शिवप्रिया की शिवसिद्धि…12
मस्तिष्क की दुनिया में प्रवेश
अदृश्य मार्गदर्शक ने बताया कि यह मोक्ष का क्षेत्र था। यहां आत्माएं चिर विश्राम में होती हैं। यहां परमात्म शक्ति में विलीन करके उन्हें अलग अलग ग्रहों, लोकों, आकाशगंगाओ में जिम्मेदारी निभाने के लिये सक्षम बनाया जाता है। विधाता द्वारा आवश्यकतानुसार उन्हें अगले जन्म की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।
सभी अपनों को राम राम
गहन साधना के अदृश्य मार्गदर्शक द्वारा शिवप्रिया को सौभाग्य यन्त्र बनाने की अलौकिक दीक्षा दी गयी है। अभी उन्हें लोक कल्याण के निमित्त उन्हें लोगों के लिये सौभाग्य यन्त्र बनाने की अनुमति मिली है। कालांतर में शायद यह दैवीय विधान दूसरे सक्षम साधकों को भी सीखने की अनुमति मिले।
इस बीच उनकी सूक्ष्म यात्रा देव लोकों से भी ऊपर उच्चतम आयामों तक पहुंच गई है। उच्च साधकों की प्रेरणा के लिये हम उनका साधना वृतांत सिलसिलेवार साझा करते चल रहे।
गतांक से आगे…
कई उच्च आयामों में प्रवेश के बाद शिवप्रिया को अपने शरीर के भीतर के आयाम में प्रवेश मिला। उससे पहले उनको प्राप्त दिव्य शिवलिंग को तिलस्मी दुनिया के दैवीय शिवलिंग के संपर्क में अत्यधिक शक्तिशाली बनाया गया। उस शक्ति के सहारे चेतना ने मन की दुनिया में प्रवेश किया। वहां शिवलिंग की दैवीय शक्ति स्थापित करके मन को सिद्ध किया गया।
बताता चलूं कि कई उच्च साधनाओं में मन को सिद्ध करने का विधान होता है। मन सिद्ध होने पर साधक अपने व दूसरों के बारे में जो सोचता है वह होता जाता है। यह अत्यंत गूढ़ साधना है। इस पर कभी अलग से चर्चा करेंगे।
उस दिन तक शिवप्रिया की चेतना मार्गदर्शक के बिना ही सूक्ष्म जगत में प्रवेश करना सीख गयी थी। तकरीबन 4 घण्टे मन्त्र जप के बाद शिवप्रिया की चेतना ने मार्गदर्शक के बिना ही यात्रा शुरू कर दी।
लंबे अंधेरे के बीच शिवप्रिया ने अपनी नाभि में स्थापित शिवलिंग को बाहर निकाला। शिवलिंग के एक छोर से रोशनी निकलने लगी। इसका अर्थ था कि आगे की यात्रा में शिवलिंग उनका मार्गदर्शन करेगा।
ऐसा पहले भी कई बार हो चुका था। अदृश्य मार्गदर्शक की अनुपस्थिति में उनका शिवलिंग रास्ता दिखाता था। शिवलिंग से निकल रही रोशनी अंधेरे को चीरती एक दिशा में जाने लगी। संकेत था कि शिवप्रिया उधर की तरफ चलें।
वे उधर ही चल दीं। मन्त्र जप जारी रहा।
आगे बहुत ज्यादा शांति थी। इतनी अधिक कि शिवप्रिया को विचलन होने लगा। वहां दूर तक कुछ न था। बस शांति ही शांति। शांति का सन्नाटा शिवप्रिया का विचलन बढ़ाता रहा।
लगभग 2 घण्टे की यात्रा के बाद शिवप्रिया उस क्षेत्र से बाहर निकलीं। अब भरपूर प्रकाश था। तभी उन्हें चिर परिचित अपनेपन का अहसास होने लगा। उनके मार्गदर्शक शिवदूत सामने आए।
उन्हें देखकर शिवप्रिया को बड़ी खुशी हुई। पूछा यहां इतनी अधिक शांति क्यों थी। यह क्या था।
मार्गदर्शक ने बताया कि यह मोक्ष का क्षेत्र था। यहां आत्माएं चिर विश्राम में होती हैं। यहां परमात्म शक्ति में विलीन करके उन्हें अलग अलग ग्रहों, लोकों, आकाशगंगाओ में जिम्मेदारी निभाने के लिये सक्षम बनाया जाता है। विधाता द्वारा आवश्यकतानुसार उन्हें अगले जन्म की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।
मोक्ष की दुनिया के पर मन की दुनिया थी। एक और दिन की सूक्ष्म यात्रा के दौरान वे मन तक पहुंचे थे।
वहां तेज प्रकाश था। वहां का अहसास अकारण ही उत्साह और उमंग पैदा कर रहा था। जैसे सारी खुशियां वहीं हों।
मार्गदर्शक शिवदूत ने बताया कि यह मन की दुनिया है। यहां आगे के जन्मों में भेजी जाने वाली आत्माओं में जिम्मेदारियां अंकित की जाती हैं। (इसे ऐसे समझो जैसे कम्प्यूटर या मोबाइल की प्रोग्रामिंग) ।
यहीं से यादें (मेमोरी) शुरू होती हैं। जो जन्मों तक साथ रहती हैं। जिन्हें प्रारब्ध, कर्म फल आदि कई नामों से जाना जाता है। मोक्ष क्षेत्र में वापस आने पर ही वे खत्म होती हैं।
आज तुम्हें यहीं साधना करनी है। शिवलिंग की शक्ति से सिद्ध हो चुके मन में साधना करने की अनुभूति अलौकिक थी।
शरीर के भीतर सूक्ष्म यात्रा के दौरान चेतना ने मस्तिष्क की दुनिया में प्रवेश किया तो भय और बेचैनी ने बड़ी परेशानी पैदा की। आगे इस बारे में चर्चा करेंगे। उच्च साधक शिवप्रिया के साधना वृतांत को मन मस्तिष्क में बसाते चलें। उन्हें भी ऐसे रास्तों से गुजरना है।
शिव शरणं।