95 साल के सिद्ध संत ने बर्फीले पहाड़ों में सिद्धि का प्रस्ताव दिया

हिमालय साधना- 18 Dec 23

95 साल के सिद्ध संत ने बर्फीले पहाड़ों में सिद्धि का प्रस्ताव दिया

सभी अपनों को राम राम।

बड़ी संख्या में साधक लगातार मेरी हिमालय साधनाओं के बारे में उत्सुकता दिखा रहे हैं। हिमालय साधनाएं अध्यात्म में युगों से प्रेरणा का स्रोत रही हैं। इसलिये मैने अपनी साधनाओं को उच्च साधकों के साथ शेयर करने का फैसला लिया है। 

कल से मै हिमालय के मणिकूट पर्वत क्षेत्र में अपनी अगली साधना शुरू करूंगा। कोशिश करूंगा समय निकालकर साधना वृतांत आपके साथ शेयर करता रहूं।

इस मौसम में हिमालय साधना के इच्छुक लोग मणिकूट पर्वत क्षेत्र को पहली प्राथमिकता देते हैं। सर्दी बढ़ी होती है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री सहित हिमालय के ऊंचे साधना क्ष्रेत्र बर्फ की चादर बन  जाते हैं। रास्ते बंद होते हैं। रहने के ठिकाने कई मंजिल बर्फ के नीचे दब जाते हैं। 

वहां साधना करना तो दूर पहुंचना ही नामुमकिन होता है। पहुंच भी गए तो सारा समय जिंदा रहने की जद्दोजहद में बीतता है। 

बारहों महीने यमुनोत्री क्षेत्र में रहने वाले 95 साल के सिद्ध संत दो दिन पहले हमारे पास हरिद्वार आये। हमने तपोवन में उनके रहने की व्यवस्था की। 

उन्होंने दो दिन हमारे पास रहकर सेवा का अवसर दिया। मै 40 साल से उनके संपर्क में हूँ। इस बार लगभग 22 साल बाद मुलाकात हो पाई। वे यमुनोत्री के दुर्गम तप क्षेत्र में रहकर तपस्याएं करते हैं। सिद्ध संत  हैं। 

उन्होंने बताया कि ऊपर पहाड़ों पर बर्फ पड़ चुकी है। सुबह 10 बजे के बाद ही धूप निकल पाती है। तब बाहर निकलने का मौका मिलता है। शाम 4 बजे सूर्य दिखने बंद हो जाते हैं। अंधेरा हो जाता है। उससे पहले ही गुफाओं, ठिकानों पर लौट जाना पड़ता है।

चारो तरफ बर्फ और उसकी ठंड होती है। बर्फ के कारण लोग तो क्या चिड़िया, जानवर तक निचले क्षेत्रों में उतर जाते हैं। आग ही लोगों का सबसे बड़ा सहारा होती है। अधिकांश समय धूनी के आस पास बीतता है। 

महाराज जी ने मुझे उनकी गुफा में चलकर साधना करने का निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा चिंता न करें हमारे साथ आप सुरक्षित रहेंगे। साथ ही हम आपको कुछ बहुत खास  सिद्ध करा देंगे। मुझे उन्हें फिलहाल के लिये आदर पूर्वक मना करना पड़ा। तय हुआ मौसम बदलने पर वहां जाकर साधना करूंगा।

बताता चलूं कि इस मौसम में अधिकांश साधक हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में जाने से बचते हैं। मैने भी ऐसा ही निर्णय लिया। 

दरअसल जिनको बर्फीले क्षेत्रों में रहने की आदत नही वे वहां खुद को उलझा हुआ सा पाते हैं। हर समय जिंदा रहने के साधनों पर फोकस करना पड़ता है। जिससे साधना का फोकस बिगड़ा रहता है।

ऐसे में साधक मणिकूट पर्वत क्षेत्र को प्राथमिकता देते हैं। यहां के पहाड़ सूखे हैं। उन पर बर्फ नही बनती। मणिकूट पर्वत औषधीय वनस्पतियों से भरा है। कहा जाता है संजीवनी बूटी इसी पर्वत श्रृंखला में उत्पन्न होती है। 

इस मौसम में यहां की उर्जायें अध्यात्म का खजाना होती हैं। सिद्धियों के अवसर बहुत अधिक होते हैं। 

कड़ाके की ठंठ के मौसम में यहां भी साधना करना आसान नही। लेकिन बर्फ वाले पहाड़ों जितना मुश्किल नही। इसीलिये मैने इस बार की हिमालय साधना के लिये इसी क्षेत्र को चुना। कल साधना क्षेत्र में पहुंच जाऊंगा।

