शिवप्रिया की शिव सिद्धि…3

WhatsApp Image 2020-02-19 at 8.05.23 AM
शिवप्रिया की शिव सिद्धि…3
अनजानी दुनिया में प्रवेश: शिव से आमना सामना

सभी अपनों को राम राम
【इस दुनिया से उस दुनिया में जाने के अदृश्य दरवाजे जगह जगह हैं। उन्हें पहचानना और सूक्ष्म रूप से उनमें प्रवेश करना सिद्धों को आता है। शिवदूत शिवप्रिया की चेतना को अपने साथ लेकर चल दिये। राह अनजानी। फिर भी अपनेपन का अहसास था। दृश्य इस दुनिया से अलग होते गए। देव संगीत सुनाई देने लगा। अनजानी सुगंध मन मोह रही थी। सैकड़ों किलोमीटर की ऊंचाई चढ़ी गयी।】
राह अनजानी। फिर भी अपनेपन का अहसास था। दृश्य इस दुनिया से अलग होते गए। देव संगीत सुनाई देने लगा। अनजानी सुगंध मन मोह रही थी।*
अपने शिष्यों के लिये शिव गुरु की उदारता से परिचित होने के लिये हम शिवशिष्या शिवप्रिया की गहन साधना की चर्चा कर रहे हैं। स्वप्न के साधु बनकर शिव गुरु ने शिवप्रिया को सिद्धि साधना की प्रेरणा दी। स्वप्न्न में उन्हें शिव सिद्धि का विधान सिखाया। हाई डाइमेंशन में प्रवेश के लिये शिवदूतों की सहायता पहुंचाई।
कुछ साधकों ने हाई डाइमेंशन के बारे में जानने की इच्छा जताई है। पूछा है साधनाओं की सफलता में हाई  डाइमेंशन की क्या भूमिका होती है?
सवाल बड़ा ही सार्थक है। इसलिये इसके जवाब के साथ शिवप्रिया की साधना की तरफ बढ़ेंगे।
हाई डाइमेंशन अर्थात उच्च आयाम, सिद्धों और देवों की दुनिया है। हम थर्ड डाइमेंशन में रहते हैं। उससे ऊपर के सभी आयामों को हाई डाइमेंशन कहा जाता है।
उस दुनिया में सूक्ष्म शरीर ही प्रवेश पाते हैं। वहां जीवन के लिये पंचतत्वों की जरूरत नही होती। आत्मा की ऊर्जा ही जीवन चलाती है। वहां के लोग सूर्य की ऊर्जा को भोजन के रूप में सेवन करने का विज्ञान जानते हैं। चंद्र की शीतलता को अमृत के रूप में पीना जानते हैं। दूरी नापने के लिये मीटर, किलोमीटर, मील का पैमाना नही है। वहां के लोगों को मन की गति से चलना आता है।
उच्च डाइमेंशन का विज्ञान कल्पना से भी परे है।
वहां कोयला, डीजल, पेट्रोल, तेल, घी जैसे फ्यूल की जरूरत नहीं। उस दुनिया में लोग मंत्रों की ऊर्जा को ईंधन के रूप में उपयोग का विज्ञान जानते हैं। ब्रह्मांड की ऊर्जा को उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
उच्च आयामों की दुनिया बड़ी ही अलौकिक और चमत्कारिक है। वर्णन में ग्रंथ रच जाएंगे। संदर्भवश आगे भी हम वहां की विशेषताओं पर चर्चा करते रहेंगे।
इस दुनिया से उस दुनिया में जाने के अदृश्य दरवाजे जगह जगह हैं। उन्हें पहचानना और सूक्ष्म रूप से उनमें प्रवेश करना सिद्धों को आता है।
साधनाएं दो तरह की होती हैं। एक में साधक अपने भौतिक जीवन की जरूरतें पूरी करने के लिये दैवीय ऊर्जाएं अर्जित करते हैं। अर्जित ऊर्जाएं साधक की संसारी कामनाएं पूर्ण करती है।
