
अपनी आत्मा को देवात्मा बनाने की साधना
सकारात्मक ऊर्जाओं को बढ़ाकर आत्मा का उत्थान किए जाने की तकनीक ऋषियों द्वारा ढूंढी और अपनाई गई। वे अपनी आत्मा का देवात्मा स्तर तक उत्थान करके खुद के भीतर देवतुल्य शक्तियां जगा लेते थे। उनके दर्शन करने या उन्हें सुनने मात्र से लोगों के दुख दूर हो जाते थे। सोचने मात्र से अपनी व दूसरों की कामनाएं पूरी हो जाती थीं। उनके कहने मात्र से लोगों के जीवन बदल जाते थे। ऐसा करने की क्षमता हर साधक में होती है। आप में भी है।
यूं तो आत्मा उत्थान आसान नही। लेकिन हमारे ऋषियों ने मानव कल्याण के लिये कुछ भी असंभव नही छोड़ा। सूक्ष्म चेतना विधान से आत्मा उत्थान को भी सरल और प्रभावी बना दिया। आत्मा का उत्थान चरणबद्ध होता है। आत्मा उत्थान से निचले स्तर के जीव अपने से ऊपर के जीवों की क्षमता प्राप्त करते हैं। इसी क्रम में मनुष्य अपनी आत्मा को देवात्मा तक उत्थान करते हैं। देवों की क्षमताओं, शक्तियों का उपयोग करने लायक बन जाते हैं। इसके लिए सूक्ष्म चेतना के विधान सहित अपनाई गई साधना अचूक नतीजे देती है। कोई भी इसे कर सकता है। आप भी।
आत्मा उत्थान साधना विधान
मंत्रः
ॐ क्ष्रीम क्ष्रीम क्ष्रीम क्ष्रीम क्ष्रीम आत्मा उत्थान करोति मे
इस साधना में साधक के सूक्ष्म शरीर का हर दिन शोधन होता है। आभामंडल, उर्जा चक्रों का दिन में कम से कम दो बार उर्जन होता है। उन्हें स्वस्थ, सुडौल और चमकदार बनाया जाता है। इस तरह उर्जाओं से संतुष्ट हुआ सूक्ष्म शरीर अतिरिक्त उर्जाएं आत्मा को देने के लिये प्रस्तुत हो जाता है। तब की गई अनुष्ठान युक्त साधना की उर्जायें आत्मा को सिंचित करती हैं। संतुष्ट करती हैं। उत्थानित करती हैं।
मृत्युंजय योग में रजिस्ट्रेशन कराने वाले साधकों के सूक्ष्म शरीर को संस्थान के संजीवनी उपचारक उर्जित उपचारित कर रहे हैं। संस्थान के आचार्यों द्वारा उनके लिये अनुष्ठान सम्पन्न हो रहे हैं। साधना के दिनों में रोज 3 बार किया जाएगा।
साधना विधि
सबसे पहले अनुष्ठान के द्वारा सूक्ष्म शरीर को साधना के लिये तैयार करें।
प्रतिदिन 5 चरणों में साधना पूरी करें। साधना स्थल साफ सुथरा, सुगंधित, मनोरम रखें। इस साधना में किसी फोटो, मुर्ति, साधना सामग्री, दीपक, भोग-प्रसाद, माला आदि की आवश्यकता नही। साधना रोज 5 बार करनी है। इसके लिये जरूरी नही है कि एक ही जगह साधना करें। सुविधानुसार कहीं भी साधना कर सकते हैं। पांचों बार की साधना का समय फिक्स कर लें। उसी समय करें।
प्रथम चरण में साधना 7 दिन चलेगी।
श्री गणेशाय नमः बोलकर साधना के लिये बैठें। आगे दिये संकल्प वाक्य दोहरायें। उसके बाद जीभ को तालु से चिपका लें। उसी स्थिति में 10 मिनट मंत्र जप करें। समय उपलब्ध हो तो इससे अधिक देर तक साधना कर सकते हैं। इससे आत्मा उत्थान की प्रक्रिया तेज होगी। एक दिन में 5 बार से ज्यादा बार साधना न करें। कम भी न करें। एक बार की साधना के बाद दूसरी साधना के बीच कम से कम डेढ़ घंटे का अंतराल रखें।
पांचों बार साधना में एक ही क्रम दोहरायें।
ध्यान रहे साधना के दिनों में आपका जीवन हर क्षण किसी न किसी रूप में बदल रहा होगा। विशेष रूप से आपके द्वारा कही गई, सोची गई बातें फलित होंगी। वाणी सिद्ध हो रही होगी। इसलिये हर हालत में नकारात्मक सोचने और बोलने से बचें। आलोचना किसी की न करें। सबके भीतर आत्मा के रूप में परमात्मा को देखने की आदत विकसित करें।
1- श्री गणेशाय नमः बोलकर भगवान गणेश से निर्विघ्नता का आग्रह करें
अपने मूलाधार चक्र पर ध्यान लगाएं और कहें- हे गौरीनंदन आपको हमारा प्रणाम। हमारे द्वारा सम्पन्न किये जा रहे आत्मा उत्थान को निर्विघ्न करें। हमें शक्ति सम्पन्न बनाएं।
आपका धन्यवाद।
2- ग्रह-नक्षत्रों से ब्रह्मांड की सकारात्मकीक उर्जायें मांगे
कहें- हे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध , गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु सहित सभी ग्रह नक्षत्रों आपको नमन। हमें अपने ग्रहों के दुष्प्रभावों से मुक्त रखते हुए अपनी सकारात्मक उर्जायें प्रदान करें। आत्मा उत्थान हेतु मुझे ब्रह्मांड की दिव्य उर्जायें निरंतर प्रदान करें।
आप सबका धन्यवाद!
