शिवप्रिया की शिवसिद्धि…9

WhatsApp Image 2020-02-29 at 5.53.10 PM

शिवप्रिया की शिवसिद्धि…9
मोक्ष के पार मन की दुनिया में प्रवेश

[शिवप्रिया ने पुराने मार्गदर्शक को मृत्यु के द्वार पर छोड़ कर नये मार्गदर्शक के साथ जाने से इंकार कर दिया. उन्होंने अपनी नाभि में स्थापित शिवलिंग को निकालकर उससे मार्गदर्शक को बचाने का आग्रह किया. शिवलिंग द्वारा राह दिखाये जाने पर वे एक गुलाबी फूल तक पहुंचीं. जिसमें विष समाप्त करने की क्षमता थी. उस पुष्प में भयानक जहर था. पुष्प को तोड़ते समय उस जहर के असर से शिवप्रिया के दोनो हाथ बुरी तरह जल गये. उनकी हथेलियों के उर्जा चक्र नष्ट हो गये. हाथों में भारी जलन के कारण उन्होंने गुलाबी पुष्प को अपनी नाभि में स्थापित कर लिया. जिसके कारण उनका नाभि चक्र जलकर नष्ट हो गया.]

सभी अपनों को राम राम
गहन साधना के दौरान शिवप्रिया की एस्ट्रल ट्रैवलिंग (सूक्ष्म चेतना की यात्रा) जारी है. इस बीच उन्हें मन की दुनिया में प्रवेश मिल गया है. उच्च आयाम से उन्हें दैवीय उर्जा से बना शिवलिंग प्राप्त हुआ है. अदृश्य मार्गदर्शक द्वारा उन्हें रुद्राक्ष सिद्ध करने का दैवीय विधान दिया गया है. मानव कल्याण के लिये संजीवनी उपचार का दैवीय विधान सिखाया गया है.
6ठें दिन से 13वें दिन की साधना के दौरान शिवप्रिया की सूक्ष्म चेतना विभिन्न आयामों में यात्रा कर चुकी है. वहां अलग अलग दुनिया और अलग अलग प्राणी मिले. आवश्यकतानुसार आगे हम उन पर चर्चा करेंगे. इस बीच शिवप्रिया को दैवीय उर्जा से निर्मित एक शिवलिंग प्राप्त हुआ. उनकी साधना के अदृश्य मार्गदर्शक शिवदूत ने शिवलिंग को नाभि में स्थापित करना और वहां से निकालकर उसका उपयोग करना सिखाया.
गहन साधनाओं की सफलता में दैवीय शिवलिंग चमत्कारिक परिणामों देते हैं. समय समय पर उच्च साधक एेसे शिवलिंग प्राप्त करने के लिये अथक प्रयास करते रहे हैं. महा ज्ञानी एवं उच्च साधक रावण ने कैलाश में भगवान शिव को प्रशन्न करके दैवीय शिवलिंग प्राप्त किया. वह उसे लंका ले जाना चाहता था. ताकि आजीवन उससे मनचाहे परिणाम प्राप्त कर सके. मगर वह शिवलिंग को लंका तक न ले जा सका.
शिवप्रिया के मार्गदर्शक ने शिवलिंग को उनकी नाभि में स्थापित करा दिया. ताकि वे उसे अपने साथ कहीं भी ले जा सकें.
शिवलिंग की शक्तियां बढ़ाने के लिये साधना के दसवें दिन शिवप्रिया की चेतना को लेकर तिलस्मी आयाम में गये. जहां दैवीय शक्तियों वाला एक विशाल शिवलिंग स्थापित है. शिवलिंग तक पहुंचने में बड़े खतरे हैं. दैवीय उर्जाओं से निर्मित वह शिवलिंग इतना विशाल है कि शिवप्रिया ने उसके समक्ष खुद को चीटी से भी छोटा पाया.
