अपना काम दूसरों पर डालने की कुंडली कभी जाग्रत नही होती

23 मई 2016, मेरी कुण्डली आरोहण साधना- 8
अपना काम दूसरों पर डालने की कुंडली कभी जाग्रत नही होती.
प्रणाम मै शिवांशु
हमारे गुरुदेव उर्जा नायक महाराज ने कुंडली शक्ति का जो वैज्ञानिक सच बताया वो सीधा शिव ज्ञान था. उसे हमने पहले कभी नही सुना था. अध्यात्म और धर्म जानकारों की जानकारी से काफी अलग, मगर सच्चाई के बिल्कुल नजदीक.
अब आगे…
अपने 44 शिष्यों के साथ कुंडली शक्ति की वैज्ञानिक सच्चाई सुन रहे तुल्सीयायन महाराज ने गुरुदेव से कहा मित्र शिष्यों को इस मानसिक और शारीरिक श्रम की विस्तार से जानकारी दीजिये. ये भी बताइये कि योग-साधनाओं की राह पर चलने वालों के लिये कुंडली जागरण इतना सरल होते हुए भी अधिक कठिन क्यों हो जाता है. और क्या योग शारीरिक श्रम की परिधि में आता है या नही.
गुरुदेव ने पहले शारीरिक श्रम की ब्याखाया की. बताया हर वो काम जिससे कैलरी बर्न होती है वो शारीरिक श्रम होता है. सरल भाषा में हर वो काम जिसमें हाथ, पैर तथा शरीर के ऊपरी अंगों का व्यापक उपयोग किया जाये, और पसीना निकलने की गुंजाइश हो वो शारीरिक श्रम होता है. उसी से मस्तिष्क के दाहिने हिस्से द्वारा गरम रसायन बनता है. जो कुंडली जागरण के लिये जरूरी होता है. उदाहरण के लिये मेहनत-मजदूरी, खेलकूद, जिम, एक्सरसाइज, साइकिलिंग, स्वीमिंग, डांसिग, कुस्ती, भागदौड़, आदि शारीरिक श्रम हैं. कुंडली जागरण के लिये पर्याप्त रसायन उत्पन्न हो इसके लिये जरूरी है कि शारीरिक श्रम अनवरत जारी रहे.
योग दो तरह का होता है. एक योग मानसिक शांति के लिये ध्यान के साथ किया जाता है. उसमें शारीरिक श्रम नही होता. दूसरा योग शरीरिक पुष्टता और सुडौलता के लिये किया जाता है. ये अच्छे किस्म के शरीरिक श्रम की श्रेणी में आता है.
अब हम मानसिक श्रम की बात करते हैं. जब किसी लक्ष्य को लेकर लगन के साथ सोच-विचार किया जाये तो मस्तिष्क की सक्रियता केंद्रित हो जाती है. इसी से मस्तिष्क के बायें हिस्से में ठंडा रसायन उत्पन्न होता है. जो कुंडली जागरण के लिये जरूरी होता है. इसे सरल भाषा में यूं समझें कि किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये लगन से काम किया जाये तो मानसिक श्रम होता है. यहां गौरतलब है कि भले ही वांछित लक्ष्य पूरा न हो फिर भी लगन से काम करने की प्रक्रिया स्वरूप कुंडली के जाग्रत होने की सम्भावनायें प्रबल होती जाती हैं.
मस्तिष्क में बनने वाले यही ठंडे और गरम रसायन इडा, पिंडला नाड़ियों के जरिये बहकर नीचे कुंडली तंत्रिका पर टपकते हैं. तो कुंडली जाग्रत होकर सुषुम्ना नाड़ी में चढ़ जाती है.
इसे ही कुंडली जागरण कहा जाता है.
कुछ उदाहरण समझें. एक नेता अपने पद को पाने के लिये जबरदस्त भागदौड़ करता है. उसके विचार पद पाने पर केंद्रित होते हैं. अनवरत की गई ये क्रिया कुंडली जागरण करा देती है. एक अधिकारी अपने पद की जिम्मेदारियां निभाने के लिये काफी भागदौड़ और मानसिक सोच विचार करता है. ये क्रिया कुंडली जागरण कराती है. एक खिलाड़ी टीम में स्थान पाने के लिये अपने लक्ष्य पर ध्यान जमाये हुए भरपूर मेहनत करता है. ये क्रिया कुंडली जागरण कराती है. यहां मै आपको बताता चलूं कि नीयत कैसी भी हो मगर राजनीति, प्रशासन, खेलकूद, फिल्मों से जुड़े लोग सामान्य लोगों की अपेक्षा कई गुना अधिक मानसिक व शारीरिक श्रम करते हैं. इसी कारण उनकी कुंडली दूसरों की अपेक्षा जल्दी जाग जाती है.
एक मजदूर भारी शारीरिक श्रम करता है. मगर उसके सामने रोटी पाने की जरूरत के अलावा कोई विशेष लक्ष्य नही होता है. सो वह सोच विचार या मानसिक श्रम नही करता. इसलिये कठोर शारीरिक श्रम के बावजूद उसकी कुंडली जाग्रत नही होती. जबकि उससे काम लेने वाला ठेकेदार भागदौड़ के साथ ही मजदूरों से काम लेने के लक्ष्य को पूरा करने के लिये दिमागी काम भी करता है. उसकी कुंडली जाग्रत होने की गुंजाइश बराबर होती है. 
एक व्यक्ति एकाउंटिंग का काम करता है. दिन भर लिखा-पढ़ी और भारी दिमागी काम करता है. मगर वह पर्याप्त शारीरिक श्रम नही करता. उसकी कुंडली जाग्रत नही होती. जबकि उससे काम लेने वाला सी.ए. उससे कम लिखा पढ़ी करता है. मगर वह अपनी प्रतिष्ठा व जिम्मेदारियों के मद्देनजर क्लाइंट को संतुष्ट करने के लिये भागदौड़ भी करता है. उसकी कुंडली जाग्रत होने की गुंजाइश बराबर बनी रहती है.
जो लोग अपना काम दूसरों पर डालने की आदत के शिकार हैं. उनकी कुंडली कभी जाग्रत नही होती.
भौतिक जीवन की सक्रियता वाले लोगों की कुंडली जाग्रत होकर अधिकतम मणिपुर चक्र का ही भेदन कर पाती है. क्योंकि समृद्धी, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धी, योजनाों की सफलता, उत्तरोत्तर उन्नति, कामना पूर्ति के लिये मणिपुर चक्र व उससे नीचे के चक्रों की उर्जायें ही पर्याप्त होती हैं. जाग्रत कुंडली ऊपर उठती हुई जिस जिस चक्र की उर्जाओं से होकर गुजरती है. उससे जुड़े सभी भौतिक कार्य पूरे होते जाते हैं. 
अब हम बात करते हैं अध्यात्म की दुनिया से जुड़े लोगों की कुंडली की. अध्यात्म से जुड़े लोग प्रायः अधिक शारीरिक श्रम नही करते. क्योंकि उन पर अध्यात्म की नीली या बैंगनी उर्जाओं का प्रवाह अधिक होता है. यह स्थित लम्बी खिंचे तो शारीरिक शिथिलता उत्पन्न होने लगती है. जो शारीरिक श्रम में भी बाधक होती है. यह दशा कई बार आलस्य में बदलती है. 
पर्याप्त शारीरिक श्रम न कर पाने के कारण ही उनका कुंडली जागरण कठिन होता है.
यही हाल साधु संतों और धर्म से जुड़े अधिकांश लोगों का होता है. उनमें से भी ज्यादातर लोग शारीरिक श्रम कम ही करते हैं. वे साधनाओं और योग के जरिये कुंडली जागरण करने की कोशिशें करते हैं. जो कि प्राकृतिक न होकर कृतिम सा होता है. इसी कारण उन्हें सफलता देर से मिलती है.
इसे एेसे समझें कि एक व्यक्ति पीने का पानी प्राकृतिक रूप से बह रहे झरने से ले ले. तो उसके लिये ये आसान होगा. दूसरा व्यक्ति पीने का पानी लेने के लिये कुआ खोदे, फिर उससे पानी प्राप्त करे. ये कृतिम तरीका होगा. इसमें समय और प्रयासों की अधिकतम जरूरत होगी.
आगे गुरुदेव ने बताया कि अध्यात्म के लोगों द्वारा कुंडली का उपयोग कर पाना सांसारिक लोगों की अपेक्षा अधिक कठिन क्यों होता है.
…. क्रमशः ।
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.

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