कुंडली न सिर्फ जाग्रत होती है, बल्कि उर्जा चक्रों और ब्रह्मांड की शक्तियों का उपयोग करके उन्हें जीवन की ऊंचाइयों पर पहुंचाती है।
जो कोई भी किसी भी स्तर पर प्रसिद्ध हैं उनकी कुंडली जाग्रत है।
बिना कुंड़ली जागरण कोई प्रसिद्ध नही हो सकता।
देखने में आता है कि एक ही क्षेत्र में काम करने वाले कुछ लोग फेमस हो जाते हैं। ऊंचाईयों पर पहुंच जाते हैं। उनकी कुंडली जाग्रत होकर नाभि चक्र तक पहुंची है। उन्हीं के बीच तमाम लोग गुमनाम से रह जाते हैं। उनकी कुंडली या तो जाग्रत नही है या नाभि से नीचे है।
उर्जा विज्ञानः मस्तिष्क में बनने वाला द्रव्य कुंडलिनी का भोजन
मानसिक श्रम से मस्तिष्क में ठंडा द्रव्य बनता है। जो बाई तरफ इड़ा नाड़ी के द्वारा नीचे बहकर आता है। शारीरिक श्रम से गर्म दृव्य बनता है। जो दाईं तरफ पिंगला नाड़ी के द्वारा नीचे बहता है। दोनो दृव्य लम्बे समय तक कुंडली चक्र पर गिरते हैं और कुंडली उन्हें ग्रहण करती है। तो जाग्रत हो जाती है। फिर इडा, पिंगला के बीच खाली पड़ी सुषुम्ना नाड़ी के द्वारा ऊपर की तरफ चल पड़ती है।
इसे जाग्रत कुंडली का आरोहण कहा जाता है।
अध्यात्म वालों के लिये कुंडली जागरण बहुत कठिन
अध्यात्म सर्वोच्च विज्ञान है। सर्वोच्च विधान भी। किंतु स्पिरिचुअल प्रैक्टिस वाले ज्यादातर लोग सिर्फ भक्ति को ही अध्यात्म मानते हैं। वे भक्ति भाव के विज्ञान की जगह परम्पराओं को अधिक महत्व देते हैं। इस कारण सबसे बड़े विज्ञान में होते हुए भी उसका पर्याप्त लाभ नही ले पाते।
छोटी-छोटी सिद्धियों के लिये भी उन्हें जीवन का अधिकांश हिस्सा खर्च कर देना पड़ता है।
कुंडली जागरण के मामले में भी यही स्थिति है।
अध्यात्म से जुड़े अधिकांश लोग भक्ति, पूजा पाठ, ध्यान, साधना आदि करके मानसिक श्रम तो खूब कर लेते हैं। किंतु शारीरिक श्रम न होने के कारण उनकी कुंडली नही जागती।
शारीरिक श्रम की कमी के कारण अध्यात्म से जुड़े बड़े से बड़े क्षमतावान और विद्वान लोग भी कुंडली जागरण में पिछड़ जाते हैं। कुछ तो जीवन भर इसके लिये प्रयास करते हैं। फिर भी बिना कुंडली जागरण ही दुनिया से विदाई लेनी पड़ती है।
अध्यात्म से जुड़े कुछ लोग नदियों, तीर्थों की पैदल परिक्रमा करते रहते हैं। उनकी कुंडली बहुत जल्दी जाग जाती है।
कम से कम 2 घंटे रोज योग करने वालों को भी इसमें सफलता मिल जाती है।
क्या जाग्रत कुंडली फिर से निष्क्रिय हो सकती है
हां, ऐसा होता है। बहुत बार देखने में आता है कि कोई व्यक्ति सफलता और सोहरत के शिखर पर होता है। कालांतर में वही गुमनानी और नाकामी में फंस जाता है। लोग कहते हैं उसकी किस्मत सो गई। जबकि वास्तव में उसकी कुंडली सो गई। शारीरिक, मानसिक श्रम कम हो गया। कुंडली को पोषित करने वाला मस्तिष्क का दृव्य रुक गया।
अध्यातम की भाषा में इसे अधोगति कहते हैं।
अधोगति अर्स से फर्स पर गिरने की कड़वी सच्चाई है।
ऐसा न होने पाये इसके लिये अपनी सक्रियता बनाये रखें। सिद्ध कुंडली जागरण रुद्राक्ष या भैरवी यंत्र या किसी भी सक्षम उर्जा उपकरण का साधना में उपयोग करें।
शिव शरणं।
साधना हेल्पलाइनः 9999945010