संदर्भवश हम यहां अनादि शिवलिंग की चर्चा करते हुए आगे बढ़ेंगे. एक समय ब्रह्मा और विष्णु जी में अहंकार का विवाद हो गया. विषय था कौन बड़ा. दोनो अड़े थे कि वे सबसे बड़े हैं. विवाद बढ़ता गया. ब्रह्मांड युद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया. दोनो ने दैवीय अस्त्रों के प्रयोग की ठान ली. जिससे ब्रह्मांड खतरे में पड़ गया. उसी समय उनके बीच एक विशाल शिवलिंग उत्पन्न हुआ. शिवलिंग दैवीय उर्जा से निर्मित था. वह अंतहीन प्रकाश स्तम्भ के रूप में नजर आ रहा था.
ब्रह्मा, विष्णु उसके समक्ष चीटियों से भी छोटे आकार के नजर आ रहे थे. शून्य से आवाज आयी जो भी इस प्रकाश स्थम्भ के आदि अंत का पता लगा लेगा उसे बड़ा घोषित किया जाएगा. दोनो में वही सर्वश्रेष्ठ होगा.
तय हुआ कि ब्रह्माजी शिवंलिंग के ऊपरी हिस्से पर जाकर पता लगाएंगे कि वह कहां तक जाता है. विष्णुजी नीचे जाकर पता लगाएंगे कि उसका आधार कहां है. दोनो अपने वाहनों से चल पड़े. दिन, महीने, साल गुजर गये. दोनों में से कोई अपनी मंजिल पर न पहुंच सका. निराश होकर वहीं लौट आये.
विष्णु जी ने स्वीकार किया कि वे प्रकाश स्तम्भ के आधार तक न पहुंच सके. किन्तु ब्रह्मा ने झूठ बोल दिया. बोले वे प्रकाश स्तम्भ के ऊपरी छोर तक पहुंच गये थे. वहां से केतकी (केवड़े) का फूल लेकर आये हैं. दरअसल शिवलिंग पर चढ़ाया गया केवड़े का फूल फिसलकर नीचे गिरा था. उसे ब्रह्मा ने बीच में पकड़ लिया और झूठा साक्ष्य देने के लिये अपने साथ ले आये. उनके बहकावे में केवड़े के फूल ने भी झूठ बोल दिया कि ब्रह्माजी उसे शिवलिंग के शिखर से उतार कर लाये हैं.
विष्णुजी ने हार स्वीकार कर ली.
उसी समय प्रकाश स्तम्भ से भगवान शिव प्रकट हुये. ब्रह्मा के झूठ के कारण वे बहुत क्रोध में थे. उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दिया कि पूज्य बनने के लिये झूठ का सहारा लिया. इसलिये तुम्हे कोई नही पूजेगा. उन्होंने ब्रह्मा जी के झूठ में शामिल होने के लिये केतकी (केवड़े) के पुष्प को भी श्रापित किया. कहा झूठ का साथ देने वाले केवड़े के पुष्प को मै कभी नही स्वीकार नहीं करुंगा. तब से केवड़े का फूल शिव जी को नही चढ़ाया जाता.
सत्य का साथ देने वाले विष्णुजी को भगवान शिव ने सर्व पूज्य देव घोषित किया. स्वयं देवों के देव महादेव बने.
तिलस्मी आयाम में स्थापित दैवीय शिवलिंग भी बहुत विशाल था. शिवप्रिया ने उनके समक्ष खुद को चीटी के आकार से भी छोटा देखा. शिवलिंग तक पहुंचने के दौरान शिवप्रिया के मार्गदर्शक विषधर सर्प का शिकार हुए. दैवीय शिवलिंग की रक्षा के लिये वहां संसार के सर्वाधिक विषधर सर्प नियुक्त हैं.
शिवप्रिया को वहां तक सुरक्षित पहुंचाने के प्रयास में उनके मार्गदर्शक एक विषधर का शिकार हो गये. उनकी चेतना मृत्यु की कगार पर पहुंच गई. उसी समय शिवप्रिया के लिये दूसरे मार्गदर्शक की नियुक्ति हुई. शिवप्रिया को निर्देश मिला कि वे नये मार्गदर्शक के साथ आगे बढ़ें. अन्यथा वे भी विषधरों का शिकार होकर उसी दुनिया में फंस जाएंगी. वहां हजारों साल से फंसे अनगिनत साधक विभिन्न जानवरों के रूप में निकलने के लिये छटपटा रहे हैं.
