शिवप्रिया की शिवसिद्धि…16
अदृश्य दुनिया के दरवाजे घर के भीतर भी
कुछ घरों में अदृश्य दरवाजे होते हैं। उनसे दूसरी दुनिया की शक्तियां आती जाती रहती हैं। लोग उन्हें देख समझ नही पाते। किंतु उनकी उपस्थिति का आभास होता है। जानकारी न होने के कारण वहां होने वाली अदृश्य हलचल लोगों में भय का कारण बनती हैं। ध्यान रखें ऐसी गायिविधियाँ हमेशा नुकसान का कारण नही होतीं। अदृश्य दुनिया के लोगों से सामंजस्य स्थापित करके उनका लाभ भी उठाया जा सकता है।
सभी अपनों को राम राम
शिवप्रिया की गहन साधना का वृतांत पढ़कर कुछ साधकों ने जानना चाहा है कि सूक्ष्म यात्रा के दौरान वहां मिलने वाले लोगों से बात कैसे की जाए? उनसे अपने सवालों के जवाब कैसे प्राप्त किये जायें? उनसे मिलने वाले संकेतों को डिकोड कैसे किया जाए?
उच्च आयामों में स्थिति सूक्ष्म जगत तक पहुंचना असंभव नही किंतु मुश्किल बहुत होता है। वहां किसी यन्त्र या साधन से नही पहुंचा जा सकता। इसके लिये साधक में डाइमेंशन भेदन की आध्यात्मिक क्षमता की जरूरत होती है। जो करोड़ों में किसी एक के पास होती है।
स्थिर मन, कामना रहित मन, चिंता रहित मन, शांत मन और निर्विकार मन इस क्षमता की पहली अनिवार्यता है। अन्यथा साधक डाइमेंशन भेदन की बजाय कल्पना लोक में पहुंच जाते हैं।
साधक में सोते हुए भी जागने और जागते हुए भी सोने की क्षमता होनी चाहिये। अन्यथा साधक नींद तंद्रा या प्रमाद में जाकर कॉन्शियस माइंड और सब कॉन्शियस माइंड के बीच अटक जाते हैं। ऐसे में वे सूक्ष्म जगत की बजाय स्वप्न लोक में पहुंच जाते हैं।
साधक में घण्टों अथक आसन और अविचलित स्थिरता की अनिवार्यता होती है। अन्यथा साधक के भौतिक शरीर की थकान, दर्द अंगों को हिलाते डुलाते रहते हैं। ऐसे में साधक की एकाग्रता बार बार भंग होती है। उनकी चेतना सूक्ष्म यात्रा शुरू ही नही कर पाती।
साधक में किसी भी देवी, देवता या गुरु के प्रति मोह या अनुराग नही होना चाहिये। अन्यथा डाइमेंशन भेदन की बजाय वे अपने मनोभावों द्वारा रचित पूर्वाग्रह की दुनिया में पहुंच जाते हैं। यह भक्ति मार्ग से अलग का विज्ञान है। इसमें अपने इष्ट और गुरु के लिये मोह से परे अटल विश्वास होना चाहिये।
इसके अलावा सूक्ष्म जगत में प्रवेश के लिये प्रारब्ध की अनुकूकता भी अनिवार्य होती है।
आयाम भेदकर दूसरी दुनिया में प्रवेश की इन सबसे अलग एक राह और है। वह है किसी सक्षम मार्गदर्शक का साथ।
उपरोक्त क्षमता वाले साधक थर्ड डाइमेंशन भेद कर उच्च आयाम में पहुंच ही जाते हैं। वहां से उनकी चेतना की सूक्ष्म यात्रा होती है। उपरोक्त स्थितियों को पाने के लिये तमाम आध्यात्मिक हस्तियां हिमालय के एकांत या अन्य अनुकूल स्थानों का सहारा लेती हैं। किंतु बताता चलूं कि थर्ड डाइमेंशन से उच्च आयाम में प्रवेश के अदृश्य दरवाजे सिर्फ वहीं नही हैं। वे सारी धरती पर स्थित हैं।
साधक के घर में भी ऐसे अदृश्य प्रवेश द्वार हो सकते हैं। बस उनमें प्रवेश की दक्षता होनी चाहिये। कुछ घरों में ऐसे प्रवेश मार्ग काफी प्रबल होते हैं। उनसे दूसरी दुनिया की शक्तियां आती जाती रहती हैं। लोग उन्हें देख समझ नही पाते। किंतु उनकी उपस्थिति का आभास होता है।
जानकारी न होने के कारण ऐसे घर और उनमें होने वाली अदृश्य हलचल लोगों में भय का कारण बनती हैं। ध्यान रखें ऐसी गायिविधियाँ हमेशा नुकसान का कारण नही होतीं। अदृश्य दुनिया के लोगों से सामंजस्य स्थापित करके उनका लाभ भी उठाया जा सकता है।
यदि सूक्ष्म यात्रा यथार्थ में हो रही है तो उस दुनिया के लोगों से कम्युनिकेशन स्वतः होने लगता है। उसके लिये किसी अन्य योग्यता की अनिवार्यता नही होती।
गहन साधना के 18 वें दिन शिवप्रिया की चेतना कई आयामों में ले जाई गयी। उनके मार्गदर्शक ने सूक्ष्म यात्रा के कुछ रहस्य समझाए। सूक्ष्म यात्रा के माध्यम बताए। उनके मुताबिक साधक मुख्यतः 5 माध्यमों का उपयोग करते हैं। कुछ साधक सूक्ष्म यात्रा के लिये जल को माध्यम बनाते हैं। वे समुद्र, नदियों के भीतर रहकर सूक्ष्म यात्राएं करते हैं। कुछ मिट्टी को अपना माध्यम बनाते हैं। वे गहरे गड्ढे खोदकर खुद को मिट्टी में दबा लेते हैं। कुछ साधक वायु को अपनी सूक्ष्म यात्रा का माध्यम बनाते हैं। कुछ सुगंध के सहारे सूक्ष्म जगत में प्रवेश करते हैं। मार्गदर्शक ने शिवप्रिया को पांचवा माध्यम नही बताया। बोले समय आने पर उसकी जानकारी दी जाएगी।
शिवप्रिया की चेतना चंदन की सुगंध के माध्यम से सूक्ष्म यात्रा कर रही है। पहले ही दिन उन्हें साधना स्थल पर चंदन की पर्याप्त सुगंध करने के निर्देश मिले थे। दैवीय यन्त्र के मध्य चंदन का मंडप बनाया गया। चंदन के इतर का उपयोग कराया गया। अखंड दीपक में चंदन तेल की बूंदे शामिल कराई गईं। उस दिन शिवप्रिया समझ पाई कि साधना में चंदन को इतना महत्व क्यों दिलाया गया।
18 वें दिन की साधना में उनकी चेतना को जल, वायु, धरती और सुगंध चारो माध्यमों से सूक्ष्म यात्रा कराई गई।
एक दिन उन्हें सातों आसमान का भेदन करके ब्रह्म तत्व तक ले जाया गया।
उसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
शिव शरणं!