शिव शरणं।

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हिमालय साधना: 18 Dec 23

*साधकों को ढूंढती दिव्य शक्तियां*

सभी अपनों को राम राम।

हमने पहले भी इसका जिक्र किया है। कुछ मौसम/समय ऐसे होते हैं जब मणिकूट पर्वत क्षेत्र में दिव्य शक्तियां विचरती हैं। वे सक्षम साधकों को ढूंढती हैं। 

सामान्य मान्यता तो यह है कि साधक सिद्धि के लिये शक्तियों को ढूंढते हैं। किंतु एक सच्चाई यह भी है कि हिमालय के कुछ क्षेत्रों में शक्तियां अपने लिये सक्षम साधकों को तलाशती हैं। 

अपने प्रगटीकरण के लिये उन्हें माध्यम बनाती हैं। ब्रह्मांड के अपने दायित्वों को पूरा करने या अपने अस्तित्व को प्रकट करने के लिये शक्तियों द्वारा ऐसा किया जाता है। 

ऐसा कब होता है इस बारे में मै ठीक ठीक नही कह सकता। हिमालय के मणिकूट पर्वत क्षेत्र में मै 11 साल से  साधनाएं करने आ रहा हूँ। हर साल ऐसा प्रमाण नही मिलता।

2014 में जब मै नीलकंठ क्षेत्र में साधना कर रहा था तब कुछ दिव्य शक्तियां संपर्क में आईं। वे उनमें नही थीं जिन्हें मै सिद्ध करना चाहता था। 

तब ऐसी शक्तियों का पता चला। 

तब से बीच के वर्षों में ऐसी शक्तियों ने संपर्क नही किया। जबकि हिमालय साधना के लिये मै यहां हर साल आता रहा।  

आज हम हिमालय साधना के लिये मणिकूट के स्वर्गाश्रम क्षेत्र में पहुंचे।

मेरे साथ योगिनी साधक देहरादून के हरविंदर और नेपाल के धानी आये हैं। उनकी योगिनी सिद्ध हो गयी हैं। अब वे मणिकूट पर्वत पर *योगिनी कार्य सिद्धि करेंगे*। जिसके तहत सिद्ध योगिनी उनके द्वारा कहे गए अपने व दूसरों के कार्यों को पूरा करेंगी।

मणिकूट पर्वत क्षेत्र में पहुंचते ही गंगा तट पर स्थित सिद्ध शिवलिंग पर शिवार्चन की मेरी इच्छा हुई। शाम को दोनों साधकों सहित गंगा स्नान करने गए। 

स्नान के बाद वैसी ही दिव्य शक्तियों का संपर्क हुआ। जैसे 2014 में हुआ था। उस समय घाट पर कुछ पुरोहित आचार्य गंगा पूजा के लिये आये थे। उनके देव आवाहन करते ही कुछ दिव्य शक्तियां अनचाहे मेरे संपर्क में आ गईं। 

याद आया ऐसा 2014 में हुआ था। तब मै पहाड़ों के बीच बनी एक गुफा के पास बैठा था। वहां मौजूद बरगद के पुराने पेड़ में साधना की विलक्षण उर्जायें थीं।

इतने सालों बाद अलग और सुखमय अनुभूति की पुनरावृत्ति हुई। अच्छा लगा। बल्कि कहें तो बहुत अच्छा लगा। साथ ही उन सिद्ध संत की भी याद आ गयी जिन्होंने 2014 में इन शक्तियों के बारे में बताया था। 

वे मणिकूट के सिद्ध थे। उम्र का अंदाज नही लगा पाया। किंतु बातों से लगता था जैसे उन्होंने युग जिये हैं। मुझे नीलकंठ धाम से ऊपर भुवन के पहाड़ी जंगलों में मिले थे। भुवन वह स्थान है जहां माता पार्वती ने अपने पति भोलेनाथ की लंबी उम्र के लिए 40 हजार साल तपस्या की थी। वहां भुवन माता के नाम से उनका मंदिर बना है। भुवन का मतलब होता है भवन। माता जंगल में जहां कुटिया बनाकर रहती थीं उस जगह को ही लोगों ने भुवन कहना शुरू किया। मतलब माता का भवन। यह बात तब की है जब समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के बाद भगवान शिव के प्राण संकट में पड़ गए थे। तब माता पार्वती ने यहीं रहकर उनकी उम्र के लिये 40000 साल तपस्या की।