किन्तु शिवप्रिया ने पुराने मार्गदर्शक को मृत्यु के द्वार पर छोड़ कर नये मार्गदर्शक के साथ जाने से इंकार कर दिया. बोलीं परिणाम कुछ भी हो, मै आपको एेसे छोड़कर नही जाऊंगी. उन्होंने अपनी नाभि में स्थापित शिवलिंग को निकालकर उससे मार्गदर्शक को बचाने का आग्रह किया. शिवलिंग द्वारा राह दिखाये जाने पर वे एक गुलाबी फूल तक पहुंचीं. जिसमें विष समाप्त करने की क्षमता थी. उस पुष्प में भयानक जहर था. पुष्प को तोड़ते समय उस जहर के असर से शिवप्रया के दोनो हाथ बुरी तरह जल गये. उनकी हथेलियों के उर्जा चक्र नष्ट हो गये. हाथों में भारी जलन के कारण उन्होंने गुलाबी पुष्प को अपनी नाभि में स्थापित कर लिया. जिसके कारण उनका नाभि चक्र जलकर नष्ट हो गया. किसी तरह वे पुष्प को लेकर खतरे में पड़े अपने मार्गदर्शक तक पहुंच गईं.
उनकी हालत देकर मार्गदर्शक ने बड़े दुख के साथ कहा यह तुमने क्या किया. नाभि चक्र नष्ट होने के कारण तुम्हारी आगे की साधना बेकार हो सकती है, इससे तुम्हारी मृत्यु भी हो सकती थी. गुलाबी फूल को खाने से मार्गदर्शक ठीक हो गये. उन्होंने संजीवनी उपचार करके शिवप्रिया के नाभि चक्र और हथेलियों के चक्रों को उपचारित किया. (उस दिन की साधना पूरी होने के बाद जब शिवप्रिया सूक्ष्म यात्रा से बाहर आई तब उकी हथेलियों और नाभि में भयानक जलन और पीड़ा थी. उन्हें ठीक होने में तीन दिन लगे)।
मार्गदर्शक शिवदूत शिवप्रिया को लेकर विशाल शिवलिंग तक गये. वहां शिवप्रिया के शिवलिंग को नाभि से निकालकर विशाल शिवलिंग के पास रख दिया. काफी देर तक विशाल शिवलिंग की उर्जायें शिवप्रिया के शिवलिंग में प्रवाहित होती रहीं. जिससे उसके शिवलिंग की शक्तियां बहुत बढ़ गईं.
उस घटना के बाद मार्गदर्शक शिवदूत का शिवप्रिया के साथ विशेष जुड़ाव हो गया. उन्होंने शिवप्रिया को दैवीय संजीवनी उपचार सिखाया. जिसके परिणाम बड़े ही दिव्य होते हैं. सूक्ष्म दुनिया के मार्गदर्शक ने शिवप्रिया को रुद्राक्ष सिद्ध करने की दैवीय विधि सिखाई. जिससे रुद्राक्ष बड़े ही अलौकिक फलदायी हो जाते हैं. शिवप्रिया इन दिनों साधना से समय मिलने पर लोगों के लिये उसी दैवीय संजीवनी उपचार का उपयोग कर रही हैं. बताते चलें कि वे हर दिन कम से कम 20 लोगों का संजीवनी उपचार करती हैं. अदृश्य मार्गदर्शक के बताये विधान से उनके द्वारा सिद्ध किये गये रुद्राक्ष तन, मन, धन के सुख उत्पन्न करने में सक्षम सिद्ध हो रहे हैं.
विशाल शिवलिंग की उर्जाओं से शक्ति सम्पन्न हुए शिवप्रिया के शिवलिंग ने उन्हें मन की दुनिया में प्रवेश का रास्ता दे दिया है. जिसके दरवाजे मोक्ष तक पहुंचते हैं. तेरवें दिन की साधना में उन्हें मोक्ष के पार की दुनिया में ले जाया गया.
शिव शरणं।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: