शिवप्रिया की शिवसिद्धि…21
पंचतत्व सिद्धि: क्षीर सागर में जलपान
【मार्गदर्शक ने भस्म बनकर बिखरे शिवप्रिया के सूक्ष्म शरीर को एकत्र करके शिवलिंग पर डाल दिया। शिवलिंग पर पड़ते ही भस्म पुनः संगठित होने लगी। कुछ ही क्षणों में शिवप्रिया पुनः अपने स्वरूप में आ गईं।】
सभी अपनों को राम राम।
अदृश्य जगत के मार्गदर्शक ने गहन साधना के दौरान शिवप्रिया को पंच तत्व सिद्धि कराई। उच्च साधक इस वृतांत को पढ़कर अपनी याददाश्त का हिस्सा बना लें। भविष्य की साधनाओं में इस जानकारी की आवश्यकता पड़ेगी।
साधना का 35 वां दिन। समय, सुबह 4 बजे। कुछ घण्टे मन्त्र जप के बाद शिवप्रिया की चेतना उनके क्राउन चक्र पर पहुंची। साधना के दौरान उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, शिव त्रिदेव एक ही शरीर में दिखे। यह दृश्य उन्होंने पहली बार देखा। तीनों देव एक दुसरे के पूरक लग रहे थे। एक देहधारी त्रिदेव ने शिवप्रिया को साधना की सफलता का आशीर्वाद दिया और विलुप्त हो गए।
उसी बीच शिवप्रिया को लगा कि इस समय अपने घरों से उनकी साधना का हिस्सा बने एक साधक की ऊर्जाएं बहुत कमजोर पड़ रही हैं। जिसके कारण उसे साधना करने में बड़ी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।
बताते चलें कि शिवप्रिया की गहन साधना में घरों से कई सौ साधक शामिल हुए।
उनमें से 10 ऐसे साधकों की आवश्यकता थी जो 7 दिन तक अपनी जरूरतों और समस्याओं से ऊपर उठकर साधना कर सकें। किसी साधक की चूक या नादानी के कारण शिवप्रिया की साधना प्रभावित न होने पाए इसलिये हमने 10 की जगह 12 साधकों का चयन किया। उन्हें अपने साथ 20-20 अन्य लोगों का आभामंडल लेकर साधना करनी थी। उनमें गुरु मां भी शामिल हुईं।
ये 12 साधक सुबह 4 से 5 बजे के बीच शिवप्रिया की साधना में शामिल हो रहे हैं। शिवप्रिया पहले ही दिन से उन सबकी निगरानी करती चल रही हैं। उस दिन एक साधक की ऊर्जाएं बहुत गड़बड़ मिलीं। उसे उपचारित करने के लिये शिवप्रिया की चेतना एक ऊंची बर्फीली पहाड़ी पर पहुंची। वहीं उन्होंने सभी 12 साधकों की चेतना आमंत्रित कर लीं। वहीं अपने साथ उन्हें साधना कराई। कमजोर साधक की ऊर्जाओं का उपचार किया।
वहीं अदृश्य आयाम के उनके मार्गदर्शक आए। वे शिवप्रिया की चेतना को अपने साथ लेकर सूक्ष्म यात्रा पर गए।
उस दिन वे काफी देर तक मनोरम राहों से गुजरते रहे। फिर ऐसी दुनिया में पहुंचे जहां का आसमान गुलाबी था। वहां अलौकिक सागर मिला। जिसका पानी डायमंड की तरह चमकदार और आकर्षक था। अब तक कि यात्रा में उन्हें ऐसा दैवीय अहसास कहीं नही हुआ था। मानो वे ब्रह्मांड के सर्वाधिक सुखद और रमणीय स्थान पर आ गयी हों।
मार्गदर्शक ने बताया कि यह क्षीरसागर है। जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं। उन्होंने शिवप्रिया को क्षीरसागर का जल पीने को कहा। क्षीरसागर का जलपान करते ही शिवप्रिया को अपने भीतर बड़े सुखद बदलाव होते महसूस हुए। जिन्हें शब्दों में वर्णित नही किया जा सकता। आकर्षणबस शिवप्रिया ने क्षीरसागर में स्नान की इच्छा जताई। मार्गदर्शक ने कहा इसकी किसी को अनुमति नही है। सिर्फ ब्रह्मा, विष्णु, महेश और उनकी आदि शक्तियां ही यहां स्नान कर सकती हैं। बिना अनुमति अन्य देवी देवता भी इस जल को स्पर्श नही कर सकते।
