हिमालयन रहस्यः टाइम ट्रवलिंग साधना-1

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हिमालयन रहस्यः टाइम ट्रवलिंग साधना-1
एक गाना खत्म होने में 23 करोड़ साल बीत गये

सभी अपनों को राम राम।
इस बार प्रस्तावित सूक्ष्म हिमालय साधना करने वाले कुछ साधकों को टाइम ट्रेवलिंग साधना तक पहुंचाने का हमारा विचार है। जिसमें उच्च साधकों के सूक्ष्म शरीर भूत भविष्य की यात्रायें करते हैं। वहां की घटनाओं का पता लगाते हैं। वहां के लोगों से सम्पर्क स्थापित करते हैं। सक्षम साधक ऋषि व देवकाल तक पहुंच जाते हैं। उनसे ज्ञान और जानकारियों का आदान प्रदान करते हैं। उसके आधार पर वर्तमान बदलते हैं।

यह साधना बड़ी ही अलौकिक और रोमांचक होती है।
हम पहले ही जान चुके हैं कि हिमालय में उच्च आयामों में प्रवेश के तमाम द्वार हैं। सक्षम साधक उन्हें जानकर सूक्ष्म रूप से उनमें प्रवेश करते हैं। एक आयाम से दूसरे आयाम में प्रवेश करना टाइम ट्रेवलिंग का एक तरीका है। इस साधना से पहले साधकों को टाइम ट्रेनलिंग का विज्ञान समझना अनिवार्य है। उसकी उपयोगिता जानना जरूरी है। आधुनिक विज्ञान के कुछ वैज्ञानिक इसके पक्ष में हैं, कुछ विरोध में। किंतु अध्यात्म विज्ञान में यह विषय उतना ही सच है जितना ब्रह्मांड की मौजूदगी।
हमारे पूर्वज हमेशा से टाइम ट्रेनलिंग करते आये हैं। सतयुग में रेवतक नामक एक राजा थे। जिनका पूरी धरती पर राज था। उनकी अग्नि से उत्पन्न कन्या थीं रेवती। रेवती अत्यंत गुणवान और सक्षम थीं। धरती पर उनके योग्य वर नही सूझ रहा था। तो महाराज रैवतक ने उनके वर के चयन में ब्रह्मा जी की सहायता लेने का निर्णय किया। वे रेवती को साथ लेकर ब्रह्मलोक गये। वहां उस समय दो गंधर्वों द्वारा गाने का कार्यक्रम प्रतुत किया जा रहा था। राजा उनका गाना खत्म होने का इंतजार करने लगे।
कुछ समय बाद गाना पूरा होने पर महाराज रैवतक अपनी पुत्री रेवती को ब्रह्माजी के समक्ष ले गये और उसके लिये योग्य वर बताने को कहा। इसके लिये अपने साथ लाये धरती के सक्षम वरों की एक सूची भी उन्हें दी।
उस सूची को देखकर ब्रह्माजी मुस्कराये और बोले ये सब तो मर चुके हैं। इनकी पीढ़ियां भी बूढ़ी होकर खत्म हो चुकी हैं। तुम्हारा राज पाठ सब खत्म हो चुका है। यह सुनकर राजा को आश्चर्य और चिंता हुई। ब्रह्माजी ने उन्हें बताया कि समय की गति निराली होती है। जितना समय तुमने यहां बिताया उतनी देर में धरती पर 23 करोड़ साल बीत गये। वहां सतयुग के बाद त्रेता युग भी बीत चुका है। तुम्हे पुत्री के विवाह के लिये जल्दी वापस जाना होगा। वरना कलयुग आरम्भ हो जाएगा। धरती पर इस समय द्वापर चल रहा है। भगवान विष्णु कृष्ण अवतार में हैं। शेषनाग उनके भाई बलराम के रूप में जन्में हैं। वही रेवती के लिये योग्य वर हैं।
रेवतक धरती पर लौटे। सब कुछ बदल चुका था। ब्रह्मलोक में जितनी देर में एक गाना खत्म हुआ उतने समय में धरती पर सतयुग और त्रेता युग खत्म हो गये। रहन सहन, भाषा, बोली सब बदल चुका था। पेड़ पौधों, मनुष्यों जीवों के आकार और नश्लें बदल चुकी थीं। पौराणिक उल्लेख के मुताबिक सतयुग में मनुष्यों की लम्बाई 21 हाथ, त्रेता में 14 हाथ और द्वापर में 7 हाथ की होती है। उसी अनुपात में जीव जंतुओं और पेड़ पौधों के आकार होते हैं। यहां हम अनुमान लगा सकते हैं कि डायनासोर किस युग के जानवर रहे होंगे।
राजा रेवतक ब्रह्मा जी के सुझाव पर बलराम जी से मिले। किंतु बड़ी समस्या यह थी कि उम्र में दो युग बड़ी रेवती का आकार बलराम जी से काफी ऊंचा था। बलराम जी ने अपने हल से उनके आकार को छोटा किया। दोनो का विवाह सम्पन्न हुआ।
यह टाइम ट्रेवलिंग की एक पौराणिक प्रमाणित घटना है। जिसके तहत रेवती को भविष्य में जाकर बलराम जी से शादी करनी पड़ी।
इस घटना का जिक्र करने के पीछे कई वैज्ञानिक कारण हैं। साधक जान लें कि समय यात्रा में एक आयाम से दूसरे आयाम में प्रवेश होता है। हर आयाम में समय की गति अलग होती है। राजा रेवतक धरती के आयाम से ब्रह्मलोक के आयाम में गए। ब्रह्मलोक में समय की गति इतनी धीमी थी कि वहां के कुछ घंटों में धरती के करोड़ों साल बीत गये। युग बीत गये।
आधुनिक विज्ञान मानता है कि डाइमेंशन बदलने पर समय की गति बदल जाती है। अंतरीक्ष यात्री स्पेस में कुछ दिन बिता कर धरती पर लौटते हैं तो उनकी उम्र मात्र कुछ सेकेंड की बढ़ी होती है।
हर ब्रह्मांड, हर ग्रह पर समय की अलग गति है। धरती पर एक साल खत्म होने पर बुध ग्रह पर 4 साल बीत चुके होते हैं।
टाइम ट्रेवलिंग के वैज्ञानिक तरीकों की सम्भावना और अध्यात्म विज्ञान की बारीकियों पर चर्चा करते हुए आगे हम जानेंगे कि यह साधना कितनी मुश्किल और कितनी आसान है।
क्रमशः।
शिव शरणं।

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