3- संजीवनी शक्ति से शुद्धता और क्षमता का आग्रह करें
सिर के ऊपर सहस्रार चक्र पर ध्यान लगाते हुए कहें- हे दिव्य संजीवनी शक्ति आपको नमन। मुझ पर दैवीय ऊर्जाओं का शक्तिपात करें। मेरे तन, मन, मस्तिष्क, अभामंण्डल, ऊर्जा चक्रों और उर्जा नाड़ियों सहित सम्पूर्ण सूक्ष्म शरीर को स्वच्छ और शक्तिशाली बनाएं। हमें आत्मा उत्थान हेतु सक्षम बनाएं।
आपका धन्यवाद!
4- अपनी शक्तियों से आग्रह करें
गले के बीच स्थित विशुद्धि चक्र पर ध्यान लगाते हुए कहें- मेरे तन, मन, मस्तिष्क, अभामंण्डल, ऊर्जा चक्रों, उर्जा नाड़ियों, मेरी कुंडलिनी शक्ति, हृदय सहित सभी अंगों और सूक्ष्म शरीर आपको नमन। आप सब ब्रह्मांड से दैवीय उर्जाओं को ग्रहण करके अपने अंदर स्थापित करें। सशक्त और सक्रिय हो जायें। मुझे आत्मा उत्थान हेतु हमें सक्षम बनाएं।
आपका धन्यवाद!
5- भगवान शिव को साक्षी बनाकर आत्मा उत्थान की सफलता हेतु सहायता और सुरक्षा मांगे
छाती पर स्थित अनाहत चक्र पर ध्यान लगाकर कहें- हे मेरे गुरूदेव देवाधिदेव महादेव आपको प्रणाम। मेरे मन को सुखमय शिव मंदिर बनाकर सपरिवार उसमें विराजमान हों। आपको साक्षी बनाकर मै आत्मा उत्थान साधना सम्पन्न कर रहा हूं। मेरी आत्मा उत्थानित होकर देवात्मा बने। मुझे देवात्मा की शक्तियां प्राप्त हों। देवात्मा का सुख प्राप्त हो। इस हेतु अनुमति प्रदान करें। दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें।
आपका धन्यवाद!
6- आत्मा से उत्थानित होकर देवात्मा बनने का आग्रह
कहें- मेरी दिव्य आत्मा आपको नमन। मेरे द्वारा की जाने वाली साधना, आराधना, मंत्र जप की उर्जाओं को अपने अदर स्थापित करें। उससे अपना उत्थान करके देवात्मा बन जायें। । मुझे देवात्मा की शक्तियां, क्षमतायें प्रदान करें। देवात्मा का सुख प्रदान करें। मेरी और मेरे द्वारा इच्छित लोगों की कामनायें पूरी करें। मुझे आरोग्य पूर्वक शतायु प्रदान करें। असंख्य लोगों का मुझसे कल्याण हो। लोक कल्याण हेतु मुझे तन, मन, धन से सबल और सक्षम बनायें।
आपका धन्यवाद।
7- मंत्र से आग्रह
कहें- हे दिव्य मंत्र ‘ॐ क्ष्रीम क्ष्रीम क्ष्रीम क्ष्रीम क्ष्रीम आत्मा उत्थान करोति मे’ आपको मेरा नमन। मेरी भावनाओं से जुड़कर मेरे लिये सिद्ध हो जाइये। अपनी उर्जाओं से मेरी आत्मा का उत्थान करें।
आपका धन्यवाद।
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साधना हेल्पलाइनः 9210500800