तभी क्षीरसागर से एक अत्यंत सुंदर देवी निकलीं। मार्गदर्शक ने बताया कि यह इस पवित्र सागर की रखवाली करने वाली महा अप्सरा हैं। जो कोई भी बिना अनुमति यहां के जल को पीता है या छूता है, यह उसकी आत्मा को आकर्षित करके अपने भीतर समा लेती हैं। वे आत्माएं हजारों साल तक इन्ही के भीतर कैद रहती हैं। उसके बाद भी क्षीरसागर दोष से मुक्त होने में हजारों जन्म लग जाते हैं। यह नियम देवी, देवताओं, ऋषियों, मुनियों सहित सभी वर्गों पर समान रूप से लागू होता है।
भगवान शिव के आदेश से आपको विनम्र दैवीय सहायता के साथ साधना कराई जा रही है। आज आपको इसका जल ग्रहण करने की अनुमति है। जिसको ग्रहण करने से आपको जल तत्व की सिद्धि प्राप्त हो गयी है। आपके भीतर जलतत्व का जागरण हो गया है।
पवित्र सागर की रक्षक महा अप्सरा ने शिवप्रिया की तरफ देखा और मुस्करा दीं। जैसे कह रहीं हों देवी आपका यहां आने का उद्देश्य पूरा हुआ आप जाएं।
वे गुलाबी आसमान वाली दुनिया से निकलकर नीले आसमान तले पहुंच गए। एक पहाड़ पर। मार्गदर्शक ने शिवप्रिया को एक सुंदर शिला पर बैठाया और अपने साधना मन्त्र का 11 बार उच्चारण करने को कहा। शिवप्रिया ने वैसा ही किया। अचानक आसमान तेजी से उनके अंदर समाने लगा। शिवप्रिया के शरीर में अकड़न और कपकपी होने लगी। एकाएक सब काला सा हो गया। उन्हें दिखना बन्द हो गया। कुछ देर ऐसे ही चलता रहा।
जब यह सिलसिला थमा तो मार्गदर्शक की आवाज आई, यह आकाश तत्व था। जिसे आपके भीतर स्थापित करके सिध्द किया गया। अब हम आगे बढ़ेंगे। शिवप्रिया ने कहा कि वे कुछ देख नही पा रहीं। मार्गदर्शक ने बताया कि आकाश तत्व की ऊर्जाएं अत्यंत तीब्र और विशाल होती हैं। उन्हें स्थिर होने में कुछ समय लगता है। इसी कारण ऐसा है।
फिर उनका हाथ थामा और चल पड़े। कुछ देर बाद शिवप्रिया ने खुद को एक ग्रह पर पाया। वहां हवाएं बहुत तेज चल ही थीं। वे अब देख पा रही थीं। मार्गदर्शक उनके बगल में खड़े थे। उन्होंने 21 बार साधना मन्त्र जपने को कहा। शिवप्रिया ने वैसा ही किया। एकाएक उनका मुंह अपने आप ही ऊपर उठ गया। और खुल गया। तेजी से हवा उनके मुंह में जाने लगी। काफी देर ऐसा चला। फिर थम गया। शिवप्रिया को बहुत अच्छा फील होने लगा। मार्गदर्शक ने बताया कि यह वायु तत्व था। जिसे आपके भीतर स्थापित करके सिद्ध किया गया।
उसके बाद वे उस पहाड़ी पर लौट गए जहां 12 साधक साधनाएं कर रहे थे। शिवप्रिया ने देखा कि एक साधक की ऊर्जाएं बुरी तरह अटक गई हैं। जिसके कारण वह साधक बहुत विचलित और डरा हुआ है। शिवप्रिया ने उसकी ऊर्जाओं की उलझन सुलझाई और अपने मार्गदर्शक के पास लौट गईं।
मार्गदर्शक उन्हें लेकर एक अन्य पहाड़ी पर गए। जहां छोटे आकार का एक शिवलिंग स्थापित था। मार्गदर्शक के निर्देश पर वे शिवलिंग के समक्ष बैठकर मन्त्र जप करने लगीं। अचानक उनके चारो तरफ आग की लपटें उठने लगीं। जिसमें उनका शरीर जलने लगा। किंतु जलने के बावजूद शिवप्रिया को तकलीफ नही हो रही थी। अपितु सुखद फील हो रहा था। कुछ देर बाद मार्गदर्शक ने कहा आपके भीतर अग्नितत्व स्थापित और सिद्ध हुआ।
उनके इतना कहते ही शिवप्रिया का शुक्ष्म शरीर भस्म बनकर धरती पर बिखर गया। शिवप्रिया को महसूस हो रहा था कि भस्म रूपी शरीर के साथ कुछ हो रहा है। किंतु क्या वे जान न पायीं। कुछ समय ऐसे ही बीता।
फिर मार्गदर्शक की आवाज सुनाई दी। आपके भीतर पृथ्वी तत्व स्थापित होकर सिद्ध हुआ।
उसके बाद मार्गदर्शक ने भस्म को एकत्र करके शिवलिंग पर डाल दिया। शिवलिंग पर पड़ते ही भस्म पुनः संगठित होने लगी। कुछ ही क्षणों में शिवप्रिया का भस्म बनकर बिखरा शरीर पुनः अपने स्वरूप में आ गया।
मार्गदर्शक ने उन्हें बताया कि आगे महर्षि दधीचि आपको पंचतत्वों के उपयोग का विज्ञान बताएंगे।
शिव शरणं!