दूसरी तरह की साधना उच्च आयामों में रहने वाले देवों तक पहुंचने के लिये की जाती हैं। जिससे अर्जित एनर्जी  साधक की ऊर्जा नाड़ियों में ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ा देती हैं। ऊर्जाओं का अत्यधिक वेग एक सीमा से आगे बढ़ने पर साधक की सूक्ष्म चेतना को शरीर से बाहर निकाल देता है। तब सूक्ष्म चेतना तीसरे आयाम से निकालकर उच्च आयाम में पहुंच जाती है।
सूक्ष्म जगत की शक्तियों के सहयोग से बिना साधना भी उच्च आयामों में प्रवेश पाया जा सकता है। कई आध्यात्मिक गुरुओं ने अपनी पुस्तकों में इस तरह की चर्चा की है। जब उनकी चेतना अपने अशरीरी गुरुओं या देवदूतों के साथ उच्च आयाम में पहुंची।
यह बात मात्र अनुमान या कल्पना नही है। उच्च आयाम में प्रवेश करने वाले साधकों की ऊर्जाओं को नापने का उपकरण बना पाते तो वैज्ञानिक इसे आसानी से प्रमाणित कर लेते।
उच्च आयाम में प्रवेश के अभ्यास को ही सिद्धि कहा जाता है। इस तरह से उच्च साधनाओं और उच्च आयाम की दुनिया में गहरा संबंध है।
साधना के दौरान साधक की सूक्ष्म चेतना उच्च आयाम में प्रवेश करती है। प्रवेश के बाद अलग अलग आयामों में अलग अलग दुनिया मिलती हैं। वहां की अनुभूतियां कैसी होती हैं। यह हम शिवप्रिया की साधना के माध्यम से जानेंगे।
साधना के दूसरे ही दिन शिवदूत की सहायता से शिवप्रिया की सूक्ष्म चेतना ने थर्ड डाइमेंशन का भेदन कर लिया। उच्च आयाम में प्रवेश हुआ।
शिवदूत उनकी चेतना को अपने साथ लेकर चल दिये।
राह अनजानी। फिर भी अपनेपन का अहसास था। दृश्य इस दुनिया से अलग होते गए। देव संगीत सुनाई देने लगा। अनजानी सुगंध मन मोह रही थी।
शिवदूत शिवप्रिया को लेकर आगे चलते रहे। पहाड़ी  राह की ऊंचाई बढ़ती जा रही थी। नापा जाता तो सैकड़ों किलोमीटर की ऊंचाई चढ़ी जा चुकी थी। मगर थकान का नामो निशान न था। बल्कि उत्साह और उमंग बढ़ते जा रहे थे।
मंजिल आ गयी। एक ऊंची बर्फीली पहाड़ी पर भगवान शिव बैठे दिखे। उनकी पीठ शिवप्रिया की तरफ थी। फासला अभी बाकी था। पीछे से शिव को देखकर शिवप्रिया उत्साहित होकर उनकी तरफ दौड़ सी पड़ीं। पास पहुंची तो शिव पलटे। उनकी आंखें चमक रही थीं। चमक इतनी कि हजारों सूर्य का तेज कम पड़ जाए। उनकी आंखों से निकलती रोशनी ने चेहरा ढक लिया। शिवप्रिया चेहरा न देख सकीं।
जाने क्या हुआ। शिवप्रिया की नजरें शिव की आंखों में अटक गईं। उन्हें रोना आ गया। वे सिसक पड़ीं। उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे। मंत्र चलता रहा। वे रोती रहीं, क्यों? इसका उत्तर न था। शिव ने उन्हें रोने से नही रोका। ऐसा लगभग दो घण्टे लगातार चला। आंसुओं में जन्मों के प्रारब्ध बह गए।
इतनी ही सरलता से शिव अपने शिष्यों को जन्मों के दोषों से मुक्त करके साधना पथ की रुकावटें हटा देते हैं।
आंखें खुलीं। मन्त्र रुका। जप रुका तो सिसकना भी रुक गया। आंसू थम गए। चेहरा गीला था। दूसरे दिन की साधना सम्पन्न हुई।
तीसरे दिन शिवदूत उन्हें अंधेरी सुरंग में ले गए। जहां के रास्ते साधकों के शरीर से निकलते दिव्य प्रकाश से रोशन थे। वहां शिव की गोद में समाधिष्ठ ऋषियों की उपस्थिति का सबब क्या था। यह हम आगे जानेंगे।
शिव शरणं

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: