
देवकी की सातवीं संतान को रोहणी के गर्भ में भेजकर खुद जेल में जन्म लेने पहुंचे भगवान
राम राम मैं शिवप्रिया ।
आगे की कथा सुनाते हुए श्री सुकदेव जी बोले -” देवकी के सातवे पुत्र के उनकी गर्भ में आते ही , देवकी को हर्ष महसूस होने लगा , क्यूंकि उनकी सातवीं संतान के रूप में उनकी गर्भ में और कोई नहीं बल्कि श्री शेष जी पधारे थे ।देवकी को अलौकिक हर्ष महसूस होने के बावजूद भी वो अत्यंत भय में थी की इस संतान को भी कंस मार देगा ।
जब विश्वात्मा भगवान ने देखा कि उनको अपना स्वामी मानने वाले सभी यदुवंशी , कंस के द्वारा प्रताड़ित किये जा रहे है । तब भगवान ने अपनी योगमाया को यह आदेश दिया -‘ देवी !आप व्रज में जाये ,वहां वासुदेव कि पत्नी रोहिणी निवास करती हैं । इस समय मेरा वह अंश जिसे शेष नाग कहते हैं , वह देवकी की गर्भ में स्थित हैं ।उसे वहां से निकलकर रोहिणी की गर्भ में प्रवेश करा दें ।
देवी ! कल्याणी ! अब मैं अपने समस्त ज्ञान , बल आदि अंशों के साथ देवकी का पुत्र बनूँगा और आप नन्दबाबा की पत्नी यशोदा की गर्भ से जन्म लेना ।आप मुहमांगे वरदान देने वाली होंगी ।मनुष्य आपकी आराधना और पूजा करेगा ।देवकी की गर्भ से खींचे जाने की वजह से शेष जी को लोग संसार में ‘संकर्षण’ कहेंगे , लोकरंजन करने के कारण ‘राम’ कहेंगे और बलवानो में श्रेष्ठ होने के कारण ‘बलभद्र’ भी कहेंगे ।’
जब योगमाया ने भगवान की आज्ञा का पालन करते हुए देवकी के गर्भ से शेष जी को ले जाकर रोहिणी के गर्भ में प्रवेश करा दिया, तब नगर वासी बड़े दुख के साथ आपस में कहने लगे-‘हाय! बेचारी देवकी का यह गर्भ नष्ट हो गया ।’
भगवान ने अपनी माया से वासुदेव जी के मन में अपना एक अंश स्थापित किया जिससे वासुदेव जी का तेज अत्यंत बढ़ गया। उसके बाद भगवान ने अद्भुद लीला रची और देवकी की गर्भ में विराजमान हो गए ।भगवान के गर्भ में विराजमान होते ही देवकी के चेहरे पर अलौकिक मुस्कान आगयी, पवित्र तेज दिखाई देने लगा और मन में रहस्यमई शांति छा गयी।
कंस भी देवकी के चेहरे का तेज देखते ही समझ गया। इस बार भगवान विष्णु का रूप जन्म लेने वाले हैं। जिसके बारे में आकाशवाणी हुई थी और नारद मुनि ने उसे बताया था। अब कंस भी बेसब्री से इस शिशु के जन्म की रह देखने लगा , ताकि जैसे ही जन्म हो वैसे ही वो इस शिशु का वाद करके आकाशवाणी को बदल दे ।
कुछ समय पश्चात् ब्रह्मा जी , शिव जी और समस्त देवी देवता भगवान की इस लीला को देखने के लिए आये और भगवान की स्तुति करके उनको नमन किया । तद्पश्चात नारद जी ने देवकी को बताया की उनकी गर्भ में स्वयं भगवान विष्णु प्रवेश कर चुके हैं और अब उन्हें कंस से भयभीत होनेकी बिलकुल भी ज़रुरत नहीं हैं ।
यदुवंशियों की रक्षा के लिए और पृथ्वी के कष्ट दूर करने के लिए भगवान जन्म लेने वाले हैं ।
कुछ समय बाद वह सुहानी रोहिणी नक्षत्र का पल आ गया । चारों ओर सुख शांति का माहौल हो गया , सारे पशु-पक्छी , पेड़-पौधे हर्ष और उल्लास से झूम उठे । जो लोग कंस का अत्याचार सह रहे थे उन सभी के मन में उम्मीद की किरण जग गयी और मन प्रसन्न हो गया ।सभी ऋषि-मुनि आनंद महसूस कर रहे थे। सभी देवी देवताओं के मन में ये अद्भुत लीला देखने का उत्साह था ।बिजली कड़कने लगी , बदल बरसने लगे , चारों ओर घाना अँधेरा , हवाएं तेज हो गयी ।इन्ही सब के बीच देवीस्वरूप देवकी की गर्भ से भगवान कृष्ण का जन्म हुआ ।
वासुदेव जी ने देखा उनके समक्ष एक अद्भुत बालक हैं ।उसके नेत्र कमल के समान कोमल और विशाल हैं । चार छोटे सुन्दर हाथों में शंख ,गदा,चक्र और कमल लिए हुए हैं ।शिशु में इतना तेज की नेत्र उनकी तरफ टिक नहीं पा रहे थे ।वसुदेवजी ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी बाँहों में ले लिया ।”
इस प्रकार हुआ भगवान कृष्ण का जन्म ।