मेरी तरह वे संत भी पहाड़ों के घुमन्तु थे। भुवन में हमारी भेंट हुई। मै सड़क किनारे एक छोटी दुकान पर चाय पी रहा था। वे उधर से गुजर रहे थे। अचानक रुक गए। उनके हाव भाव से ऐसा नही लगा कि मन में चाय पीने का कोई इरादा लेकर आये। बस अचानक ही ठिठके और रुक गए। 

बोले हम भी चाय पियेंगे। वे मै कभी नही बोलते थे। उसकी जगह हम बोलते थे। लखनऊ की बोली में ऐसा होता है। उनके मुंह से लखनौआ शैली सुनकर बड़ा अच्छा लगा। दुकान वाली महिला को उन्हें चाय देने का इशारा किया। तो उन्होंने इशारे से कहा महिला के नही बल्कि  मेरे हाथ से चाय लेंगे। महिला के हाथ से लेकर मैने उन्हें चाय दी। 

वे खुश हुए। मुस्कराए। उनकी मुस्कान करोड़ों रुपये से भी ज्यादा कीमती लगती थी। 

चाय पीकर पहाड़ों की तरफ इशारा करके बोले ऊपर की तरफ जा रहे हो। उधर जंगली जानवर हैं। चलो  हमारे साथ चलो। उस दिन मै उनके साथ पहाड़ी जंगलों में गया। उन्हें जंगल की हर जगह, हर पगडंडी, हर पेड़, हर वनस्पति, हर जानवर की जानकारी थी। उस दिन लगा कि हफ़्तों जंगलों में विचरने के बाद भी मै वहां से बिल्कुल अनजान हूं। 

वे न सिर्फ पहाड़ी जंगलों की भौतिक जानकारी दे रहे थे बल्कि आध्यात्मिक रहस्य भी बता रहे थे। उन्होंने बताया कि समुद्र मंथन का जहर पी लेने के बाद भगवान शिव यहां क्यों आये। प्राण के लिये नीलकंठ क्षेत्र में 60 हजार साल तक क्या किया। माता पार्वती ने 40 हजार साल तक कोमा की सी स्थिति में पहुंच गए भोलेनाथ की कैसे देखभाल की। कैसे उनके लिये त्याग और तपस्या की। 

मणिकूट पर्वत क्षेत्र को संत, साधक सिद्धियों के लिये इतना महत्व क्यों देते हैं। रामजी, लक्ष्मण जी को ऋषि वशिष्ठ ने यहीं तपस्या क्यों कराई। इसी क्षेत्र में संजीवनी बूटी क्यों उत्पन्न हुई। इसी पर्वत की वनस्पतियों में सबसे ज्यादा औषधीय गुण क्यों होते हैं। 

ऐसे अनगिनत आध्यात्मिक रहस्य उन्होंने मुझे बताए। उन्हीं में से एक रहस्य था दिव्य शक्तियों द्वारा अपने लिये सक्षम साधकों की तलाश। 

उन्होंने बताया था कि पूरा हिमालय अध्यात्म से भरा नही है। इसके अधिकांश क्षेत्र अध्यात्म के हिसाब से बंजर हैं। कहीं कहीं दूसरी दुनियाओं के सूक्ष्म दरवाजे हैं। वही सिद्धियों के क्षेत्र हैं। विज्ञान की भाषा में बात करें तो सूक्ष्म दरवाजों से उनका मतलब वार्म होल या ब्लैक होल से था। 

उन्होंने बताया जो साधक इन सूक्ष्म दरवाजों तक पहुंच सकते हैं उनसे कई तरह की दिव्य शक्तियां खुद ही संपर्क करती हैं।

आज उनकी बातें, उनके रहस्य, उनकी मुस्कान सब ताजा हो गईं। आज रात उनसे मानसिक संपर्क की कोशिश करूंगा।

आगे मै बताऊंगा कि दूसरी दुनियाओं के सूक्ष्म दरवाजों तक कौन साधक पहुंचते हैं? आज जिन दिव्य शक्तियों ने संपर्क किया वे मुझसे क्या संभावना रखती हैं?  इतने सालों बाद दैवीय संपर्क क्यों रिपीट हुआ? क्या इसकी अवधि निर्धारित होती है या कि कोई और नियम लगता है इसमें। 

आज रात पहले वाले संत से मानसिक संपर्क हो पाया तो सभी रहस्य खुल जाएंगे। यह भी कि जो दिव्य शक्तियां मुझसे संपर्क में आईं क्या मै उनका किसी अन्य सक्षम साधक से संपर्क करा सकता हूँ?

शिव शरणं।