शिवप्रिया की शिवसिद्धि…17
काले ग्रह पर कुबेर का खजाना
अदृश्य दुनिया के मार्गदर्शक ने बताया कि इस ग्रह के भीतर ब्रह्मांड की अनमोल वस्तुवें हैं। सुरक्षा की दृष्टि से ग्रह की ऐसी बनावट है। छूते ही बिखर जाता है। इसमें प्रवेश के लिये एक दरवाजा है। जो उसे जानते हैं, उनके छूने से खुल जाता है। जो ग्रह की गति से चल सकता है, वही उसे छू सकता है। ऐसा कहकर मार्गदर्शक ने शिवप्रिया का हाथ पकड़ा और ग्रह को एक जगह छुआ। वह प्रवेश मार्ग था। वे ग्रह के भीतर चले गए।
सभी अपनों को राम राम
26 वें दिन की साधना। शिवप्रिया को आज पहले वाले मार्गदर्शक की बहुत याद आ रही थी। जिससे मन बेचैन था।
मन्त्र जपते हुए लगभग 4 घण्टे बीते। उसके बाद उनकी चेतना ने सूक्ष्म यात्रा आरम्भ की। खुद को लहलहाती फसलों वाले खेतों में टहलते पाया। एकाएक खेत धंसने लगे। दूर तक ज़मीन, फसलें तेजी से धरती में समाती जा रही थीं। यह सिलसिला देर तक चला। उस बीच कई दुनिया, कई डाइमेंशन पार हुए।
एक जगह शिवप्रिया ने खुद को बादल पर बैठी पाया।
तभी अदृश्य दुनिया के उनके मार्गदर्शक आ गए। उन्होंने शिवप्रिया का हाथ पकड़ा और एक दिशा में चल पड़े। उनकी गति बहुत तेज थी।
नए मार्गदर्शक के साथ सूक्ष्म यात्रा करते हुए शिवप्रिया ने महसूस किया कि अब उन्हें यात्रा की तमाम बातें याद नही रहतीं। कुछ प्रमुख घटनाएं ही याद रह पाती हैं। उन्होंने अपने मार्गदर्शक से इसका कारण पूछा। जवाब मिला- देवी आपके पहले वाले मार्गदर्शक अलौकिक शक्तियों के ज्ञाता हैं। उन्होंने आपको अलौकिक शक्तियों से परिचित कराया। उनके रहस्य बताए। उनका उपयोग सिखाया। इसलिये उनके समय की बातें तुम्हें ठीक से याद हैं।
मेरी विशेषता मेरी गति है। मै मन की गति से चलता हूँ। आगे आपको बहुत लंबी दूरियां पार करनी हैं। जो मेरी गति से ही संभव है। इसीलिये मुझे आपके साथ नियुक्त किया गया है। अधिक गति के कारण आपको राह की चीजें याद नही रहतीं। हम जहां रुककर कुछ क्रियाएं करते हैं, सिर्फ वही याद रह पाता है।
यह चर्चा करते हुए वे एक विलक्षण से वृक्ष के पास पहुंचे। वृक्ष के चारो तरह ऊर्जाओं का चक्र घूम रहा था। उस पर पीले फल लगे थे। शिवप्रिया ने उसके फल के बारे में जिज्ञासा जताई। मार्गदर्शक ने उन्हें पेड़ से तोड़कर फल खाने को दिये।
देखने में फल आम जैसा था। उसे खाते ही शिवप्रिया के बुरी तरह कांपने लगीं। कुछ क्षणों बाद उन्होंने खुद को गाय के रूप में पाया। एक और फल खिलाया गया। वे सफेद रंग के पक्षी में बदल गईं। एक और फल खाया तो पीले रंग के किसी बड़े जीव में बदल गईं। एक फल और खाया तो कीड़े जैसे जीव में बदल गईं। पांचवा फल खाकर अपने वास्तविक रूप में लौटीं।
उनके मार्गदर्शक ने बताया कि यह कालवृक्ष है। इसका फल खाकर अलग अलग काल में पहुंचा जाता है। वहां पिछले जन्मों के बिगड़े कर्मों को सुधारकर आगे की राह की रुकावटें हटाई जाती हैं।
कालवृक्ष पर चर्चा करते हुए वे एक काले ग्रह के सामने जा पहुंचे। ग्रह बहुत तेजी से घूम रहा था। शिवप्रिया ने उसे छू लिया। ग्रह टूटकर बिखर गया। कुछ देर बाद दोबारा पूर्व की स्थिति में आ गया।
मार्गदर्शक ने बताया कि इस ग्रह के भीतर ब्रह्मांड की अनगिनत अनमोल चीजें हैं। सुरक्षा की दृष्टि से ग्रह की ऐसी बनावट है। छूते ही बिखर जाता है। इसमें प्रवेश के लिये एक दरवाजा है। जो उसे जानते हैं, उनके छूने से खुल जाता है। जो ग्रह की गति से चल सकता है, वही उसे छू सकता है। ऐसा कहकर मार्गदर्शक ने शिवप्रिया का हाथ पकड़ा और ग्रह को एक जगह छुआ। वह प्रवेश मार्ग था। वे ग्रह के भीतर चले गए।
भीतर बहुत बड़ा खजाना था। जिसका ओर छोर नजर नही आ रहा था। नजर आ रहा था तो चारो तरफ सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात, अनगिनत कीमती धातुवें। अमूल्य जड़ी बूटियां। वहां की संपदा कल्पना से परे थी।
मार्गदर्शक ने बताया यह वह खजाना है जिसे तुम्हारी दुनिया के लोग कुबेर के खजाने के नाम से जानते हैं।
वे खजाने के उस भाग में पहुंच गए, जहां तमाम ग्रंथ रखे थे। मार्गदर्शक ने बताया कि यह इस खजाने का सबसे अनमोल हिस्सा है। यहां ज्ञान के भंडार से भरे दुर्लभ ग्रंथ है।
उन्होंने वहां से एक ग्रंथ उठा लिया। उसे लेकर बाहर की तरफ चल दिये। किंतु रोक दिया गया। एक अत्यंत बलशाली प्राणी सामने आया। वह यक्ष सैनिक था। शिवप्रिया के मार्गदर्शक और शिवप्रिया को प्रणाम किया। बोले मान्यवर आप इस ग्रंथ को यहां से बाहर नही ले जा सकते।
मार्गदर्शक की आंखे बहुत तेजी से चमकने लगीं। उनकी आंखों में ऐसी चमक शिवप्रिया ने तब देखी थी जब वे पहली बार मिले थे। उनकी आंखों की चमक देखकर यक्ष सैनिक ने रास्ता छोड़ दिया। वे ग्रंथ के साथ बाहर आ गए।
मार्गदर्शक ने पढ़ने के लिये ग्रंथ शिवप्रिया को पकड़ा दिया। शिवप्रिया ने पन्ने पलटे। किंतु कुछ समझ न आया। दरअसल ग्रंथ कोड भाषा में लिखा था। उसे डिकोड करना शिवप्रिया को नही आता था।
वे दोबारा ऋषियों के साधना क्षेत्र में पहुंचे। वहां उस साधना कक्ष में गए, जिसमें कुछ दिनों पहले महर्षि दधीचि मिले थे। आज भी महर्षि वहां थे। शिवप्रिया को देखकर प्रशन्न हुए।
वे उन्हें लेकर एक अन्य ऋषि के कक्ष में गए। वहां एक तेजस्वी ऋषि विद्यमान थे। मार्गदर्शक ने साथ लाया ग्रंथ उन्हें पकड़ा दिया। उन्होंने शिवप्रिया से कहा मेरे पास आओ पुत्री। शिवप्रिया उनके पास गईं, तो वे उनके सामने ग्रंथ के पन्ने तेजी से पलटने लगे।
शिवप्रिया को लगा उनके सामने तमाम जानकारियां, घटनाएं सजीव होकर घूमने लगी हैं। वे उनकी चेतना में व्याप्त होती जा रही हैं। शिवप्रिया उन्हें किसी वीडियो की तरह देख पा रही थीं। लग रहा था जैसे किसी हार्डडिस्क में भरा डेटा उनकी चेतना के कम्प्यूटर में फीड हो रहा है। कुछ देर ऐसा चलता रहा। फिर सब थम गया।
शिवप्रिया अपने ज्ञान स्तर को बहुत बढ़ा हुआ महसूस कर रही थीं।
तेजस्वी ऋषि ने कहा इस पुराण का सारा ज्ञान तुम्हारे ज्ञान में शामिल कर दिया गया है। तुम जब भी, जिस जीवन में जिस रूप में उपयोग करना चाहोगी यह स्वमेव तुम्हारे सामने आता रहेगा।
महर्षि दधीचि ने उस पुराण के ज्ञान का उपयोग करने के लिये शिवप्रिया के तीसरे नेत्र, अवचेतन मन को विशेष रूप से तैयार किया। साथ ही उनकी ऊर्जाओं को उपचारित किया। जिससे शिवप्रिया का मन शांत और उत्साहित हो गया। सुबह से पुराने मार्गदर्शक की यादों को लेकर उपन्न बेचैनी खत्म हो गयी।
महर्षि दधीचि ने पुनः मिलने की बात कहकर उन्हें वहां से विदा किया।
वह तेजस्वी ऋषि कौन थे? उस पुराण का नाम क्या था? उसके ज्ञान का कब, कैसा उपयोग किया जाना है? इन सवालों के जवाब समय आने पर मिलेंगे, ऐसा कहकर मार्गदर्शक ने उस दिन की साधना पूर्ण कराई।
शिव शरणं!